विशेष
-मसानजोर, मैथन और अन्य संपत्तियों पर पहले से ही है कब्जा
-अब जरूरी हो गया है बंगाल को माकूल जवाब देना

झारखंड के साथ एक बार फिर छल किया जा रहा है। यह छल उसके पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल ने किया है। बंगाल सरकार ने झारखंड के बोकारो जिला स्थित कसमार प्रखंड की सेवाती घाटी पर अपना दावा करते हुए अपना बोर्ड लगा दिया है। पुरुलिया वन विभाग की ओर से घाटी में बोर्ड लगाये जाने के बाद यह विवाद शुरू हुआ है। पुरुलिया वन प्रमंडल अंतर्गत झालदा रेंज द्वारा लगाये गये बोर्ड में झारखंड वाले हिस्से को बंगाल का हिस्सा बताते हुए लिखा गया है कि यह भूमि वन विभाग बंगाल की है और इसमें किसी प्रकार का अतिक्रमण गैरकानूनी है। झारखंड की वन भूमि पर बंगाल सरकार द्वारा लगाया गया यह बोर्ड जाहिर तौर पर उकसाने वाला है। यदि पश्चिम बंगाल को लगता है कि यह जमीन उसके हिस्से की है, तो इसके लिए उसे झारखंड सरकार से बात करनी चाहिए। हालांकि यह पहली बार नहीं है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने इस तरह की दादागीरी दिखायी है। झारखंड के साथ लगती अपनी सीमा से सटे इलाकों की जमीन रजिस्ट्री हो या मसानजोर डैम का मालिकाना हक, मैथन-पंचेत डैम के पानी के इस्तेमाल का मुद्दा हो या फिर सीसीएल-बीसीसीएल की कोयला खदानों की रॉयल्टी का सवाल हो, पश्चिम बंगाल हमेशा ही झारखंड के साथ छल करता रहा है। सबसे अफसोसजनक यह है कि झारखंड अपने हिस्से की जमीन और दूसरे लाभ के लिए समुचित कदम उठाने से भी झिझकता रहा है। अब समय आ गया है कि पश्चिम बंगाल की इस हरकत का माकूल जवाब दिया जाये और उसे यह सोचने पर मजबूर कर दिया जाये कि यदि झारखंड भी जबरदस्ती पर उतर गया और उससे लगी अपनी सीमाओं को सील कर दिया, तो बंगाल देश-दुनिया से पूरी तरह अलग-थलग पड़ जायेगा। बंगाल को समझाना होगा कि झारखंड को इस भौगोलिक अवस्था का लाभ उठाने पर मजबूर न किया जाये। पश्चिम बंगाल के साथ पैदा हुए इस नये सीमा विवाद की पृष्ठभूमि में दोनों पड़ोसी राज्यों के रिश्तों का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

राजनीतिक उम्र के हिसाब से पश्चिम बंगाल ने अपने से पूरे 95 साल छोटे झारखंड के साथ नया सीमा विवाद पैदा कर दिया है। साल 1905 में बंगाल से अलग होकर बिहार अस्तित्व में आया। तब से इन दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद चलता रहा। 1968 में बिहार और पश्चिम बंगाल के बीच भूमि समझौता हुआ था। इसके तहत गंगा नदी के पश्चिमी को बिहार और पूर्वी को पश्चिम बंगाल का भूभाग माना गया। साल 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड बना, तो बंगाल के साथ इसका विवाद खड़ा हुआ। बंगाल ने पहले तो गंगा नदी वाले सीमांकन को मानने से इनकार कर दिया और अब उसने झारखंड के इलाके को अपना बता कर उस पर कब्जा जमा लिया है। इससे पहले दोनों राज्यों के बीच दुमका जिले के मसानजोर डैम के मालिकाना हक को लेकर विवाद चल रहा है। नया विवाद बोकारो जिले के कसमार प्रखंड की सेवाती घाटी के जंगल को पश्चिम बंगाल सरकार ने अपना बताते हुए बोर्ड लगा दिया है।
झारखंड का अपने पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल के संग विवाद नया नहीं है। बंगाल कभी आलू की आपूर्ति रोकता है, तो कभी बिना बताये अपने बांधों का पानी छोड़ देता है। सीमावर्ती जिलों में झारखंड के लोगों को परेशान करने संबंधी सूचनाएं भी अक्सर आती हैं। बोकारो की ताजा घटना से पहले पश्चिम बंगाल ने साहिबगंज जिले की करीब 50 हजार एकड़ जमीन पर दावा ठोंका था। इनमें कलियाचक और मानिकचक प्रखंड के 29 टोले शामिल थे। पश्चिम बंगाल ने अपने दावे के पक्ष में आवाज बुलंद करने के लिए सीमावर्ती इलाकों के नेताओं को लगा रखा था, जो अक्सर इन विवादों की चर्चा कर तूल देते थे। हालांकि अभी यह विवाद सुलझा नहीं है, लेकिन झारखंड सरकार के कड़े रुख को देखते हुए पश्चिम बंगाल ने तेवर नरम किये हैं। इसके अलावा साहिबगंज जिले के उधवा अंचल में रहनेवाले कुछ लोग आज भी अपनी भूमि की रजिस्ट्री मालदा के कलियाचक स्थित निबंधन कार्यालय में कराते हैं। इसका कारण साहिबगंज जिला प्रशासन के पास इन भूमि से संबंधित दस्तावेज न होना है।
झारखंड और पश्चिम बंगाल के बीच 49 मौजा की भूमि के मालिकाना हक को लेकर विवाद भी चल रहा है। इन पर दोनों ही राज्य अपना-अपना दावा करते हैं। इनमें 22 मौजा उधवा, तो 10 मौजा राजमहल अंचल का है। भूमि 50 हजार एकड़ से अधिक होगी। 2011 में इसे सुलझाने की कोशिश हुई थी। मामला अंतरराज्यीय विकास परिषद में उठा था, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो पाया।

