विशेष
इससे छेड़छाड़ का नतीजा है जोशीमठ संकट 
जो पहले ही विकसित था वहां विकास क्यों थोपा गया
विकास का पैमाना आधुनिक निर्माण नहीं हो सकता
भविष्यवाणी तो मिथ थी, लकिन चेतावनी के प्रमाण भी थे
समय किसी के लिये रुकता नहीं, जोशीमठ का संकट उसी का उदहारण है
चेत गये होते तो आज सैकड़ों बेघर न हो रहे होते, नींद खुली सरकार की जय कनहिया लाल की

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
उत्तराखंड के जोशीमठ का वजूद विलुप्त होने के कगार पर है। आादि गुरु शंकराचार्य की तपोभूमि आज धंस रही है। लोग बेघर हो रहे हैं। उनके घरों में खौफनाक दरारें आनी शुरू हो चुकी हैं। ये दरारें आज से नहीं पड़ रहीं। इसकी शुरूआत 13 साल पहले हो गयी थी। आज जोशीमठ में सैकड़ों लोग विस्थापित होने को मजबूर हैं। उन्हें अपना मकान खाली करना पड़ेगा। उस मकान से मोह का त्याग करना होगा। जोशीमठ के कई इलाकों में धरती फाड़कर पानी निकलने लगा है। इलाका का इलाका खाली हो गया है। लोग आंदोलित हैं और डरे हुए भी। हिमालय के इको सेंसेटिव जोन में मौजूद जोशीमठ को बद्रीनाथ, हेमकुंड और फूलों की घाटी तक जाने का एंट्री प्वाइंट माना जाता है। जोशीमठ हिमालयी इलाके में जिस ऊंचाई पर बसा है, उसे पैरा ग्लेशियर जोन कहा जाता है। इसका मतलब है कि इन जगहों पर कभी ग्लेशियर थे, लेकिन बाद में ग्लेशियर पिघल गये और उनका मलबा बाकी रह गया। ऐसी जगहों पर जमीन स्थिर नहीं रहती और संतुलन नहीं बन पता। इसी कारण आादि गुरु शंकराचार्य की तपोभूमि ज्यार्तिमठ भूधंसान की जद में आ रहा है। यह नगर धीरे-धीरे अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अस्तित्व को खोता जा रहा है। अगर जोशीमठ को नहीं बचाया गया, तो भविष्य में जोशीमठ के मठ-मंदिर केवल कहानियों में वास करेंगे। वैसे तो बद्रीनाथ जाने वाले तीर्थयात्री जब जोशीमठ में भगवान नृसिंह के मंदिर में दर्शन करने जाते हैं, तो वहां इस भविष्यवाणी के बारे में चर्चा होती है। कहा जाता है कि भविष्य में बद्रीनाथ धाम विलुप्त हो जायेगा और जोशीमठ से 25 किमी दूर भविष्यबद्री में भगवान बद्रीविशाल के दर्शन होंगे। जोशीमठ में हो रहे भूधंसान और जमीन के नीचे से निकलने वाले पानी के नालों को देखकर लोग सदियों पहले हो चुकी भविष्यवाणी से जोड़ कर देख रहे हैं।
एक तरफ धार्मिक भविष्यवाणी है, तो दूसरी तरफ वैज्ञानिक कारण भी बयाते जा रहे हैं। इन कारणों को आज या कल में नहीं खोजा गया है, बल्कि जोशीमठ पर आये इस खतरे को लेकर साल 1976 में भी भविष्यवाणी कर दी गयी थी। क्या है जोशीमठ का इतिहास, मान्यता, धार्मिक महत्व, इससे जुड़ी भविष्यवाणी और चेतवानी के प्रमाण का सच और क्यों विलुप्त होता जा रहा है जोशीमठ, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

