विशेष
-इन योजनाओं को जमीन पर उतार कर हेमंत सोरेन ने खींची लंबी लकीर
-योजनाएं तो कई बार बनीं, पर पहली बार जमीन पर दिख रहा है काम
-पांच ओवरब्रिज बन जाने से जाम मुक्त हो जायेगी रांची
-तपोवन मंदिर के सौंदर्यीकरण से रांची में होगा एक और पर्यटन स्थल
झारखंड की राजधानी रांची की लगभग बदशक्ल हो चुकी सूरत को संवारने का काम इन दिनों जोर-शोर से चल रहा है। कभी हिल स्टेशन के रूप में प्रसिद्ध रांची की सूरत झारखंड बनने के बाद से बेहिसाब बढ़ती आबादी, उसके कारण बेतरतीब निर्माण, अनियोजित विकास और वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण पूरी तरह खराब हो चुकी है। लेकिन 22 साल में पहली बार रांची की शक्ल-सूरत को संवारने और इसे नयी पहचान देने का गंभीर प्रयास हेमंत सोरेन सरकार ने शुरू किया है। झारखंड में पिछले 22 साल में योजनाएं तो कई बार बनायी गयीं, लेकिन उन योजनाओं को कभी लागू नहीं किया गया। यहां बात केवल घपलों-घोटालों, नियोजन-स्थानीयता नीति से लेकर 1932 के खतियान को लेकर बातें होती थीं। ऐसा नहीं है कि अब इन मुद्दों पर बात नहीं होगी। ये बातें होती रहेंगी, लेकिन अब पहली बार ऐसा लग रहा है कि सरकार इस समस्या के समाधान के लिए गंभीर हुई है और तमाम अवरोधों-विरोधों के बावजूद रांची शहर की सूरत बदलने का काम जमीन पर दिखने लगा है। इससे पहले जब कभी रातू रोड एलीवेटेड रोड, रातू रोड-हरमू ओवरब्रिज या कांटाटोली ओवरब्रिज की बात होती थी, लोग विरोध में खड़े हो जाते थे, शोर मचाने लगते थे, वोट बैंक का रोना रोने लगते थे। इन विरोधों के कारण इन परियोजनाओं पर काम शुरू ही नहीं हो पाता था। तपोवन मंदिर के सौंदर्यीकरण की बातें तो बहुत होती थीं, लेकिन यह योजना भी जमीन पर नहीं उतरी थी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पहली बार मजबूत इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए न केवल ओवरब्रिज का निर्माण शुरू कराया है, बल्कि तपोवन मंदिर के सौंदर्यीकरण का शिलान्यास कर साबित कर दिया है कि उनकी सरकार वाकई राजधानी को संवारने का गंभीर प्रयास कर रही है। हेमंत सोरेन द्वारा शुरू किये गये इन कार्यों के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड की राजधानी रांची, जिसका नाम सुनते ही जो पहली धारणा बनती थी, वह थी एक अनियोजित शहर की, जहां ट्रैफिक जाम आम है और जो शहर अपने प्राकृतिक सौंदर्य को त्याग कर प्रदूषण, गंदगी और बदहाल नागरिक सुविधाओं के साथ दिन बिताने के लिए अभिशप्त है। झारखंड की राजधानी बनने के 22 साल बाद तक यहां न सड़कों का विकास हुआ और न बेहिसाब बढ़ गये ट्रैफिक के बोझ को संभालने के लिए कोई कारगर कदम उठाया गया। रांची शहर में अवस्थित धार्मिक-सांस्कृतिक आस्था के केंद्रों की उपेक्षा भी खूब हुई। ऐसा नहीं है कि झारखंड बनने के बाद योजनाएं नहीं बनीं। योजनाएं तो खूब बनीं, लेकिन सभा कक्षों, सेमिनारों और कार्यशालाओं के बाद डीपीआर और सरकारी फाइलों से निकल कर ये योजनाएं धरातल पर कभी नहीं उतरीं। जब कभी इसकी कोशिश हुई, स्थानीय लोग और राजनीतिक दल विरोध में सामने आ गये, इस दलील के साथ ही यदि ओवरब्रिज बना, तो उनका वोट बैंक नाराज हो जायेगा या फिर इलाके की व्यापारिक गतिविधि चौपट हो जायेगी। इसलिए अब तक कोई भी सरकार या नेता मधुमक्खी के इस छत्ते में हाथ नहीं डालना चाहता था।
