विशेष
गोली के बदले गोला ही भारत की पाकिस्तान नीति होनी चाहिए
गौरी पर रहम और पाकिस्तान पर करम भारत के लिए ठीक नहीं
हर भारतीय कर रहा सवाल-ट्रंप कौन होता है सीजफायर की घोषणा करनेवाला

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।

वर्ष 1191 में पृथ्वीराज चौहान ने न केवल मोहम्मद गौरी को हराया था, बल्कि उसकी पूरी सेना को बंधक बना लिया था और कई दिनों तक उस लुटेरे को सम्राट ने अपनी जेल में रखा। बाद में उसे और उसकी सेना पर दया करके उसे छोड़ दिया गया और उसे उसके देश लौटने का मौका दिया। इस युद्ध में मुहम्मद गौरी की ज्यादातर सेना भी भाग खड़ी हुई थी। कहते हैं पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी को युद्ध में 17 बार हराया था। लेकिन हर बार उसे जिंदा छोड़ दिया। लेकिन यही दरियादिली सम्राट पृथ्वीराज चौहान को भारी पड़ गयी। लेकिन जब 18वीं बार मुहम्मद गौरी सेना लेकर पृथ्वीराज चौहान से लड़ने आया। उसने धोखे से सम्राट को हरा दिया। हालांकि तब भी वह पृथ्वीराज चौहान को हरा नहीं सकता था, लेकिन इस युद्ध में उसे कन्नौज के गद्दार राजा जयचंद का साथ मिला। जयचंद ने दिल्ली की सत्ता को हथियाने के लालच में एक क्रूर और धोखेबाज लुटेरे से हाथ मिला लिया। उसने मौहम्मद गौरी को न केवल अपनी सेना दी बल्कि पृथ्वीराज चौहान के पड़ाव और सेना की सूचना भी दी। मौहम्मद गौरी ने जयचंद के कहने पर धोखे से पृथ्वीराज की सेना पर रात में सोते हुए सैनिकों पर हमला कर दिया। युद्ध में खूब रक्तपात बहा और अंतत: धोखे से उसने यह जीत हासिल कर ली। भारत को यह इतिहास कभी भी नहीं भूलना चाहिए। अपने दुश्मन को बार-बार माफ करना खुद को कमजोर करने के बराबर है। 10 मई की शाम को जब विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने एलान किया कि भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ की बात हो गयी है और दोनों के बीच युद्ध विराम की सहमति बनी है, तो भारत के लोगों को शॉक लग गया। इससे भी बड़ा धक्का तब लगा जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा कि भारत और पाकिस्तान ने संयुक्त राज्य अमेरिका की मध्यस्थता में चली लंबी बातचीत के बाद युद्धविराम पर सहमति जता दी है। ट्रंप के इस ट्वीट पर किसी को भरोसा नहीं हो रहा था। कइयों को लगा कि यह फेक है। लेकिन ट्रंप ने यह ट्वीट अपने आॅफिसियल एक्स हैंडल से किया था। लोग आश्चर्यचकित थे। लोगों का मानना था कि यह बात भारत सरकार की तरफ से कोई बोलता तो समझ में आता। तभी विदेश सचिव विक्रम मिसरी के एलान ने लोगों को मायूस कर दिया। यकीन नहीं हो रहा था कि यह अमेरिका कौन होता है भारत और पाकिस्तान में मध्यस्थता कराने वाला। इस बार हर भारतीय देश की आन-बान-शान के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार थे। वे बस यही चाहते थे कि इस बार पाकिस्तान को नहीं छोड़ना है। इस बार पीओके तो कम से कम ले ही लेना है। भारत के लोग इस बार आर-पार के मूड में हैं। इस नब्ज को समझने की जरूरत भी है। कब तक आखिर भारत पकिस्तान के आतंक को बर्दाश्त करता रहेगा। भारत के लोगों को यह भी पता है कि पाकिस्तान हारने के बाद एक बार जरूर पीछे से वार करता है और हुआ भी वही। पाकिस्तान ने मात्र तीन घंटे के बाद ही यानी रात नौ बजे के करीब युद्ध विराम का उल्लंघन कर दिया और जम्मू-कश्मीर के कई इलाकों में ड्रोन अटैक करने लगा। इसलिए भारत में यह आम राय बन रही है कि पाकिस्तान को ठोकना ही एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए। युद्ध विराम के मामले में पाकिस्तान का रिकॉर्ड खराब ही रहा है। वह युद्ध विराम के लिए सहमति तो देता है, पर समझौते का पालन नहीं करता है। बार-बार पाकिस्तान की वादाखिलाफी झेल चुके भारत को इस बार भी पहले से भनक थी कि पाकिस्तान एक बार फिर ऐसा कर सकता है। इसके बावजूद भारत ने नरमी दिखायी, लेकिन इसका नतीजा अच्छा नहीं रहा। वास्तव में हमारा पड़ोसी मुल्क आतंकवाद की फैक्टरी तो है ही, यहां की सेना और राजनीतिक नेतृत्व भारत विरोध के बल पर ही काम करता है। इसलिए भारत के लिए पाकिस्तान के प्रति नरमी दिखाने का कोई औचित्य नहीं रह गया है। वैसे भी पाकिस्तान आतंकवाद के प्रति अपनी नीति बदलनेवाला नहीं है, क्योंकि उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं बचा है। इसलिए भारत को अब पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक कदम उठाना ही चाहिए, ताकि यह समस्या हमेशा के लिए खत्म हो सके। वैसे भी आज हम जिस दौर में हैं, वहां युद्ध विराम जैसी कोई चीज नहीं होती है। यह भी सच है कि ट्रंप की दखलंदाजी के बाद हमारे प्रधानमंत्री की इमेज को नुकसान हुआ है। अगर युद्ध विराम की घोषणा करनी ही थी, भारत करता, ये ट्रंप कौन होते हैं भारत के मामले में दखल देनेवाला। याद के लिए बता दें कि ये वही ट्रंप है, जिन्होंने पिछले ही महीने भारत के टैरिफ में बड़ा इजाफा किया है, ये वही ट्रंप है, हिन्होंने पिछले महीने लगभग चार सौ भारतीयों को हथकड़ी मेंं जकड़ कर भारत भेजा है। क्या है पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम का मतलब और भारत को अब क्या रुख अपनाना चाहिए, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

