राजनीति : शिवपाल कर रहे योगी का गुणगान, आजम कस रहे अखिलेश पर तंज और माथा पीट रहे अखिलेश
उत्तरप्रदेश की सियासत आजकल शेरों-शायरी, तंज, व्यंग्य और कटाक्ष से काफी ज्यादा प्रभावित दिख रही है। एक तरफ तंज, व्यंग्य और कटाक्ष का बाजार गर्म है, वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग खिसियानी बिल्ली की तरह खंभा नोच रहे हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर आजम खां तक, शिवपाल यादव से लेकर ओम प्रकाश राजभर तक ने तंज कस और कटाक्ष कर राइट, लेफ्ट एंड सेंटर से अखिलेश यादव को खिसियाने पर मजबूर कर दिया है। एक तरफ योगी आदित्यनाथ तो हर दिन अखिलेश को धोबिया-पाट दे ही रहे हैं, दूसरी तरफ आजम खान अपने दर्द को मुस्कराहट का नकाब पहना अखिलेश की बखिया उधेड़ रहे हैं। शिवपाल यादव भी इसमें भला कहां पीछे रहनेवाले। उन्होंने ने तो सदन में विपक्ष में बैठ कर योगी आदित्यनाथ की तारीफों के पुल बांधे, उनको ईमानदार और मेहनती बताया। यहां तक कह दिया कि योगी आदित्यनाथ उत्तरप्रदेश को ऊंचाइयों तक ले जाना चाहते हैं, लेकिन यह अकेले संभव नहीं। जिस समय शिवपाल यादव योगी की प्रशंसा के पुल बांध रहे थे, सदन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज रहा था। शिवपाल के एक-एक शब्द विपक्ष में बैठे सपा विधायकों और खासकर अखिलेख यादव के कलेजे में छेद कर रहे थे। उन्होंने विपक्ष को भी नहीं छोड़ा, तंज कसते हुए कहा, अगर विपक्ष हमारा साथ ले लेता… अगर हमारे सौ उम्मीदवारों को टिकट दे देते, तो सपा गठबंधन आज वहां (सत्ता पक्ष) और आप (भाजपा गठबंधन) यहां (विपक्ष) होते। जाहिर है, शिवपाल के इस व्यंग्यवाण से अखिलेश घायल तो होंगे ही। जिस ओम प्रकाश राजभर पर अखिलेश ने बेतहाशा विश्वास किया था, उन्होंने भी तो उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। बातों बातों में ही उन्होंने अखिलेश के खिलाफ गुगली फेंक दी- एसी से बाहर निकलियेगा, तब न चुनाव जीतियेगा। शिवपाल, आजम खां और ओमप्रकाश राजभर के व्यंग्य वाणों से अखिलेश विचलित से हो गये हैं। लगातार दो अवसरों पर उन्होंने सदन में अपना आपा खो दिया। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को उन्होंने तू-तड़ाक कर डाला। इसके बाद योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश पर अपनी भृकुटि तानी, कटाक्ष करते हुए कहा कि मीठा-मीठा गप-गप, कड़वा-कड़वा थू-थू। नजर नहीं है नजारों की बात करते हैं, जमीं पर चांद-सितारों की बात करते हैं। वो हाथ जोड़ कर बस्ती को लूटनेवाले भरी सभा में सुधारों की बात करते हैं। अभिमान तब आता है, जब लगता है कि हमने कुछ किया है। लेकिन सम्मान तब मिलता है, जब दुनिया को लगता है कि आपने कुछ किया है। इसके बाद तो अखिलेश यादव ने हाथ ही जोड़ लिये। शिवपाल यादव, आजम खां और ओमप्रकाश राजभर के पैंतरे के कुछ न कुछ निहितार्थ हैं। इतना तो समझ में आ रहा है कि वहां कुछ राजनीतिक खिचड़ी पक रही है। आजम के तंज, शिवपाल के मीठे बोल और अखिलेश की खिसियाहट के सियासी मायने तलाश रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
आजम खां के तीर
बात शुरू करते हैं आजम खां के मौजूदा रवैये से। कभी वह अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव की आंखों के तारे हुआ करते थे। अगाध विश्वास था उन पर। लेकिन आज आजम खां अपने आंसू आंखों में छिपाये अखिलेश पर तंज कस रहे हैं। एक तरह से उन्होंने तो तंज का बवंडर ही खड़ा कर दिया है। कुछ पेशे खिदमत करता हूं। आजम को सुन लीजिए:
