नई दिल्ली। राज्यसभा में मंगलवार को ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर चर्चा से पूर्व, सभापति सीपी राधाकृष्णन ने अपने प्रारंभिक उद्बोधन में इसे राष्ट्र की आत्मा और स्वतंत्रता संग्राम की धड़कन बताया। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत माता के प्रति समर्पण, त्याग और अदम्य साहस की शाश्वत भावना है, जिसने गुलामी के दौर में करोड़ों भारतीयों के दिलों में स्वतंत्रता की लौ जलाए रखी।

सभापति ने कहा कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह कालजयी गीत उस समय जन्मी जब मातृभूमि पर उपनिवेशवाद का भारी बोझ था, लेकिन देखते ही देखते यह पूरे राष्ट्र की साझा धड़कन बन गया। उन्होंने कहा कि यह गीत धर्म, भाषा और भौगोलिक सीमाओं से परे जाकर पूरे देश को एक सूत्र में पिरोता रहा।

राधाकृष्णन ने स्मरण कराया कि स्वतंत्रता सेनानियों के लिए वंदे मातरम् केवल प्रेरणा नहीं था, बल्कि कई वीरों की अंतिम पुकार भी—जब वे हंसते-हंसते फांसी के तख्ते पर चढ़ते हुए भारत की आज़ादी का स्वप्न दिल में लिए इसे उच्चारित करते थे। उन्होंने कहा कि इन ज्ञात–अज्ञात बलिदानियों की तपस्या इस गीत की हर पंक्ति में आज भी गूंजती है और हमें यह याद दिलाती है कि आज़ादी अटूट संकल्प और मातृभूमि के प्रति अनन्य प्रेम से अर्जित हुई है।

सभापति ने महान कवि सुब्रमण्य भारती की उस पंक्ति का भी उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि वंदे मातरम् का स्वर दुनिया भर में तेजस्विता का प्रकाश फैलाता है। उन्होंने कहा, “वंदे मातरम् एक प्रण है — हमारी पहचान का, हमारी एकता का और हमारे सामूहिक भविष्य का।”

देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले सभी वीरों को नमन करते हुए सभापति ने कहा कि उनका त्याग केवल इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि राष्ट्र की अनंत प्रेरणा शक्ति है। उन्होंने कहा कि इस विशेष चर्चा का आरंभ करते हुए हमें तीन सूत्र याद रखने चाहिए—एकता हमारी शक्ति है, बलिदान हमारा मार्ग है, और भारत माता हमारी आत्मा है।

राधाकृष्णन ने सदन से आह्वान किया कि हम सब एक स्वर में संकल्प लें—ईमानदारी से राष्ट्र सेवा का, एकता के साथ आगे बढ़ने का और गर्व से उच्चारित करने का—वंदे मातरम्। वंदे मातरम्। वंदे मातरम्।

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