आखिरकार पाकिस्तान के होश ठिकाने आ गये। उसने भारत की घातक सैन्य कार्रवाई से घबरा कर जिस तरह हाथ खड़े कर दिये और टकराव खत्म करने को बाध्य हुआ, उससे यही स्पष्ट हुआ कि उसे वही भाषा समझ में आती है, जिसमें भारत ने उसे बहुत अच्छी तरह समझाया, लेकिन शायद वह आसानी से नहीं सुधरेगा, क्योंकि उसने संघर्ष विराम समझौते को तीन घंटे के अंदर ही तोड़ दिया। इससे साफ है कि पाकिस्तान भरोसे के काबिल नहीं है। भारतीय सेना ने पहले उसके आतंकी अड्डों और फिर जिस तरह उसके सैन्य ठिकानों को मटियामेट किया, उससे वह असहाय दिखने लगा था। यह अच्छा हुआ कि भारत ने उसके प्रति कोई नरमी नहीं दिखायी। लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि भारत को आगे भी नरमी नहीं दिखानी होगी।

आतंक को बढ़ावा और उससे मुंह मोड़ना पाकिस्तान की आदत
पाकिस्तान ने जब-जब भारत में आतंकी हमले कराये हैं, तब-तब उसे ऐसी ही शर्मिंदगी उठानी पड़ी है, चाहे मुंबई हमला हो या फिर उरी, पुलवामा और पठानकोट का हमला। आतंक को बढ़ावा देना और उससे मुंह मोड़ना पाकिस्तान की आदत है। उसकी इसी आदत के चलते भारत ने सैन्य टकराव खत्म करने पर सहमत होने के पहले यह साफ कर दिया कि भविष्य में पाकिस्तान प्रायोजित किसी आतंकी हमले को युद्ध माना जायेगा। यह पाकिस्तान और साथ ही दुनिया को बहुत बड़ा संदेश था। शायद यह संदेश सबको समझ आ गया कि अब भारत चुप बैठने वाला नहीं। आपरेशन सिंदूर में आतंकी ठिकानों के ध्वस्त होने के बाद से पाकिस्तान लगातार एलओसी पर भारी फायरिंग के साथ भारत के नागरिक और सैन्य ठिकानों को ड्रोन और मिसाइलों से निशाना बना रहा था। जब वह बाज नहीं आया, तो भारत को उसके एयरबेस ध्वस्त करने पड़े। इससे वह समझ गया कि इस बार ऐसे भारत से पाला पड़ा है, जिसे वह बख्शने के मूड में नहीं। पाकिस्तान के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि वह भारत पर हमले क्यों कर रहा है, क्योंकि भारतीय सेना ने तो उसके आतंकी अड्डे नष्ट किये थे।