1- ज्यादा जुल्म तो मेरे अपनों ने किये हैं।
2-मैं किसी से नाराज नहीं हूं, क्योंकि नाराज होने के लिए कोई आधार होना चाहिए। मैं खुद ही निराधार हूं तो आधार कहां से आयेगा।
3-अब तक मैंने अपना पूरा जीवन लाइन खींच कर रखा था। किसी दूसरी कश्ती की तरफ देखा तक नहीं था, सवार होना तो बहुत दूर की बात है। लेकिन अंदाज यह हुआ कि दुआ-सलाम सबसे रखनी चाहिए। चाय-नाश्ता अगर हो तो एतराज नहीं करना चाहिए। जब सब कर सकते हैं चाय नाश्ता, तो मैं क्यों नहीं कर सकता। अगर ये अधिकार सभी राजनीतिक दलों को हासिल है कि वे सबसे मुलाकातें करें, सबसे मिलें, चाय नाश्ता करें, शादी-ब्याह में शरीक हों, खुशी-गम में शरीक हों, तो मैं भी तो उन्हीं के जैसा इंसान हूं। इसी बीच उनसे पूछ लिया गया कि क्या अब आप दूसरी कश्ती की तरफ देखेंगे, तो उन्होंने झट जवाब दिया: पहले कोई माकूल कश्ती सामने तो आये। अभी तो मेरा जहाज काफी है।
उनकी पीड़ा सुनिये:
4-अखिलेश यादव तो बड़े नेता हैं। मुलायम सिंह यादव तो बहुत बड़े नेता हैं। शायद मुलायम सिंह यादव के पास मेरा फोन नंबर नहीं होगा, इसलिए उन्होंने फोन कर मेरा हाल-चाल नहीं लिया।
5-विधानसभा में आजम खां के लिए अखिलेश यादव के बगल में लगी कुर्सी पर आजम खां का तंज कि मेरी इज्जत बढ़ गयी।
जिस प्रकार से आजम खां और शिवपाल यादव के बयान आ रहे हैं, उससे तो यही समझा जा सकता है कि जल्द उत्तरप्रदेश की राजनीति में गंगा-जमुनी तहजीब के मिलन और घर के भेदी वाले भी मिसालें भी दी जायेंगी। उत्तरप्रदेश की राजनीति में तब बड़ा मोड़ आया, जब शिवपाल यादव आजम खान से मिलने जेल पहुंचे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि अब आजम खान के बुरे दिन के खात्मे की गिनती शुरू हो गयी। आज आजम खान समाजवादी पार्टी के गले की वह हड्डी बन गये हैं, जिसे न तो वह निगल पा रही है, न ही उगल पा रही है। आखिर अखिलेश यादव आजकल इतने चिड़चिड़े से क्यों नजर आते हैं। हाल में सदन में भी उनकी एक्टिविटी को देखा जाये तो वह बीच-बीच में काफी तिलमिलाते दिखाई पड़ रहे थे।
निहितार्थ :
आजम खान की तरफ से एक बयान आया था कि वह हार्दिक पटेल नहीं हैं। इसका निहितार्थ यही होगा कि शायद वह पार्टी छोड़ कर नहीं जाना चाहते। लेकिन माकूल कश्ती की तलाश तो उन्हें कहीं और ले जाने को बेताब है। सबसे ज्यादा जुल्म तो मेरे अपनों ने किये हैं। आजम के इस बयान के मायने तो काफी गहरे हैं। क्योंकि लगता है, जख्म एक दिन का नहीं है, काफी पुराना है। इतना ही नहीं, सपा मुखिया अखिलेश यादव से नाराजगी के सवाल पर आजम खान ने कहा था कि मैं किसी से नाराज नहीं हूं, क्योंकि नाराज होने के लिए कोई आधार होना चाहिए। मैं खुद ही निराधार हूं, तो आधार कहां से आयेगा। अखिलेश के बगल की कुर्सी पर बढ़ती इज्जत के बयान का भावार्थ समझा जाये, तो वह नेता, जो विपक्ष में रहकर जिस कुर्सी पर बैठ चुका है, उसके बगल की कुर्सी अगर उसे दी गयी हो, तो मेरी इज्जत बढ़ गयी वाला बयान भी कुछ तंज जैसा ही प्रतीत होता है। चाय नाश्ता वाला बयान तो यही संकेत देता है कि मुलायम सिंह यादव के परिवार ने जिस प्रकार से भाजपा के साथ संबंध बनाये रखा, चाहे नरेंद्र