विशेष
बलूच नेता मीर यार बलूच ने पाकिस्तान से आजादी का ऐलान कर दिया
बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा नहीं, समर्थन करे भारत
पाकिस्तान का 44 प्रतिशत हिस्सा कवर करता है बलूचिस्तान
पीएम मोदी अकेले नहीं, आपके साथ छह करोड़ बलूच देशभक्तों का समर्थन

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बलूच नेता मीर यार बलूच ने बुधवार को पाकिस्तान से बलूचिस्तान की आजादी का ऐलान किया। उन्होंने इसके पीछे दशकों से बलूच लोगों के मानवाधिकार हनन, किडनैपिंग और हिंसा का हवाला दिया। मीर यार बलूच ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट कर कहा कि बलूचिस्तान के लोगों ने अपना ह्यराष्ट्रीय फैसलाह्ण दे दिया है और दुनिया को अब चुप नहीं रहना चाहिए। आओ हमारा साथ दो। उन्होंने लिखा कि बलूच लोग सड़कों पर हैं और यह उनका राष्ट्रीय फैसला है कि बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है। दुनिया अब और मूक दर्शक नहीं रह सकती। उन्होंने भारत और ग्लोबल समुदाय से बलूचिस्तान की आजादी के लिए मान्यता और समर्थन मांगा। मीर यार ने भारतीय मीडिया, यूट्यूबर्स, इन्फ्लुएंसर्स और भारतीय बुद्धिजीवियों से अपील की कि वो बलूचों को पाकिस्तान के लोग न कहें। हम पाकिस्तानी नहीं, बलूचिस्तानी हैं। पाकिस्तान के अपने लोग पंजाबी हैं, जिन्हें कभी हवाई बमबारी, किडनैपिंग या नरसंहार का सामना नहीं करना पड़ा। उन्होंने पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर पीओके पर भारत के रुख का समर्थन किया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय से पाकिस्तान पर इस इलाके को खाली करने के लिए दबाव डालने की अपील की। बलूच नेता मीर यार ने कहा कि भारत पाकिस्तानी सेना को हरा सकता है। अगर पाकिस्तान ने ध्यान नहीं दिया, तो खूनखराबे के लिए सिर्फ पाकिस्तानी सेना के लालची जनरल जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इस्लामाबाद पीओके के लोगों को ढाल के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है और 44 फीसदी हिस्सा कवर करता है। जर्मनी के आकार का होने का बावजूद यहां की आबादी सिर्फ डेढ़ करोड़ है, जर्मनी से 7 करोड़ कम। बलूचिस्तान तेल, सोना, तांबा और अन्य खदानों से सम्पन्न है। इन संसाधनों का इस्तेमाल कर पाकिस्तान अपनी जरूरतें पूरी करता है। इसके बाद भी ये इलाका सबसे पिछड़ा है। यही वजह है कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ नफरत बढ़ रही है। पाकिस्तान का कब्जा होने के बाद से बलूचिस्तान में 5 बड़े विद्रोह हुए हैं। सबसे हालिया विद्रोह 2005 में शुरू हुआ था जो आज भी जारी है। इस बीच बलूचिस्तान में चीन की एंट्री हुई। बलूचिस्तान, चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का एक अहम हिस्सा है। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ह्यबेल्ट एंड रोड इनीशिएटिवह्ण का पार्ट है। बलूचिस्तान में एक ग्वादर पोर्ट है, जो इस प्रोजेक्ट में सबसे खास जगह माना जाता है। चीन, पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को शिनजिंयाग से जोड़ने के लिए अब तक 46 अरब डॉलर खर्च कर चुका है। वह अरब देशों के संसाधनों को अपने देश तक लाने के लिए ग्वादर पोर्ट पर इतना खर्च कर रहा है। चीन यहां पर सड़कों को चौड़ा कर रहा है और हवाई पोर्ट बनाने में जुटा है। इसका विरोध बलूच कर रहे हैं। उन्हें पता है कि यह सब उनका अस्तित्व खत्म करने के लिए हो रहा है। पाकिस्तान ने उनपर सिर्फ जुल्म किये हैं। उसने शारीरिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, मानसिक हर तरह से चोट दिया है। क्या है बलूचिस्तान की दास्तान और कैसे वह अपनी आजादी के लिए विद्रोह कर रहा है बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

