विशेष
-बेहद गैर-पेशेवर तरीके से चलाया जा रहा है मजदूरों को बचाने का अभियान
-बचाव अभियान के हर कदम पर सामने आ रहा है पूरे सिस्टम का खोखलापन
-15 दिन के बचाव अभियान के बाद भी अब तक सुरंग में फंसी हैं 41 जिंदगियां
उत्तरकाशी के सिलक्यारा में निर्माणाधीन सुरंग के धंसने का एक पखवाड़ा हो चुका है। पिछले चार दिन से अब निकले कि तब की घोषणा के बावजूद वहां फंसे 41 मजदूरों में से किसी को भी अभी तक सुरक्षित नहीं निकाला जा सका है। यह भी नहीं पता कि वे बाहर कब आयेंगे। हाल के दिनों में देश का यह सबसे बड़ा बचाव अभियान है, जिसकी गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहली बार अभियान एक विदेशी विशेषज्ञ की देखरेख में चल रहा है। लेकिन अफसोस इस बात का है कि तमाम दावों और घोषणाओं के बावजूद 41 जिंदगियां अब भी हजारों टन मलबे के बीच फंसी हैं। वास्तव में यह पूरा बचाव अभियान भारत की आपदा प्रबंधन व्यवस्था के खोखलेपन को ही उजागर कर रहा है। यह खोखलापन इसी बात से उजागर होता है कि इतने बड़े और गंभीर अभियान में लगे अफसरों और कर्मियों को भी यह पता नहीं है कि उनकी कोशिश में किस तरह की बाधाएं आ सकती हैं या फिर अभियान का अगला कदम क्या होगा। कहने को इस पूरे अभियान की मॉनिटरिंग एक विदेशी विशेषज्ञ कर रहे हैं, लेकिन हकीकत यही है कि यह पूरा अभियान इतने गैर-पेशेवर अंदाज में चल रहा है कि सोशल मीडिया पर इसकी कटु आलोचना भी होने लगी है। उधर सुरंग में फंसे मजदूरों के परिजनों के सब्र का बांध भी टूटने लगा है। अधिकारियों के दावों पर न परिजनों को भरोसा हो रहा है और न आम लोगों को। हर दिन बीतने के साथ सुरंग में फंसे मजदूरों की, उनके परिजनों की और आम लोगों की उम्मीदें धूमिल पड़ती जा रही हैं और इसके साथ सिस्टम का खोखलापन भी सामने आता जा रहा है। क्या है सिलक्यारा सुरंग हादसे के बचाव अभियान की पूरी कहानी और इसकी अब तक असफल रहने के कारण, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
उत्तरकाशी के सिलक्यारा में सुरंग के धंसने की घटना के 15 दिन बीत चुके हैं और इसके भीतर फंसी 41 जिंदगियां अब भी सुरक्षित बाहर निकलने के इंतजार में हैं। इन मजदूरों को बचाने के लिए जो अभियान चल रहा है, उसे हाल के दिनों में देश का सबसे बड़ा अभियान बताया जा रहा है और इसमें दुनिया की हरसंभव तकनीक और उपकरणों का सहारा लिया जा रहा है। करीब डेढ़ हजार लोगों की टीम सुरंग के मुहाने पर दिन-रात जमी हुई है। एक विदेशी विशेषज्ञ पूरे बचाव अभियान की मॉनिटरिंग कर रहा है, लेकिन अब तक नतीजा सिफर है। पिछले 15 दिन से चल रहे इस अभियान पर सोशल मीडिया पर इंद्रेश मैखुरी की एक बेहद गंभीर पोस्ट देखने को मिली। ‘फर्ज कीजिए कि सीमा पर युद्ध चल रहा है’ शीर्षक से इस पोस्ट में लिखा गया है:
