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‘माटी के बेटे’ से दो-दो हाथ करने के लिए कांग्रेस ने पलामू से भेजा केएन त्रिपाठी को
इस बार स्थानीय के शोर में चतरा में बह जायेंगे दूसरे मुद्दे

झारखंड के 14 में से आठ अनारक्षित संसदीय सीटों में से एक चतरा में मुकाबले की तस्वीर साफ हो गयी है। यहां से कांग्रेस ने राज्य के पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी को मैदान में उतारा है, जो चतरा के स्थानीय भाजपा नेता कालीचरण सिंह को चुनौती देंगे। कालीचरण सिंह ने नामांकन दाखिल कर दिया है और अब भाजपा ही नहीं, पूरा चतरा इस स्थानीय उम्मीदवार को लेकर बेहद उत्साहित है। दूसरी तरफ त्रिपाठी पलामू जिले के निवासी हैं और डालटनगंज से वह विधायक भी रह चुके हैं। ऐसे में चतरा संसदीय सीट से उन्हें टिकट देकर कांग्रेस ने जातीय दांव तो चला है, लेकिन उसका यह दांव ‘स्थानीय’ बनाम ‘बाहरी’ के शोर में गुम हो जाने की पूरी संभावना है। उनके सामने केवल चतरा के मतदाताओं, खास कर मुसलमानों को अपने पक्ष में करने की चुनौती नहीं है, बल्कि राजद और कांग्रेस के नाराज कार्यकर्ताओं को भी साधने की चुनौती है। भाजपा ने अपने सीटिंग सांसद सुनील कुमार सिंह का टिकट काट कर एक स्थानीय नेता कालीचरण सिंह को चतरा से उम्मीदवार बनाया है, जबकि कांग्रेस ने चतरा के वोटरों की इच्छा के विपरीत ‘बाहरी’ को टिकट दिया है। कांग्रेस के इस निर्णय का कांग्रेस के अंदर ही भारी विरोध हो रहा है। राजद तो विरोध कर ही रहा है। पिछले दिनों रांची में झामुमो की उलगुलान रैली में केएन त्रिपाठी और चतरा के कांग्रेसी और राजद कार्यकर्ताओं ने मारपीट भी हुई थी। रैली में केएन त्रिपाठी के खिलाफ नारेबाजी के दौरान मामला उलझ गया और दोनों ओर से मारपीट हो गयी। उसमें केएन त्रिपाठी के भाई का सिर भी फट गया। बाद में दोनों पक्षों की ओर से धुर्वा थाने में नामजद प्राथमिकी दर्ज करायी गयी। उत्तरी छोटानागपुर डिवीजन का यह जिला बेहद पिछड़ा तो है ही, विकास के लिए उसकी छटपटाहट को भी शिद्दत से महसूस किये जाने की जरूरत है। चतरा कभी पूरी दुनिया में चर्चित हुआ था, क्योंकि नक्सलियों ने इसे पहला ‘लिबरेटेड जोन’ (स्वतंत्र क्षेत्र) घोषित किया था। बाद में यहां औद्योगिक गतिविधि परवान चढ़ी और चंदवा में आधुनिक और एस्सार का दो बड़ा प्लांट यहां स्थापित हुआ। उसमें लोगों की जमीनें गयीं। नौकरी की आस में ग्रामीणों ने अपनी जमीन दी। रोजगार के लिए कर्ज लेकर ट्रक और अन्य वाहन खरीद लिये। आज वहां कारखाने के नाम पर वीरानगी है। कारखानों से कबाड़ की चोरी हो रही है। गरीबी और पिछड़ेपन के अलावा पलायन जैसे मुद्दे यहां भी हैं, लेकिन इस बार चारों तरफ ‘स्थानीय सांसद’ का ही शोर सुनाई दे रहा है। मुकाबले की तस्वीर साफ होने के बाद चतरा संसदीय क्षेत्र का क्या है माहौल और क्या हैं चुनावी मुद्दे, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