मोदी के साथ मुलायम सिंह यादव के अच्छे संबंध रहे हों, मुलायम सिंह यादव द्वारा समय-समय पर नरेंद्र मोदी की तारीफ करना रहा हो, या योगी आदित्यनाथ का मुलायम सिंह के घर पर जाकर मिलना रहा हो, इसका मलाल आज आजम खां को हो रहा है। एक तरफ तो मुलायम परिवार ने भाजपा के साथ संबंध बनाये रखा और दूसरी तरफ आजम खां ने एक सियासी लकीर खींच रखी थी, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। देखा जाये तो मुलायम सिंह यादव के परिवार के ऊपर कई आरोप हैं, जैसे आय से अधिक संपत्ति का मामला हो या कई और मामले, जो आजम खां के मामले से भी ज्यादा गंभीर मामले हैं, लेकिन उनके ऊपर अभी जांच की आंच नहीं पहुंची है। इस कारण आजम खां शायद वह राजनीतिक लकीर अब मिटाना चाह रहे हैं, जिससे उन्हें आगे नुकसान नहीं उठाना पड़े। तंज से तो आजम खां का पुराना रिश्ता है। यह आजम खां का एक तरीका है, जिसके लिए वह जाने जाते हैं। लेकिन एक बात तो शुरू से तय थी और है। जितने दिन आजम जेल में रहे, उतना ही नुकसान समाजवादी पार्टी को हुआ और अब जेल से निकलने के बाद जितने भी कदम वह चलेंगे, उनका हर एक कदम समाजवादी पार्टी को डैमेज ही करेगा। नाराज तो वो अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव से हैं। इतनी आसानी से आजम अब उनके हाथ तो नहीं आयेंगे।
वहीं दूसरी तरफ प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुखिया शिवपाल सिंह यादव ने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सराहना करते हुए उन्हें ईमानदार और मेहनती बताया। शिवपाल यादव द्वारा मुख्यमंत्री की तारीफ किये जाने पर भाजपा सदस्यों ने सदन में मेज थपथपा कर उनका स्वागत किया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री तो संत हैं, योगी हैं। योग का मतलब सबको जोड़ना होता है। शिवपाल के यहे शब्द विपक्ष में बैठे सपा विधायकों के बीच से निकल रहे थे। शिवपाल यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री विपक्ष का सहयोग ले करके ही उत्तरप्रदेश को नयी ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं। उन्होंने विपक्ष पर भी तंज करते हुए कहा, अगर विपक्ष हमारा साथ ले लेता… हमने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनायी थी। अपने एक सौ प्रत्याशी भी घोषित कर दिये थे। अगर हमें टिकट दे देते, तो सपा गठबंधन वहां (सत्ता पक्ष) और आप (भाजपा गठबंधन) यहां (विपक्ष) होते।
उठ रहे सवाल
आज उत्तरप्रदेश की राजनीति में कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या आजम खां अखिलेश यादव से अलग होने का मन बना रहे हैं। क्या आजम और शिवपाल यादव के बीच कोई खिचड़ी पक रही है। क्या आजम और अखिलेश यादव के रिश्ते आखिरी पड़ाव पर हैं। क्या शिवपाल के मुख से योगी की तारीफ कोई और कहानी कहने को इच्छुक है। वैसे अभी राज्यसभा के चुनाव को लेकर उत्तरप्रदेश की राजनीति गरम है। एक तरफ जहां शुरू से भाजपा का पलड़ा भारी है, वहीं सपा के कोटे में भी भाजपा सेंध लगा सकती है। बहुत से सवाल हैं उत्तरप्रदेश की राजनीति में। जैसे-जैसे 2024 का आम चुनाव नजदीक आयेगा, वैसे-वैसे परत-दर-परत राजनीतिक लखनवी बिरयानी का राज खुलता जायेगा।
उत्तरप्रदेश की हाल-ए-सियासत