लेकिन वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रांची शहर की सूरत सुधारने के लिए जिस मजबूत इच्छाशक्ति का परिचय दिया है, उसकी तारीफ तो करनी ही होगी। राजनीतिक रूप से भले ही हेमंत सोरेन को जिस भी कसौटी पर कसा जाये, राजधानी रांची में तेजी से बन रहे पांच ओवरब्रिज और लाखों लोगों की आस्था के केंद्र तपोवन मंदिर के सौंदर्यीकरण की योजना का एक दिन पहले शिलान्यास से उन्होंने अपने तमाम पूर्ववर्तियों के साथ अपने राजनीतिक विरोधियों की जुबान पर भी ताला लगा दिया है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि यदि किसी समस्या का समाधान करने के लिए 60 मिनट का समय दिया जाये, तो 55 मिनट तक समस्या का अध्ययन करो, समाधान बाकी पांच मिनट में निकल जायेगा। लेकिन झारखंड में इसका ठीक उल्टा होता रहा है। यहां किसी समस्या के बारे में महज पांच मिनट सोचा जाता है और बाकी 55 मिनट उसके समाधान पर खर्च कर दिये जाते हैं। इसलिए यहां की कोई भी समस्या आज तक पूरी तरह हल नहीं हो सकी है, लेकिन सरकार के खजाने से करोड़ों-अरबों का खर्च हो गया।
बात शुरू करते हैं रांची में जाम की समस्या से। इस समस्या से निजात पाने के लिए पिछले 22 वर्ष में कई योजनाएं बनीं, परामर्शी कंपनियां नियुक्त की गयीं, उन्हें करोड़ों की फीस दी गयी, उन कंपनियों ने रिपोर्ट भी बनायी, लेकिन रांची शहर की यह समस्या आज भी विकराल रूप में सामने है। हाल ही में एक ग्लोबल संस्था ‘बेटर लीविंग’ ने रांची के शहरी जीवन स्तर को केवल ट्रैफिक जाम के कारण राज्यों की राजधानियों में सबसे निचले पायदान पर रखा था। संस्था ने कहा था कि रांची में ट्रैफिक जाम के कारण जहां प्रदूषण की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है, वहीं ईंधन की खपत और दूसरे आर्थिक नुकसान की वजह से लोग चिड़चिड़े होने लगे हैं। संस्था का यह निष्कर्ष बहुत हद तक सही भी लगता है। यहां पिछले 22 वर्षों में कागज पर 10 से अधिक सड़क और फ्लाइओवर बन गये, लेकिन धरातल पर एक सड़क तक चौड़ी नहीं हुई, क्योंकि सरकार बदलने के साथ अफसर बदलते रहे और उनकी प्राथमिकताएं भी। हर सरकार ने पिछली सरकार में बनी योजनाओं को डंप करके नयी योजनाओं पर काम शुरू कराया। इसका नतीजा यह हुआ कि न कोई योजना शुरू हुई और न कोई लाभ हुआ। शहर में वाहनों की संख्या बेहिसाब बढ़ गयी, लेकिन सड़कें वैसी की वैसी ही रहीं। इसी तरह तपोवन मंदिर की हालत की बात करें, तो लाखों लोगों की आस्था के इस केंद्र की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। इसके चारों तरफ अतिक्रमण और अनियोजित निर्माण ने इस पवित्र स्थान को आम लोगों की पहुंच से दूर कर दिया था।
अब जमीन पर दिख रही है कोशिश
