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22 जून 1986 को अस्तित्व में आनेवाली आजसू पार्टी और 21 जून 1974 को जन्म लेनेवाले सुदेश महतो में कॉमन यही है कि दोनों एक-दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। सुदेश महतो ने अपने नेतृत्व से जहां आजसू पार्टी को नयी ऊंचाई दी है, वहीं आजसू ने तमाम उतार-चढ़ाव के बाद भी झारखंड की राजनीति में खुद को प्रासंगिक बनाये रखा है। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने भाजपा से अलग होकर और अपने दम पर अकेले 53 सीटों पर उम्मीदवार उतार कर अपनी ताकत बतायी।

पावर, यानी अधिकार ऐसा नशा है, जिसकी लत आसानी से नहीं छूटती। हमारे देश में तो खैर पावर की पूजा होती है और पावरफुल बनना हर किसी का सपना होता है। इसलिए सरकारी सेवा से रिटायर होनेवाले नौकरशाह रिटायरमेंट के बाद भी पावर का सुख भोगने की जुगत भिड़ाते रहते हैं। ऐसा नहीं है कि केवल झारखंड में ऐसा होता है, बल्कि देश के दूसरे राज्यों में भी आम तौर पर पूर्व नौकरशाहों को

सुनहरे वर्तमान के लिए अतीत में संघर्षों से कितना जूझना-लड़ना पड़ा है, यह दिशोम गुरु शिबू सोरेन से बेहतर शायद ही कोई जानता होगा। अपने 77वें जन्मदिन पर शुभचिंतकों की बधाइयां लेते और खुद पर लिखी गयी किताबों के पन्ने पलटते अतीत का स्मरण हो आना स्वाभाविक है और यही सोमवार को झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के साथ हुआ। रांची विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार मेें जब उन्होंने महाजनों के खिलाफ संघर्ष की अपनी गाथा सुनानी शुरू की, तो जैसे वे अपने पुराने दिनों में