अभी आजम खां का एपिसोड उत्तरप्रदेश की सियासत में धमाल मचा रहा है। जुमलों का बाजीगर कहें या तंज का शहंशाह, आजम खान कभी भी सार्वजनिक रूप से यह नहीं मानेंगे कि अपनी तबाही में अपनों का हाथ कह कर उन्होंने अखिलेश पर निशाना साधा है। आजम खां की एक खासियत है, जो उन्हें दूसरों से अलग करती है। वह सीधे-सीधे कभी वार नहीं करते। ऐसे शब्दबाण चलाओ कि सामने वाले को उसकी मारक क्षमता का अंदाजा ही न होने पाये। ये आजम का हुनर है। वैसे भी आजम और अखिलेश के रिश्ते कुछ अपवादों को छोड़ बहुत ज्यादा सहज नहीं रहे। इसकी बानगी वर्ष 2012 में बनी अखिलेश यादव की नेतृत्व वाली सरकार थी। जो जलवा आजम खां का मुलायम सिंह यादव की सपा में था, आज अखिलेश यादव की इगो वाली सपा में उन्हें धक्का तो जरूर लगा है। आज आजम 27 महीनों बाद जेल से निकले हैं। दो वर्षों में तो कई राजनेताओं की राजनीति का दीपक बुझ सा जाता है। लेकिन यह आजम खां हैं, जो अभी भी सुर्खियां बनाये हुए हैं। जब आजम जेल में थे, तब भी वह सुर्खियों में थे। आज जब वह जेल से बाहर हैं, तब भी सुर्खियां बटोर रहे हैं। वहीं जब आजम पर बकरी चोरी, भैंस चोरी, किसानों की भूमि कब्जाने से लेकर एक सौ से अधिक मुकदमे उनके ऊपर चल रहे थे और वह जेल में सजा काट रहे थे, तब अखिलेश यादव या मुलायम सिंह यादव उनसे मिलने तक नहीं गये थे। बावजूद इसके, 2022 के चुनाव में मुसलमानों ने एकजुट होकर 90 प्रतिशत वोट समाजवादी पार्टी को दे दिया। अगर इसी प्रकार से मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ा रहा, तो फिर आजम खां का महत्व पार्टी में क्या रह जायेगा। आजम खां की बेचैनी का एक कारण यह भी हो सकता है। देखा जाये तो आजम खां का अपना वोट बैंक है। वह यादव वोट या सपा के वोट बैंकों पर निर्भर नहीं रहते। उनका अपना जनाधार है। अखिलेश यादव को भी पता है कि इस बार तो मुसलमानों ने अपना मत सपा को दे दिया, क्योंकि उनके पास कोई और रास्ता नहीं था। लेकिन अगर आजम खां की नाराजगी सपा दूर नहीं करती है, अखिलेश यादव अगर अपने इगो को साइड नहीं करेंगे, तब उन्हें नुकसान होना तो तय है। क्योंकि आजम खां को अपनी ताकत का अंदाजा है। उन्हें पता है कि वह अपने दम पर रामपुर सदर की सीट आसानी से जीत सकते हैं। यहां तक कि उनके बेटे द्वारा जीती हुई सीट स्वार से भी उन्हें कोई टक्कर देने की स्थति में नहीं है। आज आजम खां चिढ़े हुए हैं। आज वह खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। उनकी अखिलेश यादव के प्रति नाराजगी भी जायज है। तभी तो आजम कहते हैं, सबसे ज्यादा जुल्म तो मेरे अपनों ने किये हैं। इतना ही नहीं, मैं किसी से नाराज नहीं हूं, क्योंकि नाराज होने के लिए कोई आधार होना चाहिए। मैं खुद ही निराधार हूं तो आधार कहां से आयेगा। जेल से निकलने के बाद आजम ने विधायक पद की शपथ तो ली, लेकिन उसके बाद विधानसभा नहीं गये, जबकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उनके लिए अपनी बगल की सीट तय की थी। आजम सदन में नहीं गये, तो अखिलेश भी आजम से मिलने नहीं गये। अलबत्ता अखिलेश ने आजम के पुत्र और रामपुर की स्वार सीट से विधायक अब्दुल्ला आजम से बंद कमरे में लगभग 20 मिनट तक बातें कीं। दूसरी तरफ शिवपाल यादव और आजम खां की लखनऊ में मुलाकात भी हो चुकी है। हालांकि इस मुलाकात पर कोई मुंह नहीं खोल रहा, लेकिन सूत्रों के अनुसार दोनों नेताओं के बीच आधे घंटे तक चर्चा हुई है। वहीं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से तल्खी की खबरों के बीच दोनों नेताओं की गोपनीय मुलाकात उत्तरप्रदेश की राजनीति में आनेवाले दिनों में हलचल मचा सकती है। वैसे आजम शिवपाल यादव से पहले भी मिलते रहे हैं। शिवपाल यादव उनसे मिलने जेल भी गये थे।