आधुनिक बलूचिस्तान का इतिहास 150 साल पुराना
आधुनिक बलूचिस्तान की कहानी 1876 से शुरू होती है। तब बलूचिस्तान पर कलात रियासत का शासन था। भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश हुकूमत शासन कर रही थी। इसी साल ब्रिटिश सरकार और कलात के बीच संधि हुई। संधि के मुताबिक अंग्रेजों ने कलात को सिक्किम और भूटान की तरह प्रोटेक्टोरेट स्टेट का दर्जा दिया। यानी भूटान और सिक्किम की तरह कलात के आंतरिक मामलों में ब्रिटिश सरकार का दखल नहीं था, लेकिन विदेश और रक्षा मामलों पर उसका नियंत्रण था। 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप में आजादी की प्रक्रिया की शुरूआत हुई। भारत और पाकिस्तान की तरह कलात में भी आजादी की मांग तेज हो गयी। जब 1946 में ये तय हो गया कि अंग्रेज भारत छोड़ रहे हैं, तब कलात के खान यानी शासक मीर अहमद खान ने अंग्रेजों के सामने अपना पक्ष रखने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना को सरकारी वकील बनाया। बलूचिस्तान नाम से एक नया देश बनाने के लिए 4 अगस्त 1947 को दिल्ली में एक बैठक बुलायी गयी। इसमें मीर अहमद खान के साथ जिन्ना और जवाहर लाल नेहरू भी शामिल हुए। बैठक में जिन्ना ने कलात की आजादी की वकालत की। बैठक में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भी माना कि कलात को भारत या पाकिस्तान का हिस्सा बनने की जरूरत नहीं है। तब जिन्ना ने ही ये सुझाव दिया कि चार जिलों- कलात, खरान, लास बेला और मकरान को मिलाकर एक आजाद बलूचिस्तान बनाया जाये।

11 अगस्त 1947 को बलूचिस्तान अलग देश बना, ब्रिटेन ने लगाया अड़ंगा
11 अगस्त 1947 को कलात और मुस्लिम लीग के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इसके साथ ही बलूचिस्तान एक अलग देश बन गया। हालांकि इसमें एक पेंच ये था कि बलूचिस्तान की सुरक्षा पाकिस्तान के हवाले थी। आखिरकार कलात के खान ने 12 अगस्त को बलूचिस्तान को एक आजाद देश घोषित कर दिया। बलूचिस्तान में मस्जिद से कलात का पारंपरिक झंडा फहराया गया। कलात के शासक मीर अहमद खान के नाम पर खुतबा पढ़ा गया। लेकिन आजादी घोषित करने के ठीक एक महीने बाद 12 सितंबर को ब्रिटेन ने एक प्रस्ताव पारित किया और कहा कि बलूचिस्तान एक अलग देश बनने की हालत में नहीं है। वह अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियां नहीं उठा सकता।

