- छह साल बाद बनी प्रदेश कमेटी में विरोधाभासों की भरमार : 35 महासचिव और 82 सचिव में अधिकांश की कोई पहचान नहीं
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की झारखंड प्रदेश इकाई इन दिनों लगातार सुर्खियों में बनी हुई है। झारखंड की सत्ता में लगभग बराबर की साझीदार कांग्रेस की चर्चा किसी सकारात्मक कारण से नहीं, बल्कि छह साल बाद इसकी प्रदेश कमिटी के गठन के कारण हो रही है। पूरे छह साल बाद बनायी गयी इस प्रदेश कमेटी का आकार इतना विशाल है कि कांग्रेसियों के बीच ही बात होने लगी है कि इतना विशाल बोझ उठाने में पार्टी की प्रदेश इकाई का कहीं दम ही न निकल जाये। इतना ही नहीं, प्रदेश कमेटी के 35 महासचिवों और 82 सचिवों में अधिकांश ऐसे चेहरे भी शामिल हैं, जिनकी झारखंड स्तर पर तो छोड़िए, मुहल्ले स्तर पर भी पहचान नहीं है। इसलिए इस कमेटी के गठन के साथ ही इसका विरोध भी शुरू हो गया है। यह विरोध इतना बढ़ गया है कि प्रदेश अध्यक्ष तक के साथ धक्का-मुक्की हो रही है। उनके नेतृत्व में कुछ लोग कमेटी में रहने से इनकार कर रहे हैं। मंत्री आलमगीर आलम तक के पुतले जलाये जा रहे हैं। पहले जिला अध्यक्षों की नियुक्ति पर विवाद हुआ था और अब जंबो प्रदेश कमेटी पर विवाद से पार्टी का जितना नुकसान हो रहा है, उसका अंदाजा भी इसके नेताओं को नहीं है। हालत यह है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंड में पार्टी को जो शानदार सफलता हासिल हुई थी, वह भी खतरे में दिखाई देने लगी है। उस चुनाव में ऐतिहासिक कामयाबी पाने के बाद कांग्रेस के भीतर जिस आत्मविश्वास और उत्साह का संचार हुआ था, अभी उसमें बहुत कमी आयी है और यह बात साफ तौर पर देखी जा रही है। झारखंड कांग्रेस की इसी दुविधा की स्थिति का आकलन कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
करीब तीन साल पहले बोकारो के कद्दावर नेता साधु शरण गोप ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। पांच दिन पहले गठित झारखंड कांग्रेस कमिटी में उन्हें सचिव बनाया गया था। लेकिन इसकी अधिसूचना जारी होने के कुछ ही देर बाद उन्होंने यह कहते हुए सचिव पद से इस्तीफा दे दिया कि यह उनकी तौहीन है। उन्होंने अपने इस्तीफे में लिखा कि वह बोकारो विधानसभा क्षेत्र में 781 वोट लाने वाले जिला अध्यक्ष और 1116 वोट लाने वाले प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व में काम नहीं कर सकते। इसलिए वह प्रदेश सचिव पद से इस्तीफा दे रहे हैं। साधु शरण गोप का इस्तीफानामा झारखंड कांग्रेस की अंदरूनी हालत की एक बानगी भर है। इस कमेटी में ऐसे चेहरों की भरमार है, जिनकी पहचान प्रदेश स्तर पर क्या, मुहल्ले स्तर पर भी नहीं है और विरोध इसी बात का हो रहा है। कांग्रेस के एक और नेता से इस संवाददाता की गुरुवार को बातचीत हो रही थी। वह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। खुद की पकड़ इतनी है झारखंड के कोने-कोने के लोग उन्हें पहचानते हैं। उन्हें नयी कमेटी में महासचिव बनाया गया है। इस संवाददाता ने उन्हें बधाई देने के इरादे से फोन किया। उधर से आवाज आयी, क्या भाई, क्यों मजाक बना रहे हैं। क्यों, महासचिव बनने से खुश नहीं हैं। बोले-क्या महासचिव बनना। ऐसे-ऐसे लोगों को महासचिव बना दिया गया है, जिनके बीच खड़ा होने में घुटन होगी। अच्छा होता, हमें महासचिव नहीं बनाया जाता। ऐसे भी, अगर कभी मुख्यालय में कांग्रेसजनों की बैठक बुला दी गयी और उसमें 35 महासचिव पहुंच गये, तो वे बैठेंगे कहां। इससे समझा जा सकता है कि इस जंबो कमेटी लेकर लोगों की क्या धारणा है।
