रांची। वर्ष 2000 में 15 नवंबर को झारखंड बिहार से अलग अपने अस्तित्व में आया। जिस समय यह राज्य बिहार से अलग हुआ उस समय महिला विधायकों की संख्या मात्र चार थी। समय के साथ इनकी संख्या में लगातार इजाफा ही हुआ है। चार से यह संख्या बढ़कर पांच, आठ और अब 11 हो गयी है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि 18 वर्ष की अल्पायु में झारखंड विधानसभा ने अबतक दो महिला विधायकों को उत्कृष्ट विधायक से सम्मानित किया है और 22 नवंबर को एक और महिला विधायक को उत्कृष्ट विधायक का सम्मान दिया जायेगा। अलग राज्य बनने के बाद पहली झारखंड विधानसभा की बात करें तो 81 विधायकों में से मात्र चार महिला विधायक थी। उस समय झारखंड विधानसभा में आधी आबादी की आवाज राजद की अन्नपूर्णा देवी, झामुमो की सुशीला हांसदा, जोबा मांझी और मेनका सरदार ने बुलंद करने का काम किया था।
दूसरी विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या बढ़कर पांच हुई और इस बार मेनका सरदार को जहां हार का सामना करना पड़ा वहीं कुंती सिंह, अपर्णा सेन गुप्ता ने विधानसभा में इंट्री मारी। तीसरी विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या बढ़कर आठ हो गयी। प्रतिशत के हिसाब से देखा जाय तो झारखंड विधानसभा में सबसे ज्यादा महिला विधायकों का प्रतिनिधित्व इस बार हुआ जो दस प्रतिशत था। इस बार मेनका सरदार ने वापसी की तो पहली बार विधानसभा में गीता कोड़ा, गीताश्री उरांव, बिमला प्रधान, सीता सोरेन और सुधा चौधरी जीतकर आयी। चौथी विधानसभा में तो महिला विधायकों ने दस के आंकड़े को पार कर दिया। इस बार विधानसभा में 11 महिला विधायक हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में नौ महिला जीतकर आयी थी और बाद में हुए उपचुनाव में दो महिला जीतकर आयी।
चौथी विधानसभा में लुईस मरांडी, गंगोत्री कुजूर, नीरा यादव, सीमा महतो, बबिता देवी, निर्मला देवी पहली बार विधानसभा पहुंची हैं। इनमे से कई ऐसी विधायक हैं जिहोनें झारखंड की राजनीति के दिग्गजों को परस्त करने का काम किया है।
लुईस मरांडी ने जहां पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को धूल चटाने का काम किया वहीँ गंगोत्री कुजूर ने पूर्व शिक्षा मंत्री बंधू तिर्की को हराया। नीरा यादव ने कोडरमा से अन्नपूर्णा देवी के वर्चस्व को समाप्त किया तो सीमा महतो ने आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो को परास्त किया। झारखंड की राजनीति में जब भी आधी आबादी को मौका मिला उसने जबरदस्त धमाका किया। लोकसभा के लिए भी जब-जब झारखंड से आधी आबादी को मौका मिला उसने जीत का परचम लहराया है। बात धनबाद की रीता वर्मा की करें या आभा महतो की या फिर सुमन महतो की, इन्हें मौका मिला तो जीत का सेहरा अपने सिर बंधवाने का काम किया। रीता वर्मा तो तीन टर्म तक सांसद रहीं।