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    Home»विशेष»संघ प्रमुख के बयानों का कायल हुआ विपक्ष और मुस्लिम समाज
    विशेष

    संघ प्रमुख के बयानों का कायल हुआ विपक्ष और मुस्लिम समाज

    shivam kumarBy shivam kumarJanuary 3, 2025No Comments16 Mins Read
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    विशेष
    हर मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढ़ने की जरूरत नहीं: भागवत, भागवत सही कह रहे हैं: विपक्ष
    जब सत्ता प्राप्त करनी थी, तब मंदिर-मंदिर, सत्ता मिल गयी, तो मंदिर नहीं ढूंढ़ने की नसीहत: अविमुक्तेश्वरानंद
    मोहन भागवत किसी एक संगठन के प्रमुख हो सकते हैं, हिंदू धर्म के प्रमुख नहीं: रामभद्राचार्य
    सवाल: मोहन भागवत के बयान के हिसाब से जो हिंदू की बात करेगा, तो क्या वह राजनीति कर रहा है?
    अगर मस्जिद में मंदिर ढूंढ़ने वाला नेतागिरी चमका रहा है, तो फिर राम मंदिर आंदोलन में शामिल लोगों को क्या कहा जाये

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    आजकल आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा दिये जा रहे बयान सुर्खियों में हैं। सुर्खियों में इसलिए, क्योंकि उनके बयान हिंदुओं को कन्फ्यूजन में डाल रहा है। कन्फयूजन में इसलिए, क्योंकि वह तय नहीं कर पा रहा है कि क्या आज का आरएसएस वही आरएसएस है, जिस पर हिंदू एक वक्त प्रगाढ़ विश्वास किया करता था कि कोई उनका पक्ष ले न ले, लेकिन आरएसएस जरूर लेगा। आरएसएस, यानी हिंदुओं का अभिमान। लेकिन आजकल हिंदू अब सोचने पर मजबूर हो रहा है कि आरएसएस प्रमुख सर संघचालक का हालिया बयान किस ओर इशारा कर रहा है। अचानक से आरएसएस प्रमुख के बयानों और विचारों में बदलाव कैसे आ रहा है। हिंदू समाज अब यह सोचने को बाध्य हो गया है कि क्या आरएसएस प्रमुख मोहन भगवत के बयानों को सीरियसली लिया जाये या इसे उम्र का तकाजा मान कर छोड़ दिया जाये, क्योंकि जिस आरएसएस पर ज्यादातर हिंदू समाज नाज करता आया है, आज उसके अंदर खलबली मची हुई है। खलबली मोहन भागवत द्वारा दिये जा रहे हालिया बयानों पर। मोहन भागवत कहने लगे हैं कि हर मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढ़ने की जरूरत नहीं। इसका मतलब तो यही हुआ कि हिंदू अपने धरोहरों को भूल जाये। इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा जिन हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया, खंडित किया गया, उसका अस्तित्व मिटाने की कोशिश की गयी, उसे हिंदू समाज भूल जाये। लेकिन हिंदू समाज भी अब पूछने लगा है कि आखिर क्यों भुला दिया जाये। ये मोहन भागवत के निजी विचार हो सकते हैं और वह अपना विचार किसी भी समाज पर थोप नहीं सकते। मोहन भागवत का एक और बयान काफी सुर्खियों में है। भागवत ने कहा कि राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वे नयी जगहों पर इस तरह के मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं, यह स्वीकार्य नहीं है। इनके हिसाब से अब कोई भी मंदिर का मुद्दा उठायेगा, तो वह राजनीति कर रहा है। नेता बनने की कोशिश कर रहा है। यानी राम मंदिर भी मोहन भागवत के हिसाब से नेता बनाने वाली फैक्ट्री ही मानी जायेगी। राम मंदिर की बात तो पांच सौ वर्षों से हो रही है। असंख्य राम भक्तों ने जिस राम मंदिर निर्माण के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया, फिर उनका कोई मोल नहीं। इसीलिए ज्यादातर हिंदू समाज अब मोहन भागवत को सीरियसली नहीं ले रहा है। कह रहा है, सारी सुविधा वह लें, एएसएल सिक्योरिटी, जिसमे 58 कमांडो होते हैं, उसमें वह घूमें और सनातन का पाठ भी वही पढ़ायें, तो कैसे चलेगा। वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि सनातन धर्म ही भारत का राष्ट्रीय धर्म है और इसे सुरक्षित रखना हम सभी का कर्तव्य है। ऐतिहासिक मंदिरों पर आक्रमण की घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जो लोग इन पवित्र स्थलों को नष्ट करने का काम करते थे, उनका कुल और वंश नष्ट हो गया। विरासत और विकास के बीच बेहतर समन्वय होना चाहिए। विरासत को विस्मृत कर भौतिक विकास संभव नहीं। वहीं संत समाज भी सर संघचालक के बयानों का समर्थन नहीं कर रहा है। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का मोहन भागवत के बयान पर कहना है कि जब उन्हें सत्ता प्राप्त करनी थी, तब वह मंदिर-मंदिर करते थे। अब जब सत्ता मिल गयी है, तो मंदिर नहीं ढूंढ़ने की नसीहत दे रहे हैं। वहीं स्वामी रामभद्राचार्य ने संघ प्रमुख के अधिकार को चुनौती देते हुए कहा कि मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मोहन भागवत हमारे अनुशासनकर्ता नहीं हैं, बल्कि हम उनके हैं। उन्होंने कहा कि यह उनका व्यक्तिगत बयान हो सकता है। वह संघ के संचालक हो सकते हैं, हिंदू धर्म के नहीं। वैसे आजकल मोहन भागवत के बयानों का समर्थन विपक्ष खुलकर कर रहा है। कई मौलाना तो मोहन भागवत के फैन हो गये हैं और मोहन भागवत द्वारा दिये गये बयान का तहे दिल से स्वागत कर रहे हैं। अरविंद केजरीवाल भी मोहन भागवत को चिट्ठी लिखने लगे हैं। वैसे उनकी चिठ्ठी से लगता है कि वह भाजपा और आरएसएस में फूट डालने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं आरएसएस के अंग्रेजी मुखपत्र ‘आॅर्गेनाइजर’ और हिंदी मुखपत्र ‘पांचजन्य’ की राय में भिन्नता भी दिखी। अंग्रेजी मुखपपत्र ‘आॅर्गेनाइजर’ के संपादकीय में लिखा था कि सोमनाथ से लेकर संभल और उससे आगे का ऐतिहासिक सत्य जानने की यह लड़ाई धार्मिक वर्चस्व के बारे में नहीं है। यह हमारी राष्ट्रीय पहचान की पुष्टि करने और सभ्यतागत न्याय की लड़ाई है। वहीं ‘पांचजन्य’ ने मंदिर-मस्जिद विवाद पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान का समर्थन किया है। ‘पांचजन्य’ ने संपादकीय में लिखा कि कुछ लोग अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए मंदिरों का प्रचार कर रहे हैं और खुद को हिंदू विचारक के रूप में पेश कर रहे हैं। आखिर क्यों मोहन भागवत के बयान सुर्खियों में हैं और इन बयानों का क्या हो सकता है राजनीतिक और सामजिक असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    चीख-चीख कर गवाही दे रहा मंदिर
    काशी, मथुरा, दिल्ली, आगरा, कश्मीर, गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश के धार तक, इस्ट से लेकर वेस्ट, नॉर्थ से लेकर साउथ तक मंदिर-मस्जिद का विवाद जारी है। इन विवादों में हिंदू पक्ष का लगातार दावा है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने हिंदुओं की आस्था पर गहरी चोट पहुंचायी थी। 60 हजार से ज्यादा मंदिरों को तोड़ डाला गया था। कई मंदिरों को तोड़कर मस्जिदों का निर्माण कराया गया था। उनका मानना है कि मुगल काल में आक्रांताओं ने काफी तरह से भारत की संस्कृति, हिंदू धर्म की आस्था को खंडित करने की कोशिश की थी। मंदिरों को तोड़ने का काम इसी में से एक है। इतिहासकारों की मानें, तो मुगल काल में तोड़े गये मंदिरों की एकदम सही संख्या बता पाना मुश्किल है, क्योंकि उस दौर का इतिहास भी मुगल शासकों ने अपने अनुसार लिखवाया था। हां, ये जरूर कहा जा सकता है कि कई हजार मंदिरों को मुगलों ने तोड़ दिया। कई के सबूत आज भी मौजूद हैं। कई मंदिर तो चीख-चीख कर अपने अस्तित्व की गवाही तक दे रहे हैं। बात भी सही है। राम मंदिर उनमें से एक था। पांच सौ वर्षों की लंबी लड़ाई, त्याग, बलिदान के बाद आज अयोध्या में रामलला विराजमान हैं। काशी के विश्वनाथ मंदिर की दीवारें तो अपनी पैरवी खुद कर रही हैं, कोई भी नंगी आंखों से बता देगा कि मंदिर और मस्जिद की दीवारों में फर्क साफ दिखाई पड़ता है। खैर यह मामला कोर्ट में चल रहा है। हिंदू और मुस्लिम पक्ष इस मामले को अपने-अपने हिसाब से सुलझा रहे हैं। इसी बीच संभल का विवाद भी जोर पकड़ने लगा। वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णुशंकर जैन ने अपने पिता और वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन सहित, आठ लोगों की ओर से 19 नवंबर को सिविल जज (सीनियर डिवीजन) में वाद दायर किया। उनका दावा है कि संभल की शाही जामा मस्जिद हरिहर मंदिर है। कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया और सर्वे की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी का भी आदेश दिया। संभल में जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर का विवाद वर्षों से चला आ रहा है। इसका इतिहास में भी उल्लेख है। इसी वर्ष प्रकाशित मंडलीय गजेटियर में बताया गया कि अबुल फजल द्वारा रचित ‘आइन-ए-अकबरी’ में संभल में भगवान विष्णु के प्रसिद्ध मंदिर का उल्लेख है। संभल में पुराने शहर के मध्य में स्थित विशाल टीले (कोट अर्थात किला) पर भगवान विष्णु का प्रसिद्ध मंदिर होने का प्रमाण है। यहीं हरिहर मंदिर था।

