विशेष
निर्मला सीतारमण की झोली से राहतों की बारिश की संभावना
मध्य वर्ग की हैं पांच चिंताएं, जिनके समाधान की होगी कोशिश
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में इस बार अधिक राहत मिलेगी
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
अब से कुछ घंटे बाद केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आम बजट पेश करने के लिए तैयार हैं। देश भर में अर्थशास्त्री और उद्योग विशेषज्ञ बजट 2025 से बड़ी उम्मीदें लगाये बैठे हैं, जिनसे इंफ्रास्ट्रक्चर, कृषि, एमएसएमइ और दूसरे जरूरी सेक्टर को तेजी से आगे बढ़ने में मदद मिल सके। दूसरी तरफ भारत का आम नागरिक, खास कर मध्य वर्ग को मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के दूसरे बजट से राहतों की बारिश की उम्मीद है। सरकार द्वारा बजट में इस बार रेलवे, सड़क और रक्षा जैसे सेक्टर में पूंजीगत व्यय में निवेश पर फोकस रखने की उम्मीद है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को सुबह 11 बजे संसद पटल पर रिकॉर्ड आठवीं बार बजट 2025 पेश करेंगी। करदाता भी इस बार वित्त मंत्री से आयकर में राहत देने की उम्मीद कर रहा है। मध्य वर्ग और वेतनभोगी वर्ग को निर्मला ताई से बड़ी उम्मीदें हैं। उनके बीच चर्चा है कि हो सकता है कि 10 लाख तक की आय करमुक्त कर दी जाये। नये और पुराने टैक्स रिजीम, स्वास्थ्य और जीवन बीमा प्रीमियम, ऐच्छिक एनपीएस अंशदान से जुड़े बड़े ऐलान भी आम बजट में किये जा सकते हैं। आम लोगों को उम्मीद है कि उनकी पांच चिंताओं, महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक धीमापन, धीमी वेतन वृद्धि और आयकर पर इस बार जरूर ध्यान दिया जायेगा। वित्त मंत्री ने इस बारे में कई बार कहा भी है। दूसरी तरफ अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता का असर भी बजट पर देखने को मिल सकता है। क्या हो सकता है बजट का मुख्य आकर्षण और मध्य वर्ग की किन चिंताओं पर रहेगा वित्त मंत्री का फोकस, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण लगातार आठवीं बार बजट पेश करने की तैयारी कर रही हैं, वहीं आम आदमी बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और घटती खपत के बीच कुछ राहत की उम्मीद लगा रहा है। अब से कुछ घंटे बाद निर्मला ताई की झोली खुलेगी, जिससे राहतों की बारिश की उम्मीद पूरा देश कर रहा है।
देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति
जहां तक देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति का सवाल है, तो अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी पड़ने के कारण निवेशकों में घबराहट है और इसने रोजगार के अवसरों को भी कम किया है, जबकि महंगाई के हिसाब से मजदूरी और वेतन में बढ़ोतरी नहीं होने से खासकर सीमित आमदनी वाले परिवारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। पिछली तिमाहियों में कंपनियों के निराशाजनक प्रदर्शन ने भी इन हालात को मुश्किल बनाया है, जिससे नौकरी चाहने वाले युवाओं को पर्याप्त संख्या में रोजगार नहीं मिल पा रहा है। इन सारे कारकों के कारण मध्य वर्ग ने अपने खर्चों में कटौती की है, जिससे पिछले कुछ महीनों में उपभोग में गिरावट आयी है। एक फरवरी को आम बजट में जिन पांच क्षेत्रों में आम लोग राहत की उम्मीद कर रहे हैं, वे इन्हीं चिंताओं के आसपास हैं।
लगातार बढ़ती महंगाई