बंदूक से लड़ना शुरू किया। बंदूक खराब हो जाये, तो दिल्ली को हांक लगायी जाये कि अब तोप भेजो। तोप आने में दो दिन लगे। तोप में दिक्कत हो, तो फिर दिल्ली को आवाज लगायी जाये कि टैंक भेजा जाये। टैंक में खराबी आ जाये, तो फिर दिल्ली को आवाज लगायी जाये कि टैंक की मरम्मत के लिए एक्सपर्ट भेजे जायें। वे एक्सपर्ट चार दिन में पहुंचे। सोचिये ऐसे युद्ध लड़ा जाये, तो क्या होगा? जाहिर है कि जीत तो नहीं होगी ना।
पोस्ट में आगे कहा गया है, यह सवाल इसलिए, क्योंकि उत्तरकाशी में सुरंग से मजदूरों को निकालने का जो रेस्क्यू आॅपरेशन आधे महीने से चल रहा है, वह ऐसे ही चल रहा है। एक मशीन अटक गयी, तो दिल्ली से दूसरी मशीन बुलायी गयी। वह भी अटक गयी, तो इंदौर से तीसरी मशीन बुलायी गयी। मशीन में खराबी आयी, तो दिल्ली से विशेषज्ञ बुलाये गये। अब मशीन काटनी है, तो प्लाज्मा कटर हैदराबाद से आ रहा है। और इन सबके आने, मशीनों के अटके रहने में बार-बार दो-दो, चार-चार दिन लगते रहे।
यह है वह युद्ध स्तर, जिससे रेस्क्यू अभियान चलाया जा रहा है। यह युद्ध स्तर नहीं, युद्ध में दिग्भ्रमित घेंघा रफ्तार है। जो इस दिग्भ्रमित घेंघा रफ्तार से रेस्क्यू आॅपरेशन में फोटो खिंचवाने का अवसर तलाश रहे हैं, उनका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, लेकिन सुरंग के भीतर 15 दिन से फंसे मजदूरों की जिंदगी पर बन आयेगी।
सोशल मीडिया के इस पोस्ट से आसानी से समझा जा सकता है कि सिलक्यारा में चल रहे रेस्क्यू आॅपरेशन के बारे में एक आम भारतीय क्या सोचता है और इस पूरे अभियान की गंभीरता कितनी है।
इस बचाव अभियान के सफल होने और सभी 41 मजदूरों के सुरक्षित बाहर आने की कामना हर भारतीय कर रहा है। हर कोई यही मान कर चल रहा है कि अभियान पूरी तरह सफल होगा और सभी मजदूर सुरक्षित बाहर निकलेंगे, लेकिन इस अभियान में लगे अधिकारियों और कर्मियों का अंदाज इस उम्मीद पर बार-बार पानी फेर रहा है।
वास्तव में सिलक्यारा की घटना ने भारत में आपदा प्रबंधन के तमाम दावों की कलई खोल कर रख दी है । कागजों पर भारत का आपदा प्रबंधन भले ही बेहद मजबूत दिख रहा है, धरातल पर स्थिति क्या है, यह सिलक्यारा घटना से आइने की तरह साफ हो गया है। अब तक के अभियान के बारे में कहा जा सकता है कि इसने व्यवस्था के खोखलेपन को उजागर किया है। हालत यह है कि सुरंग बनानेवाली कंपनी से आज तक यह जानकारी लेने की कोशिश नहीं की गयी है कि सुरंग का निर्माण किस तकनीक से हो रहा था। कंपनी से यह भी नहीं पूछा गया है कि सुरंग निर्माण के लिए पहले से तय सुरक्षा मानकों का अनुपालन किया गया था या नहीं। यह सही है कि सुरंग के अंदर फंसे मजदूरों और बाहर उनके परिजनों और आम लोगों की उम्मीद की किरण दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। ऐसे में जरूरत थी कि उन मजदूरों की बात किसी मनोवैज्ञानिक से करायी जाती और उन्हें इस मुश्किल घड़ी में कैसे खुद को संभालना है, यह बताया जाता, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है।
