रांची। झारखंड में पहली बार रघुवर दास के नेतृत्व में बहुमत की सरकार बनी। स्थायी सरकार तो बनी, मगर विधानसभा लगातार पक्ष-विपक्ष का अखाड़ा बन कर रह गया था। चार वर्षों में एक भी सत्र सही तरीके से नहीं चला। लिहाजा झारखंड विधानसभा में आयी नयी पौध को अभी भी अपना वाक कौशल दिखाने का मौका नहीं मिला। ढाई वर्षों के बाद पहली बार सदन की कार्यवाही शांतिपूर्ण तरीके से चल रही है। सोमवार को सदन में चालू वित्तीय वर्ष के तृतीय अनुपूरक बजट पर चर्चा होनी थी।
स्पीकर की तरफ से पहले भाजपा विधायक अमित मंडल को बोलने का मौका मिला। जिस तरीके से अमित मंडल ने बिना कोई आरोप-प्रत्यारोप किये अपनी बातों को पूरे सलीके के साथ सदन में रखा, ऐसा बहुत दिनों के बाद देखने को मिला। सत्ता पक्ष के विधायक हैं तो जाहिर तौर पर वह सरकार की योजनाओं को ही सदन में रखेंगे। अमित मंडल ने भी यही काम किया, लेकिन जिस तरीके से उन्होंने अपनी बातों को रखा, सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।
अमित मंडल ने एक बार भी विपक्ष पर प्रहार नहीं किया। न ही अन्य विधायकों की तरह सिर्फ अपने विधानसभा क्षेत्र की बातों को उठाया। एक युवा विजन को उन्होंने सदन में रखा। अमूमन यह देखा जाता है कि विधायकों की बातें सिर्फ पानी, बिजली, सड़क, स्वास्थ्य जैसी आधारभूत संरचना के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती हैं, लेकिन अमित मंडल ने आज के भारत को क्या चाहिए और सरकार चाहे वह केंद्र की हो या राज्य की, वह इस दिशा में क्या काम कर रही है, उसको वजनदार तरीके से सदन में रखा। इतना ही नहीं, जो समस्या वर्षों से हमारे समाज को घुन की तरह खोखला कर रही है, उसका निदान कैसे किया जाये, इस पर भी प्रकाश डाला।
मामला चाहे भ्रूण हत्या का हो, महिला सशक्तीकरण का हो या फिर कुपोषण का, अमित मंडल ने सभी विषयों पर एक जानकार की तरह अपनी बातों को सदन में रखा। अमित मंडल की बात जैसे ही समाप्त हुई स्पीकर ने झामुमो विधायक कुणाल षाडंÞगी को बोलने के लिए आमंत्रित किया। कुणाल ने तो मानों अपने भाषण से सदन में जान ला दी। एक-एक विषय पर एक मंझे हुए राजनेता की तरह उन्होंने अपनी बातों को सदन में रखा। बिना किसी आरोप-प्रत्यारोप के कुणाल ने सरकार की योजनाओं की विवेचना की। कहां क्या कमी है, इसको सलीके से रखा। मामला चाहे स्कूल विलय का हो, सरकारी शराब दुकानों की बंदोबस्ती का या फिर महिला सशक्तीकरण, कुपोषण का, सभी विषयों पर उन्होंने अपने वक्तव्य से सदन को अचंभित कर दिया। कहते हैं न कि पूत के पाव पालने में ही नजर आने लगते हैं। दोनों ही युवा विधायकों को राजनीति विरासत में मिली है। अमित मंडल भी राजनीतिक परिवार से आते हैं और कुणाल षाडंगी भी राजनीतिक परिवार से हैं। दोनों के पिता झारखंड विधानसभा के सदस्य रह चुके हैं।
अमित मंडल के दादा ने तो बिहार विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया था। प्रखर वक्ता की तरह दोनों विधायकों ने अपनी बातों को सदन में रखकर एक तरह से सदन का मान बढ़ाने का काम किया है। एक समय था, जब झारखंड विधानसभा में कामरेड महेंद्र सिंह के भाषण का लोग इंतजार करते थे। पक्ष हो या विपक्ष सभी उनकी तार्किक शैली के कायल थे। सोमवार को इन दोनों युवा विधायकों ने अपने भाषण से लंबे अर्से के बाद सदन में बैठे सभी लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। मौका मिला तो दोनों ने यह साबित कर दिया कि अभी भी झारखंड विधानसभा के सदस्यों में बहुत जान है।
चतुर्थ विधानसभा में कई ऐसे नये विधायक हैं, जिन्हें मौका मिले तो वह यह साबित कर सकते हैं कि उनके पास भी झारखंड के विकास का विजन है। लोकतंत्र में यह जरूरी नहीं है कि मंत्री बनकर ही विकास के काम किये जा सकते हैं। विधायकों को भी विकास कार्य करने के लिए असीम अधिकार प्राप्त हैं। खासकर जब सदन चल रहा हो तो वे अपने विकास के विजन को सदन के माध्यम से सरकार के समक्ष रख सकते हैं। जैसा कि कुणाल षाड़ंगी और अमित मंडल ने किया। यह तभी होगा, जब जनता की सबसे बड़ी पंचायत में डिबेट हो। इससे पहले कांग्रेस की गीता कोड़ा, भानु प्रताप शाही, भाजपा के बिरंची नारायण, अनंत ओझा ने भी अपनी बातों को सलीके से सदन में रखा और उनकी भी तारीफ हुई थी। इन दोनों विधायकों की वाक पटुता को सुन कर कहा जा सकता है कि चतुर्थ विधानसभा के लिए सोमवार का दिन चर्चा के लिहाज से सबसे अच्छे दिन के रूप में जाना जायेगा।