रांची। झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से एक लोहरदगा सीट भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। यह सीट रांची, गुमला और लोहरदगा जिले में फैली हुई है। यह पूरा इलाका भी रेड कॉरिडोर का हिस्सा है। लोहरदगा लोकसभा सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर होती रही है। पिछले दो चुनाव से बीजेपी के सुदर्शन भगत जीत रहे हैं। वह मोदी सरकार में राज्यमंत्री भी हैं। लोहरदगा सीट पर अनुसूचित जनजाति का खासा दबदबा है। अपने समृद्ध खनिज भंडार जैसे बॉक्साइट और लेटराइट के कारण यह इलाका प्रसिद्ध है। हालांकि, खनिज भंडार के बावजूद इस इलाके की पहचान आर्थिक रूप से पिछड़े इलाके में होती है। इस लोकसभा सीट के अंतर्गत पांच विधानसभा सीटें आती हैं। ये सभी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं।

कार्तिक उरांव की सीट के रूप में बनी पहचान
लोहरदगा लोकसभा सीट को स्व. कार्तिक उरांव की सीट के रूप में भी जाना जाता है। वह क्षेत्र के धुरंधर नेता रहे और आदिवासियों के विकास के लिए काफी काम किया। आज भी लोग उनके नाम और काम को सम्मान देते हैं। क्षेत्र के मौजूदा कांग्रेसी नेता और इस सीट के प्रबल दावेदार डॉ अरुण उरांव उनके दामाद हैं, जबकि उनकी पुत्री गीताश्री उरांव राज्य की पूर्व शिक्षा और खेल मंत्री रह चुकी हैं। वह भी कांग्रेस से जुड़ी हैं। हालांकि डॉ अरुण उरांव की अपनी भी राजनीतिक पृष्ठभूमि है। उनके पिता बंदी उरांव इस क्षेत्र के जाने माने विधायक और कद्दावर नेता रहे हैं। उनकी सास सुमति उरांव भी लोहरदगा से ही सांसद रह चुकी हैं।

कांग्रेस में दावेदारों की लंबी कतार
पूर्व सांसद डॉक्टर रामेश्वर उरांव मोदी लहर में चुनाव हार गये थे। लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है। वह कहते हैं कि उन्हें खुद पर भरोसा है, अपने कार्यकर्ताओं पर भरोसा है। इसलिए मैदान में लगातार बने हुए हैं। हारने के बाद भी वे लगातार गुमला और लोहरदगा जिला में लोगों के संपर्क में बने हुए हैं। समय-समय पर गांवों का भी दौरा करते हैं। उन्हें भी पूरा विश्वास है कि इस बार भी टिकट उन्हीं को मिलेगा।

डॉक्टर अरुण उरांव पुलिस सेवा से वीआरएस लेकर राजनीति में आये। डॉ अरुण उरांव कांग्रेस के केंद्रीय सचिव एवं छत्तीसगढ़ राज्य के प्रभारी हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की इतनी बड़ी जीत के बाद उस राज्य के प्रभारी होने के नाते टिकट की उनकी दावेदारी सबसे मजबूत है। राजनीति के क्षेत्र में वह अपनी योग्यता साबित कर चुके हैं। खेल प्रेमी डॉ उरांव लगातार गुमला जिला में सक्रिय हैं। जनता के एक बुलावे पर उनके बीच पहुंच जाते हैं। वह लगातार गुमला क्षेत्र में होनेवाले कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं। पूर्व शिक्षा मंत्री और स्व कार्तिक उरांव की बेटी गीताश्री उरांव भी टिकट लेने की होड़ में हैं। अरुण उरांव लगातार क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। लोगों के संपर्क में हैं और अपने पक्ष में हवा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, सुखदेव भगत, जो प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं, क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं। टिकट के लिए हाथ-पैर तो कई मार रहे हैं, अब देखना यह है कि कांग्रेस किस नेता में जीत की संभावना देखकर उसे टिकट देती है।

सीट बचाना भाजपा के लिए चुनौती
वहीं, भाजपा की बात करें, तो सुदर्शन भगत का टिकट पक्का माना जा रहा है, क्योंकि क्षेत्र के बड़े भाजपा नेता समीर उरांव पहले ही राज्यसभा में पहुंच चुके हैं। रही बात दुखा भगत की, तो वह इन दिनों सक्रिय राजनीति से दूर हैं। कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले के तौर पर देखा जाये, तो भले ही सुदर्शन भगत केंद्रीय मंत्री हों, पर वह शांतचित स्वभाव के हैं। सुदर्शन भगत लड़ाकू प्रवृत्ति के नहीं हैं।