खाद्य वस्तुओं, खासकर सब्जियों, खाद्य तेलों और दूध की कीमतें बढ़ने से रसोई पर होने वाले घरेलू खर्च में बढ़ोतरी हुई है। खराब मौसम के कारण सब्जियों की आपूर्ति प्रभावित हुई और कीमतें बढ़ीं। खाद्य तेलों की कीमतों में वृद्धि का कारण था आयात शुल्क का बढ़ाया जाना, जबकि लागत में वृद्धि का हवाला देते हुए दूध की कीमतें बढ़ीं। हालांकि 25 जनवरी को सबसे बड़ी डेयरियों में से एक अमूल ने एक लीटर के पैकेट पर एक रुपये की कटौती कर कुछ राहत दी है। अर्थशास्त्री कहते हैं कि अमेरिका में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अनिश्चितता बहुत बढ़ गयी है। वह अप्रत्यक्ष कर कम करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन इससे घरेलू उद्योग प्रभावित होंगे, जबकि ट्रंप टैरिफ लगा देते हैं, तो महंगाई और बढ़ जायेगी। इसलिए सबसे पहले घरेलू स्तर पर चीजों को दुरुस्त करने की जरूरत है। महंगाई उनमें से एक है।
आर्थिक धीमेपन की चिंता
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय का अनुमान है कि 2024-25 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6,4% रहेगी। महामारी के दौरान आयी गिरावट के बाद से यह सबसे कम वृद्धि दर है। हालांकि 2024 के चुनावी वर्ष में आधारभूत ढांचे पर पूंजीगत खर्च में कमी को इस गिरावट का एक कारण माना जा रहा है। आधारभूत ढांचे की परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर सीमेंट, स्टील और मशीनरी का इस्तेमाल होता है, जिससे उन उद्योगों में तेजी आती है और मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में नौकरियों के मौके बनते हैं। इसीलिए अर्थशास्त्रियों का कहना है कि विकास दर और रोजगार सृजन के लिए पूंजीगत खर्च को बढ़ाना जरूरी है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार मांग में कमी आने का एक पहलू गैर-बराबरी का बढ़ना भी है। असंगठित क्षेत्र में 94 प्रतिशत कामकाजी लोग हैं। वहां वेतन और महंगाई की मार से मांग के कम होने का असर अर्थव्यवस्था की रफ़्तार पर पड़ता है। असगंठित क्षेत्र में रोजगार सृजन का दारोमदार आधारभूत ढांचे पर पूंजीगत खर्च के बढ़ाने पर है और अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए इसे बढ़ाने की जरूरत है।
नौकरियों के घटते मौके
पिछली कुछ तिमाहियों से रोजगार सृजन की रफ्तार धीमी रही है और सरकार से इस ओर कुछ ठोस उपायों की घोषणा की उम्मीद की जा रही है। कोविड के दौरान कृषि में लगे लोगों की संख्या में अचानक तेजी से वृद्धि हुई थी, क्योंकि करोड़ों प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौट गये थे। जो कामगार शहरों को छोड़ अपने घरों को लौटे थे, उनकी पूरी तरह वापसी नहीं हो पायी है। उसकी वजह नौकरियों की किल्लत और शहरों में जीवन यापन का बेतहाशा महंगा होना है। हालांकि सरकारी आंकड़ों में संगठित क्षेत्र में रोजगार में सुधार के संकेत मिलते हैं, लेकिन असंगठित क्षेत्र में रोजगार सृजन में अभी भी काफी गैप दिखाई देता है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इसके साथ ही मंझोले, माइक्रो और छोटे उद्योगों के लिए सरकारी मदद बढ़ाने जैसे अन्य उपाय करने होंगे। अर्थशास्त्री कहते हैं, पिछले साल तक सरकार का रवैया असंगठित क्षेत्रों को संगठित बनाने का था, जो कि असंभव है। मसलन कृषि में 85 प्रतिशत खेत पांच एकड़ से कम वाले हैं। इसी तरह जो माइक्रो सेक्टर है। उसमें एमएसएमइ का 97.5 प्रतिशत रोजगार है। इन्हें संगठित नहीं बनाया जा सकता। सरकार ने पिछले बजट में जो घोषणाएं की थीं, वो संगठित क्षेत्र लिए थीं। जो बड़े उद्योग हैं, वे उतना रोजगार नहीं पैदा करते, जितना कृषि और एमएसएमइ सेक्टर। इसलिए यहां सरकार को कुछ ठोस घोषणाएं करनी चाहिए। रोजगार सृजन का फोकस असंगठित क्षेत्र होना चाहिए।