दरअसल झारखंड कांग्रेस में छह साल के बाद प्रदेश कमेटी का गठन किया गया है। इस कमेटी का आकार इतना बड़ा है कि कांग्रेसी ही दुविधा में पड़ गये हैं। झारखंड कांग्रेस में 11 उपाध्यक्ष के अलावा 35 महासचिव और 82 सचिव बनाये गये हैं। इसके अलावा प्रदेश कार्यसमिति में 33 नेताओं को स्थान दिया गया है। तीन दर्जन अन्य लोगों को आमंत्रित सदस्य के रूप में कार्यसमिति में स्थान दिया गया है। झारखंड कांग्रेस में पहली बार राजनीतिक मामलों की समिति का भी गठन किया गया है।
छह साल पहले बनी थी कमेटी
बता दें कि झारखंड कांग्रेस में करीब छह साल बाद प्रदेश कमेटी का गठन किया गया है। इससे पहले 2016 में प्रदेश कमेटी का गठन किया गया था। तब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत थे, मगर साल भर के अंदर ही नवंबर 2017 में इस कमेटी को भंग कर दिया गया। इसके बाद कांग्रेस के अध्यक्ष भी बदले। पहले डॉ अजय कुमार और फिर डॉ रामेश्वर उरांव प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहे, मगर वे दोनों अपने कार्यकाल के दौरान प्रदेश कमेटी का गठन नहीं कर पाये। अब जब प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर हैं, तो उनके नेतृत्व में प्रदेश कमेटी, कार्यकारिणी और पहली बार राजनीतिक मामलों की कमेटी का गठन किया गया है।
प्रदेश कमेटी गठन का मुख्य उद्देश्य
कांग्रेस की प्रदेश कमेटी के गठन का मुख्य उद्देश्य पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरना है। इस कार्यकारिणी और राजनीतिक मामलों की कमेटी में प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ आम कार्यकर्ताओं को भी जगह दी गयी है। पार्टी नेतृत्व को उम्मीद है कि इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में जोश बढ़ेगा और साथ ही वे संगठन की मजबूती के लिए काम करेंगे।
पार्टी के अंदर विरोध भी शुरू
प्रदेश कमेटी के गठन के बाद कांग्रेस को उम्मीद थी कि इससे कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ेगा और पार्टी को नयी मजबूती मिलेगी। मगर इसके उलट पार्टी के अंदर बगावत शुरू हो गयी है। साधु शरण गोप के बाद कई ऐसे पदधारी भी कतार में हैं, जो इस्तीफा देने का मन बना रहे हैं। इन सभी की तकलीफ एक ही है। इतना ही नहीं, ये सभी एक ही श्रेणी के कांग्रेसी हैं, जिनके बल पर पार्टी खड़ी रहती है, यानी ये सभी समर्पित कांग्रेसी हैं। इनका कहना है कि चाहे महासचिव हों या सचिव, ऐसे-ऐसे चेहरों को इन पदों पर नियुक्त किया गया है, जिन्हें आम कांग्रेसी पहचानता भी नहीं है। एक पुराने कांग्रेसी ने तो सवाल उठाया कि यदि पार्टी के किसी कार्यक्रम में तमाम महासचिवों और सचिवों को मंच पर जगह देनी हो, तो उस मंच का आकार कितना बड़ा होगा, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं, कुछ पुराने कांग्रेसियों ने तो यहां तक कहा कि वे ऐसे महासचिव या सचिव के साथ काम करने में भी शर्मिंदगी महसूस करते हैं, जिनकी अपने ही इलाके में कोई पहचान नहीं है। इसके अलावा एक विरोध यह भी है कि पार्टी के कई कार्यकर्ता ऐसे हैं, जो सालों से पार्टी से जुड़े हुए हैं, लेकिन उन्हें प्रदेश कमेटी में कोई स्थान नहीं मिला है। वहीं एक नेता को कई जिम्मेदारी सौंपी जा रही है।