जोशीमठ का इतिहास
जोशीमठ को हिमालय का द्वार भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जोशीमठ को स्वर्ग का प्रवेश द्वार भी कहते हैं। यहां की संस्कृति भगवान विष्णु के इर्द-गिर्द घूमती है। जिसके आध्यात्म की जड़ें काफी गहरी हैं। जोशीमठ की स्थापना आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। जोशीमठ को बाबा केदारनाथ धाम और बाबा बद्रीनाथ धाम की यात्रा का अहम पड़ाव भी माना जाता है। मान्यता है कि जोशीमठ में नरसिंह मंदिर की पूजा-अर्चना किये बगैर बद्रीनाथ की यात्रा अधूरी रह जाती है। आदि गुरु शंकराचार्य ने बद्रीनाथ धाम और भारत के तीनों कोनों पर मठों की स्थापना करने से पहले जोशीमठ में ही पहला मठ स्थापित किया था। यहीं पर शंकराचार्य ने सनातन धर्म के महत्वपूर्ण धर्मग्रंथ शंकरभाष्य की रचना भी की। तभी से जोशीमठ हमेशा ही वेद पुराणों की ज्योति विद्या का केंद्र बना रहा रहा। ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व का यह स्थान ,उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के चमोली जनपद में पैनखंडा परगने में समुद्रतल से 6107 फीट ऊंचाई पर स्थित है। चमोली -बद्रीनाथ मार्ग पर कर्णप्रयाग से 75 किमी , चमोली से 59 किमी आगे और बद्रीनाथ से 32 किलोमीटर पहले औली डांडा की ढलान पर अलकनंदा की बायीं ओर स्थित है। यहां से विष्णुप्रयाग लगभग 12 किलोमीटर दूर है और जोशीमठ से फूलों की घाटी 38 किलोमीटर दूर है। उत्तराखंड के प्राचीन ऐतिहासिक और पौराणिक स्थानों में एक जोशीमठ को ज्योतिर्मठ भी कहा जाता है। कहा जाता है कि ज्योतिर्मठ का नाम बदलते-बदलते जोशीमठ हो गया। ज्योतिषमठ की स्थापना अदि गुरु शंकराचार्य ने की थी, जिसे ज्योतिर्मठ भी कहा गया। जोशीमठ संस्कृत शब्द ज्योतिर्मठ का अपभ्रंश रूप है, जिसका अर्थ है शिव के ज्योतिर्लिंग का स्थल।
यह नरसिंहरूपी भगवान विष्णु की तपोभूमि है
बाद में आदिगुरु शंकराचार्य ने अपने परम प्रिय शिष्य टोटका को यहां का दायित्व सौंपा। अलकनंदा और धौलीगंगा नदी का संगम यहीं होता है।
जोशीमठ का पौराणिक इतिहास भी है। कहा जाता है कि पहले जोशीमठ समुद्र क्षेत्र था। जैसे ही चमत्मकारिक परिवर्तनों के अनुसार, यहां हिमालय के पहाड़ों का प्रादुर्भाव हुआ तो नरसिंहरूपी भगवान विष्णु की तप भूमि बन गयी। मान्यता है कि दैत्य कुल के राजा हिरण्यकश्यप और पुत्र प्रह्लाद का संबंध भी यहां से था। यहां स्थित नरसिंह मंदिर का वर्णन भी स्कंद पुराण के केदारखंड में मिलता है। नरसिंह भगवान ने गुस्सा शांत करने के लिए हिमालय के जोशीमठ में ही शरण ली थी। जहां उन्हें असीम शांति प्राप्त हुई। तब से यहां जोशीमठ में भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा की जाती है। आज उन्हें जोशीमठ के सर्वोत्तम मंदिर में शांत स्वरूप में देखा जा सकता है। यहां मुख्य मूर्ति भगवान नरसिंह की है ,जो काला स्फटिक के पत्थर से बनी है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शालीग्राम की कलाई दिन प्रतिदिन पतली होती जा रही है। जब यह शरीर से अलग होकर गिरेगी तब पर्वतों के टकराने से बद्रीनाथ के सारे रास्ते हमेशा के लिए बंद हो जायेंगे। तब भगवान विष्णु की पूजा बद्री में ही होगी। यह तपोवन से एक किलोमीटर दूर जोशीमठ के समीप है। भगवान बद्रीनाथ की शीतकालीन पूजा भी यही होती है। कहा जाता है कि भगवान बद्रीनाथ की शीतकालीन पूजा की परंपरा स्वामी रामानुजाचार्य ने 1450 ईपू में की थी।

