Browsing: स्पेशल रिपोर्ट

अगर आप यह सोच रहे हैं कि इस चुनाव में नक्सली बैकफुट पर आ गये हैं, पुलिसिया दबिश और सरकारी व्यवस्था के कारण नक्सली तंत्र पूरी तरह फेल हो गया है, तो यह आपकी गलतफहमी है। कारण इस बार नक्सलियों ने अपना चोला बदल लिया है। इस बार झारखंड में भी नक्सली चुनाव के दौरान वह काम करनेवाले हैं, जिसे सुन कर शायद आपको एकबारगी विश्वास नहीं हो। दरअसल, इस बार झारखंड में भी छत्तीसगढ़ की तर्ज पर नक्सली चुनाव में सक्रिय हो गये हैं। पहले नक्सली बुलेट-बंदूक के सहारे वोट का बहिष्कार करने की धमकी देते थे, लेकिन इस बार बुलेट को जंगल में ही छोड़ गांव-गांव में वोट धमाका करने की तैयारी में हैं। अब नक्सली वोट करने के लिए दबाव बनायेंगे। इसके लिए नक्सली ग्रामीण इलाकों में एनजीओ और अन्य संगठनों का भी सहारा छिपे रूप से ले रहे हैं। जानकारी के अनुसार नक्सलियों ने खूंटी, चाईबासा, लोहरदगा और चतरा को सेंटर बनाया है। नक्सलियों के निशाने पर इस बार भाजपा सरकार और नेता हैं। संथाल परगना में भी असर डालने की तैयारी में नक्सली जुटे हुए हैं। नक्सलियों की इस रणनीति पर प्रकाश डाल रहे हैं राजीव।

आपने सुना तो होगा कि हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते है। जी हां आज हम एक ऐसी ही पार्टी की बात करने जा रहे हैं, जिसके ऊपर यह बात सटीक बैठती है। खुद को झारखंड आंदोलन की उपज बतानेवाली पार्टी आॅल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, यानी आजसू पार्टी की पहचान आम तौर पर सत्ता के नजदीक रहनेवाली पार्टी के रूप में होती है। यह कुछ हद तक सही भी है, लेकिन पिछले पांच साल में इस पार्टी ने झारखंड की राजनीति में जिस तरह अपने को मजबूत बनाकर खड़ा किया है, वह भी गौर करने लायक है।
रांची संसदीय सीट के बाद सिल्ली विधानसभा क्षेत्र से लगातार दो बार चुनाव हारने के बावजूद आजसू पार्टी के अध्यक्ष सुदेश महतो ने हार नही मानी और उन्होंने अपनी राजनीतिक सोच और तजुर्बे का परिचय देते हुए विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को भी तालमेल करने और उस पर भरोसा करने पर मजबूर कर दिया। यह तालमेल भी प्रदेश स्तर पर नहीं, बल्कि देश के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक अमित शाह के साथ सीधी बातचीत के बाद हुआ।
आजसू पार्टी ने पिछले पांच साल के दौरान कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। हाल के दिनों में चुनावी राजनीति में उसका प्रदर्शन बेशक अच्छा नहीं रहा, लेकिन उसके नेतृत्व ने साफ कर दिया कि वह हार कर अवसादग्रस्त होनेवालों में नहीं है। आजसू ने रामगढ़ से लेकर कोडरमा, गिरिडीह और चाईबासा तक अपना एक अलग कॉरीडोर ही बना डाला है। पहली बार आजसू की शक्ति का अंदाजा तब हुआ, जब उसने बरही से लेकर बहरागोड़ा तक मानव शृंखला बना डाली। हाल में ही आजसू ने स्वाभिमान यात्रा के तहत अपनी ताकत का प्रदर्शन किया और इस क्र्रम में आजसू ने जनता की आवाज को बुलंद किया। आवाज इतनी दमदार थी कि वह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के कानों तक पहुंची और उन्होंने आजसू प्रमुख युवा नेता सुदेश महतो को दिल्ली बुलाकर गिरिडीह सीट की कमान उनके हाथों में सौंप दी। इससे साफ जाहिर है कि आजसू एक विशेष वर्ग में ताकत बनकर उभरी है और गिरिडीह का यह चुनाव साबित कर देगा कि आजसू के युवा नेता सुदेश महतो की बाजुओं में कितनी ताकत है। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि यह चुनाव आजसू की राजनीति को एक नयी दिशा और मुकाम देगा और साथ ही यह न्यू झारखंड की राजनीति में लंबी लकीर खींच देगा।
आजसू पार्टी की राजनीति, उसके उतार-चढ़ाव, उसकी ताकत और बढ़ते जनाधार पर पेश है आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।

झारखंड में ऐसे विधायकों की खासी तादाद है, जो सांसद के तौर पर प्रमोशन के ख्वाहिशमंद रहे हैं। इनमें से कुछ को लोकसभा के मैदान-ए-जंग में उतरने का मौका मिल रहा है, तो कई ऐसे हैं जिनकी हसरतें टिकट की लड़ाई में ही ध्वस्त हो गयीं। बड़ी पार्टियों ने ज्यादातर विधायकों की लोकसभा टिकट की दावेदारी खारिज कर दी है। कहने को झामुमो कह सकता है कि वह जगन्नाथ महतो पर दांव खेलेगा और कांग्रेस भी गीता कोड़ा का नाम ले सकती है। लेकिन सच यही है कि जगन्नाथ महतो भी पहले चुनाव लड़ चुके हैं और गीता कोड़ा का तो दूर-दूर तक कांग्रेस से वास्ता नहीं रहा है। अभी-अभी वह पार्टी में शामिल हुई हैं। दल के निष्ठावान और समर्पित विधायक अदद टिकट के लिए आलाकमान का मुंह
निहार रहे हैं।
आजसू और झाविमो से एक-एक विधायक चुनाव मैदान में उतरने वाले हैं, लेकिन इन सभी के साथ एक बात कॉमन है कि ये पहले भी लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। विधायकों को संसदीय चुनाव के मैदान में नहीं उतारने का सीधा मतलब यही निकलता है कि कोई भी राजनीतिक दल ज्यादा रिस्क लेने के मूड में नहीं है। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि राजनीतिक दल अपने विधायक को आगे बढ़ाने में भरोसा नहीं करते। विधायकों को प्रमोशन नहीं मिलने के दूरगामी परिणाम भी होंगे। अगर लगातार एक ही व्यक्ति को लोकसभा का उम्मीदवार बनाया जाता रहा, तो जाहिर है वह अपने को सर्वशक्तिमान समझ लेगा और जिस दिन ये दल उसे किनारा लगाना चाहेंगे, वह पूरी पार्टी को ही चुनौती दे देगा। इस खास राजनीतिक परिस्थिति के बारे में आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।