नयी दिल्ली। झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव राजीव गौबा देश के सबसे बड़े नौकरशाह, अर्थात कैबिनेट सचिव बनाये जा सकते…
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आजाद सिपाही संवाददाता मेदिनीनगर। पलामू के शहीद लेफ्टिनेंट अनुराग शुक्ला की शहादत के सम्मान में पहल सामाजिक संस्था…
खबर विशेष में आज हम बात कर रहे हैं भाजपा के संथाल फतह की रणनीति की। लंबे अरसे के बाद भाजपा ने आखिरकार इस लोकसभा चुनाव में संथाल फतह कर ही ली। फतह ऐसी की झारखंड के सबसे बड़े आदिवासी नेता को मुंह की खानी पड़ी। इतना ही नहीं झाविमो और कांग्रेस के दिग्गजों को भी उनके ही मैदान में जबरदस्त पटखनी दी। चाहे वह झाविमो के प्रदीप यादव हों या चुन्ना सिंह, कांग्रेस के आलमगीर आलम या झामुमो के शशांक शेखर भोक्ता और सीता सोरेन। सभी को उसके ही किले में घुसकर भाजपा ने परास्त किया है। भाजपा ने यह करिश्मा एक दिन में नहीं किया है। पिछले पांच वर्ष से संथाल पत: पर भाजपा काम कर रही थी। आदिवासी बहुल इस इलाके में विकास की बयार के साथ आमजन को जोड़कर भाजपा ने यह करिश्मा किया है। विकास के साथ संगठन को भी भाजपा ने यहां विकसित किया है। नतीजा सामने है, भाजपा ने संथाल की तीन सीट में से दो पर जीत हासिल की है। कैसे संथाल के किले पर भाजपा ने किया कब्जा, कौन थे इसके सूत्रधार और कैसे गुरुजी के अजेय रथ को भाजपा ने संथाल में रोका इसपर प्रकाश डाल रहे हैं आजाद सिपाही के राजनीतिक संपादक ज्ञान रंजन।
17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में झारखंड के कम से कम पांच विधायकों का सांसद बनने का सपना मोदी की सुनामी में डूब गया। राज्य के केवल दो विधायक ही देश की सबसे बड़ी पंचायत में दाखिल होने में कामयाब हो सके। इनमें गीता कोड़ा और चंद्रप्रकाश चौधरी शामिल हैं। जिन पांच विधायकों को कामयाबी हाथ नहीं लगी, उनमें प्रदीप यादव, सुखदेव भगत, चंपई सोरेन, जगरनाथ महतो और राजकुमार यादव के नाम शामिल हैं। इन विधायकों के साथ सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि ये सांसद तो नहीं ही बन सके, अपनी विधानसभा सीट से भी बहुत बड़े अंतर से पिछड़ गये। राज्य में इसी साल विधानसभा का चुनाव भी होना है। ऐसे में इन विधायकों के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती अपनी सीट बचाने की है। लोकसभा चुनाव में जब ये विधायक उतरे थे, तब इन्हें इस बात का भरोसा था कि उनके अपने विधानसभा क्षेत्र में तो उन्हें कुछ करने की जरूरत नहीं है। शायद यही अति आत्मविश्वास उन्हें ले डूबा और जब परिणाम घोषित हुआ, तो ये चारों विधायक चारों खाने चित हो गये। अब जबकि विधानसभा चुनाव की आहट मिलने लगी है, इन विधायकों को अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।
आखिर क्या हुआ कि इन विधायकों को उनके विधानसभा क्षेत्रों में भी बढ़त नहीं मिली, इसके कारणों को तलाशती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
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