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यातायात नियंत्रण नहीं, जुमार्ना वसूली रह गया है ट्रैफिक पुलिस का उद्देश्य
बिजली बिल और लगान वसूली पर ध्यान नहीं, केवल फाइन पर है फोकस
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड की राजधानी रांची की सड़कों पर इन दिनों एक अदृश्य आतंक फैला हुआ है। यह आतंक है ट्रैफिक चालान का। राजधानी के हर प्रमुख चौक-चौराहों पर लगे यातायात नियंत्रण कैमरे से यह चालान काटा जा रहा है। जो लोग वाहन चलाते समय यातायात नियमों का उल्लंघन करते हैं, उन्हें चालान काटे जाने की सूचना मोबाइल पर दी जाती है और जुमार्ना अदा करने का नोटिस भेजा जाता है। यह अभियान इतनी तेजी से चल रहा है कि रांची की सड़कों पर वाहन चलानेवाला हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी नियम के उल्लंघन में पकड़ा जा चुका है और उसका चालान कट चुका है। सबसे दिलचस्प यह है कि यह चालान कैसे और कहां कट रहा है, इसकी जानकारी वाहन चालकों को नहीं हो रही है। उन्हें इसका पता तब चलता है, जब उनके मोबाइल पर इसका मैसेज आता है। इस पूरे प्रकरण में सबसे अहम बात यह है कि यह अभियान केवल रांची में चल रहा है, यानी ओरमांझी या कांके में ट्रैफिक चालान का कोई डर नहीं है। एक और दिलचस्प बात यह है कि आम लोगों को केवल ट्रैफिक के मामले में ही नियम पालन के लिए कहा जा रहा है, बिजली बिल या जमीन लगान की वसूली के लिए कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं है। लोग अब कहने लगे हैं कि यह सिस्टम केवल लोगों को परेशान करने के लिए है। यातायात नियंत्रण की दिशा में पुलिस कभी सक्रिय नहीं होती है, लेकिन जुमार्ना वसूलने के लिए हमेशा तैयार बैठी रहती है। रांची की सड़कों पर पसरे इस ट्रैफिक चालान के आतंक की पृष्ठभूमि में सिस्टम की मनमानी का क्या हो रहा है असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
बात शुरू करने से पहले दो कहानियां आपको सुनाते हैं। पहली कहानी ओरमांझी के रहनेवाले अशोक भगत की है, जो हर दिन अपने घर से सैनिक बाजार स्थित एक प्रतिष्ठान में काम करने अपनी बाइक से आते हैं। तीन दिन पहले उन्होंने अपने मोबाइल पर एक मैसेज देखा, जिसमें कहा गया था कि उन्होंने पिछले एक महीने में आठ बार ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन किया है और उन्हें कुल 17 हजार रुपये का जुमार्ना भरना है। अशोक भगत आश्चर्य में पड़ गये। वेबसाइट पर जाकर देखा, तो अधिकांश चालान गति सीमा के उल्लंघन का था। दो चालान पीछे बैठनेवाली सवारी के हेलमेट नहीं पहनने के कारण काटा गया था।
दूसरी कहानी रांची के कोकर में रहनेवाले कपिलदेव सिंह की है। वह दिहाड़ी का काम करते हैं और किराये के मकान में रहते हैं। हर महीने नियमित रूप से किराया देते हैं, लेकिन पिछले चार महीने से उनके पास बिजली बिल नहीं आया है। वह बिजली आॅफिस का चक्कर लगा कर थक चुके हैं। अधिकारियों से कह चुके हैं कि एक साथ यदि चार महीने का बिल आयेगा, तो वह कहां से जमा करेंगे। वह बिल जमा करने के लिए तैयार हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
ये दो कहानियां यह बताने के लिए काफी हैं कि झारखंड का सिस्टम कैसे काम कर रहा है। सरकार राजस्व वसूली पर फोकस कर रही है, लेकिन जहां से उसे राजस्व मिल सकता है, उधर उसका ध्यान नहीं है। अब ट्रैफिक पुलिस की ही बात कर लें। यदि आप रांची के किसी भी इलाके में वाहन लेकर जा रहे हैं, तो सावधान हो जायें। आप चाहे नजदीक में जा रहे हैं या दूर तक सफर कर रहे हैं, यातायात का एक भी नियम तोड़ा, तो चंद मिनट में आपका इ-चालान कट जायेगा। दूसरे शब्दों में कहा जाये, तो रांची की सड़कों पर इन दिनों ट्रैफिक चालान का आतंक पसरा हुआ है। इसके जाल में कब कहां और कौन फंसेगा, कहा नहीं जा सकता। पिछले एक महीने में रांची में करीब सवा लाख