बॉक्स में
बचाव अभियान में कब क्या हुआ
12 नवंबर: सुबह चार बजे टनल में मलबा गिरना शुरू हुआ तो 5.30 बजे तक मेन गेट से दो सौ मीटर अंदर तक भारी मात्रा में जमा हो गया। टनल से पानी निकालने के लिए बिछायी गयी पाइप से आॅक्सीजन, दवा, भोजन और पानी अंदर भेजा जाने लगा। बचाव कार्य में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और बीआरओ को लगाया गया। 35 हॉर्स पावर की आॅगर मशीन से 15 मीटर तक मलबा हटा।
13 नवंबर: शाम तक टनल के अंदर से 25 मीटर तक मिट्टी के अंदर पाइप लाइन डाली जाने लगी। दोबारा मलबा आने से 20 मीटर बाद ही काम रोकना पड़ा। मजदूरों को पाइप के जरिये लगातार आॅक्सीजन और खाना-पानी मुहैया कराया जाना शुरू हुआ।
14 नवंबर: टनल में लगातार मिट्टी धंसने से नॉर्वे और थाइलैंड के एक्सपर्ट्स से सलाह ली गयी। आॅगर ड्रिलिंग मशीन और हाइड्रोलिक जैक को काम में लगाया। लेकिन लगातार मलबा आने से नौ सौ एमएम, यानी करीब 35 इंच मोटी पाइप डालकर मजदूरों को बाहर निकालने का प्लान बना। इसके लिए आॅगर ड्रिलिंग मशीन और हाइड्रोलिक जैक की मदद ली गयी, लेकिन ये मशीनें भी असफल हो गयीं।
15 नवंबर: रेस्क्यू आॅपरेशन के तहत कुछ देर ड्रिल करने के बाद आॅगर मशीन के कुछ पार्ट्स खराब हो गये। टनल के बाहर मजदूरों के परिजनों की पुलिस से झड़प हुई। वे रेस्क्यू आॅपरेशन में देरी से नाराज थे। पीएमओ के हस्तक्षेप के बाद दिल्ली से एयरफोर्स का हरक्यूलिस विमान हेवी आॅगर मशीन लेकर चिल्यानीसौड़ हेलीपैड पहुंचा। ये पार्ट्स विमान में ही फंस गये, जिन्हें तीन घंटे बाद निकाला जा सका।
16 नवंबर: दो सौ हॉर्स पावर वाली हेवी अमेरिकन ड्रिलिंग मशीन आॅगर का इंस्टॉलेशन पूरा हुआ। शाम आठ बजे से रेस्क्यू आॅपरेशन दोबारा शुरू हुआ। रात में टनल के अंदर 18 मीटर पाइप डाली गयी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रेस्क्यू आॅपरेशन की रिव्यू मीटिंग की।
17 नवंबर: सुबह दो मजदूरों की तबीयत बिगड़ी। उन्हें दवा दी गयी। दोपहर 12 बजे हेवी आॅगर मशीन के रास्ते में पत्थर आने से ड्रिलिंग रुकी। मशीन से टनल के अंदर 24 मीटर पाइप डाली गयी। नयी आॅगर मशीन रात में इंदौर से देहरादून पहुंची, जिसे उत्तरकाशी के लिए भेजा गया। रात में टनल को दूसरी जगह से ऊपर से काट कर फंसे लोगों को निकालने के लिए सर्वे किया गया।
18 नवंबर: दिनभर ड्रिलिंग का काम रुका रहा। खाने की कमी से फंसे मजदूरों ने कमजोरी की शिकायत की। पीएमओ के सलाहकार भास्कर खुल्बे और डिप्टी सेक्रेटरी मंगेश घिल्डियाल उत्तरकाशी पहुंचे। पांच जगहों से ड्रिलिंग की योजना बनी।