जेल में मुलाकात करनेवालों को लेकर आजम ने कहा था कि जो जेल में मिलने आये, उनका शुक्रिया। जो नहीं आये, उनका भी शुक्रिया। ऐसे आजम खां से जो मिलने जाता है, उनकी मर्जी से मिलता है, चाहे वह जेल हो या जेल से बाहर। वहीं शिवपाल यादव, आजम खां से मिलने सीतापुर जेल गये थे। आजम से मुलाकात के बाद शिवपाल ने सपा नेताओं पर निशाना साधा था। उन्होंने यहां तक कहा था कि नेताजी चाहते, तो आजम भाई जेल में नहीं होते। वहीं शिवपाल के बाद सपा विधायक रविदास मेहरोत्रा भी आजम से मिलने सीतापुर जेल पहुंचे थे, लेकिन किन्हीं कारणों से मुलाकात नहीं हो पायी थी। बाद में खबरें आयी कि आजम ने मुलाकात करने से मना कर दिया था। अखिलेश के कई करीबियों से भी आजम नहीं मिले। रामपुर से सपा विधायक आजम खां के सत्र से पहले 22 मई को समाजवादी पार्टी द्वारा बुलायी गयी विधानमंडल की बैठक में शामिल न होना सियासी गलियारों में हो रही तरह-तरह की चर्चाओं को तूल दे दिया था। हाल ही में आजम खां ने एक बहुत बड़ा बयान दिया था, जिसने उत्तरप्रदेश की राजनीतिक तपिश को और बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा था कि मुस्लिम उलेमाओं से मिलकर जो वोटिंग ट्रेंड है मुसलमानों का, उस पर चर्चा करने की जरूरत है। इसका मतलब क्या निकाला जाये। शायद यही कि जिस प्रकार से मुसलमानों ने भाजपा के खिलाफ वोट किया है, उसके बाद उसका नुकसान मुस्लिम समाज को हुआ है, क्या यह इसलिए तो नहीं कि हमने वोटिंग ट्रेंड जो बना कर रखा है, इस पर चर्चा जरूरी है।
एक वक्त जहां समाजवादी पार्टी में आजम खां की तूती बोलती थी, आज वही आजम खां नयी मुकम्मल कश्ती की ओर भी देख रहे हैं। आज आजम खां सपा के साथ अपने पूरे राजनीतिक जीवन का आकलन कर रहे हैं। आज आजम का हर तंज उनके लिए भी पहेली बन गयी है। आज उनके अंदाजे बयां में दर्द भी है, अफसोस भी। लेकिन एक आस भी है, जिसके सहारे आजम अपनी नयी राजनीतिक जमीन भी तलाश रहे हैं।
इन सबके बीच सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने जिस तरह अखिलेश को वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव जीतने के मद्देनजर एसी कमरों से बाहर निकलने की सलाह दी, उससे साफ तौर पर यह लगने लगा है कि यूपी की सियासत में कुछ तो हलचल जरूर होनेवाली है। क्या ओमप्रकाश राजभर फिर पलटी मारनेवाले हैं। यह भी एक सवाल है, जिसका जवाब शायद उत्तरप्रदेश की राजनीति में दिलचस्पी रखनेवालों को पता है। उन्हें यह भी पता है कि ओमप्रकाश राजभर ने किस तरह गलत जमीन पर महल खड़ा किया है, उस पर बुलडोजर चलने की आशंका है। 2024 से पहले उत्तरप्रदेश की राजनीति का स्वरूप क्या होगा, इसके बारे में अभी निश्चित रूप से कहना जल्दबाजी होगी। सिवाय इसके कि सपा की परेशानी जरूर बढ़ सकती है। क्या आजम, शिवपाल कुछ नया समीकरण बनाने की ओर बढ़ रहे हैं। क्या अखिलेश का इगो उनको अलग-थलग कर देगा। क्या आने वाले दिनों में अखिलेश के साथ गठबंधन वाली पार्टी उनका साथ देगी या नया रास्ता तलाशेगी, ये वो सवाल हैं, जो उत्तरप्रदेश की सियासत में आकार ले रहे हैं।