पांच साल से चतरा लोकसभा की जनता की मांग थी कि चाहे कोई भी दल हो, उसे स्थानीय प्रत्याशी ही चाहिए। चतरा के लोग इस बार ऐसे किसी स्थानीय प्रत्याशी को संसद में भेजने के मूड में हैं, जो जीतने के बाद उनके लिए सहज उपलब्ध हो, उनका दुख-दर्द सुने, संकट के समय आधी रात को भी कंधा से कंधा मिला कर खड़ा रहे। उनकी लोकल समस्याओं को संसद के पटल पर रख पाये और हल भी निकले, केवल आश्वासन से काम नहीं चलेगा। इस मौके को भाजपा ने भांपा और उतार दिया कालीचरण सिंह को। कालीचरण सिंह चतरा में शिक्षक रहे हैं। लोगों के जेहन में उनका नाम उस समय आया, जब कोरोना से चतरा के लोग बेहाल थे। उस समय कालीचरण सिंह ने जितना बन सका, किया। लोगों के लिए अपने दरवाजे बंद नहीं किये। वैसे तीन जिलों में फैला चतरा लोकसभा क्षेत्र अब पूरे तरीके से चुनावी मोड में आ चुका है। यहां की जनता बेहद उत्साहित है। उत्साह यहां के प्रत्याशी को लेकर है। जनता का मानना है कि यहां भाजपा ने जो प्रत्याशी कालीचरण सिंह के रूप में दिया है, वह उसकी मांग के अनुरूप है। चूंकि चतरा की बहुत सारी लोकल समस्याएं हैं और उन समस्याओं को कोई स्थानीय ही समझ सकता है, इसलिए ऐसा प्रत्याशी ही सांसद बनने के उपयुक्त है। भाजपा ने चतरा लोकसभा में पहले जो सर्वे कराया था, उसमें पाया था कि जनता लोकल प्रत्याशी के मूड में है। भाजपा के पास कालीचरण सिंह से बेहतर कैंडिडेट और कौन हो सकता था। चूंकि सुनील सिंह को लेकर जनता में यह नैरेटिव सेट हो गया था कि वह चतरा में दूज के चांद की तरह आते हैं। कब आते हैं और कब जाते हैं, उनके पांच से सात खास लोग ही जानते हैं। सुनील सिंह को लोगों का फोन नहीं उठाने की बीमारी भी हो गयी थी। इसे लेकर चतरा की जनता में सुनील सिंह के प्रति रोष था और इस बार चतरा की जनता माटी के लाल और अपने बीच के ही किसी व्यक्ति को संसद भेजने के मूड में थी, तो भाजपा ने यह मौका भुनाया।

शुक्रवार को जैसे ही भाजपा प्रत्याशी कालीचरण सिंह ने चतरा संसदीय क्षेत्र से अपना नामांकन दाखिल किया, भाजपा पूरे एक्टिव मोड में दिखी। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी केएन त्रिपाठी को लेकर माहौल ठंडा दिखा। आजाद सिपाही की टीम ने चतरा लोकसभा क्षेत्र के भ्रमण के दौरान यही पाया कि यहां फाइट तो है, लेकिन यह फाइट अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ने की है। यहां जीत-हार की नहीं, जीत के मार्जिन की चर्चा हो रही है। कालीचरण सिंह कितने वोटों के अंतर से जीतेंगे, उस पर चर्चा हो रही है। यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि अगर इंडी गठबंधन कोई मजबूत और स्थानीय प्रत्याशी देता, तो चतरा में मुकाबला बेहद दिलचस्प हो सकता था। यहां यह बताना जरूरी है कि चतरा से राजद भी दावेदार था। इसके पहले के चुनाव में यहां से भाजपा के सुनील सिंह के खिलाफ राजद के सुभाष यादव और कांग्रेस के मनोज यादव मैदान में थे। उसी समय से राजद चतरा सीट पर तैयारी कर रहा था। सुभाष यादव जब बालू की अवैध तस्करी में इडी का शिकंजा कसा, तो यहां राजद ने दूसरे उम्मीदवार की खोज शुरू की। उसने अरुण सिंह नामक व्यवसायी को ढूंढ़ भी निकाला। टिकट की लालच में भाजपा छोड़ गढ़वा के गिरिनाथ सिंह ने राजद भी ज्वाइन कर ली, लेकिन अंतत: यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गयी और उसने केएन त्रिपाठी को यहां से उम्मीदवार बना दिया। उम्मीदवारी की घोषणा होते ही यहां महागठबंधन में कलेश शुरू हो गया, वह आज तक जारी है।

कालीचरण हैं मिलनसार, जमीन से जुड़ी शख्सियत हैं
कालीचरण सिंह के बारे में लोगों का कहना है कि वह बहुत मिलनसार प्रवृत्ति के हैं। उनके आवास पर उनसे मिलने कोई ग्रामीण चला जाये, तो कालीचरण बिना नाश्ता कराये वापस नहीं भेजते हैं। वह उस शख्स से पूछते भी हैं कि उसके पास वापस जाने के लिए भाड़ा है या नहीं। अगर नहीं है, तो कालीचरण सिंह उसके लिए भाड़ा भी उपलबध करवाते हैं। कालीचरण सिंह जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति हैं। कोरोना काल में कालीचरण सिंह ने जरूरतमंदों की खूब मदद की। जरूरतमंदों के लिए उन्होंने अपने दरवाजे बंद नहीं किये। आज चतरा में यह चर्चा सर्वत्र है। कालीचरण सिंह का मानना है कि चतरा में रेल से जुड़ी समस्या है, जिसे वह सुलझाने का प्रयत्न करेंगे। अभी भी अगर चतरा के लोगों को ट्रेन से बाहर जाना होता है, तो वे या तो गया या कोडरमा का रुख करते हैं। जिस दिन चतरा में रेल की समस्या का निपटारा हो जायेगा, तो चतरा की जनता के लिए यह वरदान से कम नहीं होगा। जानकारों की मानें को स्थानीय होने का कालीचरण सिंह को भरपूर लाभ मिल सकता है।