    विपक्ष ओर मुस्लिम समाज हुआ कायल
    खैर मंदिर-मस्जिद विवाद के बीच आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयानों की खूब चर्चा हो रही है। पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि हर मस्जिद में मंदिर खोजने की जरूरत नहीं। राम मंदिर बनने के बाद कुछ लोगों को लगता है कि बाकी जगहों पर भी इसी तरह का मुद्दा उठाकर वो हिंदुओं के नेता बन जायेंगे। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। मोहन भागवत ने कहा, अपना देश संविधान के मुताबिक चलता है। यहां पर किसी का राज नहीं चलता। जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है। जो चुनकर आयेगा, वह शासन चलायेगा । शासन जनता का होता है। अब वर्चस्व का जमाना खत्म हो गया है। आपको यह बात समझनी चाहिए और यह सब पुरानी लड़ाइयां हैं। इन लड़ाइयों को भूलकर हमें सबको संभालना चाहिए। उनके इस बयान का एक वर्ग ने समर्थन किया, तो वहीं हिंदूवादी संगठनों और कुछ संतों ने खारिज कर दिया। खासकर विपक्ष और मुस्लिम समाज ने आरएसएस प्रमुख के इस बयान को खूब सराहा है। वे कह रहे हैं कि हम आरएसएस प्रमुख के बयान का सवागत करते हैं। आॅल इंडिया उलेमा बोर्ड ने देश में बढ़ते मंदिर-मस्जिद विवाद पर आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। आॅल इंडिया उलेमा बोर्ड ने मोहन भागवत के बयान का स्वागत करते हुए कहा है कि भागवत के बयान से देश में हिंदुत्व के नाम पर जो लोग राजनीति कर रहे हैं और ऐतिहासिक मस्जिदों और दरगाहों पर मंदिर होने का दावा कर देश में अमन शांति और आपसी भाइचारे के बीच दरार डाल रहे हैं, उनको करारा जवाब मिला है। अखिल भारतीय उलेमा बोर्ड के राष्ट्रीय महासचिव अल्लामा बुनई हसनी ने कहा है कि मोहन भागवत ने स्पष्ट रूप से हिंदू नेताओं को जो संदेश दिया है, इसका असर होगा और देश में जगह-जगह मंदिर-मस्जिद विवाद का अंत होगा। अल्लामा बुनई हसनी ने कहा, मोहन भागवत ने कहा है कि अयोध्या जैसे मसले खड़े करके अगर कोई चाहता है कि हम हिंदू नेता बन जायेंगे, तो हम इसकी इजाजत नहीं देंगे। भारतीय समाज में इस बयान को अपनाने की जरूरत है। ये बयान भारत के सभी समाज में पहुंचाये जायें, ताकि देश में अमन-चैन बना रहे। वहीं आॅल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रतिक्रिया भी सामने आयी है। उन्होंने इस बयान का समर्थन किया है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर आॅल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि मोहन भागवत के बयान का हम स्वागत करते हैं। हर मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढ़ना सेहतमंद मुल्क के लिए अच्छा नहीं है। मोहन भागवत एक संजीदा और अच्छे इंसान हैं। उन्होंने इस नजाकत को समझा है, क्योंकि इस तरह के मुद्दे से मुल्क का माहौल खराब होता है। मंदिर-मस्जिद के नाम पर हमें खून-खराबा नहीं करना चाहिए। मोहन भागवत के बयान का सरकार को समर्थन करना चाहिए।

