झारखंड में नयी सरकार का गठन हो गया है। मंत्रिमंडल विस्तार के बाद अब बोर्ड और निगम में पद पाने की दौड़ शुरू हो गयी है। गठबंधन में शामिल दलों के नेता तो इस दौड़ में शामिल हैं ही, पर राज्य के नौकरशाह भी ललचायी नजरों से इसे निहार रहे हैं। निगम और बोर्ड के कई पदों पर ये नौकरशाह जुगत भिड़ाने में जुटे हैं। जिसकी जहां भी पहुंच है, वहां अपनी नैया पार कराने में जुटा है। से वह जुगाड़ लगा रहा है। पूर्व की सरकारों में इन नौकरशाहों की खूब चलती थी। राज्य में अब भी 20 बोर्ड-निगम एवं आयोग ब्यूरोक्रेट्स के हवाले हैं। इनमें कई अधिकारियों ने तो रिटायर होने के बाद इन पदों पर पहुंच-पैरवी के बल पर कब्जा जमाया। अब देखना यह है कि युवाओं की आस हेमंत सरकार में इन अधिकारियों की चलती है या नहीं। वैसे हेमंत सोरेन इस विचार के हैं कि रिटायर का मतलब होता है रिटायर।

रिटायर्ड अधिकारियों के दोनों हाथों में रहा है लड्डू

राज्य में कई ऐसे बोर्ड और निगम हैं, जो आइएएस अधिकारियों के रडार पर हैं। इनमें मुख्य रूप से झारखंड लोक सेवा आयोग, झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग, झारखंड राज्य मानवाधिकार आयोग, झारखंड राज्य विद्युत नियामक आयोग, झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण और झारखंड राज्य संयुक्त प्रवेश परीक्षा पर्षद जैसे आयोग के अध्यक्ष के पद पर राज्य में आइएएस अधिकारी ही काबिज होते रहे हैं। उसमें भी खास तौर पर रिटायर्ड आइएएस अधिकारी। झारखंड संभवत: ऐसा पहला राज्य बन गया है, जहां यह परंपरा कायम होती जा रही है कि कोई भी आइएएस अधिकारी रिटायर हो, तो उसे किसी आयोग या पर्षद का अध्यक्ष बना कर बिठा दिया जाता है। इससे राज्य में ऐसा संदेश जा रहा है कि शायद ये पद इन आइएएस अधिकारियों के लिए ही बने हैं। जबकि भारत के नीति निर्धारकों ने किसी भी व्यक्ति की सेवा के लिए 60 वर्ष की अधिकतम आयु निर्धारित की है। माना जाता है कि इस उम्र के बाद कार्य करने की क्षमता चूकने लगती है। शायद यही वजह है कि 60 वर्ष की उम्र के बाद किसी को भी उसकी सेवा से सेवानिवृत्ति देने की परंपरा की नींव डाली गयी थी। परंतु झारखंड में रिटायरमेंट के मायने ही इन आइएएस अधिकारियों ने बदल दिये हैं। यहां परंपरा बन गयी है कि किसी भी आइएएस को रिटायरमेंट के बाद किसी आयोग या पर्षद में अध्यक्ष का मलाईदार पद थमा दिया जाये। इसका असर हुआ कि राज्य के 20 से ज्यादा आयोग और पर्षद में अध्यक्ष के पद पर रिटायर या सीनियर आइएएस काबिज होते चले गये। लोग भी शायद अब समझ गये हैं कि ये पद इन्हीं आइएएस अधिकारियों के लिए बने हैं। इन पदों पर बैठे ऐसे ही कुछ अधिकारियों के कारण दूसरे नौकरशाह भी गाहे-बगाहे लाभान्वित होते रहे हैं। साथ ही, इन पदों के लिए योग्य अन्य होनहार प्रतिभाओं का हक भी मारा जाता रहा है।

