विशेष
झामुमो ने चार, भाजपाने तीन और कांग्रेस ने दो विधायकों पर लगाया है दांव
भाकपा-माले के एक विधायक के साथ दो बागी विधायक भी उतरे हैं रेस में
लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड विधानसभा की दो सीटें हो जायेंगी खाली

झारखंड के सभी 14 संसदीय क्षेत्रों में मुकाबले की तस्वीर साफ हो गयी है। चार संसदीय क्षेत्र में तो नामांकन दाखिल करने का काम भी पूरा हो गया है। चुनावी मुकाबले की तस्वीर पर नजर दौड़ाने से एक बात साफ हो जाती है कि इस बार झारखंड में राजनीतिक दलों के पास संसदीय चुनाव में उतारने लायक प्रत्याशियों की भारी कमी रही। यही कारण है कि इस बार झारखंड की पांचवीं विधानसभा के एक दर्जन सदस्य लोकसभा चुनाव के मैदान में उतारे गये हैं। हालांकि विधायकों को संसदीय चुनाव के मैदान में उतारने का यह पहला मौका नहीं है, लेकिन झारखंड के इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में विधायकों को लोकसभा का टिकट दिया गया है। इतना ही नहीं, राज्य की 14 संसदीय सीटों में से 10 पर ये विधायक चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें दो ऐसी हैं, जहां इस बार विधायकों के बीच मुकाबला होगा। इनमें संथाल परगना का मुख्यालय और राज्य की उप राजधानी दुमका और उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल का मुख्यालय हजारीबाग शामिल है। इसके अलावा जमशेदपुर, लोहरदगा, राजमहल, गोड्डा, चाइबासा, कोडरमा, धनबाद और गिरिडीह में भी राजनीतिक दलों ने विधायकों को संसदीय चुनाव में उतारा है। झारखंड में इतनी बड़ी संख्या में विधायकों के संसदीय चुनाव में प्रत्याशी बनाये जाने का कारण क्या है, यह गंभीर विवेचना का विषय है। क्या है विधायकों को लोकसभा चुनाव में टिकट दिये जाने के मतलब और इसका क्या हो सकता है असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

पूरे देश के साथ झारखंड में भी संसदीय चुनाव के मुकाबले की तस्वीर पर पड़ी धुंध धीरे-धीरे छंट रही है। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस-झामुमो, देश की संसद के निचले सदन, यानी लोकसभा में अपना संख्या बल बढ़ाने और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सत्ता पर अधिकार जमाने के लिए जोर-आजमाइश कर रहे हैं। इसके लिए बहुत सोच-समझ कर उम्मीदवारों का चयन किया जा रहा है। जहां तक झारखंड की बात है, तो यहां के संदर्भ में एक बात गौर करने लायक है और वह है राजनीतिक दलों द्वारा बड़ी संख्या में विधायकों को लोकसभा चुनाव के अखाड़े में उतारने का फैसला करना।

झारखंड की सभी सीटों पर तस्वीर साफ
झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं। इन सीटों पर जीत हासिल करने के लिए भाजपा और इंडी गठबंधन के घटक दलों, झामुमो-कांग्रेस-राजद-भाकपा माले के बीच मुकाबला होना तय है। राज्य की सभी सीटों पर मुकाबले की तस्वीर साफ हो गयी है, यानी चुनावी मुकाबले में उतरने वाले प्रत्याशियों के नामों का एलान हो गया है। इनमें से पलामू, लोहरदगा, खूंटी और सिंहभूम में तो नामांकन दाखिल करने का काम भी खत्म हो गया है। यहां 13 मई को मतदान होगा। अभी चतरा, कोडरमा और हजारीबाग में नामांकन दाखिल करने का काम चल रहा है, जहां 20 मई को वोट डाले जायेंगे। इसके बाद रांची, जमशेदपुर, गिरिडीह और धनबाद के लिए नामांकन दाखिल करने का काम 29 अप्रैल को शुरू होगा। यहां 25 मई को वोट डाले जायेंगे। 1 जून को दुमका, राजमहल और गोड्डा में वोट डाले जायेंगे और यहां नामांकन दाखिल करने का काम 7 मई से शुरू होगा।

10 विधायकों को मिला टिकट, दो बागी
झारखंड में लोकसभा चुनाव के मुकाबले में उतरनेवाले उम्मीदवारों में से दर्जन भर राज्य की वर्तमान विधानसभा के सदस्य हैं। इनमें झामुमो ने चार विधायकों को टिकट दिया है, जबकि भाजपा ने तीन विधायकों को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने दो और भाकपा माले ने एक-एक विधायक को टिकट दिया है। इनके अलावा झामुमो के दो विधायक बागी हो गये हैं और वे निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।

