विशेष
-क्राउड फंडिंग या संगठन में मामूली फेरबदल से नहीं होेगा पार्टी का बेड़ा पार
-बुजुर्ग और पुराने चेहरों की बजाय युवा कंधों पर करना होगा अधिक भरोसा
पांच राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में शर्मनाक पराजय झेलनेवाली कांग्रेस ने 2024 के लिए एक मेगा प्लान तैयार किया है, जिस पर अमल कर वह राजनीति की मुख्यधारा में वापस आने की संभावना देख रही है। यह प्लान चार सूत्री है, जिसमें पहला पार्टी को गांधी-नेहरू की छाया से दूर कर मल्लिकार्जुन खड़गे को पीएम पद का चेहरा घोषित करना। कांग्रेसी प्लान का दूसरा बिंदु संगठनात्मक फेरबदल कर युवा कंधों पर अधिक जिम्मेवारी देना है, जिसकी शुरूआत मध्यप्रदेश से कर दी गयी है। प्लान के तीसरे चरण में विपक्षी इंडी अलायंस के सहयोगियों के बीच समन्वय स्थापित कर सीट शेयरिंग को जल्द से जल्द अंतिम रूप देना है और अंतिम चरण में बेरोजगारी और महंगाई के साथ जातिगत जनगणना का मुद्दा जोर-शोर से उठाना है। कांग्रेस आलाकमान ने यह मेगा प्लान तो तैयार कर लिया है, लेकिन उसे शायद इस बात का अंदाजा नहीं है कि उसका यह प्लान तब तक कारगर नहीं हो सकता, जब तक कि वह अपने शीर्षस्थ नेताओं की जिम्मेवारियों और योगदान का ईमानदारी से मूल्यांकन नहीं करता। 138 साल पुरानी पार्टी यदि गांधी-नेहरू परिवार की छाया से अलग होने का हिम्मत जुटा लेती है, तो इसकी कीमत चुकाने के लिए उसे तैयार रहना होगा। कागज पर तो इसे कहा जा सकता है, लेकिन इसे धरातल पर उतारना कठिन है। संगठन में भी मामूली फेरबदल से पार्टी का काम नहीं चलनेवाला है, बल्कि बड़े स्तर पर उसे यह एक्सरसाइज करना होगा। इसके अलावा गठबंधन के सहयोगियों को विश्वास में लिये बिना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर देना, अलायंस के साथ न्याय नहीं है। कांग्रेस के इस मेगा प्लान में क्या कमजोरियां हैं और 2024 में इसका क्या असर हो सकता है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी के आलाकमान की चिंता बढ़ गयी है। पार्टी ने हिंदी पट्टी में अपना प्रदर्शन सुधारने के लिए एक साथ कई मोर्चों पर काम करना शुरू कर दिया है। पार्टी जानती है कि 2024 का चुनाव उसके लिए ‘करो या मरो’ जैसा है, क्योंकि यदि वह इस चुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं करती है, तो दोबारा खड़ा होना उसके लिए असंभव हो जायेगा। इसलिए कांग्रेस ने 2024 के आम चुनावों की रणनीति पर विचार-विमर्श करने और भाजपा से मुकाबला करने के लिए एक मेगा प्लान तैयार किया है। खास बात यह है कि इस प्लान पर काम भी शुरू कर दिया गया है। कांग्रेस ने इस मेगा प्लान को अधिक धारदार बनाने के लिए 21 दिसंबर को अपनी कार्यसमिति की बैठक बुलायी है। इससे पहले 19 दिसंबर को इंडी अलायंस की बैठक भी होगी, जिसमें सीट शेयरिंग और प्रचार अभियान पर चर्चा किये जाने की संभावना है। इसके अलावा बैठक में नीतीश कुमार को गठबंधन का संयोजक बनाये जाने के प्रस्ताव पर भी विचार किया जा सकता है। कांग्रेस ने संकेत दिया है कि वह गठबंधन की बैठक में ‘मैं’ की बजाय ‘हम’ पर जोर देगी, यानी अब कांग्रेस सामूहिक ताकत का सहारा लेने के लिए तैयार है। बैठक में एक मुख्य सकारात्मक एजेंडा बनाने, सीट के बंटवारे और संयुक्त रैलियां आयोजित करने के कार्यक्रम पर चर्चा हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों का इरादा एकजुटता बनाये रखते हुए ‘मैं नहीं, हम’ नारे के साथ आगे बढ़ने का है। बैठक में बेरोजगारी, महंगाई और जातिगत जनगणना जैसे मुद्दों को चुनाव के केंद्र में लाने के लिए रणनीति भी तैयार की जायेगी।
गांधी-नेहरू परिवार की छाया से बाहर निकलेगी पार्टी
कांग्रेस के मेगा प्लान का पहला हिस्सा पार्टी को गांधी-नेहरू परिवार की छाया से बाहर निकालने से संबंधित है। इसके तहत राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी को पार्टी संगठन की जिम्मेदारियों से मुक्त कर प्रचार अभियान के लिए सुरक्षित रखा जायेगा। इसके अलावा राहुल गांधी द्वारा भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा संस्करण भी शुरू किये जाने की संभावना है। यह यात्रा पश्चिम से पूर्वोत्तर के बीच होगी। सोनिया गांधी हमेशा की तरह पार्टी की ‘गाइडिंग फोर्स’ बनी रहेंगी। लेकिन कांग्रेस की यह योजना कितनी कारगर होगी, इस पर अभी संदेह है। पुराने कांग्रेसियों का कहना है कि गांधी-नेहरू परिवार की छाया से बाहर आते ही पार्टी के बिखरने का खतरा पैदा हो जायेगा। उस स्थिति में 2024 में पार्टी की संभावनाएं कमजोर पड़ जायेंगी।