भाजपा में उनके विरोधी भी कम हैं। इस स्थिति में भाजपा के लिए लोहरदगा सीट को लेकर टिकट बंटवारा बड़ी समस्या नहीं है, बल्कि इस सीट को बचाये रखना, उनके लिए बड़ी चुनौती है। देखा जाये, तो 2014 में भले ही लोहरदगा सीट भाजपा के खाते में गयी और सुदर्शन एक बार फिर यहां से सांसद बन गये। पर आंकड़ों में जीत और हार का फर्क ज्यादा नहीं है। 2014 में मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस मात्र 6 हजार वोटों से ही यहां पीछे रही थी। यह भाजपा का श्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं था। 2016 में लोहरदगा विधानसभा सीट पर हुए बाइपोल में भाजपा ने आजसू उम्मीदवार के पक्ष में पूरी शक्ति लगा दी थी, फिर भी कांग्रेस के सुखदेव भगत ने आजसू से यह सीट छीन ली। इसलिए आगामी लोकसभा चुनाव में इन सब बातों पर भी पार्टी निश्चित ही निगाह रखेगी।

लोहरदगा में 1991 में पहली बार जीती बीजेपी
1962 में इस सीट पर कांग्रेस के डेविड मिंज जीते थे। इसके बाद कांग्रेस के टिकट पर ही कार्तिक उरांव लगातार दो बार (1967 और 1971) जीते। हालांकि, 1977 का चुनाव कार्तिक उरांव हार गये और जनता पार्टी के लालू उरांव जीतने में कामयाब हुए। 1980 में कार्तिक उरांव ने फिर इस सीट पर जीत दर्ज की। 1984 और 1989 में कांग्रेस के ही टिकट पर सुमति उरांव जीतीं। 1991 में इस सीट पर बीजेपी का खाता खुला और उसके प्रत्याशी ललित उरांव जीते। 1996 में भी ललित उरांव ने बीजेपी का भगवा पताका फहराया। 1998 में कांग्रेस के इंद्र नाथ भगत जीतने में कामयाब हुए। 1999 में बीजेपी के दुखा भगत जीते। 2004 में कांग्रेस के रामेश्वर उरांव जीते। 2009 और 2014 का चुनाव बीजेपी के सुदर्शन भगत जीते।

आादिवासी वोट ही निर्णायक
लोहरदगा लोकसभा सीट पर हमेशा आदिवासी वोट ही निर्णायक होते हैं। यहां अनुसूचित जाति की जनसंख्या करीब 2.69 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की तादाद करीब 64.04 फीसदी है। इस सीट की 96 फीसदी आबादी गांवों में रहती है। इस सीट पर मतदाताओं की संख्या 11 लाख 19 हजार है। इसमें 5 लाख 78 हजार पुरुष और 5 लाख 40 हजार महिला मतदाता शामिल है। इस लोकसभा सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा सीटें मांडर, गुमला, लोहरदगा, सिसई, बिशुनपुर आती हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने तीन सीटों (मांडर, गुमला, सिसई), झामुमो ने एक सीट (बिशुनपुर) और आजसू पार्टी ने (लोहरदगा) पर जीत दर्ज की थी। हालांकि फिलहाल लोहरदगा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है और सुखदेव भगत यहां के विधायक हैं।

मात्र छह हजार वोट से हारी थी कांग्रेस
2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से बीजेपी के सुदर्शन भगत ने कांग्रेस के रामेश्वर उरांव को करीबी मुकाबले में मात्र 6 हजार वोटों से हराया था। सुदर्शन भगत को 2 लाख 26 हजार और रामेश्वर उरांव को 2 लाख 20 हजार वोट मिले थे। इस सीट पर करीब 58 फीसदी मतदान हुआ था।

सांसद का रिपोर्ट कार्ड
सुदर्शन भगत लोहरदगा सीट से दूसरी बार सांसद बने हैं। गुमला में जन्मे सुदर्शन भगत पहले से मोदी कैबिनेट में राज्यमंत्री हैं। पहले उन्हें कृषि मंत्रालय का राज्यमंत्री बनाया गया था। अब वह आदिवासी मामलों के मंत्रालय के राज्यमंत्री हैं।

जनवरी, 2019 तक के आंकड़ों के अनुसार, सुदर्शन भगत ने अभी तक अपनी सांसद निधि से क्षेत्र के विकास के लिए 17. 88 करोड़ रुपये खर्च किये हैं। उन्हें सांसद निधि से अभी तक 20.31 करोड़ मिले हैं। इनमें से 2.44 करोड़ रुपये अभी खर्च नहीं किये गये हैं। उन्होंने 89 फीसदी अपने निधि को खर्च किया है। कुल मिला कर 2019 का लोकसभा चुनाव सुदर्शन भगत के लिए आसान नहीं रहनेवाला है।

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