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झारखंड का कोयलांचल, यानी धनबाद बाहुबलियों के पनाहगाह के रूप में पूरी दुनिया में चर्चित है। इतिहास गवाह है कि काले हीरे का यह इलाका कभी बाहुबलियों के बिना नहीं रहा। चाहे सूरजदेव सिंह हों या नौरंगदेव सिंह, राजीव रंजन सिंह हों या सुरेश सिंह, या फिर राजू यादव, कोयलांचल के इलाके में हमेशा बाहुबलियों का दबदबा कायम ही रहा। कोयलांचल के बाहुबलियों की सबसे खास बात यह है कि ये सभी पूर्वांचल से यहां आये। हालांकि झारखंड बनने के बाद से कुछ स्थानीय दबंग जैसे ढुल्लू महतो और फहीम खान भी इस फेहरिस्त में शामिल हुए। समय बीतने के साथ इन बाहुबलियों में से कुछ ने राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमायी और सांसद-विधायक तक बने। अभी कोयलांचल में एक नये बाहुबली की धमाकेदार इंट्री हुई है। इसका नाम है विनीत सिंह। मूल रूप से चंदौली का रहनेवाला विनीत सिंह यूपी विधान परिषद का सदस्य रह चुका है। विनीत सिंह की कोयलांचल में इंट्री से इलाके में नयी चर्चाएं शुरू हो गयी हैं। दस गाड़ियों का काफिला और एक दर्जन गनर के साथ चलनेवाला आखिर कौन है विनीत सिंह और कोयलांचल में इसके आने का क्या मतलब है, इस बारे में आजाद सिपाही एसआइटी की खास रिपोर्ट।

झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के लिए रांची में बना सोहराय भवन गले का फांस बनता नजर आ रहा है। आजाद सिपाही के 23 नवंबर 2016 के अंक में छपी खबर का असर अब देखने को मिल रहा है। आजाद सिपाही ने विस्तार से बताया था कि किस तरह हेमंत सोरेन ने अपनी पत्नी कल्पना सोरेन के नाम पर रांची में 48 डिसमिल जमीन एक आदिवासी राजू उरांव से औने-पौने दाम में खरीद कर उस पर आलीशान मैरेज हॉल बना लिया है। इस खबर के बाद राज्य सरकार ने विभिन्न स्तरों से जांच करायी। जांच रिपोर्ट पर महाधिवक्ता से राय ली और इसके बाद अब कार्रवाई के लिए रांची के कमिश्नर को आदेश दिया है। इस आदेश के बाद राजनीति में भूचाल आ गया है। एक ओर जहां झामुमो इस मामले को आसन्न विधानसभा से जोड़ कर देख रहा है, वहीं भाजपा का मानना है कि कानून अपना काम कर रहा है। पेश है ज्ञानरंजन की रिपोर्ट।

जी हां हम बात कर रहे हैं भारतीय राजनीति के इतिहास के काला अध्याय और स्वतंत्र भारत के इतिहास के सबसे विवादस्पद काल की। या आप यूं कहें कि भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला दिन। यह दौर था, जब भारत आजादी के बाद अपने पैरों पर खड़ा होने की जद्दोजहद कर रहा था और अपने सुनहरे भविष्य की उड़ान भर ही रहा था कि अचानक उसके पंख को जकड़ लिया गया। देखते ही देखते भारत के स्वर्णमि इतिहास में आपातकाल का काला अध्याय जुड़ गया। इस काले अध्याय की रचयिता थीं भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी -द आयरन लेडी। आजाद सिपाही टीम ने इमरजेंसी लगाने के राजनीतिक कारणों, इंदिरा गांधी की रणनीति और इसके प्रभावों का आकलन करने की कोशिश की है।

बिहार और झारखंड में इन दिनों बस एक ही चर्चा है टिमटिमाते लालटेन के लौ की। कभी लालटेन की लौ से बिहार और झारखंड रोशन होता था। इसके सुप्रीमो लालू यादव नेताओं पर भारी पड़ते थे। लेकिन अब यह इतिहास की बात हो गयी है। अब झारखंड में टूट पर टूट और बिहार में नेता-कार्यकर्ता के बाद वोटरों का किनारा करने से पार्टी छिन्न-भिन्न होती नजर आ रही है। और चारा घोटाले में सजा की शैय्या पर लेटे-लेटे राजद के भीष्म पितामह यह सब अपनी आंखों से देख रहे हैं। अब तो यह सवाल उठने लगा है कि क्या बिहार में भी लालटेन की लौ बुझनेवाली है। हालात बता रहे हैं कि बिहार से भी राजद के जाने की बेला आ गयी है। बस इंतजार है तो सिर्फ 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव का। फिलहाल झारखंड में अब लालू का सितारा गर्दिश में चला गया है। टूट पर टूट ने झारखंड में राजद को झकझोर दिया है। अन्नपूर्णा देवी, गिरिनाथ सिंह जैसे दिग्गजों ने लोकसभा चुनाव के पहले ही राजद का दामन छोड़ दिया। अब रही-सही कसर गौतम सागर राणा और उनके चहेतों ने पूरी कर दी है। मौजूदा हालात पर नजर डाल रहे हैं राजीव।

खबर विशेष में आज हम बात कर रहे हैं कैसे विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही झारखंड में नक्सली एक बार फिर सक्रिय हो गये हैं। लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड में नक्सली फिर से अपनी मांद से बाहर निकल आये हैं। 20 दिनों के भीतर एक के बाद एक नक्सलियों ने पांच घटनाओं को अंजाम देकर पुलिस को खुली चुनौती दे दी है। वे जनता में एक बार फिर खौफ पैदा करने के लिए सक्रिय हुए हैं। विधानसभा चुनाव से पहले नक्सलियों की मंशा यह है कि वे राजनीतिक दलों और पूंजीपतियों में अपने भय को स्थापित करें, ताकि चुनाव के समय उनकी पूछ हो और वे मुद्रा मोचन कर सकें। दरअसल केंद्र और राज्य सरकार के मजबूत इरादे के समक्ष नक्सलियों को अपनी जमीन खिसकती दिख रही थी। उनका आना-जाना मुश्किल हो गया था। संगठन के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो गया था। वे मौके की तलाश में थे। इसी से तिलमिला कर नक्सलियों ने शुक्रवार की शाम सरायकेला में पांच पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी। हथियार लूट लिये। क्या है चुनाव के साथ नक्सली कनेक्शन इस पर प्रकाश डाल रहे हैं ज्ञान रंजन।