झारखंड विधानसभा चुनाव में झामुमो और कांग्रेस के साथ राजद गठबंधन की जो आंधी चली, उसने भाजपा को राज्य में 25 सीटों पर सिमटने को मजबूर कर दिया। इस चुनाव के नतीजे 23 दिसंबर को आये और इसने झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के नायकत्व पर एक बार फिर से जनता की मुहर लगा दी। एक बार फिर से इसलिए, क्योंकि झामुमो का कार्यकारी अध्यक्ष बनने से लेकर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन और उस गठबंधन को विधानसभा चुनाव में कंटीन्यू कराने समेत अनेक अवसरों पर हेमंत ने साबित किया कि वे झारखंड की राजनीति के हीरो हैं और बार-बार इसे साबित करने का दमखम रखते हैं। झारखंड विधानसभा चुनाव में झामुमो की ऐतिहासिक जीत और हेमंत सोरेन के जन नायक बनने के कारणों को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।

शानदार जीत के बाद हेमंत सोरेन अब सर्वमान्य नेता
एक नवंबर को जब झारखंड विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई थी, तब शायद ही किसी को यह यकीन था कि यह चुनाव झारखंड में हेमंत सोरेन को सर्वमान्य नेता के रूप में दोबारा स्थापित करने का चुनाव होने जा रहा है। पर चुनाव के नतीजों ने यह बता दिया कि यह चुनाव झारखंडी जनता के लिए हेमंत के जन नायक के रूप में चुने जाने का ही चुनाव था। इस चुनाव ने हेमंत सोरेन को झारखंडी जनता की आकांक्षाओं का नायक बना दिया और यह दिखा दिया कि झारखंड की माटी का लाल अपने बूते झारखंड को चलाने और संवारने में सक्षम है, जैसा दिशोम गुरु शिबू सोरेन अपने भाषणों में कहत रहे हैं। इस चुनाव ने यह भी साबित किया कि भाजपा का 65 प्लस सीटें जीतने का दावा कागजी था, क्योंकि पार्टी वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में जहां 37 सीटें जीतने में सफल रही थी, वहीं 2019 के विधानसभा चुनाव में यह 25 सीटोंं पर सिमट गयी, जबकि झामुमो 19 सीटों से लंबी छलांग लगाकर 30 सीटों तक जा पहुंचा और भाजपा को पछाड़कर झारखंड की सबसे बड़ी पार्टी बनने में सफल रहा। पार्टी की इस शानदार जीत का कारण बताते हुए झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने बताया कि झारखंड में झामुमो की मीटियोरिक राइज की वजह यह है कि बीते पांच साल में पार्टी ने जमीन पर काम किया और जनमुद्दों को लेकर आंदोलन किया, उसका नतीजा सामने आया है। पार्टी ने एक रणनीति के तहत चुनाव लड़ा और उसका नतीजा जीत के रूप में सामने आया।

हेमंत सोरेन ने बार-बार अपना नायकत्व साबित किया
झारखंड विधानसभा चुनाव ही वह पहला अवसर नहीं है, जब हेमंत ने अपना नायकत्व साबित किया है। उन्हें जब भी अवसर मिला, उन्होंने इसे साबित करके दिखाया। चाहे वह वर्ष 2014 के समय प्रभात तारा मैदान में आयोजित नरेंद्र मोदी की सभा हो, जब उन्होंने शानदार भाषण दिया था। या तब, जब लोकसभा चुनावों के पहले उन्होंने कुणाल षाडंÞगी के साथ ट्विटर पर चौपाल लगायी थी। इससे पहले लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने मीडिया चैनलों में पार्टी का विज्ञापन चलाकर यह साबित किया था कि झामुमो भले ही क्षेत्रीय पार्टी हो, पर यह ग्लोबल फलक पर सोचती है। पार्टी को सोशल मीडिया पर मजबूत करने की मुहिम भी हेमंत ने छेड़ी थी और इसकी लांचिंग से संबंधित कार्यक्रम भी किया था। विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने सोशल मीडिया का बेहतर उपयोग किया और शहरी वोटरों से पार्टी को कनेक्ट करने में सफल रहे। हेमंत ने अपने सिपहसालारों, जिनमें पार्टी के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य, विनोद पांडेय, मिथिलेश ठाकुर, सुदीव्य सोनू, अभिषेक प्रसाद पिंटू और डॉ तनुज खत्री जैसे युवा नेताओं की क्षमता पर न सिर्फ पूरा भरोसा जताया, बल्कि उनकी क्षमता का पूरा उपयोग किया। सुप्रियो भट्टाचार्य और विनोद पांडेय जहां पार्टी का ओवरआॅल मैकेनिज्म संभालते रहे, वहीं डॉ तनुज खत्री का उपयोग झामुमो ने भाजपा के बयानों को काउंटर करने के लिए किया। झामुमो और खासकर हेमंत की यह रणनीति कामयाब रही और भाजपा के प्रहार यहीं पहुंच कर खत्म होने लगे। हेमंत ने एक रणनीति के तहत झारखंड के वोटरों का मिजाज भांपा और भाजपा सरकार की नीतियों के कारण आक्रोशित समुदाय को अपनी ओर करने में सफल रहे। पारा शिक्षक, सहिया और आंगनबाड़ी सेविकाओं का एक बड़ा वर्ग भाजपा की नीतियों से नाराज चल रहा था और हेमंत ने अपनी घोषणाओं में इनके दिल की बात कह कर इन्हें अपने साथ जोड़ लिया। झामुमो की यह रणनीति पार्टी की शानदार जीत में कारगर साबित हुई। विधानसभा चुनाव में पार्टी को शानदार जीत मिलने के बाद भी हेमंत विनम्र बने रहे और सीधे जाकर बाबूलाल मरांडी से मुलाकात की और इस धारणा को मिथ्या साबित कर दिया कि हेमंत और बाबूलाल एक-दूसरे के विरोधी हैं। उनके बुके की जगह बुक मांगने की अपील ने उन्हें समाज के हर वर्ग में प्रतिष्ठा दिलायी और इस अपील ने उनके नायकत्व का पैन इंडिया विस्तार किया। मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया मेें इस अपील ने हेमंत को राष्टÑीय स्तर पर लोकप्रियता दी। चंपई सोरेन के पैर छूकर प्रणाम करने की उनकी तस्वीरों ने उन्हें संस्कारी मुख्यमंत्री बना दिया। कुल मिलाकर चुनाव से पहले और बाद भी हेमंत ने साबित कर दिया कि वे एक कुशल रणनीतिकार हैं और इसे बार-बार साबित भी कर सकते हैं।

