विशेष
राजधानी से लेकर कस्बों तक में लगातार बढ़ रही हैं घटनाएं
बेटियों की सुरक्षा अब सामाजिक चिंता का विषय बन गयी है
सीएम हेमंत का हंटर ही मनचलों को रोक सकता है
जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करने की जरूरत
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड इन दिनों एक अजीब किस्म का तनाव झेल रहा है। यह तनाव बेटियों की सुरक्षा को लेकर है। राज्य में बेटियों के साथ, महिलाओं के साथ छेड़खानी और हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। झारखंड के लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि राज्य के विकास में महिलाएं भी योगदान देती हैं, हर क्षेत्र में वे पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ रही हैं, फिर भी वे डर के साये में क्यों जी रही हैं। चार साल की मासूम से लेकर 60 साल तक की बुजुर्ग महिलाओं के साथ छेड़खानी और गलत व्यवहार की खबरों ने झारखंड के लोगों को ही नहीं, पुलिस प्रशासन को भी चिंता में डाल दिया है। हाल के दिनों में ऐसी घटनाएं अचानक बढ़ गयी हैं। घर से बाहर निकलते ही लड़कियों को इन विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है और वे लोकलाज के कारण अपने परिजनों को इसकी जानकारी नहीं देती हैं। इससे छोड़खानी करनेवालों की हिम्मत बढ़ रही है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाये जाने के बाद पुलिस प्रशासन छेड़खानी करनेवालों के खिलाफ सक्रिय तो हुआ है, लेकिन सामाजिक सहयोग के बिना इस समस्या को ख्रत्म करना बेहद मुश्किल है, क्योंकि लड़कियों के साथ उनके परिचित भी अब अक्सर गलत व्यवहार करने लगे हैं। कई मामलों में तो स्कूलों में शिक्षक ही आरोपी निकल रहे हैं। झारखंड में अब यह समस्या इतनी गंभीर हो गयी है कि इस पर नियंत्रण पुलिस प्रशासन के लिए चुनौती है। क्या है महिलाओं और बच्चियों से छोड़खानी का मनोविज्ञान और क्यों नहीं रुक रही हैं ऐसी घटनाएं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
पिछले करीब एक पखवाड़े से झारखंड अपनी बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंता में डूबा हुआ है। मासूम बच्चियों से लेकर बुजुर्ग महिलाओं के साथ सरेराह छेड़खानी और हिंसा की बढ़ती घटनाओं ने जहां लोगों को चिंता में डाल दिया है, वहीं पुलिस प्रशासन के सामने इन घटनाओं पर नियंत्रण की चुनौती भी पेश कर दी है। ऐसा नहीं है कि ये घटनाएं केवल बड़े शहरों या कस्बों में हो रही हैं। यह बीमारी अब ग्रामीण अंचलों तक पहुंच गयी है।
यह तथ्य है कि पूरे झारखंड में हाल के दिनों में लड़कियों के साथ छेड़खानी के मामले बढ़ते जा रहे हैं। पिछले एक पखवाड़े में पूरे राज्य में छेड़खानी के करीब चार दर्जन मामले सामने आये। इसके बाद कई मामलों में पुलिस का एक्शन भी देखने को मिला। इसके बावजूद मनचलों का आतंक सिर चढ़ कर बोल रहा है। वे बेखौफ होकर छात्राओं को अपना निशाना बना रहे हैं। एक तरफ पुलिस दावा कर रही है कि रांची में बेटियों की सुरक्षा की जिम्मेवारी पुलिस की है। सुरक्षा के लिहाज से 100-112 और शक्ति एप का प्रचार किया जा रहा है और दूसरी तरफ लड़कियों के खिलाफ अपराध बढ़ रहा है। अब तो यह सवाल उठने लगा है कि क्या पुलिस प्रशासन के इतना भर करने से बेटियां सुरक्षित हैं।
