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झारखंड विधानसभा का पहले चरण का चुनाव महज चार दिन बाद होना है। कुल 13 सीटों पर होनेवाले इस चुनाव में क्या होगा या हो सकता है, इसको लेकर राजनीतिक पंडित बेहद परेशान हैं, क्योंकि उन्हें न तो मतदाताओं के मन-मिजाज की भनक मिल रही है और न ही राजनीतिक परिस्थितियों का मतलब समझ में आ रहा है। बहुकोणीय मुकाबले के इस चुनाव में कहां किसका पलड़ा भारी है या हो सकता है, इस बारे में कोई टिप्पणी करने के लिए तैयार नहीं है। आखिर पहले चरण के चुनाव को लेकर इतना कन्फ्यूजन क्यों है और इसकी वजह क्या है, इस बात को जानना जरूरी है। चुनाव के माहौल में राजनीतिक बहसबाजी और विश्लेषणों से अलग इन 13 सीटों की हकीकत यह है कि यहां चुनावी अखाड़े में उतरा हर शख्स परेशान है। उम्मीदवारों की तो हालत यह है कि किसी के सामने सीट बचाने की चुनौती है, तो कोई वापसी के लिए जमीन-आसमान एक किये हुए है। किसी के सामने अपनी पार्टी को स्थापित करने की चैलेंज है, तो किसी के समक्ष सहयोगी दलों का वोट ट्रांसफर कराने के साथ मतों के बिखराव को रोकने की चुनौती। इन तमाम कारणों से पहले चरण का चुनाव बेहद दिलचस्प और रोमांचक हो गया है। इसी रोमांच और दिलचस्पी को रेखांकित करती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।

पलामू/गुमला। पीएम नरेंद्र मोदी ने सोमवार को पलामू-गुमला की जनसभाओं में रघुवर दास को झारखंड का भावी मुख्यमंत्री बताया। उन्होंने भीड़ का मिजाज भांपा और भारत माता के जयकारे लगवाकर जोश की लहर फैला दी। उन्होंने जनभावनाओं को छुआ तो विकास का खाका भी खींचा। भाषण देने के पहले पेड़ पर चढ़े युवकों पर उनकी निगाह गयी तो उनसे नीचे उतरने की अपील की। कहा कि नौजवान बहुत समझदार हैं। कुछ लोग बोलते हैं, चढ़ जाने के बाद नीचे उतरना नहीं आता। आपकी यही कला मुझे काम करने की ताकत देती है। उन्होंने भाजपा उम्मीदवारों आलोक चौरसिया, शशिभूषण मेहता, विनोद सिंह, सत्येंद्र तिवारी, भानू प्रताप शाही, रघुपाल सिंह, जनार्दन पासवान को उत्साही भीड़ से आशीर्वाद दिलाया। लातेहार में मारे गये पुलिसकर्मियों के प्रति संवेदना जतायी।

झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान गति पकड़ चुकी है। पहले ही चरण के चुनाव प्रचार अभियान में भाजपा ने बह्मास्त्र छोड़ दिया है। एक ओर जहां भाजपा की ओर से पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री और भाजपा के राष्टÑीय अध्यक्ष अमित शाह, कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा, नितिन गडकरी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी और भोजपुरी स्टार रवि किशन सभा कर चुके हैं। वहीं, दूसरी ओर विपक्ष अब तक अपने राज्य के नेताओं के भरोसे ही प्रचार अभियान में सिमटा है। तल्ख सच्चाई है कि राष्टÑीय पार्टी कांग्रेस के स्टार प्रचारकों का अब तक पता नहीं है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी को बुलाये जाने की बात तो कही जा रही थी, पर सच्चाई यही है कि प्रथम चरण के चुनाव में न सोनिया के आने की सूचना है और न ही राहुल के। इसका सीधा-सीधा असर कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर पड़ रहा है। राजद के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव जेल में हैं। तेजस्वी यादव अब तक प्रचार के लिए झारखंड नहीं आये हैं। झामुमो में अकेले हेमेत सोरेन पर मोर्चा संभाल रहे हैं। अब तक गठबंधन के नेता कही एक मंच पर नहीं जुट सके हैं। सब अलग-अलग गदा भांज रहे हैं। पेश है राजनीतिक दलों के प्रचार वार को फोकस करती दीपेश कुमार की रिपोर्ट।

वाटरलू की लड़ाई वर्ष 1815 में लड़ी गयी थी। इसमें एक तरफ फ्रांस था तो दूसरी ओर ब्रिटेन, रूस, प्रशा, आॅस्ट्रिया और हंगरी की सेना थी। इस लड़ाई में मिली हार ने नेपोलियन का चैप्टर हमेशा के लिए क्लोज कर दिया था। इस लड़ाई की तरह झारखंड विधानसभा चुनाव में पहले चरण की 13 सीटों मेें से कई सीटें ऐसी हैं, जिनमें मुकाबला कमोबेश वाटरलू की लड़ाई की तरह ही है। इन सीटों में लोहरदगा, विश्रामपुर और भवनाथपुर जैसी सीटें शामिल हैं। इन सीटों पर मिलनेवाली हार-जीत कई प्रत्याशियों का राजनीतिक भविष्य तय करेगी। इस चुनाव का नतीजा भविष्य के गर्भ में है और यह देखना दिलचस्प होगा कि मुकाबले में किसकी नियति में नेपोलियन बनना लिखा है और किसके हिस्से में विजयश्री। झारखंड विधानसभा की 13 सीटों में से मुख्य सीटों पर कड़े मुकाबले और उनके संभावित असर पर नजर डालती दयानंद राय की रिपोर्ट।