चार मंत्री और दो विधायकों को मिली जगह
कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी और राजनीतिक मामलों की कमेटी में कांग्रेस कोटे के चारों मंत्रियों के अलावा सिर्फ दो विधायकों को जगह मिली है। प्रदीप यादव और दीपिका पांडेय सिंह विधायक हैं, जिन्हें इस कमेटी में जगह मिली है। इसके अलावा मंत्री आलमगीर आलम, डॉ रामेश्वर उरांव, बन्ना गुप्ता और बादल पत्रलेख को कमेटी में शामिल किया गया है। इन चारों मंत्रियों और दोनों विधायकों को प्रदेश कार्यकारिणी और राजनीतिक मामलों की कमेटी में भी शामिल किया गया है, लेकिन और किसी भी विधायक को इस कमेटी में जगह नहीं मिली है। इसके अलावा कांग्रेस में चार महिला विधायक हैं, लेकिन सिर्फ एक ही महिला विधायक को इस कमेटी में जगह मिली है। और वह भी शायद इसलिए कि वह राष्टÑीय सचिव हैं। मंत्री और विधायक के अलावा और भी कई ऐसे नेता हैं, जिन्हें इस कमेटी में जगह नहीं मिली है। उनकी तरफ से विरोध भी शुरू हो चुका है।
प्रदेश अध्यक्ष के साथ धक्का-मुक्की
प्रदेश कमेटी के प्रति विरोध इतना बढ़ गया कि 14 दिसंबर को जामताड़ा में भारत जोड़ो यात्रा कार्यक्रम में प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर को कार्यकर्ताओं ने धक्का तक दे दिया। इतना ही नहीं, उनकी जेब भी काट ली गयी। अब तक कांग्रेसियों के दो गुट आपस में लड़ते-भिड़ते थे, लेकिन अब तो सीधे प्रदेश अध्यक्ष को भी निशाना बनाया जा रहा है। यह बेहद दुखद स्थिति है।
जिला अध्यक्षों की नियुक्ति पर भी हुआ था विवाद
प्रदेश कमेटी के गठन से ठीक पहले झारखंड के 24 जिलों के कांग्रेस अध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर भी विवाद हुआ था। उस सूची में न कोई मुस्लिम था और न कोई दलित। विरोध के दौरान यहां तक कहा गया कि प्रदेश प्रभारी कांग्रेस का ‘भगवाकरण’ कर रहे हैं। तब प्रदेश अध्यक्ष ने बड़ी मुश्किल से डैमेज कंट्रोल किया था और चार जिला अध्यक्षों को बदल दिया गया था। अब उसमें भी साहिबगंज को लेकर थूकम पैजार हो रही है। वहां मंत्री आलमगीर आलम के खिलाफ कार्यकर्ताओं में बगावत हो गयी है। कभी धरना, तो कभी प्रदर्शन तो कभी पुतला दहन तक हो रहा है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि साहिबगंज पर मंत्री आलमगीर आलम के परिवार और परिचितों का कब्जा है।
जाहिर है, कांग्रेस के भीतर की यह स्थिति झारखंड के राजनीतिक भविष्य के लिए भी खतरनाक है, क्योंकि यह पार्टी सरकार में साझीदार है और इसके भीतर के असंतोष का असर सरकार की सेहत पर भी पड़ना स्वाभाविक है। ऐसे में झारखंड कांग्रेस को एक ओवरहॉलिंग की जरूरत है। कांग्रेस आलाकमान जितनी जल्दी यह बात समझ ले, स्थिति उतनी ही अनुकूल होगी, अन्यथा झारखंड में भी किसी अनहोनी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।