अपनी ही बात से पलटे जिन्ना, विलय का दिया प्रस्ताव
कलात के खान ने अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान का दौरा किया। उन्हें उम्मीद थी कि जिन्ना उनकी मदद करेंगे। जब खान कराची पहुंचे तो वहां मौजूद हजारों बलूच लोगों ने उनका स्वागत बलूचिस्तान के राजा की तरह किया, लेकिन उनका स्वागत करने पाकिस्तान का कोई बड़ा अधिकारी नहीं पहुंचा। पाकिस्तान के इरादे में बदलाव का यह बड़ा संकेत था। अपनी किताब ह्यबलूच राष्ट्रवादह्ण में ताज मोहम्मद ब्रेसीग ने जिन्ना और खान के बीच बैठक का जिक्र किया है। बैठक में जिन्ना ने खान से बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय करने की बात कही। कलात के शासक ने बात नहीं मानी। उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान कई जनजातियों में बंटा देश है। वह अकेले यह तय नहीं कर सकते। बलूचिस्तान आजाद मुल्क रहेगा या पाकिस्तान के साथ जाएगा ये वहां की जनता तय करेगी। वादे के मुताबिक खान ने बलूचिस्तान जाकर विधानसभा की बैठक बुलाई जिसमें पाकिस्तान से विलय का विरोध किया गया। पाकिस्तान का दबाव बढ़ने लगा था। मामले को समझते हुए खान ने कमांडर-इन-चीफ ब्रिगेडियर जनरल परवेज को सेना जुटाने और हथियार गोला-बारूद की व्यवस्था करने को कहा। जनरल परवेज हथियार हासिल करने के लिए दिसंबर 1947 में लंदन पहुंचे। ब्रिटिश सरकार ने कहा कि पाकिस्तान की मंजूरी के बिना उन्हें कोई सैन्य सहायता नहीं मिलेगी। जिन्ना मामले को भांप गए थे। उन्होंने 18 मार्च 1948 को खारन, लास बेला और मकरान को अलग करने की घोषणा की। दुश्का एच सैय्यद ने अपनी किताब ह्यद एक्सेशन आॅफ कलात: मिथ एंड रियलिटीह्ण में लिखा है कि जिन्ना के एक फैसले से कलात चारों तरफ से घिर गया। जिन्ना ने कई बलूच सरदारों को अपनी तरफ मिला लिया, जिससे खान के पास कोई चारा नहीं रहा। इसके बाद खान ने भारतीय अधिकारियों और अफगान शासक से मदद के लिए अनुरोध किया, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। 27 मार्च, 1948 को आॅल इंडिया रेडियो ने राज्य विभाग के सचिव वी.पी. मेनन के हवाले से कहा कि कलात के खान ने भारत से विलय के लिए संपर्क किया था, लेकिन भारत सरकार ने ये मांग ठुकरा दी। हालांकि बाद में तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल और फिर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस बयान का खंडन किया।

227 दिन आजाद रहा बलूचिस्तान
26 मार्च को पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान में घुस गयी। अब खान के पास जिन्ना की शर्तें मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, लेकिन इस कब्जे से बलूचिस्तान की एक बड़ी आबादी के मन में पाकिस्तान के लिए नफरत पैदा हो गई। बलूचिस्तान सिर्फ 227 दिनों तक ही आजाद देश बना रह सका। इसके बाद खान के भाई प्रिंस करीम खान ने बलूच राष्ट्रवादियों का एक दस्ता तैयार किया। उन्होंने 1948 में पाकिस्तान के खिलाफ पहला विद्रोह शुरू किया। पाकिस्तान ने 1948 के विद्रोह को कुचल दिया। करीम खान समेत कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। विद्रोह को तब भले ही दबा दिया गया, लेकिन ये कभी खत्म नहीं हुआ। बलूचिस्तान की आजादी के लिए शुरू हुए इस विद्रोह को नए नेता मिलते रहे। 1950, 1960 और 1970 के दशक में वे पाकिस्तान सरकार के लिए चुनौती बनते रहे। 2000 तक पाकिस्तान के खिलाफ चार बलूच विद्रोह हुए।

पाकिस्तानी सेना के कैप्टन ने बलूच डॉक्टर का रेप किया, शुरू हुआ पांचवा विद्रोह
2005 में 2 और 3 जनवरी की दरम्यानी रात थी। बलूचिस्तान के सुई इलाके में पाकिस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड अस्पताल में काम करने वाली एक महिला डॉक्टर शाजिया खालिद अपने कमरे में सो रही थी। तभी एक पाकिस्तानी सेना के कैप्टन ने उसका रेप किया। कैप्टन को गिरफ्तार करने के बजाय उसका बचाव किया गया, क्योंकि वह राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का खास था। जांच के नाम पर पहले पीड़ित को एक साइकेट्रिक क्लिनिक भेज दिया गया। उस पर ही गलत इल्जाम लगाए गए। जांच के नाम पर लीपापोती हुई। मजबूर होकर शाजिया और उनके पति पाकिस्तान छोड़कर ब्रिटेन चले गए। यह घटना बलूचिस्तान में हुई। तब बुगती जनजाति के मुखिया नवाब अकबर खान बुगती ने इसे अपने कबीले के संविधान का उल्लंघन बताया। बुगती पहले पाकिस्तान के रक्षा मंत्री रहे चुके थे। लेकिन इस वक्त वे बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के लीडर बन चुके थे और बलूचिस्तान के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे थे। इस घटना ने बुगती को पाकिस्तान सरकार से बदला लेने का मौका दे दिया। उन्होंने किसी भी कीमत पर बदला लेने की कसम खाई। बलूच विद्रोहियों ने सुई गैस फील्ड पर रॉकेटों से हमला कर दिया। कई सैनिक मारे गए। जवाब में मुशर्रफ ने मुकाबले के लिए 5000 और सैनिक भेज दिए। इस तरह बलूचों के पांचवें विद्रोह की शुरूआत हुई।