बात शुरू करते हैं राजधानी रांची से। कोतवाली थाना क्षेत्र में स्कूली छात्राओं के साथ अश्लील हरकत और छेड़खानी करने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इसे लेकर गंभीर हुए। उन्होंने हर हाल में आरोपी को पकड़ने और ऐसी घटनाओं को रोकने का आदेश दिया। घटना के तीन दिन बाद पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने आरोपी को सड़क पर परेड करवाया, ताकि पुलिस का डर मनचलों में बने। इसके बाद आरोपी को जेल भेज दिया गया। इसके बाद रांची के शहरी और ग्रामीण इलाकों में पुलिस ने मार्च निकाला। स्कूल-कॉलेज पहुंच कर छात्राओं को भरोसा दिया कि पुलिस तत्परता से मौजूद है। लेकिन ठीक मार्च करने के छह घंटे बाद जब एक मनचले को पुलिस पकड़ने गयी, तो टीम पर ही हमला कर दिया गया। खुद पुलिस को वापस लौटना पड़ा। बाद में कई लोगों पर मुकदमा भी दर्ज किया गया।
एक-एक कर सभी मामलों पर नजर डालें, तो यह सोचने पर हर कोई मजबूर हो जायेगा कि आखिर जब भीड़-भाड़ वाले इलाकों में पुलिस का खौफ मनचलों में नहीं है, तो ग्रामीण और सन्नाटा वाले क्षेत्रों में हालात कैसे होंगे। रांची के अपर बाजार का क्षेत्र, जहां भीड़-भाड़ रहती है, सुबह से लेकर रात तक इलाका गुलजार रहता है, वहां एक नहीं, दर्जनों छात्राओं के साथ अश्लील हरकत की गयी। इसके बाद मेन रोड में सर्जना चौक और सदर अस्पताल के पास छेड़खानी की वारदात सामने आयी। मामला यही नहीं रुका, बल्कि एक-एक कर बढ़ता चला गया। तीसरा मामला गाड़ीखाना चौक के पास सामने आया। इसके बाद सुखदेवनगर क्षेत्र में नाबालिग को तेजाब डालने तक की धमकी दी गयी। इन सभी वारदातों में पुलिस ने अब तक सिर्फ अपर बाजार के मामले का खुलासा किया है। बाकी मामलों में पुलिस सिर्फ छापेमारी कर रही है। शायद पुलिस भी सुस्त इसलिए है, क्योंकि आरोपी की गिरफ्तारी के लिए अब तक ऊपर से आदेश नहीं आया है। पुलिस सोच रही है कि आराम से आरोपी को पकड़ कर सलाखों के पीछे भेजेंगे।
राजधानी रांची को छोड़ दें, तो राज्य के हर कोने से लड़कियों से छेड़खानी की खबरें लगातार आ रही हैं। कस्बों और गांवों में भी इस तरह की वारदात हो रही है। सबसे अचरज वाली बात यह है कि अधिकांश मामलों में वारदात में शामिल आरोपियों को पुलिस नहीं पकड़ती है, बल्कि परिजन और आम लोग ही आरोपी को पकड़ कर पुलिस को सौंप रहे हैं। इस कारण सवालों के घेरे में पूरा पुलिस महकमा है। आखिर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ दिखावा क्यों किया जा रहा है। अपराधियों और मनचलों का मनोबल इतना कैसे बढ़ गया है।
बेटियों की सुरक्षा के इंतजाम
इस पूरे प्रकरण में यह जानना जरूरी है कि बेटियों की सुरक्षा के लिए झारखंड में क्या इंतजाम हैं। इसमें डायल 100 और 112 के साथ शक्ति एप का हवाला दिया जा रहा है। दावा है कि इस नंबर पर कॉल करने के बाद तुरंत कार्रवाई की जायेगी। अब सवाल यह है कि आखिर छोटी और गरीब बच्चियों का क्या, जिनके पास मोबाइल फोन ही नहीं रहता है। इसके लिए पुलिस प्रशासन के पास क्या प्लान है। क्या पुलिस पेट्रोलिंग बढ़ा नहीं सकती है। क्या पुलिस बल की कमी हो गयी है। शहरों में स्कूलों-कॉलेजों के आसपास तो पुलिसकर्मियों को तैनात किया जा रहा है, लेकिन स्कूल-कॉलेज आते-जाते समय बच्चियों को जिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है, उससे उन्हें निजात कैसे दिलायी जाये, इस पर कोई नहीं सोचता।
पुलिस प्रशासन ही नहीं, समाज की भी चुनौती
लड़कियों के साथ छेड़खानी और हिंसा पूरे समाज के लिए कलंक है। जिस झारखंड में बेटियों को बेटों से अधिक सम्मान दिये जाने की परंपरा है, जो समाज लैंगिक समानता के लिए पूरी दुनिया में चर्चित है और जहां लैंगिक अनुपात भी दूसरे राज्यों की अपेक्षा बेहतर है, वहां की बेटियां यदि छेड़खानी और हिंसा के कारण घरों में कैद हो जा रही हैं, तो यह पूरे समाज के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ अपराध केवल कानून-व्यवस्था का मामला नहीं है। पुलिस प्रशासन पर इस तरह की घटनाओं को रोकने की जिम्मेदारी है, लेकिन इसके साथ ही समाज की भी जिम्मेदारी है कि वह अपने बेटों को छेड़खानी या हिंसा नहीं करने की शिक्षा दे।