यहां 2400 वर्ष पुराना शहतूत का वृक्ष भी है, जिसे कल्पवृक्ष कहा गया
यहां पर एक शहतूत का लगभग 2400 वर्ष पुराना वृक्ष है। इसकी जड़ की गोलाई 36 मीटर है। इसे पवित्र कल्पवृक्ष भी कहते हैं। इसके नीचे आदि शंकराचार्य की तपस्थली गुफा भी है, जिसे ज्योतिश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। जोशीमठ वो स्थान है, जहां ज्ञान प्राप्ति से पहले आदि शंकराचार्य ने शहतूत के वृक्ष के नीचे कठोर तप किया था। यह कल्पवृक्ष जोशीमठ के पुराने शहर में स्थित है। सैकड़ों श्रद्धालु हर साल यहां आते हैं। इसी वृक्ष के नीचे भगवान ज्योतिश्वर महादेव पदासीन हैं। मंदिर के एक हिस्से में जगतगुरु शंकराचार्य द्वारा प्रज्जवलित लौ है। मान्यता है कि इस पवित्र ज्योति के दर्शन से मानव को एक कल्प यज्ञ के बराबर पुण्य का फल मिलता है। शंकराचार्य जोशीमठ के स्थापना के बाद सनातन धर्म के सुधार के लिए निकल पड़े।

जोशीमठ को कार्तिकेयपुर के नाम से भी जाना जाता है
जैसा कि आप सभी जानते हैं हिमालय पर्वत का निर्माण कैसे हुआ है ? – पुराणों के अनुसार आज जहां जोशीमठ (चमोली) नामक स्थान है। वह क्षेत्र पानी से डूबा टेथिस सागर का भाग था। लाखों वर्ष पहले पृथ्वी के अन्दर दो प्लेटों के टकराने से हिमालय का निर्माण होना शुरू हुआ। हिमालय को नवीन वलित पर्वत की श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि इसकी ऊंचाई आज भी बढ़ रही है।
मान्यता है कि हिमालय निर्माण के हजारों साल बाद यहां बर्फ से ढके सुंदर पहाड़ और घाटियां अस्तित्व में आयीं, जिस कारण देवी देवताओं के लिए यह पवित्र स्थल बन गया। यहां कहीं तो भगवान शिव का धाम है, तो कहीं भगवान विष्णु का। जोशीमठ को कार्तिकेयपुर के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के नाम पर इसका नाम कार्तिकेयपुर पड़ा।

कत्यूरी शासकों का राज
छठी सदी के उत्तरार्ध में इस भू-भाग पर कत्यूरी शासकों ने अपना राज्य स्थापित किया। कत्यूरी वंश के संस्थापक बसंतनदेव थे, जिसका पता पांडुकेश्वर ताम्रलेख से मिलता है। पांडुकेश्वर ताम्रलेख में पाये गये कत्यूरी राजा ललितशूर के अनुसार कत्यूरी शासकों की प्राचीनतम राजधानी जोशीमठ (चमोली) में थी । इसे कार्तिकेयपुर नाम से भी जाना जाता है। बागेश्वर के शिलालेख से प्राप्त जानकारी के अनुसार जोशीमठ में बसंतनदेव ने भगवान नरसिंह का मंदिर निर्माण करवाया था। बसंतनदेव के बाद जोशीमठ में कत्यूरी वंश की 3 शाखाओं ने शासन स्थापित किया। खर्परदेव वंश, निंबरदेव वंश और सलोणदित्य वंश। सलोणदित्य वंश के चतुर्थ राजा नरसिंह देव ने कत्यूरियों की राजधानी जोशीमठ से बैजनाथ (बागेश्वर) में स्थानांतरित की थी। 11वीं सदी में कत्यूरियों को विस्थापित कर चंदों और परमार वंश के राजाओं ने शासन स्थापित किया। गढ़वाल के अन्य भागों की तरह जोशीमठ 1803 से 1815 तक गोरखाओं शासनादेश रहा और बाद में अंग्रेजों के अधीन रहा। आजादी के बाद 24 फरवरी 1960 को पौड़ी से अलग होकर चमोली जनपद का गठन किया गया, जिसमें जोशीमठ को चमोली जनपद में शामिल किया गया।