किन विधायकों को मिला है टिकट
झामुमो के जिन चार विधायकों को टिकट मिला है, उनमें दुमका से नलिन सोरेन, सिंहभूम से जोबा मांझी, जमशेदपुर से समीर मोहंती और गिरिडीह से मथुरा महतो शामिल हैं। भाजपा ने जिन तीन विधायकों को टिकट दिया है, उनमें हजारीबाग से मनीष जायसवाल, धनबाद से ढुल्लू महतो और दुमका से सीता सोरेन शामिल हैं। कांग्रेस ने मांडू के विधायक जयप्रकाश भाई पटेल को हजारीबाग से और पोड़ैयाहाट विधायक प्रदीप यादव को गोड्डा से टिकट दिया है, जबकि भाकपा माले ने अपने एकमात्र विधायक विनोद सिंह को कोडरमा से मैदान में उतारा है। इनके अलावा बिशुनपुर के झामुमो विधायक चमरा लिंडा ने लोहरदगा संसदीय सीट से निर्दलीय के रूप में नामांकन दाखिल किया है, जबकि बोरियो विधायक लोबिन हेंब्रम ने राजमहल सीट से निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरने की घोषणा की है।
इन विधायकों में सीता सोरेन दुमका संसदीय क्षेत्र के तहत जामा से झामुमो की विधायक थीं और हाल ही में भाजपा में शामिल हुई हैं। इसी तरह जयप्रकाश भाई पटेल भाजपा के टिकट पर मांडू से चुने गये थे, लेकिन कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्हें लोकसभा चुनाव का टिकट मिल गया।

दुमका-हजारीबाग में दो विधायकों में संसद के लिए जंग
इस तरह झारखंड में दो लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां विधायकों में संसद के लिए जंग होगी। ये सीटें हैं हजारीबाग और दुमका। इन दोनों सीटों पर मुकाबला इसलिए रोचक है, क्योंकि यहां लोकसभा चुनाव के प्रतिद्वंद्वी विधानसभा में एक ही पार्टी का प्रतिनिधित्व करते थे। इन दोनों सीटों का परिणाम चाहे कुछ भी हो, लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा में ये सीटें खाली हो जायेंगी। इन सीटों पर उपचुनाव भी नहीं होगा, इसलिए दुमका और हजारीबाग सदर के लोग करीब छह महीने के लिए विधायक विहीन रहेंगे।
इतनी बड़ी संख्या में विधायकों को चुनाव मैदान में उतारने पर यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या झारखंड के राजनीतिक दलों के पास जन नेताओं की कमी हो गयी है, जिसके कारण पुराने चेहरों पर दांव खेला जा रहा है। या फिर राजनीतिक दल कोई रिस्क नहीं लेना चाहते।

झारखंड के दलों में नेताओं का टोटा
इतनी बड़ी संख्या में विधायकों को लोकसभा चुनाव का प्रत्याशी बनाये जाने के पीछे एक और कारण यह है कि झारखंड की राजनीति पिछले 23 साल में सत्ता केंद्रित हो गयी है। यानी यहां अब पार्टी संगठन नेपथ्य में चला गया है। दूसरे शब्दों में कहा जाये, तो झारखंड की पार्टियों में नेता बनाने की क्षमता खत्म हो गयी है। झारखंड बनने से पहले देखा जाता था कि पार्टी संगठन ही प्रत्याशियों, मंत्रियों और यहां तक कि मुख्यमंत्री का नाम भी तय करता था। लेकिन झारखंड बनने के बाद से यह परिपाटी खत्म हो गयी। यहां की राजनीति सत्ता के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गयी है। मंत्री और चुनावों में प्रत्याशियों के चयन में संगठन की कोई भूमिका नहीं रह गयी। पार्टी का हर फैसला सत्ता में बैठा नेता ही करने लगा। इसका परिणाम यह हुआ कि नेताओं को केवल सत्ता से मतलब रहने लगा। कोई भी नेता संगठन के काम को दोयम दर्जे का समझने लगा।

पार्टी संगठन के सत्ता केंद्रित होने का खामियाजा 2019 में भाजपा को भुगतना भी पड़ा, जब विधानसभा चुनाव में उसे झारखंड की सत्ता से हटना पड़ा। इसका एक प्रमुख कारण पार्टी संगठन पर सत्ता की लगाम कसना था। इसके बाद कांग्रेस और झामुमो समेत दूसरे दल भी इसी बीमारी का शिकार होते गये।

झारखंड के लिए अच्छा संकेत नहीं
लोकसभा चुनावों में विधायकों को उतारने का फैसला भले ही राजनीतिक दलों के लिए फायदेमंद साबित हो, लेकिन यह झारखंड की सियासी सेहत के लिए अच्छा संकेत नहीं है। राजनीतिक नेतृत्व को हमेशा बदलाव की धार से गुजरते रहना चाहिए, अन्यथा यह ठहर कर बदबूदार हो सकता है। यही खतरा इस समय भी मंडरा रहा है।

प्रदीप यादव (गोड्डा-कांग्रेस)
समीर मोहंती (जमशेदपुर-झामुमो)
मनीष जयसवाल (हजारीबाग-भाजपा)
ढुल्लू महतो (धनबाद-भाजपा)
सीता सोरेन (दुमका-भाजपा)
मथुरा महतो (गिरिडीह-झामुमो)
नलिन सोरेन (दुमका-झामुमो)
जोबा मांझी (सिंहभूम-झामुमो)
जयप्रकाश भाई पटेल (हजारीबाग-कांग्रेस)
विनोद कुमार सिंह (कोडरमा-भाकपा माले)
चमरा लिंडा (लोहरदगा-निर्दलीय)
लोबिन हेंब्रम (राजमहल-निर्दलीय)

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version