लेकिन 22 वर्षों में पहली बार रांची शहर को जाम मुक्त बनाने के लिए सरकार और प्रशासन गंभीरता से प्रयास कर रहा है। खास बात यह है कि यह कोशिश जमीन पर दिखने लगी है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि अब अधिकारियों ने समस्या का मूल कारण समझ लिया है। उन्हें पता चल गया है कि योजनाएं बनाने से काम नहीं चल सकता, उन्हें लागू करने का भी ब्लूप्रिंट तैयार होना चाहिए। इसलिए अब रांची शहर में पांच नये ओवरब्रिज के निर्माण का काम जोर-शोर से जारी है। इनमें कांटाटोली ओवरब्रिज, सिरमटोली-मेकन चौक केबल स्टे ब्रिज, रातू रोड-सहजानंद चौक ओवरब्रिज और पिस्का मोड़-राजभवन एलीवेटेड रोड और चुटिया का रेलवे ओवरब्रिज शामिल हैं। कांटाटोली चौक पर बननेवाले ओवरब्रिज पर 224 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इस ओवरब्रिज के लिए कुल 42 पिलर बनाये जाने हैं, जिनमें से 12 बन कर तैयार हैं। 2024 में इसके चालू हो जाने की संभावना है। रांची शहर के लिए सबसे उपयोगी साबित होनेवाला है सिरमटोली-मेकॉन चौक के बीच बन रहा केबल स्टे ब्रिज, जो मुंबई के बांद्रा-वर्ली सी-लिंक की तर्ज पर बन रहा है। कुल 2.34 किलोमीटर लंबा यह स्टे ब्रिज रांची में अभी सबसे पुराने ओवरब्रिज को राहत देगा। इस पर 337 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे और इसके 2024 में पूरा होने की उम्मीद है। रातू रोड से हरमू के सहजानंद चौक तक बनने वाला ओवरब्रिज रांची का एक माइलस्टोन होगा। करीब तीन किलोमीटर लंबा यह ओवरब्रिज डबल डेकर होगा और बिरसा मुंडा राजपथ पर ट्रैफिक के लोड को कम करेगा। खास बात यह है कि इस परियोजना के लिए किसी जमीन का अधिग्रहण नहीं होगा। इस पूरी परियोजना पर करीब पांच सौ करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया है। इस परियोजना का डीपीआर अभी तैयार किया जा रहा है। इसी तरह चुटिया पावर हाउस के पास करीब 64 करोड़ रुपये की लागत से बननेवाले रेलवे ओवरब्रिज का आधा खर्च राज्य सरकार वहन कर रही है। यह ओवरब्रिज एक किलोमीटर लंबा होगा और करीब दो लाख लोग इससे लाभान्वित होंगे। इन चार परियोजनाओं के अलावा रातू रोड एलीवेटेड रोड परियोजना रांची शहर के लिए वरदान साबित होनेवाली है। करीब साढ़े तीन किलोमीटर लंबी यह सड़क पिस्का मोड़ से शुरू होकर राजभवन तक जायेगी। इस परियोजना पर नौ सौ करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। यह परियोजना पुरानी है, लेकिन विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों के विरोध के कारण इस पर काम शुरू नहीं हुआ था। वर्तमान सरकार ने इस परियोजना पर काम शुरू कर साबित कर दिया है कि वह रांची शहर की इस प्रमुख परियोजना को पूरा करने की दिशा में गंभीर है।
एक दिन पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रांची शहर के बीचो-बीच अवस्थित तपोवन मंदिर के सौंदर्यीकरण की योजना का शिलान्यास किया है। यह मंदिर रांची ही नहीं, पूरे झारखंड के लोगों की आस्था का केंद्र है। पहले भी इसके सौंदर्यीकरण की योजना तैयार की गयी थी, लेकिन इसका शिलान्यास कर हेमंत सोरेन ने लंबी लकीर खींच दी है।
जानकारों का कहना है कि इन सभी परियोजनाओं के पूरा हो जाने पर रांची में जाम की समस्या खत्म हो जायेगी, जिस तरह बिहार की राजधानी पटना में हुई। रांची शहर की इस समस्या को खत्म करने की दिशा में पहली बार कोई सरकार गंभीरता से काम कर रही है, तो इसकी तारीफ तो होनी ही चाहिए।