करोना आज एक वैश्विक महामारी है और आज इसने पूरे विश्व को एक ही मंच पर खड़ा कर दिया है। ऐसे में डॉक्टर और सारे मेडिकल स्टाफ की जिम्मेदारी बढ़ गई है। डाक्टर और मेडिकल स्टाफ अपनी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा भी रहे हैं। इसके लिए उन्हें सलाम है।
लेकिन इसी का एक दूसरा पहलू भी है। ऐसे भी कुछ डाक्टर हैं जो अपने प्राइवेट हॉस्पिटल / नर्सिंग होम / क्लीनिक नहीं खोल रहे हैं। वो शायद ये समझ रहे थे कि ये स्तिथि एक दो महीने रहेगी फिर चीजें सामान्य हो जाएगी। लेकिन धीरे – धीरे अब उन्हें भी ये समझ आ गया है कि ये स्तिथि अभी लंबे समय तक चलेगी। अब ऐसे में वो सरकार और फार्मा कंपनी से पी पी ई किट की अपेक्षा कर रहे हैं जो की एक ज्यादती है।
आज जब पूरी मानवता संकट से जूझ रही है और अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गयी है, ऐसे में सरकार से पी पी ई किट की अपेक्षा ज्यादती ही है। अभी हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें एक डॉक्टर बोल रहे थे कि इस मुल्क का उनपर कर्ज है। जितने में उन्होंने एम् बी बी एस कि पढ़ाई की थी, उतनी आज स्कूल की एक महीने कि फीस है। उनकी इस सोच को सलाम है।
फार्मा कंपनियों की भी स्तिथि दयनीय है। उनकी कमाई बहुत कम हो गई है और इसके बावजूद उन्हें अपने कर्मचारियों को वेतन देना है। ऐसे में उनसे पी पी ई किट की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। ऐसी स्तिथि में अगर वो पी पी ई किट देंगे भी तो एक या दो ही दे पाएंगे वो भी कुछ गिने – चुने डॉक्टरों को।
लेकिन, क्योंकि ये महामारी लंबे समय तक चलेगी, डॉक्टरों को ये समझना होगा कि अंततः उन्हें खुद ही पी पी इ किट खरीदना होगा। उन्हें ये समझना होगा कि जितने पैसे में वो एक सेट ड्रेस खरीदते है उतने पैसे में उनके लिए चार किट आ जाएगी। जो की उनके खुद की जान के लिए एक सस्ता सौदा है।
उन्हें किट को भी अपने हॉस्पिटल के खर्चे में शामिल करना होगा। व्यावहारिकता ये होगी की अपने खर्चे कम करें और किट को अपने खर्च में शामिल करें, ना कि अपने मरीजों पर इसका अतरिक्त बोझ डालें।