    संत समाज नाराज
    संघ प्रमुख मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद विवादों को उठाने को अस्वीकार्य बताने पर साधु-संतों ने नाराजगी जतायी है। कई संतों ने उनके बयान का विरोध करते हुए धर्म को लेकर आरएसएस की भूमिका पर सवाल उठाये हैं। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि जो लोग आज कह रहे हैं कि हर जगह मंदिर नहीं खोजना चाहिए, इन्हीं लोगों ने तो बात बढ़ायी है और बढ़ा कर सत्ता हासिल कर ली। अब सत्ता में बैठने के बाद कठिनाई हो रही है। अब कह रहे हैं कि ब्रेक लगाओ। जब आपको जरूरत हो, तो आप गाड़ी का एक्सीलेटर दबा दो और जब आपको जरूरत लगे, तो ब्रेक दबा दो। ये सुविधा की बात हो गयी। न्याय की जो प्रक्रिया है, वो सुविधा नहीं देखती। वो ये देखती है कि सच्चाई क्या है। वहीं स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि ये मोहन भागवत का व्यक्तिगत बयान हो सकता है। ये सबका बयान नहीं है। वो किसी एक संगठन के प्रमुख हो सकते हैं, हिंदू धर्म के वो प्रमुख नहीं हैं कि हम उनकी बात मानते रहें। वो हमारे अनुशासक नहीं हैं। हम उनके अनुशासक हैं। रामभद्राचार्य ने कहा, हिंदू धर्म की व्यवस्था के लिए वो ठेकेदार नहीं हैं। हिंदू धर्म की व्यवस्था हिंदू धर्म के आचार्यों के हाथ में हैं, उनके हाथ में नहीं हैं। वो किसी एक संगठन के प्रमुख बन सकते हैं, हमारे नहीं हैं। संपूर्ण भारत के वो प्रतिनिधि नहीं हैं। हमारा ध्यान सदैव धर्म के अनुशासन और सत्य पर रहता है। जहां-जहां हिंदू धर्म के प्रमाणित स्थल हैं, वहां हमारी उपस्थिति होगी। जहां भी प्राचीन मंदिरों के प्रमाण उपलब्ध होंगे, हम उन्हें दोबारा स्थापित करने का प्रयास करेंगे। यह हमारे लिए कोई नयी कल्पना नहीं है, बल्कि सत्य के आधार पर हमारी संस्कृति और धर्म का संरक्षण है।

