विशेष
-अभिव्यक्ति की आजादी की बात करनेवाले अब फिल्म निर्देशक के पीछे पड़े
-समाधान की तलाश है जरूरी, समस्या छिपाने से मकसद पूरा नहीं हो सकता
भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक राजधानी कहे जानेवाले पश्चिम बंगाल में इन दिनों फिल्म ‘द डायरी आॅफ वेस्ट बंगाल’ के मुद्दे पर हलचल मची हुई है। निर्देशक सनोज मिश्र की इस फिल्म का अभी ट्रेलर ही रिलीज हुआ है, लेकिन इसने ममता बनर्जी को अशांत कर दिया है। ‘कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरल स्टोरी’ के बाद यह तीसरी फिल्म है, जिसके खिलाफ ममता बनर्जी सरकार खुल कर सामने आ गयी है। पिछले ही महीने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घृणा और हिंसा की किसी भी घटना से बचने और राज्य में शांति बनाये रखने के लिए ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म दिखाने पर रोक लगा दी थी, हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी। फिल्मों के प्रति सरकार की इस असहिष्णुता से बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि आखिर अभिव्यक्ति की आजादी की सबसे अधिक पैरवी करनेवाले पश्चिम बंगाल में फिल्मों के प्रति इतनी असहिष्णुता कब और कैसे पैदा हो गयी। आज स्थिति यह हो गयी है कि अभिव्यक्ति की आजादी पर सबसे अधिक पहरा पश्चिम बंगाल में ही है। दुनिया भर में इस बात पर अचरज व्यक्त किया जा रहा है कि बौद्धिक और सांस्कृतिक सृजन की भूमि पश्चिम बंगाल को इस तरह अशांत क्यों कर दिया गया है। ममता सरकार के इस रवैये के खिलाफ अब आवाज उठाने का वक्त आ गया है। आज सच बोलने वालों का गला घोंटने की घटनाओं को देश के सामने लाने की सबसे ज्यादा जरूरत है। वास्तव में राजनीति के इस कुत्सित खेल ने पश्चिम बंगाल की गौरवमयी संस्कृति और परंपरा को मिटा दिया है। कला-संस्कृति, साहित्य, ज्ञान-विज्ञान, धर्म, सिनेमा आदि क्षेत्रों में दुनिया में विशेष पहचान रखने वाला बंगाल आज राजनीतिक हिंसा, जीवित-मृत इंसानों की तस्करी, पशु-पक्षियों की तस्करी, सोना-चांदी और मादक पदार्थों की बड़े पैमाने पर तस्करी के अड्डे के तौर पर जाना जाता है। ‘द डायरी आॅफ वेस्ट बंगाल’ के खिलाफ राज्य सरकार के फैसले की पृष्ठभूमि में पश्चिम बंगाल के बदलते स्वरूप के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
केरल में मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा हिंदू लड़कियों को अपने जाल में फंसा कर उनका धर्मांतरण करा कर उन्हें इस्लामी आतंकवाद के कुएं में धकेलने के मुद्दे पर बनी फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ पर सेकुलर गिरोह का हंगामा अभी थमा भी नहीं है कि एक नयी फिल्म को लेकर वितंडा शुरू हो गया है। यह नयी फिल्म है ‘द डायरी आॅफ वेस्ट बंगाल’। इस फिल्म का ट्रेलर अप्रैल माह के आखिर में जारी हुआ था। एक माह बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने यह कहते हुए फिल्म के निर्देशक सनोज मिश्रा को नोटिस थमा कर तलब कर लिया कि यह फिल्म पश्चिम बंगाल को बदनाम करती है। मानो सच को सच दिखाना अपराध हो। यह अलग बात है कि सनोज मिश्रा ने फिलहाल पश्चिम बंगाल पुलिस के समक्ष पेश होने के लिए एक माह की मोहलत ले ली है। पश्चिम बंगाल सरकार की यह कार्रवाई इस तथ्य के बावजूद है कि ‘द केरल स्टोरी’ के प्रदर्शन पर राज्य में प्रतिबंध लगाने के राज्य सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ पलट दिया, बल्कि राज्य सरकार को बहुत लताड़ भी लगायी।
क्या है ‘द डायरी आॅफ वेस्ट बंगाल’ के ट्रेलर में