डूब रहा जोशी मठ, 1976 कि वह रिपोर्ट जिसने जोशीमठ की भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी
करीब 50 साल पहले केंद्र सरकार ने गढ़वाल के तत्कालीन कलेक्टर एमसी मिश्रा को यह पता लगाने के लिए नियुक्त किया था कि जोशीमठ क्यों डूब रहा है। उनके नेतृत्व वाली 18 सदस्यीय समिति द्वारा इस बाबत एक रिपोर्ट पेश की गयी। इसमें साफ तौर पर बताया गया कि उत्तराखंड में जोशीमठ एक पुराने भूस्खलन क्षेत्र पर स्थित है और अगर विकास जारी रहा, तो यह डूब सकता है। रिपोर्ट में सिफारिश की गयी कि जोशीमठ में निर्माण प्रतिबंधित किया जाये, वरना यह डूब जायेगा। रिपोर्ट इससे अधिक भविष्यसूचक नहीं हो सकती थी। अब जब जोशीमठ इस कगार पर आ खड़ा हुआ है तो हमें यह जानने की सख्त जरूरत है कि आखिर इस रिपोर्ट में ऐसा क्या-क्या कहा गया, जिस पर उस तरीके से विचार नहीं किया गया।
1976 की मिश्रा समिति की रिपोर्ट ने बताया था कि जोशीमठ एक प्राचीन भूस्खलन पर स्थित है, जो चट्टान नहीं बल्कि रेत और पत्थर के जमाव पर टिका है। अलकनंदा और धौली गंगा नदियां, नदी के किनारों और पहाड़ के किनारों को मिटाकर भूस्खलन को ट्रिगर करने में अपनी भूमिका निभाती हैं। निर्माण गतिविधि में वृद्धि और बढ़ती आबादी क्षेत्र में लगातार भूस्खलन में योगदान देंगी। रिपोर्ट में कहा गया कि जोशीमठ रेत और पत्थर का जमाव है। यह मुख्य चट्टान नहीं है। इसलिए यह एक बस्ती के लिए उपयुक्त नहीं था। ब्लास्टिंग, भारी यातायात आदि से उत्पन्न कंपन से प्राकृतिक कारकों में असंतुलन पैदा होगा। उचित जल निकासी सुविधाओं का अभाव भी भूस्खलन का कारण बनता है। सोख्ता गड्ढों का अस्तित्व, जो पानी को धीरे-धीरे जमीन में सोखने की अनुमति देता है, मिट्टी और शिलाखंडों के बीच गुहाओं के निर्माण के लिए जिम्मेदार है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे पानी का रिसाव और मिट्टी का क्षरण होता है। रिपोर्ट में यह भी सुझाया गया था कि सबसे महत्वपूर्ण निवारक उपाय भारी निर्माण पर प्रतिबंध लगाना था। मिट्टी की भार वहन क्षमता और स्थल की स्थिरता की जांच के बाद ही निर्माण की अनुमति दी जानी चाहिए और ढलानों की खुदाई पर भी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। इसमें कहा गया कि सड़क की मरम्मत और अन्य निर्माण कार्य के लिए सलाह दी जाती है कि पहाड़ी की तरफ खोदकर या विस्फोट करके पत्थरों को न हटाया जाये। इसके अलावा, भूस्खलन क्षेत्रों में पत्थरों और शिलाखंडों को पहाड़ी के नीचे से नहीं हटाया जाना चाहिए, क्योंकि इससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जायेगी। ढलानों पर जो दरारें बन गयी हैं, उन्हें सील कर देना चाहिये। भूस्खलन क्षेत्र में पेड़ों को काटने के खिलाफ भी सलाह दी गयी और कहा गया कि मिट्टी और जल संसाधनों के संरक्षण के लिए विशेष रूप से मारवाड़ी और जोशीमठ के बीच क्षेत्र में व्यापक वृक्षारोपण कार्य किया जाना चाहिए। इसमें कहा गया कि इमारती लकड़ी और जलाऊ लकड़ी के साथ बस्ती की आपूर्ति के लिए पेड़ों को काटने को कड़ाई से विनियमित किया जाना चाहिए और यह अनिवार्य था कि स्थानीय लोगों को ईंधन के वैकल्पिक स्रोत प्रदान किये जायें। ढलानों पर कृषि से बचना चाहिए। सड़कों को पक्का किया जाना चाहिए। क्षेत्र में पानी का रिसाव बहुत अधिक है, इसलिए भविष्य में किसी और भूस्खलन को रोकने के लिए पक्की जल निकासी प्रणाली के निर्माण से खुले बारिश के पानी के रिसाव को रोका जाना चाहिए। और भी कई सारी जानकारियां इस रिपोर्ट में दी गयी थीं।

