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    Home»विशेष»वर्चुअल राजनीति के फायदे तो हैं, पर खतरे भी बहुत हैं
    विशेष

    वर्चुअल राजनीति के फायदे तो हैं, पर खतरे भी बहुत हैं

    azad sipahiBy azad sipahiJune 6, 2021No Comments5 Mins Read
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    कोरोना संक्रमण काल ने राजनीति को एक्चुअल से वर्चुअल का चोला ओढ़ने पर मजबूर किया है। बढ़ते संक्रमण के साथ ही सियासी गतिविधियों ने डिजिटल ट्रैक तो पकड़ा ही, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर राजनीतिक दलों की सक्रियता भी अचानक बढ़ गयी। वर्चुअल संवाद और रैलियों का दौर तेज हो चला। इससे विभिन्न राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को सहूलियत तो हुई है, पर इसके खतरे भी बहुत हैं। वर्चुअल होने का सबसे बड़ा खतरा तो यही है कि इससे राजनीति और राजनेता जनता से कटने लगते हैं। और जनता से कटना राजनीति और राजनेताओं के लिए अपनी जड़ों से कटने से कम नहीं है। कोरोना काल में राजनीतिक दलों और नेताओं के वर्चुअल होने के संभावित खतरों और फायदों के साथ क्षेत्र में अपनी दमदार उपस्थिति से नयी उम्मीद जगानेवाले नेताओं के कार्यों को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।

    वाकया 30 मई का है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के सात साल पूरे होने पर जब प्रदेश भाजपा के नेता सेवा कार्यों में जुटे हुए थे, भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने अपने विधानसभा क्षेत्र राजधनवार में सेवा दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को आॅनलाइन संबोेधित किया। इसके तीसरे दिन झामुमो के केंद्रीय कार्यालय में आयोजित प्रेसवार्ता में झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने उन पर निशाना साधते हुए कहा कि बाबूलाल मरांडी 2019 में राजधनवार सीट से चुनाव जीतने के बाद कभी क्षेत्र में गये ही नहीं।
    सुप्रियो भट्टाचार्य के बाबूलाल मरांडी पर लगाये आरोपों में कितनी सच्चाई है, यह तो वही जानें, पर बाबूलाल मरांडी अकेले नहीं हैं, जो कोरोना काल में एक्चुअल के साथ वर्चुअल उपस्थिति से अपनी राजनीति साध रहे हों। भाजपा के भी कई नेता वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस के साथ वर्चुअल कार्यक्रमों को कोरोना काल में अपने लिए मुफीद मानते रहे। और भाजपा ही क्यों, सत्ताधारी गठबंधन के घटक झामुमो और कांग्रेस भी इसके अपवाद नहीं हैं।

    इसलिए राजनीति ने पकड़ा डिजिटल ट्रैक
    कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने जिस तरह हजारों लोगों को अपनी जान गंवाने पर मजबूर किया, उसके बाद राजनेताओं और राजनीतिक दलों के लिए वर्चुअल राजनीति एक तरह से मजबूरी बनती चली गयी। हालांकि पहली लहर से ही राजनेताओं और राजनीति के क्रियाकलाप और संवाद की शैली बदलने लगी थी। दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी का नारा जोर पकड़ रहा था और इसके साथ लोग घरों में सिमटने लगे थे। उनकी उपस्थिति सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर थी और उनसे कनेक्ट होने के लिए राजनेता और राजनीति भी डिजिटल ट्रैक पर सवार हो गये।
    अपनत्व का रिश्ता खत्म होने लगा