19 नवंबर: सुबह केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और उत्तराखंड सीएम पुष्कर धामी उत्तरकाशी पहुंचे, रेस्क्यू आॅपरेशन का जायजा लिया और फंसे लोगों के परिजनों को आश्वासन दिया। शाम चार बजे सिल्क्यारा एंड से ड्रिलिंग दोबारा शुरू हुई। खाना पहुंचाने के लिए एक और टनल बनाने की शुरूआत हुई। टनल में जहां से मलबा गिरा है, वहां से छोटा रोबोट भेज कर खाना भेजने या रेस्क्यू टनल बनाने का प्लान बना।
20 नवंबर: इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट आॅर्नल्ड डिक्स ने उत्तरकाशी पहुंच कर सर्वे किया और वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए दो स्पॉट फाइनल किये। मजदूरों को खाना देने के लिए छह इंच की नयी पाइपलाइन डालने में सफलता मिली। आॅगर मशीन के साथ काम कर रहे मजदूरों के रेस्क्यू के लिए रेस्क्यू टनल बनायी गयी। बीआरओ ने सिल्क्यारा के पास वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए सड़क बनाने का काम पूरा किया।
21 नवंबर: एंडोस्कोपी के जरिये कैमरा अंदर भेजा गया और फंसे हुए मजदूरों की तस्वीर पहली बार सामने आयी। उनसे बात भी की गयी। मजदूरों तक छह इंच की नयी पाइपलाइन के जरिये खाना पहुंचाने में सफलता मिली। आॅगर मशीन से ड्रिलिंग शुरू हुई। केंद्र सरकार की ओर से तीन रेस्क्यू प्लान बताये गये। पहला- आॅगर मशीन के सामने रुकावट नहीं आयी, तो रेस्क्यू में दो से तीन दिन लगेंगे। दूसरा- टनल की साइड से खुदाई करके मजदूरों को निकालने में 10-15 दिन लगेंगे। तीसरा- डंडालगांव से टनल खोदने में 35-40 दिन लगेंगे।
22 नवंबर: मजदूरों को नाश्ता, लंच और डिनर भेजने में सफलता मिली। सिल्क्यारा की तरफ से आॅगर मशीन से 15 मीटर से ज्यादा ड्रिलिंग की गयी। मजदूरों के बाहर निकलने के मद्देनजर 41 एंबुलेंस मंगवायी गयीं। डॉक्टरों की टीम को टनल के पास तैनात किया गया। चिल्यानीसौड़ में 41 बेड का हॉस्पिटल तैयार करवाया गया।
23 नवंबर: अमेरिकी आॅगर ड्रिल मशीन तीन बार रोकनी पड़ी। देर शाम ड्रिलिंग के दौरान तेज कंपन होने से मशीन का प्लेटफॉर्म धंस गया। इसके बाद ड्रिलिंग अगले दिन की सुबह तक रोक दी गयी। इससे पहले 1.8 मीटर की ड्रिलिंग हुई थी।
24 नवंबर: सुबह ड्रिलिंग का काम शुरू हुआ, तो आॅगर मशीन के रास्ते में स्टील की पाइप आ गयी, जिसके चलते पाइप मुड़ गयी। स्टील की पाइप और टनल में डाली जा रही पाइप के मुड़े हुए हिस्से को बाहर निकाल लिया गया। आॅगर मशीन को भी नुकसान हुआ था, उसे भी ठीक कर लिया गया। इसके बाद ड्रिलिंग के लिए आॅगर मशीन फिर मलबे में डाली गयी, लेकिन तकनीकी बाधा के चलते रेस्क्यू टीम को आॅपरेशन रोकना पड़ा। उधर, एनडीआरएफ ने मजदूरों को निकालने के लिए मॉक ड्रिल की।
25 नवंबर : आॅगर मशीन फिर खराब हो गयी। हैदराबाद से प्लाज्मा कटर मंगाया गया।
26 नवंबर : वर्टिकल ड्रिलिंग की योजना बनी। अभियान में मदद के लिए सेना को बुलाया गया।