बंगाल की दादागीरी का इलाज जरूरी
पश्चिम बंगाल पहले एकीकृत बिहार के साथ और बाद में झारखंड के साथ सीमा को लेकर उलझता रहा है। मसानजोर का मालिकाना हक, मैथन और पंचेत जैसे डैमों का इस्तेमाल या सीसीएल-बीसीसीएल-इसीएल की कोयला खदानों से मिलनेवाली रॉयल्टी के मुद्दे पर हमेशा बंगाल की ही चलती आयी है। छोटा राज्य होने के कारण अक्सर झारखंड को नुकसान उठाना पड़ता है। दुर्भाग्यपूर्ण यह भी है कि झारखंड को छोटा होने का आभास तो कराया जाता है, लेकिन पश्चिम बंगाल बड़ा होने का कर्तव्य भूल जाता है। यह मामला अक्सर राजनीतिक दांव-पेंच में, तो कभी प्रशासनिक मकड़जाल में फंस कर रह जाता है। लेकिन अब समय आ गया है कि झारखंड को अपने अस्तित्व का एहसास कराना चाहिए। पश्चिम बंगाल को समझना चाहिए कि यदि झारखंड ने उसके साथ लगती सीमा को बंद कर दिया, तो उसकी पूरी गतिविधि ही ठप पड़ जायेगी। दुनिया से उसका रेल, सड़क या पानी का संपर्क टूट जायेगा। पश्चिम बंगाल को अपनी खनिज और ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए झारखंड पर निर्भर रहना ही होगा। झारखंड को अब पश्चिम बंगाल को यह एहसास करा देना चाहिए। बोकारो जिले में वन भूमि पर बंगाल सरकार द्वारा जो बोर्ड लगाये गये हैं, वह निश्चित तौर पर झारखंड को चिढ़ाने और उकसाने वाला काम है। झारखंड सरकार को कठोरता से कार्रवाई करनी चाहिए।

दर्जन भर राज्यों के बीच है सीमा विवाद
भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश में राज्यों के बीच सीमा विवाद कोई नयी बात नहीं है। भारत सरकार के दस्तावेजों के अनुसार इस समय देश के दर्जन भर राज्यों के बीच सीमा को लेकर विवाद चल रहा है। यह विवाद पूर्वोत्तर में सबसे अधिक है। असम और मेघालय के बीच सीमा विवाद ने तो हिंसक रूप अख्तियार कर लिया था और कई लोगों की मौत हो गयी थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि राज्य विवादित क्षेत्र के निपटारे के लिए कानूनी या लोकतांत्रिक तरीका अपनाने की बजाय दुश्मनों की तरह जंग छेड़े हुए हैं। इससे यही प्रतीत होता है कि ये अखंड भारत का नहीं, बल्कि किसी पड़ोसी मुल्क का हिस्सा हैं। ऐसी स्थिति में जब देश चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मन देशों की चुनौतियों से जूझ रहा है, राज्यों द्वारा राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य की बजाय निहित स्वार्थों के वशीभूत होकर की गयी कार्रवाई से एकता और अखंडता को लेकर गलत संदेश जा रहा है। विशेषकर चीन पहले ही अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जता कर विवाद खड़ा कर चुका है। ऐसे में राज्यों के बीच इस तरह के विवादों से देश कमजोर होगा।

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