    राजनीति के वर्चुअल होने से नेताओं और जनता के बीच वन टू वन संवाद की गुंजाइश कम हो गयी। जनप्रतिनिधियों के क्षेत्र में उपस्थित होने पर जनता और कार्यकर्ताओं के साथ अपनत्व का जो रिश्ता कायम होता था, वो कहीं टूटने लगा। वीडियो जारी कर नेताजी ने अपनी बात तो कह दी, पर जनता उन तक अपनी बात कैसे पहुंचायेगी। कार्यकर्ताओं की समस्याओं का निदान कैसे होेगा। वे लोग, जो सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और जनप्रतिनिधियों से अपनी समस्या के समाधान की उम्मीद लगाये हैं, उनकी आवाज इस वर्चुअल राजनीति में दबने लगी। डिजिटल मीडियम की अपनी सीमाएं हैं। इंटरनेट और कंप्यूटर की पहुंच अब भी समाज के हर व्यक्ति तक नहीं है। ऐसे में समाज के हाशिये में खड़े लोगों की परेशानी बढ़ी।
    फायदे भी बहुत हैं
    ऐसा नहीं कि वर्चुअल राजनीति से सिर्फ नुकसान ही हुआ। वर्चुअल रैलियों और कार्यक्रमों ने राजनीति को अभिव्यक्ति का एक नया विकल्प दिया। बिना पत्रकारों की भीड़ के प्रेसवार्ताएं होने लगीं। मंच की जगह पर्दे पर नेताजी की आॅनस्क्रीन उपस्थिति रैलियों को संबोधित करने के लिए पर्याप्त हो गयी। इसका सबसे बड़ा फायदा तो यह हुआ कि कोरोना संक्रमण के फैलने की इसमें कोई गुंजाइश ही नहीं थी। वक्ता आॅनलाइन था, तो श्रोता भी आॅनलाइन होने लगे। पर इसी वर्चुअल राजनीति के दौर में कुछ नेताओं ने अपनी कार्यशैली से अलग छाप छोड़ी। कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच भाजपा सांसद संजय सेठ ने जिस तरह से जनता और क्षेत्र में उपस्थिति कायम रखी, रांची लोकसभा क्षेत्र के सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में उन्होंने जिस तरह से उपस्थिति दर्ज करायी, वह काबिले तारीफ है। रांची शहरी क्षेत्र की जनता के लिए उन्होेंने हजारों नमो आहार के पैकेट तो उपलब्ध कराये ही, गांव और देहात में स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति क्या है, यह भी उन्होंने क्षेत्रवार दौरा करके देखा। यही नहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में भी न सिर्फ उन्होंने जनता में राशन बांटा, बल्कि उन्हें मेडिकल किट भी उपलब्ध कराया। हटिया के रेलवे अस्पताल की सुध ली, तो सिल्ली के स्वास्थ्य केंद्र का भी जायजा लिया। हालांकि भाजपा के राज्यसभा सांसदों में इस किस्म की सक्रियता दिखायी नहीं दी। गोड्डा सांसद डॉ निशिकांत दुबे भी कोरोना संक्रमण काल में सक्रिय दिखे। क्षेत्र के जरूरतमंद लोगों के लिए भोजन के इंतजाम से लेकर उन्होंने दवाई की व्यवस्था कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अस्पतालों में आॅक्सीजन सिलिंडर से लेकर कार्यकर्ताओं की जरूरतों को पूरा करने की दिशा में वे लगातार प्रयासरत रहे। जामताड़ा विधायक डॉ इरफान अंसारी ने तो कोरोना संक्रमण काल में अपने डॉक्टर होने का फर्ज पूरी तरह निभा दिया। उन्होंने न सिर्फ ओपीडी चलाकर लोगों को सेवा दी, बल्कि क्षेत्र में राहत कार्य चलाया और जनता की मदद की। स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता तो कोरोना के खतरे के बीच न सिर्फ डटकर काम करते रहे, बल्कि अस्पतालों में जनता को बेहतर सुविधा मिले, इसके लिए भी सतत प्रयत्नशील रहे। जमशेदपुर पूर्वी विधायक सरयू राय ने कोरोना की दूसरी लहर में न सिर्फ कोरोना को मात दी, बल्कि क्षेत्र के जरूरतमंदों को भोजन का पैकेट उपलब्ध कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने जनता के लिए विधायक निधि से एंबुलेंस की व्यवस्था तो की ही, मोरहदा जलापूर्ति योजना से जुस्को का बिजली कनेक्शन दिलवाने का दायित्व भी निभाया। यह तो सिर्फ बानगी है, कई नेताओं ने शानदार काम किया।

    इन नेताओं की वास्तविक उपस्थिति बिना संदेह बेहद प्रभावशाली रही और इसे लंबे समय तक याद किया जायेगा। इसके विपरीत वर्चुअल माध्यमों से जनता के बीच उपस्थित होनेवाले नेताओं के सामने एक बार फिर जनता से जुड़ने की चुनौती होगी, जिन्हें पूरा करना इस बार पहले जैसा आसान नहीं होगा।

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