वेतन में धीमी वृद्धि
उपभोग में कमी की वजह मजदूरों और मध्यम आय वाली नौकरियों में वेतन वृद्धि की धीमी रफ्तार को भी माना जा रहा है। अर्थशास्त्री कहते हैं कि हाल की कुछ तिमाहियों में मजदूरी और वेतन में बहुत मामूली या नहीं के बराबर वृद्धि देखने को मिली है। कॉरपोरेट मुनाफे में वृद्धि के बावजूद महंगाई के अनुपात में वेतन नहीं बढ़े हैं। अर्थव्यवस्था में वेतन का हिस्सा कम हो रहा है और कॉरपोरेट के मुनाफे का हिस्सा बढ़ रहा है। यह बात कुछ उद्योगों की रिपोेटों में भी दिखाई देती है। देश की दूसरी तिमाही के नतीजों में बताया गया है कि दिहाड़ी मजदूरों की आमदनी पिछले 12 महीनों में 3.4 फीसदी बढ़ी, जबकि इसी दौरान वेतन पाने वाले कर्मियों के वेतन में 6.5 फीसदी का इजाफा हुआ। कुछ ऐसी ही तस्वीर उद्योग संगठन फिक्की और स्टाफिंग सॉल्यूशन कंपनी क्वेस कॉर्प की पड़ताल में सामने आयी है। इनके अनुसार 2019 से 2023 के बीच इंजीनियरिंग, मैन्यूफैक्चरिंग, प्रॉसेस और इनफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों में वेतन में मिश्रित वृद्धि 0.8 फीसदी देखी गयी, जबकि एफएमसीजी कंपनियों में वेतन वृद्धि 5.4 फीसदी थी। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि असंगठित क्षेत्र में छोटे और लघु उद्योगों को बढ़ावा देंगे, तो रोजगार का बड़े पैमाने पर सृजन होगा और तब वेतन भी बढ़ना शुरू होगा।
आयकर
आम आदमी के लिए सबसे पीड़ादायक कर का बोझ है। हालांकि वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) जैसे टैक्स का फैसला समय-समय पर जीएसटी काउंसिल में लिया जाता है, लेकिन बजट में आयकर पर सरकार फैसला लेती है। खाद्य तेलों जैसी आवश्यक वस्तुओं और पेट्रोलियम पदार्थों पर आयात शुल्क पर भी फैसला लिया जाता है। और सरकार से उम्मीद की जाती है कि वो इन शुल्कों को और तर्कसंगत बना कर आम लोगों को कुछ राहत दे। हालांकि मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग की ओर से आयकर को कम करके बड़ी राहत देने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। विपक्षी दलों ने मध्य वर्ग के लिए कर का बोझ कम किये जाने की मांग की है और आयकर में 10 लाख रुपये तक की छूट की मांग की है। हालांकि अर्थशास्त्रियों के अनुसार आयकर छूट में बहुत कुछ उम्मीद नहीं है, क्योंकि इससे प्रत्यक्ष कर पर जो असर पड़ेगा, वह वित्तीय घाटे को बढ़ायेगा। अप्रत्यक्ष कर घटाने का ट्रंप का दबाव पहले ही वित्तीय घाटे की ओर ले जाने वाला है। सरकार ने 2019 में कॉरपोरेट टैक्स में कटौती कर दी थी, जिससे राजस्व में 1.6 लाख करोड़ रुपये कम हो गया। संगठित क्षेत्र के पास बहुत पैसा है और वो निवेश कर सकता है। जरूरत है छोटे और मंझोले उद्योगों की मदद करने की।
कुल मिला कर यह बजट भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के रास्ते पर ले जायेगा या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि निर्मला सीतारमण की झोली से कितनी राहत निकलती है और मोदी सरकार आम लोगों की पांच चिंताओं को दूर करने के लिए कितना आगे बढ़ने की हिम्मत जुटा पाती है।