बुगती की हत्या ने बलूचिस्तान की सभी जनजातियों को एकजुट कर दिया
17 मार्च की रात पाकिस्तानी सेना ने अकबर बुगती के घर पर बमबारी की। इसमें 67 लोग मारे गए। अकबर बुगती के घरों के लोगों के मारे जाने से बलूच और भड़क गए। उनका पाकिस्तान सरकार के खिलाफ संघर्ष और तेज हो उठा। हालांकि 26 अगस्त 2006 को भांबूर पहाड़ियों में छुपे अकबर बुगती और उनके दर्जनों साथियों की बमबारी कर हत्या कर दी गयी। बुगती की हत्या ने बलूचिस्तान की सभी जनजातियों को एकजुट कर दिया। बलूच लड़ाकों ने इसके बदले पाकिस्तान के कई इलाकों पर हमले किए। तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की हत्या की भी कोशिश की गई। बुगती के बाद बीएलए का नेतृत्व नवाबजादा बालाच मिरी ने संभाला, लेकिन साल 2007 में उसे भी पाकिस्तानी सेना ने मार डाला। बीएलए ने साल 2009 से पंजाबियों को निशाना बनाना शुरू किया। इस साल बलूचिस्तान में 500 से ज्यादा पंजाबी मार दिए गए। इसके बाद पाकिस्तान की सेना ने सिस्टमैटिक तरीके से बलूचों को गायब करना शुरू किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले 15 साल में पाकिस्तानी सेना ने 5 हजार से ज्यादा बलूचों को गायब कर दिया है। इन्हें मार दिया गया है या फिर इन्हें ऐसी जगह कैद कर रखा है, जिसकी कोई खबर नहीं है।

बलूचिस्तान का इतिहास
साल 1540 की बात है, भारत के पहले मुगल शासक बाबर के बेटे हुमायूं को बिहार के शेरशाह सूरी ने युद्ध में हरा दिया। हुमायूं भारत से भाग खड़ा हुआ। उसने फारस यानी ईरान में शरण ली। 1545 में शेरशाह सूरी की मौत हो गयी। मौके को भांपकर हुमायूं ने भारत वापस लौटने की योजना बनाना शुरू कर दिया। तब बलूचिस्तान के कबीलाई सरदारों ने उसके इस प्लान में मदद की। बलूचों का साथ पाकर 1555 में हुमायूं ने दिल्ली पर फिर से नियंत्रण कर लिया। साल 1659 में मुगल बादशाह औरंगजेब दिल्ली का शासक बना। उसकी सत्ता पश्चिम में ईरान के बॉर्डर तक थी, लेकिन दक्षिण में उसे लगातार मराठों की चुनौतियों से जूझना पड़ रहा था। तब बलूची सरदारों ने मुगल हुकूमत के खिलाफ विद्रोह छेड़ा और बलूच लीडर मीर अहमद ने 1666 में बलूचिस्तान के दो इलाकों कलात और क्वेटा को औरंगजेब से छीन लिया। आज जहां बलूचिस्तान है, उस जगह का इतिहास करीब 9 हजार साल पुराना है। तब यहां मेहरगढ़ हुआ करता था। ये सिंधु सभ्यता का एक प्रमुख शहर था। लगभग 3 हजार साल पहले जब सिंधु सभ्यता का अंत हुआ तो यहां के लोग सिंध और पंजाब के इलाके में बस गए। इसके बाद ये शहर वैदिक सभ्यता के प्रभाव में आया। यहां पर हिंदुओं की प्रमुख शक्तिपीठ में से एक- हिंगलाज माता का मंदिर भी है, जिसे पाकिस्तान में नानी का हज भी कहा जाता है। समय के साथ ये शहर बौद्ध धर्म का भी एक प्रमुख केंद्र बना। सातवीं सदी में जब अरब हमलावरों ने इस इलाके पर हमला किया, तो यहां पर इस्लाम धर्म का प्रभाव बढ़ा।

