विशेष
-शीर्ष स्तर पर मंथन का सिलसिला हुआ शुरू, तो पार्टी के भीतर मची हलचल
-चुनावी राज्यों के साथ आम चुनाव की तैयारियों में जुट गयी भगवा पार्टी
अगले साल होनेवाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर भाजपा में शीर्ष स्तर पर बैठकों का दौर शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएल संतोष के साथ दो दिन पहले करीब पांच घंटे तक बैठक कर साफ कर दिया कि पार्टी पूरी तरह चुनावी मोड में आ चुकी है। इस बैठक को लोकसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर पार्टी को नया रूप-रंग और कलेवर देने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। बैठक के बाद संगठन के साथ-साथ मोदी कैबिनेट में फेरबदल के कयास लगाये जा रहे हैं। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की इस बैठक में संगठनात्मक पहलुओं को लेकर विस्तार से चर्चा की गयी। लोकसभा और पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के करीब आने के चलते पार्टी ‘जाति संतुलन’ और संगठन में फेरबदल को लेकर चर्चा कर रही है। इस ‘महामंथन’ ने पार्टी के भीतर नये किस्म की हलचल मचा दी है। बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय संगठन से लेकर कई प्रदेशों में संगठन में बदलाव का खाका तैयार किया गया है, जिसकी घोषणा पार्टी आनेवाले दिनों में कर सकती है। भाजपा के ‘मिशन 2024’ के तहत शीर्ष नेतृत्व का यह ‘महामंथन’ आनेवाले दिनों में अपना असर जरूर दिखायेगा। इस बैठक और राज्यों में भाजपा की अंदरूनी स्थिति का आकलन कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
देश में 17वां आम चुनाव होने में अब एक साल से कम का समय बाकी रह गया है। इसलिए पिछले दो आम चुनावों में प्रचंड बहुमत हासिल कर सत्ता में आयी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा पूरी तरह चुनावी मोड में आ चुकी है। पिछले कुछ दिनों में भाजपा के शीर्ष स्तर की बैठकों की एक शृंखला ने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले आखिरी कैबिनेट फेरबदल, संभावित संगठनात्मक परिवर्तन और जाति संतुलन को लेकर पार्टी में अटकलें तेज कर दी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और पार्टी के संगठन महासचिव बीएल संतोष ने दो दिन पहले सरकार में संभावित बदलावों को लेकर पांच घंटे तक प्रधानमंत्री आवास में बैठक की। जुलाई 2021 के बाद से अब तक मोदी कैबिनेट में कोई फेरबदल नहीं किया गया है। बैठक में पार्टी नेतृत्व ने 2024 के लोकसभा चुनावों की रणनीतियों पर भी चर्चा की और फैसला लिया गया कि लोकसभा की सभी 543 सीटों को तीन क्षेत्रों-उत्तर, पूर्व और दक्षिण में बांट दिया जायेगा। इसके बाद इन क्षेत्रों के हिसाब से रणनीति को लेकर जुलाई की शुरूआत से बैठक शुरू होने की उम्मीद है। कुछ राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों का कार्यकाल भी समाप्त होने के करीब है। ऐसे में उन पदों पर भी नियुक्ति काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। माना जा रहा है कि आम चुनाव से पहले पार्टी संगठन को और अधिक लड़ाकू बनाने के लिए अधिक ‘अनुभवी चेहरों’ को लाने की जरूरत पर जोर दे रही है और बैठक में इस पर भी चर्चा की गयी। यह बैठक ऐसे समय में हुई है, जब लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय है और पांच महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में नवंबर के आसपास चुनाव होनेवाले हैं।
जुलाई 2021 में मोदी कैबिनेट में आखिरी फेरबदल की गयी थी। इसमें छह कैबिनेट मंत्रियों- रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, डॉ हर्षवर्धन, डीवी सदानंद गौड़ा और थावरचंद गहलोत सहित 12 दिग्गजों को हटा दिया गया था। अब, महत्वपूर्ण राज्यों में चुनावों को देखते हुए एक राजनीतिक संदेश और जातीय संतुलन की आवश्यकता को देखते हुए भाजपा पार्टी संगठन और सरकार में अनुभवी चेहरों को लाने पर विचार कर सकती है। अमेरिका की अपनी यात्रा से लौटने के तुरंत बाद पीएम मोदी ने इस सप्ताह की शुरूआत में भोपाल में अपनी पार्टी के बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत करते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) का मुद्दा उठा कर अगले लोकसभा अभियान की रूपरेखा तैयार कर दी। यूसीसी भाजपा के 2019 के घोषणापत्र में किये गये वादे में एक प्रमुख अधूरा वादा है।