    मथुरा और काशी हमें सौंप दें : विश्व हिंदू परिषद
    पूरे देश में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने का अभियान चलायेंगे
    विश्व हिंदू परिषद के नेता सुरेंद्र जैन का भी इस पर बयान आया है। उन्होंने सीधे तौर पर मोहन भागवत के बयान को लेकर ऐतराज तो नहीं जताया, लेकिन यह जरूर कहा कि पूरी दुनिया जानती है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत में लाखों मंदिरों को तोड़ा और उन पर मस्जिद बनायी। उन्होंने कहा कि आज जो समस्या समाज में खड़ी है, वह भी मुस्लिम समाज की ही देन है। उन्होंने कहा कि संत समाज ने राम मंदिर आंदोलन के दौरान ही मुस्लिम पक्ष से कहा था कि आप हमारे तीन स्थानों अयोध्या, मुथरा और काशी को सौंप दें। हम अन्य सभी दावों को छोड़ देंगे। वीएचपी के नेता ने कहा कि अयोध्या में मंदिर तो हमारी लंबी कानूनी लड़ाई के बाद बना था। यह तब हुआ, जब मुस्लिम समाज ने हमारे उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। हम तो अब भी कहते हैं कि वे मथुरा और काशी आराम से हमें सौंप दें। यदि वे ऐसा करते हैं, तो फिर हम अपने समाज के जागृत वर्ग को भी समझाने का प्रयास करेंगे। लेकिन इस तरह की स्थिति में तो हम उन्हें नहीं समझा सकेंगे। विश्व हिंदू परिषद का कहना है कि हम एक आंदोलन चलायेंगे। पूरे देश में हम मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने के लिए अभियान चलायेंगे। उन्होंने कहा कि इस देश में कोई चर्च या फिर मस्जिद नहीं है, जो सरकारी नियंत्रण में हो। फिर भी मंदिरों को ट्रस्ट के नाम पर सरकारी नियंत्रण में रखा गया है। हम इस बात से सहमत नहीं है। इसके लिए अभियान चलाने की हमने तैयारी कर ली है।

    आरएसएस के अंग्रेजी ओर हिंदी मुखपत्र के विचारों में अंतर
    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र ‘पांचजन्य’ ने मंदिर-मस्जिद विवाद पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान का समर्थन किया है। ‘पांचजन्य’ ने संपादकीय में लिखा कि कुछ लोग अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए मंदिरों का प्रचार कर रहे हैं और खुद को हिंदू विचारक के रूप में पेश कर रहे हैं। ‘पांचजन्य’ ने संपादकीय ‘मंदिरों पर यह कैसा दंगल’ में लिखा है कि मंदिरों का राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं है। इसे राजनीति का हथियार नहीं बनाना चाहिए। भागवत का बयान गहरी दृष्टि और सामाजिक विवेक का आह्वान है। मोहन भागवत ने 19 दिसंबर को पुणे में कहा था कि राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वे नयी जगहों पर इस तरह के मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं। हर दिन एक नया मामला उठाया जा रहा है। इसकी इजाजत कैसे दी जा सकती है? भारत को दिखाने की जरूरत है कि हम एक साथ रह सकते हैं। ‘पांचजन्य’ में लिखा है कि एक स्पष्ट बयान के अलग-अलग अर्थ निकाले जा रहे हैं। हर दिन नयी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। इन प्रतिक्रियाओं में स्वत:स्फूर्त सामाजिक राय की बजाय ‘सोशल मीडिया विशेषज्ञों द्वारा उत्पन्न किया गया कोहराम और उन्माद’ अधिक दिखाई देता है। संपादकीय में कहा गया कि भागवत का बयान समाज से इस मुद्दे के प्रति समझदारी भरा रुख अपनाने का स्पष्ट आह्वान है। हालांकि आरएसएस के अंग्रेजी मुखपत्र ‘आॅर्गेनाइजर’ ने मोहन भागवत से अलग राय रखी थी। पत्रिका ने इसे ऐतिहासिक सच जानने और सभ्यतागत न्याय की लड़ाई कहा था। ‘आॅर्गेनाइजर’ ने संपादकीय में लिखा था कि सोमनाथ से लेकर संभल और उससे आगे का ऐतिहासिक सत्य जानने की यह लड़ाई धार्मिक वर्चस्व के बारे में नहीं है। यह हमारी राष्ट्रीय पहचान की पुष्टि करने और सभ्यतागत न्याय की लड़ाई है।

    आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हालिया चर्चित बयान
    धर्म का अधूरा ज्ञान,अधर्म करवाता है
    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि धर्म को समझना बहुत कठिन है। धर्म के नाम पर होने वाले सभी उत्पीड़न और अत्याचार गलतफहमी और धर्म की समझ की कमी के कारण हुए।

    इंसान पहले सुपरमैन, फिर भगवान बनना चाहता है
    प्रगति का कोई अंत नहीं है। इंसान पहले सुपरमैन, फिर देवता और उसके बाद भगवान बनना चाहता है, लेकिन अभी यह नहीं समझना चाहिए कि बस अब हो गया। उन्हें लगातार काम करते रहना चाहिए, क्योंकि विकास का कोई अंत नहीं है। कांग्रेस ने भागवत के इस बयान को पीएम मोदी के लिए बताया था।

    मर्यादा का पालन करें, अहंकार न करें
    जो अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए मर्यादा की सीमाओं का पालन करता है, जो अपने काम पर गर्व करता है, फिर भी अनासक्त रहता है, उसमें अहंकार नहीं होता है। ऐसा व्यक्ति वास्तव में सेवक कहलाने का हकदार है।

    तीन बच्चे पैदा करने चाहिए
    समाज नष्ट न हो, इसलिए सभी को कम से कम तीन बच्चे पैदा करना जरूरी है। देश की जनसंख्या नीति 1998-2002 में तय की गयी थी। इसके मुताबिक जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे नहीं होनी चाहिए। अगर ऐसा होता है, तो समाज अपने आप नष्ट हो जायेगा। अब कोई इंसान 0.1 पैदा तो नहीं होता। इसलिए यह कम से कम तीन होना चाहिए।

    मणिपुर जल रहा, इस पर कौन ध्यान देगा
    एक साल से मणिपुर शांति की राह देख रहा है। इससे पहले 10 साल शांत रहा और अब अचानक जो कलह वहां पर उपजी या उपजायी गयी, उसकी आग में मणिपुर अभी तक जल रहा है, त्राहि-त्राहि कर रहा है। इस पर कौन ध्यान देगा? प्राथमिकता देकर उसका विचार करना यह कर्तव्य है।

    पंडितों ने जाति बनाकर बांटा
    जाति भगवान ने नहीं बनायी है, जाति पंडितों ने बनायी, जो गलत है। भगवान के लिए हम सभी एक हैं। हमारे समाज को बांटकर पहले देश में आक्रमण हुए, फिर बाहर से आये लोगों ने इसका फायदा उठाया।

    आरएसएस हमेशा आरक्षण के पक्ष में
    संघ ने कभी भी कुछ खास वर्गों को दिये जाने वाले आरक्षण का विरोध नहीं किया है। हैदराबाद में एक कार्यक्रम में भागवत ने कहा कि संघ का मानना ​​है कि जब तक जरूरत है, आरक्षण जारी रहना चाहिए। भागवत ने यह बात भाजपा और कांग्रेस के बीच आरक्षण को लेकर चल रहे बयानों के बाद कही।

    मांसाहार नहीं होगा, तो कत्लखाने खुद ही बंद हो जायेंगे
    मांसाहार से पानी की खपत बढ़ती है, लेकिन अब उसकी इंड्रस्ट्री हो गयी, कत्लखाने हो गये। उसमें होने वाले प्रोसेस में तो अनाप-शनाप पानी खर्च होता है। प्रदूषण भी बढ़ता है। यदि मांसाहार नहीं होगा, तो कत्लखाने खुद ही बंद हो जायेंगे।
    मुकाबला झूठ पर आधारित न हो

    जब चुनाव होता है, तो मुकाबला जरूरी होता है। इस दौरान दूसरों को पीछे धकेलना भी होता है, लेकिन इसकी एक सीमा होती है। यह मुकाबला झूठ पर आधारित नहीं होना चाहिए। जो मर्यादा का पालन करते हुए कार्य करता है, गर्व करता है, किंतु लिप्त नहीं होता, अहंकार नहीं करता, वही सही अर्थों मे सेवक कहलाने का अधिकारी है।

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