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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि नियोजन नीति और शिक्षक नियुक्ति पर हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट जायेगी। हाइकोर्ट ने 13 अनुसूचित जिलों में हाइस्कूल शिक्षक वैकेंसी को रद्द कर दिया है। साथ ही 2016 की नियोजन नीति को भी निरस्त कर दिया था। इसी के खिलाफ राज्य सरकार अब सुप्रीम कोर्ट जायेगी। सीएम बुधवार को प्रोजेक्ट भवन में मीडिया को संबोधित कर रहे

सहायक पुलिकर्मियों ने हड़ताल स्थगित करने की घोषणा कर दी है। सीएम हेमंत सोरेन की पहल पर मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने बुधवार को सहायक पुलिसकर्मियों से बात की। इसके बाद सहायक पुलिसकर्मियों ने आंदोलन को स्थगित करने का निर्णय लिया। मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने कहा कि फिलहाल सभी सहायक पुलिसकर्मियों की सेवा दो सालों के लिए बढ़ा

झारखंड का सिस्टम अपने हिसाब से चलता रहा है। यहां के कुछ अफसर पूरी तरह बेलगाम हो गये हैं। यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि इन कुछ बेपरवाह अफसरों के कारण गाहे-बगाहे सरकार की किरकिरी होती रहती है। झारखंड में कम से कम चार ऐसे मामले हुए हैं, जिनके कारण राज्य सरकार की किरकिरी हुई या उसके सामने नये किस्म की चुनौती आकर खड़ी हो गयी। लोकतंत्र की

हाल के दिनों में राज्य सरकार को कम से कम तीन मामलों में सांसत में डाल कर नौकरशाही कहीं अपनी पीठ थपथपा रही है। इन गिने-चुने नौकरशाहों के कारण सरकार को इन तीन मामलों में अपने कदम पीछे खींचने पड़े हैं। पूर्व की सरकार के दो और वर्तमान सरकार के एक फैसले से यह स्थिति उत्पन्न हुई है। सरकार को सांसत में डालने के पीछे राज्य के कतिपय अधिकारियों का हाथ है। राज्य सरकार को चाहिए कि वैसे अधिकारियों को चिह्नित करे और कार्रवाई करे, नहीं तो आनेवाले दिनों में भी इस तरह की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि देश की उन्नति उन्नति के लिए राज्य और केंद्र सरकार में समन्वय होना चाहिए। जिस तरह से अग्रणी देश बनाने के लिए केंद्र सरकार ने जीएसटी लागू किया। हम लोगों ने भी केंद्र पर विश्वास जताते हुए अपनी रीढ़ की हड्डी केंद्र को समर्पित कर दिया। लेकिन वर्तमान में देश की अर्थव्यव्स्था का जो आलम है, किसानों का जो आलम, मजदूरों

कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग ने राज्य में हाइस्कूल और प्लस टू स्कूलों की संख्या में बढ़ोत्तरी करने की कवायद शुरू कर दी है। विभाग की ओर से सभी जिलों को अपनी आवश्यकता के मुताबिक हाइस्कूल और प्लस टू स्कूल खोलने की अनुशंसा करने को कहा है। शिक्षा विभाग

झारखंड की पांचवीं विधानसभा के पहले मानसून सत्र के अंतिम दिन 22 सितंबर को जो कुछ हुआ, वह दो दिन पहले राज्यसभा में हुई घटना से बहुत अलग नहीं था। इन दोनों घटनाओं ने भारत की वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। यह सवाल उठ रहा है कि आखिर संसद और विधानसभा के भीतर सदस्य ऐसा आचरण क्यों कर रहे हैं। क्या संसदीय लोकतंत्र

राज्य सरकार की नियोजन नीति पर झारखंड हाइकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। हाइकोर्ट ने राज्य सरकार की नियोजन नीति को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में प्रशिक्षित हाइस्कूल शिक्षक की आठ हजार 423 वैकेंसी को रद्द करते हुए, इन जिलों में फ्रेश नियुक्ति करने का निर्देश दिया। वहीं 11 गैर अनुसूचित जिलों में हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति को हाइकोर्ट ने

सहायक पुलिस और लैंड म्यूटेशन बिल पर विपक्ष का आक्रोश समझ से परे है। सहायक पुलिस का पाप हमारे विपक्ष के साथियों का है। हम पिछली सरकार के पाप का खामियाजा भुगत रहे हैं। झारखंड विधानसभा में मानसून सत्र के दूसरे दिन सोमवार को ये बातें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहीं।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत के ऊपरी सदन, यानी राज्यसभा के बारे में कहा जाता है कि इसकी कार्यवाही राजनीतिक कम, बौद्धिक और सकारात्मक अधिक होती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि राज्यसभा का गठन ही गैर-राजनीतिक हस्तियों को देश के नीति निर्धारण की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल करने के उद्देश्य के लिए किया गया है। इस सदन के सदस्यों से हमेशा शालीन व्यवहार की उम्मीद लगायी गयी थी, क्योंकि इसके सदस्यों में गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि की प्रमुख हस्तियों को शामिल करने की बात कही गयी थी। लेकिन हमारे संविधान की इस अवधारणा को इतनी बुरी तरह कुचला गया कि अब राज्यसभा भी संसद का सदन कम, किसी छुटभैये क्लब की तरह नजर आने लगा है। रविवार 20 सितंबर को राज्यसभा में जो कुछ हुआ, वह इसका ही एक प्रत्यक्ष उदाहरण था। राज्यसभा में किसी बिल का इ

झारखंड में पिछले कई सालों से निजी स्कूलों की मनमानी और विद्यार्थियों-अभिभावकों के साथ उनके व्यवहार की हकीकत की कहानियां सामने आती रही हैं। सरकार की तरफ से बार-बार उन्हें इस बाबत चेतावनी भी दी जाती रही है। इसके बावजूद राज्य के शिक्षा मंत्री के घर की बच्ची के साथ डीपीएस चास ने जो सलूक किया, वह इस बात का प्रमाण है कि इन निजी स्कूलों को न तो सरकार का कोई डर है और न ही नियम-कायदे की कोई चिंता। बरसों पहले दक्षिण भारत में निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की लॉबी