शहर को तीन हिस्सों में बांटा गया, डेंजर जोन के घर ढहाये जायेंगे, बफर जोन भी खतरनाक
सोमवार शाम को इमारतों को हुए नुकसान का जायजा लेने के लिए केंद्र की एक टीम यहां पहुंची हैं। टीम आज ही राज्य सरकार को रिपोर्ट सौपेंगी।
उधर, राज्य सरकार ने जोशीमठ को तीन जोन में बांटने का फैसला किया है। ये जोन होंगे- डेंजर, बफर और सेफ जोन। जोन के आधार पर शहर के मकानों को चिह्नित किया जायेगा। डेंजर जोन में ऐसे मकान होंगे, जो ज्यादा जर्जर हैं और रहने लायक नहीं हैं। ऐसे मकानों को मैन्युअली गिराया जायेगा, जबकि सेफ जोन में वैसे घर होंगे, जिनमें हल्की दरारें हैं और जिसके टूटने की आशंका बेहद कम है। वहीं, बफर जोन में वो मकान होंगे, जिनमें हल्की दरारें हैं, लेकिन दरारों के बढ़ने का खतरा है। बता दें कि एक्सपर्ट की एक टीम दरार वाले मकानों को गिराने की सिफारिश कर चुकी है। जोशीमठ के सिंधी, गांधीनगर और मनोहर बाग एरिया डेंजर जोन में हैं। यहां के मकानों पर रेड क्रॉस लगाये गये हैं। प्रशासन ने इन मकानों को रहने लायक नहीं बताया है। चमोली डीएम हिमांशु खुराना ने बताया कि जोशीमठ और आसपास के इलाकों में कंस्ट्रक्शन बैन कर दिया गया है। यहां 603 घरों में दरारें आयी हैं। ज्यादातर लोग डर के चलते घर के बाहर ही रह रहे हैं। किरायेदार भी लैंडस्लाइड के डर से घर छोड़कर चले गये हैं। अभी तक 70 परिवारों को वहां से हटाया गया है। बाकियों को हटाने का काम चल रहा है। प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि वे रिलीफ कैंप में चले जायें।

एक्सपर्ट बोले, लैंडस्लाइड हो सकता है
पीएमओ से मीटिंग के दौरान एक्सपर्ट ने जोशीमठ में बड़े रिस्क की आशंका जाहिर की है। उनका कहना है कि ब्लास्टिंग और शहर के नीचे सुरंग बनाने की वजह से पहाड़ धंस रहे हैं। अगर इसे तुरंत नहीं रोका गया, तो शहर मलबे में बदल सकता है। सुखवीर सिंह संधू ने कहा कि हमारी कोशिश है कि बिना किसी नुकसान के लोगों को दूसरी जगह शिफ्ट कराया जाये। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक यह पता लगाने में लगे हैं कि लैंडस्लाइड को कैसे रोका जा सकता है। जल्द ही समाधान ढूंढ़ लिया जायेगा। इसके लिए जरूरी कदम उठाये जाने शुरू कर दिये गये हैं, हालांकि अभी के हालात को देखते हुए लोगों को डेंजर जोन से निकालना ज्यादा जरूरी है।
लोगों की सुरक्षा के लिए युद्ध स्तर पर काम: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी
लोगों का दर्द बांटने के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी रविवार को जोशीमठ पहुंचे। लोग उनके सामने बिलख कर रोने लगे। महिलाओं ने उन्हें घेर लिया। वे बोलीं- हमारी आंखों के सामने ही हमारी दुनिया उजड़ रही है, इसे बचा लीजिए। हमें अपने घरों में रहने में डर लग रहा है। धामी ने जोशीमठ बचाव के संबंध में कहा कि देहरादून में विभागों के साथ कार्ययोजना बनेगी। हर विभाग का नोडल अफसर बनेगा। अलग-अलग जोन में नगर बंटेगा। लोगों की जान-माल की सुरक्षा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। सभी को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाये।
भीषण सर्दी का समय है, जरूरत की चीजें उन्हें प्राप्त हों। दीर्घकालिक ड्रेनेज प्लान पर तत्काल काम शुरू हो। औपचारिकताओं में न जाया जाये। भविष्य में स्थायी पुनर्वास की स्थिति बनेगी, तो उसके लिए दो स्थानों को तय किया है। गौचर और पीपलकोटी के पास दो स्थानों पर पुनर्वास प्रस्ताव पर भी काम किया जा रहा है।

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