अधमरे सांप को छोड़ना ठीक नहीं
बहुत पुरानी कहावत है कि भावनाओं का उद्वेग कभी-कभी आंखों पर पट्टी बांध देता है। जब से भारत-पाकिस्तान के बीच तत्काल और पूर्ण ​युद्ध विराम की खबर आयी है, ऐसा ही देखने को मिल रहा है। जिनकी आंखों पर पट्टी नहीं है, उन्हें भी 1191 ई. में हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी के बीच लड़े गये तराइन के पहले युद्ध का स्मरण हो रहा है। जो सरल, सहज और देसी तरीकों से संवाद में विश्वास करते हैं, उनका कहना है कि अधमरे सांप को नहीं छोड़ा जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त एक वर्ग ऐसा भी है, जो इस बात को लेकर चिंतित है कि विपक्ष इंदिरा गांधी का नाम लेकर ताने मार रहा है। हिंदू, मोदी और भारत घृणा में डूबा मीडिया इसे पराजय के तौर पर प्रस्तुत करेगा। पाकिस्तान और इस्लाम परस्त शेखी बघारेंगे। विचारों के इन तमाम प्रवाहों के बीच यह याद रखना चाहिए कि भारत ने कोई युद्ध नहीं छेड़ा था। हमने पाकिस्तान के टुकड़े करने के लक्ष्य निश्चित नहीं किये थे। हमने संघर्ष विराम का उल्लंघन नहीं किया था।
आॅपरेशन सिंदूर की शुरूआत के बाद ही सेना ने स्पष्ट कर दिया था कि उसके लक्ष्य पर पाकिस्तान के वे ठिकाने थे, जहां से पहलगाम जैसे हमले करने वाले इस्लामी आतंकियों को निर्देशित किया जाता है। उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है। भारत और हिंदुओं को निशाना बनाने का षड्यंत्र रचा जाता है। यही कारण है कि छह मई की रात भारत ने इस्लामी आतंक के नौ अड्डों पर मिसाइल दागे। भारत के इस एक्शन से न केवल आतंकी कैंप तबाह हुए, बल्कि एक सौ से अधिक आतंकवादी भी ढेर हुए। आतंकी मौलाना मसूद अज​हर का तो खानदान ही खाक हो गया। पांच ऐसे आतंकवादी मार गिराये गये, जिनको लेकर कहा जा सकता है कि भारतीय सेना ने कश्मीर से लेकर कंधार तक का बदला एक साथ ले लिया। इन आतंकियों को ढेर कर, इन आतंकियों के जनाजे की तस्वीरें दिखाकर, भारत ने दुनिया के सामने पाकिस्तान के उस झूठ को भी उजागर किया, जिसके तहत वह खुद को आतंकवाद का पीड़ित बताता है। इसके बाद बौखलाहट में पाकिस्तानी फौज ने न केवल नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन किया, बल्कि हमारे सैन्य से लेकर रिहायशी इलाकों तक को निशाना बनाकर गोले दागे, ड्रोन और मिसाइल छोड़े। मंदिर, गुरुद्वारे, स्कूल तक को निशाना बनाने की कोशिश की। भारत ने इसके बाद जो कुछ किया, वह जवाब देने तक ही सीमित था। हमले नाकाम कर पाकिस्तान में घुसकर जवाबी कार्रवाई तक की गयी। इन सीमित कार्रवाइयों ने परमाणु हमले की गीदड़भभकी देने वाले पाकिस्तान को भीख की कटोरी लेकर पूरी दुनिया के सामने घूमने को विवश कर दिया। यह तथ्य अब आधिकारिक तौर पर सार्वजनिक हो चुका है कि अपने आठ एयरबेस पर भारत की कार्रवाई के बाद पाकिस्तान ने ही युद्ध विराम की गुहार लगायी थी।

