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राजनीति बेहद अनिश्चितता का पर्याय है। यहां कब किसका सितारा बुलंद होगा और कब कौन हाशिये पर चला जायेगा, कहा नहीं जा सकता। झारखंड के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं। वह झारखंड की सियासत में एक धूमकेतु की तरह उभरे और देखते-देखते सत्ता शीर्ष तक जा पहुंचे, लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में पराजित होने के बाद वह न केवल झारखंड की राजनीति से, बल्कि भाजपा संगठन के भीतर भी हाशिये पर धकेल दिये गये। इन पांच सालों में व

दशकों बाद कोयलांचल धनबाद की आबो-हवा बदली है। झारखंड राज्य में हेमंत सोरेन की सरकार के एक साल और वैश्विक महामारी कोरोना काल के दस महीनों में धनबाद जिला के सभी छह विधानसभा क्षेत्र धनबाद, बाघमारा, झरिया, निरसा, टुंडी, सिंदरी विधानसभा तक बदलाव की बयार चरम पर है।

झारखंड के सबसे शालीन और स्पष्टवादी छवि के राजनेता माने जानेवाले बाबूलाल मरांडी इस समय अपने तीन दशक लंबे राजनीतिक कैरियर के उस दोराहे पर खड़े हैं, जहां एक तरफ खाई है, तो दूसरी तरफ कुआं। 21वीं शताब्दी के तीसरे दशक का पहला साल उनके इस कैरियर को किस तरफ ले जाता है, यह तो भविष्य में

आजसू के समक्ष तीन बड़ी चुनौतियांदेश, काल और परिस्थितियां पार्टी हों या व्यक्ति सबके सामने चुनौतियां पेश करती हैं। 22 जून 1986 को अस्तित्व में आनेवाली आजसू पार्टी के साथ भी यही हो रहा है। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी 53 सीटों पर चुनाव लड़ी, पर केवल दो सीटों पर ही जीत का स्वाद चख सकी। आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो सिल्ली से जीत,े तो डॉ लंबोदर

नये साल 2021 में झारखंड के राजनीतिक दलों खासकर झामुमो-कांग्रेस और भाजपा को नयी चुनौतियों से रू-ब-रू होना पड़ेगा। नये साल में विधानसभा की एक सीट मधुपुर में उपचुनाव भी होना है। इसे लेकर 15 जनवरी को खरमास खत्म होते ही सियासी पारा चढ़ने लगेगा। यह चुनाव इस मायने में भी खास है कि दो उपचुनाव में एनडीए को हार मिली है। इस कारण इस बार एनडीए पूरे दमखम के

29 दिसंबर को बतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल का एक साल पूरा करनेवाले हेमंत सोरेन को इस दौरान विपक्ष के कई हमले झेलने पड़े। पर उन्होंने न सिर्फ विपक्ष के हमलों का करारा जवाब दिया बल्कि उन आरोपों को ढाल बनाकर बढ़ चले। विपक्ष के हमलों का जवाब देते हुए भी उन्होंने अपने विरोधियों पर कभी

मुख्यमंत्री सोरेन के समक्ष चुनौतियों का विशाल पहाड़ खड़ा है और सही मायनों में सोरेन को मुख्यमंत्री पद के रूप में कांटों भरा ऐसा ताज मिला है। लेकिन सुकून की बात यह है कि वह उस पहाड़ पर खड़ा होकर भी झारखंड को नयी दिशा में हर पल सक्रिय हैं। हेमंत

व्यक्तित्व में काबिलियत हो तो प्रसिद्धि खुद-ब-खुद चलकर दरवाजे पर दस्तक देती है। बीते वर्ष 29 दिसंबर को दूसरी दफा झारखंड की सत्ता संभालनेवाले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ यही हो रहा है। कोरोना काल में उनके कार्यों की गूंज अंतरराष्टÑीय स्तर तक पहुंची

किसे तोड़ना है और किसे जोड़ना है। अब तो राजनीतिक दल इस नैतिकता को भी भूलते जा रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश में सात में से जदयू के छह विधायकों को भाजपा द्वारा अपने पाले में करने के बाद यह चर्चा आम हो गयी है। खासकर बिहार का राजनीतिक पारा एक बार फिर चढ़ गया है। बिहार में का बा, बिहार में इ बा के चुनावी जुमले के बाद अब यह चर्चा भी आम हो गयी है कि अभी बिहार में राजनीतिक बवाल बा। इतना कुछ होने के बाद भी जदयू के राष्टÑीय अध्यक्ष बिहार के सीएम नीतीश कुमार कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि क्या नीतीश कुमार सत्ता के लिए इतने बेबस हो गये हैं कि कुछ बोल नहीं पा