लाख चालान कट चुके हैं और लोगों पर एक करोड़ रुपये का जुमार्ना लगाया जा चुका है। यह जुमार्ना दोपहिया वाहन की पिछली सीट पर बैठी सवारी के हेलमेट नहीं पहनने, चारपहिया वाहनों की सामने की सीट पर बैठे यात्रियों द्वारा सीट बेल्ट नहीं लगाने, रेड लाइट जंप करने, गति सीमा के उल्लंघन और गलत दिशा से वाहन चलाने समेत अन्य अपराधों के लिए लगाये गये हैं। सीट बेल्ट और रेड लाइट जंप का चालान ऑफलाइन काटा जा रहा है। अधिकारी दावा करते हैं कि रांची के सभी इलाकों में स्वचालित यातायात नियंत्रण प्रणाली कार्यरत है। इसके जरिये हर प्रकार के वाहनों पर नजर रखी जा रही है।
ट्रैफिक नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है, लेकिन इन दिनों नियम पालन के नाम पर रांची की सड़कों पर जो कुछ हो रहा है, उससे लोग परेशान हो गये हैं। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि वे किस नियम का पालन करें। रांची की किसी भी सड़क पर कहीं भी गति सीमा की जानकारी देनेवाला वोर्ड नहीं है। ट्रैफिक सिग्नल वाले चौक-चौराहों पर जेब्रा क्रॉसिंग और वाहनों के रुकने का संकेतक मिट चुका है। ये ट्रैफिक लाइट कब ठीक रहते हैं और कब खराब, इसका भी पता नहीं रहता। पार्किंग कहां करनी है, इसका कोई जगह तय नहीं है। ऐसे में लोग नहीं चाहते हुए भी नियम का उल्लंघन कर जाते हैं और बाद में जुमार्ना भरने के लिए परेशान होते रहते हैं।
शुरू हो गयी सियासत
अब इस मसले पर राजनीति भी तेज हो गयी है। झारखंड बीजेपी का कहना है कि राजधानी के विशेष इलाकों में चालान काटा जा रहा है, वहीं तुष्टिकरण के तहत कुछ खास इलाकों में ट्रैफिक नियमों को तोड़ने वालों का न कोई चालान काटा जाता है और न ही फाइन किया जाता है। उधर कांग्रेस ने कहा है कि भाजपा के जो नेता चैंबर में बैठ कर राजनीति करते हैं, वही इस तरह के आरोप लगाते हैं। झामुमो ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट के दिये निर्णयों में और ट्रैफिक नियमों में यह प्रावधान है कि जो लोग यातायात नियमों का पालन नहीं करेंगे, उनको दंडित किया जाये। भाजपा के नेताओं की आदत नियम कानून नहीं मानने की है। इसलिए भाजपा के नेता अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं।
लोग हो रहे हैं परेशान
इस पूरे प्रकरण में सबसे खास बात यह है कि कोई भी सिस्टम आम लोगों की सुविधा-सहूलियत को ध्यान में रख कर बनाया जाता है। रांची की यातायात व्यवस्था को चाक-चौबंद बनाना बेहद जरूरी है, लेकिन यदि यह व्यवस्था आम लोगों के लिए परेशानी का कारण बन जाये, तो उससे फायदा नहीं, नुकसान होता है। रांची में बिना किसी जागरूकता और व्यवस्था के सीधे चालान काटने की व्यवस्था लागू कर देने से लोग परेशान हो रहे हैं। लोग सवाल उठा रहे हैं कि नियम-कानून केवल रांची के लिए क्यों है। दूसरे शहरों में तो ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। दूसरा सवाल यह उठता है कि ट्रैफिक पुलिस आम लोगों का तो चालान काटती है, लेकिन ट्रैफिक जाम लगने पर गायब हो जाती है। इसलिए पहले लोगों को जागरूक बनाया जाये, फिर इस तरह की व्यवस्था लागू हो, तो बात समझ में आती है।
जहां तक राजस्व वसूली की बात है, तो प्रशासन को बिजली बिल, लगान, होल्डिंग टैक्स और अन्य टैक्स वसूलने के लिए अभियान चलाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। लोग बिजली बिल देने के लिए तैयार हैं, लेकिन उन्हें बिल ही नहीं मिल रहा है। कई लोग जमीन का लगान देने के लिए तैयार हैं, लेकिन वेबसाइट ही काम नहीं कर रहा है। ऐसे में वे अलग परेशानी झेल रहे हैं।
इसलिए अब सरकरार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए। नियमों का पालन जरूरी है, लेकिन आम लोगों को डरा-धमका कर ऐसा नहीं कराया जा सकता है। ऐसे में विरोध की मानसिकता बनती है, जो किसी भी व्यवस्था के लिए नुकसानदेह होती है।