संघ से मिली हरी झंडी
पीएम मोदी के साथ बुधवार की बैठक से पहले जेपी नड्डा, अमित शाह और बीएल संतोष ने जून के पहले सप्ताह में बैठकों की एक और शृंखला में संभावित बदलावों पर चर्चा की थी। इनमें से एक बैठक में, तीनों नेताओं ने आरएसएस के संयुक्त महासचिव और भाजपा और उसके वैचारिक स्रोत के बीच सूत्रधार अरुण कुमार से मुलाकात की। समझा जाता है कि बैठक में कुमार ने संगठन और सरकार में नये चेहरे लाने की जरूरत की बात उठायी। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी पार्टी की राज्य इकाई में संभावित बदलावों पर जून के पहले सप्ताह में भाजपा आलाकमान से मुलाकात की थी।
जहां तक सरकार में बदलाव का सवाल है, तो कयास लगाये जा रहे हैं कि चुनाववाले राज्यों के नेताओं को बड़ी भूमिकाएं दी जा सकती हैं। ठीक-ठाक आदिवासी आबादी वाले राज्य राजस्थान से आलाकमान कैबिनेट में आदिवासी प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर विचार कर सकता है। 2018 में पार्टी को आरक्षित विधानसभा सीटों पर काफी नुकसान हुआ था, जो एक प्रमुख चिंता का विषय है। ऐसा समझा जाता है कि पूर्वी राजस्थान से एक नेता को शामिल करने से जातिगत संतुलन करने और ‘क्षेत्रीय आकांक्षाओं’ को पूरा करने की संभावना है। इसके अलावा कई विभागों को संभालने वाले मंत्री को हटाया भी जा सकता है। यह तय है कि अगर कैबिनेट में फेरबदल होता है, तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना के एक सदस्य को भी जगह मिल सकती है।
भाजपा की कार्य प्रणाली पर नजर रखनेवालों का मानना है कि पार्टी आलाकमान आमतौर पर नियमित बदलावों को लेकर तीन-चार से अधिक बैठकें नहीं करता है, इसलिए वर्तमान घटनाक्रम से यह पता चलता है कि एक बड़ा बदलाव होने वाला है और आगामी चुनावों के लिए एक ‘व्यापक रणनीति’ पर काम चल रहा है। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि कैबिनेट में फेरबदल हो। कुछ महासचिवों को जोड़ा जा सकता है, क्योंकि कुछ मौजूदा महासचिवों का रिपोर्ट कार्ड संतोषजनक नहीं है। उपाध्यक्षों और अग्रिम संगठनों में बदलाव किया जा सकता है। इसके अलावा कुछ राज्यों के प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष भी बदले जा सकते हैं।
हिंदी पट्टी के चुनावी राज्यों पर ध्यान केंद्रित करें
भाजपा नेतृत्व कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली स्थानीय निकाय चुनावों में हार के बाद असमंजस में है। नवंबर में कई विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। तीन राज्य (राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़) सबसे महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे हिंदी पट्टी में हैं। उनके खाते में 65 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से 58 सीटें अभी भाजपा के पास हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ को नये पार्टी अध्यक्ष मिल गये हैं। मध्यप्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है और पार्टी को उन्हें बरकरार रखने पर फैसला लेना है। हालांकि पार्टी आम तौर पर चुनाव वाले राज्य में संगठनात्मक ढांचे में गड़बड़ी नहीं करती है, लेकिन शर्मा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच ‘तालमेल की कमी’ की हालिया रिपोर्ट ने आलाकमान को चिंतित कर दिया है। उधर कर्नाटक भाजपा के अध्यक्ष के पद को भरने की जरूरत है, क्योंकि नलिन कुमार कतील ने अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। पिछले महीने राज्य चुनावों में पार्टी की हार के बाद तीन जुलाई को विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले विपक्ष का नेता चुना जाना भी आवश्यक है। उधर सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी का पद भी खाली पड़ा है।
ऐसे कयास हैं कि भाजपा बदलावों का यह सिलसिला संसद के मॉनसून सत्र से पहले शुरू कर सकती है। संसद का सत्र जुलाई के तीसरे सप्ताह में शुरू होनेवाला है। इससे पहले पार्टी का शीर्ष नेतृत्व एक बार फिर इस बात पर मंथन करेगा। फिलहाल तो पार्टी के भीतर हलचल मची हुई है।