स्मार्टली और साइलेंटली काम करते रहे हेमंत
झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि लोकसभा चुनाव में अपेक्षित परिणाम न मिलने के बाद हेमंत सोरेन ने स्मार्टली और साइलेंटली पार्टी की चुनावी रणनीति को धरातल पर उतारने का काम किया। चुनाव के बाद मिले छह महीनों का उन्होंने भरपूर उपयोग किया और संघर्ष यात्रा निकालते रहे। उन्होंने जल-जंगल और जमीन के अपने परंपरागत नारे को विस्तार दिया और पारा शिक्षकों, आंगनबाड़ी सेविकाओं और सहियाओं की समस्याओं के समाधान का भरोसा दिया। युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने तथा जेपीएससी की परीक्षाएं कराने का भी भरोसा दिया। इससे झामुमो की रीच गांव से बढ़कर शहर तक पहुंच गयी और शहरों में भी पार्टी अपना विस्तार करने मेंं सफल रही। गढ़वा, गिरिडीह और लातेहार सीट जहां शहरी वोटरों का दबदबा है, वहां भी पार्टी के प्रत्याशी जीत दर्ज करने में सफल रहे। लोकसभा चुनाव में भाजपा को 63 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली थी और इससे पार्टी उत्साहित थी। यह अति उत्साह पार्टी के लिए घातक साबित हुआ। वहीं झामुमो ने लोकसभा चुनाव में मिले परिणामों का विश्लेषण करने के बाद रणनीति के तहत चुनाव लड़ा। इस दौरान भी भाजपा जहां डबल इंजन की सरकार का नारा और डबल इंजन के हेलीकॉप्टर में उड़ रही थी, वहीं झामुमो के पांव जमीन पर थे और मात्र पंद्रह सदस्यीय टीम 43 सीटों पर झामुमो की चुनावी रणनीति को क्रियान्वित कर रही थी। भाजपा के लिए जंबो जेट चुनावी प्रचार बहुत से जोगी मठ उजाड़ वाला साबित हुआ, वहीं छोटी टीम के बाद भी झामुमो ने अपने चुनावी एजेंडे को बेहतर तरीके से क्रियान्वित किया। भाजपा की तड़क-भड़क वाली चुनावी रणनीति की जगह जनता को झामुमो की सादगी भायी और पार्टी चुनाव जीतने में सफल रही।
विधानसभा चुनाव में पार्टी ने विज्ञापनों पर एक भी पैसा खर्च नहीं किया और सोशल मीडिया पर ही प्रचार पर भरोसा किया। पार्टी की यह रणनीति भी कामयाब रही। पार्टी ने कांग्रेस और राजद के साथ सीट शेयरिंग में भी अपना बड़प्पन दिखाया और 43 सीटों पर लड़कर 30 सीटें जीतने में सफल रही। सबसे अहम बात यह है कि झामुमो ने लोकसभा चुनाव में विपरीत परिणाम आने पर भी धैर्य नहीं खोया और अपनी पारी का इंतजार करता रहा। और जब झामुमो की पारी आयी, तो पार्टी ने जीत की बिसात कुछ इस तरह बिछायी कि भाजपा धराशायी हो गयी।

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