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विपुल शाह द्वार निर्मित और सुदीप्तो सेन द्वारा निर्देशित फिल्म द केरल स्टोरी से जुड़े विवाद में एक बात बहुत ही दिलचस्प नजर आती है और वह यह कि यह दो राजनीतिक दलों के बीच की लड़ाई बन गयी है। फिल्में समाज का आइना होती हैं और इस आइने के जरिये फिल्म बनाने वाले और कलाकार के पास अपनी बात कहने का और अपना पक्ष रखने की एक रचनात्मक आजादी होती है। लेकिन कश्मीर फाइल्स की तरह द केरल स्टोरी पर विवाद भी अब राजनीतिक रंग ले चुका है। इस फिल्म को एक खास राजनीतिक विचारधारा का प्रोपगंडा बताया जा रहा है, तो दूसरी तरफ इसके विरोधियों को तुष्टीकरण की राजनीति करनेवाला बताया जा रहा है।
क्या है द केरल स्टोरी की कहानी
फिल्म द केरल स्टोरी की कहानी केरल की चार लड़कियों के धर्मांतरण पर आधारित है। यह फिल्म शालिनी, नीमा और गीतांजलि नाम की लड़कियों पर आधारित है, जो नर्स बनने का सपना लिये घर से दूर एक कॉलेज में आती हैं, जहां उनकी मुलाकात आसिफा से होती है। आसिफा एक कट्टरवादी है और जैसे-जैसे फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे यह पता चलता है कि वह आइएसआइएस के लिए लड़की भेजने का काम करती है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे आसिफा अपने साथियों की मदद से उन तीन लड़कियों का ब्रेनवॉश करके उन्हें अपना धर्म बदलने के लिए उकसाती है। आसिफा अपने प्लान में कामयाब हो जाती है और तीनों लड़कियों में शालिनी सबसे पहले उससे प्रभावित हो जाती है और अपना धर्म बदल लेती है। अब वह फातिमा बा बन चुकी होती है। इतना ही नहीं, शालिनी को आसिफा के एक दोस्त से प्यार भी हो जाता है। दोनों इसके बाद शादी कर लेते हैं। इसके बाद फिल्म की कहानी में जबरदस्त मोड़ आता है और फातिमा बन चुकी शालिनी अपने बच्चे के साथ इराक-सीरिया बॉर्डर पर नजर आती है। ऐसा क्या हुआ और कैसे हुआ, फिल्म इसी की कहानी बयां करती है। हालांकि, नीमा और गीतांजलि, शालिनी की तरह आइएसआइएस तक तो नहीं गयी, लेकिन उन्हें इसका नतीजा भारत में रहकर ही भुगतना पड़ा। दरअसल, साल 2021 के दौरान एक इंटरव्यू में सुदीप्तो सेन ने केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी से हुई बातचीत के आधार पर बताया था कि राज्य में 32 हजार हिंदू और ईसाई लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया। ओमान चांडी ने बताया था कि केरल में हर साल 2800 से 3200 लड़कियां इस्लाम अपना रही हैं। पिछले 10 साल में यह आंकड़ा 32 हजार के पार पहुंच चुका है। फैक्ट चेक के दौरान कई चैनलों ने इस आंकड़े को फेक बताया था, लेकिन जब अफगानिस्तान में तालिबान ने दोबारा हुकूमत कायम की तो वहां की जेल में चार भारतीय महिलाएं कैद मिलीं।
जांच में सामने आया कि इन चारों महिलाओं को आईएसआईएस में शामिल होने के लिए अफगानिस्तान भेजा गया था। ये चारों महिलाएं अपने-अपने पति के साथ आईएसआईएस में शामिल होने के लिए खुरासान प्रांत गई थीं। हालांकि, उनके परिजनों ने भारत सरकार से गुहार लगाई थी कि उनकी बेटियों को आजाद कराकर भारत लाया जाए। सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी, जिसके बाद उन्हें अफगानिस्तान की जेल में ही कैद छोड़ दिया गया।
जनवरी 2022 में एनआइए ने किया था खुलासा
जनवरी 2022 में एनआइए ने खुलासा किया था कि केरल में इस्लामिक स्टेट के स्लीपर सेल एक्टिव हैं। उस वक्त आठ आतंकियों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की गई थी। एनआइए का दावा था कि केरल के मुसलमान नौजवानों को आतंक के रास्ते पर ले जाने की कोशिश हुई। ये भी बताया गया कि इसमें महिलाएं भी शामिल हैं। ओमन चांडी के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान धर्म परिवर्तन के आंकड़े सामने आए थे। उन आंकड़ों के मुताबिक साल 2006 से 2012 के दौरान 7713 लोगों ने इस्लाम कबूला था। साल 2009 से 2012 के दौरान जितने लोग कन्वर्ट हुए थे उनमें 2667 महिलाएं थीं। इनमें 2195 नौजवान हिंदू लड़कियां थीं और 492 नौजवान ईसाई लड़कियां थीं। उस वक्त सीएम चांडी ने विधानसभा में ये भी बताया था कि 2006 से 2012 के दौरान 2803 लोगों ने हिंदू धर्म अपनाया था। इसके अलावा 2009 से 2012 के दौरान 79 लड़कियों ने ईसाई धर्म अपनाया था और दो लड़कियों ने हिंदू धर्म।
पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में बैन
इस फिल्म पर विवाद का असली कारण इसका कथानक है। धर्मांतरण और आइएसआइएस जैसे खूंखार आतंकी संगठन की ज्यादती पर केंद्रित इस फिल्म को अब मुस्लिम विरोधी बताया जा रहा है। इसी आधार पर पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु ने इसे प्रतिबंधित कर दिया है। कई राजनीतिक दल जहां इस मामले की जांच की मांग कर रहे हैं, वहीं केरल के सीएम ने इसे प्रोपेगंडा फिल्म बताया है। विरोधी संगठन तो बाकायदा इस फिल्म को एजेंडा फिल्म बताकर इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं।
फिल्मों का फैसला सेंसर बोर्ड पर छोड़ा जाये
द केरल स्टोरी पर हो रहे विवाद के बीच अब इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि किसी फिल्म द्वारा रचनात्मक आजादी की सीमा लांघने या उस सीमा रेखा को तय करने का काम सेंसर बोर्ड पर छोड़ देना चाहिए। सेंसर बोर्ड द केरल स्टोरी को अपना सर्टिफिकेट दे चुका है। इसलिए बाकी की दखलंदाजी का कोई मतलब नहीं रह जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सेंसर बोर्ड को ही अंतिम अथॉरिटी माना है। अब जब सेंसर बोर्ड की ही बात की अनदेखी की जायेगी, तो कोई भी फिल्म बनाने वाला आखिर कहां जायेगा। जिन्हें भी किसी फिल्म के किसी अंश से आपत्ति हो, तो सबसे पहले उन्हें सेंसर बोर्ड का दरवाजा खटखटाना चाहिए कि आखिरकार उसका सर्टिफिकेट उसने क्यों दिया। दुर्भाग्य से यह सब न करके इस बात को एक सियासी बवाल में तब्दील कर दिया गया। इतना ही नहीं, अब क्या यह तय करने की जरूरत है कि सेंसर बोर्ड की अहम भूमिका के बावजूद राज्यों को भी अपनी तरह से यह तय करने का अधिकार है कि कोई फिल्म उनके यहां दिखायी जाये या नहीं। सोच कर देखिये कि उसके बाद क्या तस्वीर होगी फिल्मों को लेकर इस देश में। इसलिए अब यह जरूरी हो गया है कि किसी फिल्म के अच्छे-खराब होने का निर्धारण दर्शक ही करें।
फिल्म को लेकर केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी आपत्ति जाहिर की। उन्होंने फिल्म की कहानी को संघ परिवार की झूठ की फैक्ट्री का उत्पाद बताया। वहीं कांग्रेस ने भी इसे ‘झूठ का पुलिंदा’ बताया है। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने फिल्म के निमार्ताओं पर राज्य की वास्तविकता के घोर अतिशयोक्ति में लिप्त होने का आरोप लगाया। मुस्लिम लीग के साथ-साथ शशि थरूर ने भी उस व्यक्ति को 1 करोड़ रुपये इनाम देने की घोषणा की जो फिल्म की इस कहानी का सबूत दे दे कि केरल में 32,000 महिलाओं का जबरन धर्मांतरण कराया गया। फिल्म के निर्देशक सुदिप्तो सेन और निमार्ता विपुल अमृतलाल शाह ने फिल्म की कहानी के सच्ची घटनाओं पर आधारित होने का दावा किया है। विरोध किए जाने के बावजूद वे अपनी बात पर कायम हैं।
मोदी ने भी फिल्म पर की थी टिप्पणी
द केरल स्टोरी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी टिप्पणी की थी। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा, द केरल स्टोरी सिर्फ एक राज्य में हुई आतंकी साजिशों पर आधारित है। देश का इतना खूबसूरत राज्य, जहां के लोग इतने परिश्रमी और प्रतिभाशाली होते हैं, उस केरल में चल रही आतंकी साजिश का खुलासा इस फिल्म में किया गया है। इस सिनेमा का भी कांग्रेस ने विरोध किया। इतना ही नहीं, ऐसी आतंकी प्रवृत्ति वालों से कांग्रेस, पिछले दरवाजे से राजनीतिक सौदेबाजी तक कर रही है। बहरहाल, फिल्म द केरल स्टोरी पर पैदा हुए विवाद का असर बॉक्स आॅफिस पर दिखने लगा है, जब इसने रिलीज होने के पहले सप्ताह में ही लोकप्रियता के रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं। इतना तय है कि ठंडे पड़े बॉक्स आॅफिस ने इस फिल्म ने गर्म कर दिया है। इसलिए अब किसी भी फिल्म को सियासत के नजरिये से देखने का चलन बंद होना चाहिए। इस तरह के विवाद से दुनिया के सबसे बड़े फिल्म उद्योग को जो नुकसान हो रहा है, उसकी भरपाई राजनीति से नहीं हो सकती, यह समझना होगा।