बलूचिस्तान को विदेशी ताकतों की मदद के कब्जा किया गया
मीर यार बलूच के मुताबिक दुनिया को बलूचिस्तान पर पाकिस्तान के दावों को स्वीकार नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान को विदेशी ताकतों की मदद से जबरन कब्जा किया गया था। बलूचिस्तान में लंबे वक्त से मानवाधिकार हनन हो रहा है। पाकिस्तानी सेना और पुलिस लोगों पर हमले करती है। यहां विदेशी मीडिया की पहुंच बहुत सीमित है, इस वजह से बलूचिस्तान से जुड़ी खबरें बाहर नहीं आ पाती हैं। बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) एक संगठन है जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहा है। इसकी स्थापना 2000 के दशक की शुरूआत में हुई और इसे कई देशों द्वारा आतंकी संगठन भी घोषित किया गया है। बीएलए का दावा है कि बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का शोषण हो रहा है और बलूच लोगों के अधिकार छीन लिये गये हैं। यह संगठन पाकिस्तानी सेना, सरकार और चीनी प्रोजेक्ट्स जैसे सीपीइसी को निशाना बनाता रहा है। बीएलए अपनी गुरिल्ला शैली के लिए जाना जाता है। यानी पहाड़ी इलाकों में छिपकर सेना पर हमला करना और तुरंत वापस लौट भी जाता है। वहीं पाक सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने कुछ दिन पहले एक बयान में कहा कि बलूचिस्तान में महज 1500 लोगों की वजह से अशांति फैली है और वो पाकिस्तान की लाखों की प्रोफेशनल फौज का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। ब्रिटिश ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट पीटर टैचेल का मानना है कि पाकिस्तान बलूचिस्तान की स्वतंत्रता में देरी कर सकता है, लेकिन इसे हमेशा के लिए रोका नहीं जा सकता। उन्होंने बलूच संघर्ष की तुलना वियतनाम के आंदोलन से की है। बलूच लेखक मीर यार का कहना है कि बलूचिस्तान अब आजादी से सिर्फ दो कदम दूर है। उन्होंने इसकी 1971 के बांग्लादेश की स्थिति से तुलना करते हुए कहा कि पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसियां इस वास्तविकता को स्वीकार नहीं कर रही हैं।

पीएम मोदी अकेले नहीं, आपके साथ छह करोड़ बलूच देशभक्तों का समर्थन
मीर ने दावा किया कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान में पैदा हुए तनाव के बीच, बलूचिस्तान और उसके लोगों ने भारत के प्रति समर्थन जताया है। उन्होंने कहा बलूचिस्तान लोकतांत्रिक गणराज्य के लोग भारत के लोगों को अपना पूरा समर्थन देते हैं। चीन पाकिस्तान की मदद कर रहा है, लेकिन बलूचिस्तान और उसके लोग भारत की सरकार के साथ हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अकेले नहीं हैं, आपके पास 6 करोड़ बलूच देशभक्तों का समर्थन है। भारत के लोगों का जताया आभार : मीर यार ने भारत और यहां के लोगों का भी आभार जताया है। मीर ने कहा, बलूचिस्तान के लोगों को बिना शर्त नैतिक समर्थन देने के लिए मैं भारत के लोगों का शुक्रगुजार हूं। बलूचिस्तान का इतिहास जब भी लिखा जाएगा, आपके योगदान का जिक्र स्वर्णिम अच्छरों में होगा। भारत की शांति और समृद्धि की कामना करता हूं।

 

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