कांग्रेस के खेमे में अब तक उत्साह नहीं
वहीं कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णानंद त्रिपाठी की बात करें, तो उनके पक्ष में माहौल अभी ठंडा दिखा। जनता का मानना है कि अभी कांग्रेस बहुत एक्टिव नहीं हुई है। चूंकि कांग्रेस और राजद में अंदरूनी जंग चालू है, इसलिए उत्साह की कमी है। राजद समर्थकों का मानना है कि चतरा से राजद का ही प्रत्याशी होना चाहिए था। राजनीति के जानकारों का भी मानना है कि अगर इंडी गठबंधन राजद का कोई प्रत्याशी देता, जो स्थानीय होता, तो यहां भाजपा से दो-दो हाथ किया जा सकता था। केएन त्रिपाठी को लोग बाहरी समझ रहे हैं। लेकिन उनका भी अपना दावा है कि वह भी स्थानीय हैं। वैसे चतरा पर राजद का स्वाभाविक दावा रहा है और उसके प्रत्याशी को टिकट नहीं मिलने से गठबंधन को इसका खामियाजस भुगतना पड़ सकता है। सच कहा जाये तो चतरा में कांग्रेस का संगठन सक्रिय नहीं है। वैसे चतरा इलाके में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद धीरज साहू का काफी प्रभाव रहा है, लेकिन आयकर की छापेमारी के बाद से धीरज सिंह राजनीतिक गतिविधियों से एक तरह से दूर-दूर ही रह रहे हैं।

राजद के साथ मुसलमानों को मनाना बड़ी चुनौती
कुछ दिन पहले ही चतरा लोकसभा क्षेत्र के मुसलामानों ने एक बैठक भी की थी। उसमें चर्चा हुई कि अगर इंडी गठबंधन के प्रत्याशी केएन त्रिपाठी ही रहेंगे, तो तीसरे मोर्चे पर भी विचार किया जा सकता है, अन्यथा स्थानीय प्रत्याशी और माटी के बेटे कालीचरण सिंह को ही मदद करंगे। मुसलमानों का कहना था कि आखिर कब तक वह झंडा ढोते रहेंगे। उनका कहना था कि राहुल गांधी ने स्पष्ट कहा था कि जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी भागीदारी। मुसलमानों की पीड़ा है कि झारखंड में लगभग 14 फीसदी आबादी होने के बावजूद महागठबंधन ने एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया, ऐसे में हम कब तक झंडा ढोते रहेंगे। मुसलमानों के रुख से यह साफ है कि वह चुनाव के समय वह महागठबंधन उम्मीदवार से दूरी बना सकते हैं। मन मुताबिक उम्मीदवार नहीं होने के कारण मुसलमानों का उत्साह गायब हो गया है।

इसी तरह जिस तरीके से रांची में हुई उलगुलान रैली के दौरान राजद और केएन त्रिपाठी के समर्थकों के बीच लात-घूंसे चले और कुर्सियों से मारामारी हुई, उससे राजद के कार्यकर्ता बेहद नाराज हैं। वे आक्रोशित भी हैं। राजद की लोकल बैठकों में कार्यकर्ताओं ने एलान भी किया है कि अगर केएन त्रिपाठी ही उम्मीदवार होंगे, तो वे किसी निर्दलीय प्रत्याशी की मदद करेंगे। लोकल जानकारों का मानना है कि चतरा में राजद का ही वर्चस्व रहा है। कांग्रेस यहां सांगठिनक रूप से बहुत कमजोर है। 1984 के पहले यहां कांग्रेस का जनाधार था, लेकिन अब वह बात पुरानी हो गयी है। अभी झारखंड में राजद के एकमात्र विधायक हैं सत्यानंद भोक्ता, जो सरकार में मंत्री भी हैं। वह चतरा से ही आते हैं। इसके बावजूद केएन त्रिपाठी को टिकट देना गठबंधन की भूल है। कुछ लोगों का मानना है कि गिरिनाथ सिंह राजद के कद्दावर नेता रहे हैं, मंत्री भी रहे हैं। भाजपा में वह चले भी गये, लेकिन पुन: जब उनकी वापसी हुई, तो ऐसा लगा था कि गिरिनाथ सिंह को ही टिकट मिलेगा, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। गुरुवार को गिरिनाथ सिंह ने चतरा में बैठक भी की थी। उसमें उन्होंने कहा था कि अगर जनता की मांग है और जनता चाहेगी, तो वह चुनाव लड़ने के लिए मन बना सकते हैं।

चतरा भ्रमण के दौरान यह साफ दिखा कि भाजपा की तरफ से प्रचार उफान पर है। कार्यकर्ता उत्साहित भी हैं। दूसरी तरफ अभी मान-मनव्वल और वाद-विवाद ही चल रहा है। हां, कुछ जगहों पर केएन त्रिपाठी के समर्थक जरूर सक्रिय हुए हैं। जब तक वह पूरी तरह सक्रिय होंगे, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

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