फिर यहां यह सवाल उठता है कि जब हम युद्ध में गये ही नहीं, जब हमने सीमित कार्रवाइयों से ही अपने लक्ष्य हासिल कर लिये, फिर मुल्ला मुनीर की फौज की गुहार को सुनना ही उस राष्ट्र का धर्म होना चाहिए, जो सनातन की नींव पर खड़ा है। नरेंद्र मोदी की सरकार ने वही किया है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 2008 में मुंबई में 26/11 के हमलों में इन्हीं इस्लामी आतंकियों ने 166 जानें ली थीं। हम कुछ नहीं कर पाये थे। उस समय के हमारे रक्षा मंत्री कहते थे कि हथियार खरीदने को पैसे नहीं हैं। नरेंद्र मोदी ने 11 सालों की सत्ता में ही इस स्थिति को पूरी तरह पलट दिया है। सर्जिकल स्ट्राइक हो, एयर स्ट्राइक हो या फिर आॅपरेशन सिंदूर, हमने बताया है कि हम कभी भी पाकिस्तान का उसके घर में घुसकर उपचार कर सकते हैं और वह हमारा कुछ नहीं कर सकता है। हमास आतंकियों की मिसाइलों को निष्फल करने वाले इजरायल के आयरन डोम को देखने वाली आंखों ने पहली बार हमारी ताकत को देखी है। यह बताता है कि इन 11 सालों में रक्षा के क्षेत्र में हम कितने आत्मनिर्भर, उन्नत और ताकतवर हुए हैं। यही कारण है कि जब पाकिस्तान ड्रोन और मिसाइल दाग रहा था, हम सब अपने घरों में चैन की नींद सो रहे थे। सुबह जब आंख खुलती थी, तो पता चलता था कि दिल्ली पर दागे गये मिसाइल को रास्ते में ही हमारी सेना ने मार गिराया है। ऐसे में हमें उन पार्टियों, कथित बुद्धिजीवियों, कलाकारों की प्रतिक्रियाओं की चिंता ही नहीं होनी चाहिए, जिनके बयानों का इस्तेमाल पाकिस्तान की तरफ से भारत को बदनाम करने के लिए किया गया है।

वैसे भी यह पारंपरिक युद्ध का जमाना नहीं है। हम सदैव युद्धकाल में ही जी रहे हैं। मोदी सरकार ने स्पष्ट भी कर दिया है कि अब से आतंकी हमला भी युद्ध माना जायेगा। युद्ध विराम की घोषणा के चंद घंटों बाद ही संघर्ष विराम के टूटने की भी खबरें आ रही हैं। इसलिए दुश्मन घर के भीतर का हो या बाहर का, उसका इलाज होना निश्चित है। यह दूसरी बात है कि वह समय आपकी आकांक्षाओं पर आज फिट नहीं बैठता। पर हम जिस दौर में जी रहे हैं, उसमें युद्ध विराम जैसा कुछ नहीं होता। लेकिन यह भी सच है कि भारत को इतनी जल्दी पाकिस्तान पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह मुल्क उसके लायक नहीं है। आतंकवाद के पोषक के रूप में पूरी दुनिया को परेशान करनेवाले पाकिस्तान का अस्तित्व ही भारत विरोध पर टिका हुआ है, तो ऐसे दुश्मन को हमेशा के लिए खत्म कर देना ही सही होगा। भारत को अमेरिका के राष्टÑपति डोनाल्ड ट्रंप के झांसे में भी नहीं आना चाहिए। उनका मिजाज क्षण-क्षण में बदलता है। उन्होंने दुनिया में अपनी बादशाहत कायम करने के लिए आगे बढ़ कर भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम की घोषणा कर दी। अगर सीज फायर पर दिन में ही डीजीएमओ स्तर पर सहमति बन गयी थी, तो भारत ने ट्रंप के ट्वीट के बाद सीज फायर की घोषणा क्यों की। इसे लेकर लोग असमंजस में हैं। वे सच्चाई जानना चाहते हैं। अगर पीएम ने खुद सामने आकर उस सच को जनता से नहीं बताया, तो उनकी इमेज को नुकसान होगा। क्योंकि देश के लोग ट्रंप के ट्वीट से गुस्से में हैं। वे तो यहां तक कह रहे हैं कि लोगों ने मोदी जी की उस घोषणा को शिरोधार्य कर लिया जिसमें उन्होंने कहा था कि ऐसी कार्रवाई करेंगे कि कल्पना से परे होगी। लेकिन पहले ट्रंप ने ऐसे समय में सीज फायर की घोषणा कर दी, जब हर भारतीय पाकिस्तान का खात्मा चाहता है। सेना जंग के मैदान में थी। अभी भी देर नहीं हुई है। पाकिस्तान के खिलाफ भारत को युद्ध नीति बदलने की जरूरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ट्रंप और पाकिस्तान की चाल को समझ रहे होंगे और आनेवाले समय में पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठायेंगे। गोली के बदले गोला की नीति ही पाकिस्तान के लिए फिट है।

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