बिजली बोर्ड बना हॉट केक
झारखंड राज्य ऊर्जा विकास निगम में शुरुआत से ही आइएएस अफसरों का ही दबदबा रहा है। सीएमडी बनने का मौका अब तक सिर्फ चार इंजीनियरों को ही मिल पाया है। इनमें एचबी लाल, राजीव रंजन, एसएन वर्मा और बीएम वर्मा शामिल हैं। वहीं अब तक 11 आइएएस बिजली बोर्ड के सीएमडी रहे हैं। एमडी पद पर भी आइएएस का दबदबा है। वितरण निगम के एमडी राहुल पुरवार हैं। संचरण निगम में एमडी निरंजन कुमार बीएसएनएल सेवा के हैं। हालांकि इनके कार्यकाल को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं भी हो रही हैं। कहा जाता है कि बोर्ड में इनका दबादबा तो ऐसा है कि आइएएस अधिकारी भी इनके आगे टिक नहीं पाते। जब भी मौका मिला, इन्होंने अपना दांव खेला और विभागीय राजनीति के माहिर जानेवाले इस एमडी ने हर दांव में विरोधियों को परास्त किया। शायद यही कारण है कि पिछले चार वर्षों से ज्यादा समय से यह अपने पद पर काबिज हैं और कोई इन्हें हिला तक नहीं सका है। कहा जा रहा है कि अपनी कुर्सी बचाये रखने के लिए नयी सरकार में भी इन्होंने अपना पासा फेंक दिया है।

बिजली बोर्ड के किसी अध्यक्ष ने पूरा नहीं किया कार्यकाल
अब तक बिजली बोर्ड में जितने भी आइएएस अध्यक्ष रहे, उनमें से किसी ने भी तीन साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया। पूर्व मुख्य सचिव शिव बसंत दो बार बिजली बोर्ड के अध्यक्ष रहे। पहले अध्यक्ष के रूप में इनका कार्यकाल सिर्फ दो माह का ही रहा। इसके अलावा बीके चौहान, पीपी शर्मा, टी नंदकुमार, डॉ शिवेंदू, एके चुग, एनएन पांडेय, आरके श्रीवास्तव, एसकेजी रहाटे, डॉ नितिन मदन कुलकर्णी, सुधीर त्रिपाठी, डीके तिवारी को सीएमडी का प्रभार सौंपा गया। वर्तमान में आइएएस अफसर वंदना दादेल सीएमडी हैं।

पहले भी गड़बड़ाया है बिजली बोर्ड का कैडर मैनेजमेंट
बिजली बोर्ड के बंटवारे के बाद कंपनियों में एमडी और डायरेक्टर की नियुक्ति आनन-फानन में कर ली गयी थी। इसमें वरीयता का भी ख्याल नहीं रखा गया था। निदेशक मंडल में दो प्रधान सचिव रैंक के आइएएस अफसर शामिल थे। इसमें ऊर्जा और वित्त विभाग के प्रधान सचिव शामिल थे। इन्हें एमडी का निर्णय मानना बाध्य हो गया था। उस समय बिजली बोर्ड में प्रबंध निदेशक चीफ इंजीनियर रैंक के दो अफसर केके वर्मा और सुभाष सिंह को बनाया गया था। इन्हें आइएएस अफसरों को रिपोर्ट करना था। वहीं पूर्व सीएमडी एसएन वर्मा को भी आइएएस रिपोर्ट करते थे।

इस परिपाटी को तोड़ना बड़ी चुनौती
हेमंत सोरेन सरकार के लिए पूर्व नौकरशाहों की नियुक्ति की परिपाटी को खत्म करना बड़ी चुनौती होगी। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि पूर्व नौकरशाहों को उन बोर्ड-निगमों में प्रवेश नहीं दिया जाये, जहां राजनीतिक लोगों को फिट किया जा सकता है। इतना ही नहीं, दूसरी सेवाओं से आकर बोर्ड-निगमों और सरकारी प्रतिष्ठानों पर कुंडली जमाये नौकरशाहों को भी बाहर का रास्ता दिखाना होगा। यह सच है कि व्यवस्था में अनुभवी लोगों की जरूरत होती है, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं होना चाहिए कि सरकारी सेवा से रिटायर करने के बाद नौकरशाहों को रुतबा कायम रखने के लिए उन्हें फिर से अधिकारी बना दिया जाये। हेमंत सोरेन सरकार यदि ऐसे लालची अधिकारियों को अगर दरकिनार कर पाती है, तो यह बहुत बड़ी बात होगी।

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