खड़गे होंगे पीएम पद के उम्मीदवार
कांग्रेस के मेगा प्लान का दूसरा बिंदु पीएम पद का चेहरा है। कांग्रेस पहले राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाने के लिए तैयार थी, लेकिन हिंदी पट्टी के राज्यों में हुई पराजय ने कांग्रेस आलाकमान को अपना फैसला बदलने पर मजबूर कर दिया है। अब कांग्रेस ने इस पद के लिए पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे करने का फैसला किया है। सोनिया गांधी ने कहा भी है कि खड़गे भारत की आत्मा के लिए इस ऐतिहासिक लड़ाई में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व करने के लिए सबसे उपयुक्त हैं। लेकिन यह कड़वी सच्चाई है कि मल्लिकार्जुन खड़गे का चेहरा हिंदी पट्टी के लोगों को आकर्षित करने में कारगर नहीं होगा।
इस फैसले में सबसे बड़ा पेंच खड़गे की उम्र और गठबंधन के दूसरे सहयोगियों की रजामंदी भी हो सकती है। खड़गे 81 साल के हो चुके हैं और उम्र का यह पड़ाव उन्हें पीएम पद के सर्वथा अयोग्य बनाता है, क्योंकि इस बड़ी जिम्मेदारी को निभाने के लिए जिस ऊर्जा की जरूरत होती है, वह खड़गे में अब नहीं हो सकती। उन्हें पीएम पद का प्रत्याशी बनाया जाये या नहीं, यह फैसला यदि केवल कांग्रेस करती है और गठबंधन के दूसरे घटक इसके लिए तैयार नहीं होते हैं, तो यह रणनीति बुरी तरह पिट जायेगी। नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे नेता कांग्रेस के इस फैसले को मानेंगे, इसमें अभी से संदेह व्यक्त किये जाने लगे हैं।
क्राउड फंडिंग के जरिये लोगों के पास जायेगी कांग्रेस
कांग्रेस के मेगा प्लान का तीसरा चरण क्राउड फंडिंग के जरिये लोगों के पास जाना है। कांग्रेस इन दिनों आर्थिक संकट से गुजर रही है और पार्टी ने इस संकट से उबरने के लिए रणनीति बना ली है। पार्टी जल्द ही एक राष्ट्रव्यापी क्राउड फंडिंग अभियान शुरू करेगी। इसके तहत आम लोगों से 1380 रुपये या उससे अधिक की सहयोग राशि मांगी जायेगी। यह रकम आॅनलाइन या आॅफलाइन मोड में दी जा सकेगी और इसके बदले में सहयोग देनेवालों को सोनिया गांधी, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पार्टी कोषाध्यक्ष अजय माकन के हस्ताक्षर वाला प्रमाण पत्र दिया जायेगा। पार्टी का मानना है कि आम लोगों से आर्थिक मदद मांग कर उनके साथ आसानी से जुड़ा जा सकता है। कांग्रेस के पास 805.68 करोड़ रुपये की संपत्ति है। इसकी तुलना में भारतीय जनता पार्टी के पास 6,046.81 करोड़ रुपये हैं। पिछले सात वर्षों में कांग्रेस के लिए कॉरपोरेट चंदा भी लगातार कम हुआ है, जबकि भाजपा लगातार बढ़ रही है। जनता से चंदा मांगने का कांग्रेस का कदम आम आदमी पार्टी की तर्ज पर प्रतीत होता है, जो आॅनलाइन चंदा मांगती है। पार्टी 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए भी इस रास्ते पर चली गयी थी, क्योंकि उसके कुछ कार्यालयों को चलाने के लिए धन खत्म हो गया था। इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने ‘लंच विद सीएम’ कार्यक्रम शुरू किया था। इसमें आम लोगों को अरविंद केजरीवाल के साथ लंच और डिनर करने का मौका मिला था। इसके बदले उन्हें पार्टी फंड में पैसे देने होते थे। कांग्रेस भी इसी तर्ज पर अभियान शुरू कर सकती है।
संगठनात्मक फेरबदल की शुरूआत
कांग्रेस के मेगा प्लान का अंतिम चरण संगठनात्मक फेरबदल है। इसकी शुरूआत भी कर दी गयी है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ की जगह जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। उमंग सिंघार को नेता प्रतिपक्ष और हेमंत कटारे को उपनेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। ये सभी युवा चेहरे हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के दिग्गज नेता चरण दास महंत को विधायक दल का नेता नियुक्त किया गया है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि केवल इन दो राज्यों से ही काम नहीं चलेगा। पार्टी को केंद्रीय स्तर पर भी बड़े बदलाव करने की जरूरत है। ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस संगठन में कितना बदलाव करती है।
कुल मिला कर कांग्रेस का यह मेगा प्लान चुनाव जिताने का काम, पार्टी के भीतर गुटबाजी का नया दौर शुरू करने का प्रयास अधिक दिखता है। अब यह तो समय ही बतायेगा कि कांग्रेस का यह प्लान कितना कारगर होता है।