दरअसल, ‘द डायरी आॅफ वेस्ट बंगाल’ के ट्रेलर में दावा किया गया है कि पश्चिम बंगाल की सरकार वहां रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को बसा रही है। इसके अलावा इसमें हिंदुओं की हत्या और शरीयत कानून को लेकर भी दावे किये गये हैं। लखनऊ में ट्रेलर लांच करने के मौके पर फिल्म के निर्माता जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिजवी ने कहा था कि पिछले कुछ वर्षों में पश्चिम बंगाल के हालात बेहद खतरनाक होते जा रहे हैं। वहां बड़े स्तर पर बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों को बसाया जा रहा है। उन्होंने कहा था कि वहां की सरकार रोहिंग्याओं को अपना वोट बैंक बना रही है, जिसके तहत इन लोगों के नाम आधार कार्ड और वोटर लिस्ट में डलवाये जा रहे हैं। यही कारण है कि बांग्लादेश से सटे पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी बढ़ती जा रही है। पश्चिम बंगाल में रह रहे हिंदू परिवार इनसे डर कर अपना घर छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। उन पर जो जुल्म किये जा रहे हैं, उसे इस फिल्म में दिखाया गया है। पश्चिम बंगाल की इस सच्चाई को फिल्म के माध्यम से पर्दे पर उतारा गया है। लेखक-निर्देशक सनोज मिश्रा का कहना है कि उनका इरादा राज्य की छवि को खराब करना नहीं है। उन्होंने फिल्म में केवल तथ्य दिखाये हैं, जिन पर गहन शोध किया गया है। करीब दो मिनट 12 सेकेंड के ट्रेलर में पश्चिम बंगाल के हालात की कश्मीर से तुलना की गयी है। बंगाल से सटी बांग्लादेश की सीमा से रोहिंग्या मुसलमानों को कांटेदार बाड़ को पार करके पश्चिम बंगाल में प्रवेश करते दिखाया गया है। राज्य में अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण की राजनीति और इससे अन्य समुदायों को हो रही समस्या दिखायी गयी है। ट्रेलर में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राज्य में सीएए और एनआरसी लागू करने का विरोध करते दिखाया गया है।
निर्देशक ने कहा, मुझे जेल में मारा जा सकता है
आरसीपीसी की धारा 41 के तहत प्राप्त नोटिस के संबंध में निर्देशक सनोज मिश्रा ने कहा कि वह आतंकवादी नहीं हैं। उन्होंने कोई असंवैधानिक काम नहीं किया है। यह फिल्म सत्य घटनाओं पर आधारित है। उनके खिलाफ प्राथमिकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप है। उन्हें पश्चिम बंगाल पुलिस ने तलब किया है। वहां जेल में उन्हें जान से भी मारा जा सकता है। सनोज मिश्रा ने एक फेसबुक पोस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मदद मांगी है। सनोज ने पोस्ट में लिखा है, मेरी फिल्म ‘द डायरी आॅफ वेस्ट बंगाल’ को बिना देखे ट्रेलर के आधार पर बंगाल पुलिस ने मेरे खिलाफ एफआइआर दर्ज कर ली है। मुझे गिरफ्तार कर जेल में मारा जा सकता है। सच बोलने के कारण मुझे प्रताड़ित किया जा रहा है।
ममता सरकार ने असहिष्णुता को बढ़ावा दिया
इन हालातों में लोगों को लग रहा है कि पश्चिम बंगाल में तो कश्मीर की तरह ‘सफाई अभियान’ चल रहा है। किसी राजनीतिक दल के साथ ऐसा नहीं होता कि पंचायत चुनाव में उसके सैकड़ों लोग मार दिये जायें, दर्जनों लोग पेड़ों-खंभों पर टांग दिये जायें। पश्चिम बंगाल में घुसपैठिये रोहिंग्याओं के वोटर आइडी तक बन रहे हैं। मुस्लिमों को खुश रखने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हिंदुओं की संस्कृति पर हमलावर नीतियां लागू कर रही हैं। दुर्गा पूजा पर रोक से लेकर शैक्षिक किताबों तक में मुस्लिम समाज के अनुरूप बदलाव किये जा रहे हैं।
रोहिंग्याओं को संरक्षण दे रही है सरकार
रोहिंग्याओं की भारत में घुसपैठ कराने के लिए कई गिरोह सक्रिय हैं। वे पहचान बदल कर पश्चिम बंगाल में मकान बनवा कर रहते हैं। यह कई राज्यों की एटीएस और एनआइए की कार्रवाइयों से सामने आ चुका है। दिल्ली के विभिन्न इलाकों में रोहिंग्याओं ने पकड़े जाने पर उन्होंने खुद को पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले का निवासी बताया। उनके पास से पश्चिम बंगाल के वोटर कार्ड भी बरामद हुए। बंगाल के कूचबिहार, मालदा, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग, उत्तर दिनाजपुर और दक्षिण दिनाजपुर जिले में रोहिंग्या वहां के मुसलमानों के बीच छिप कर रहते हैं। दार्जिलिंग समेत अन्य जगहों पर दलालों के माध्यम से तीन-चार हजार रुपये में इन्हें फर्जी प्रमाण पत्र मिल जाते हैं।
झारखंड के सीमावर्ती जिलों की डेमोग्राफी ही बदल गयी
घुसपैठ की इस समस्या के कारण झारखंड के सीमावर्ती जिलों, साहिबगंज और दुमका की डेमोग्राफी ही बदल गयी है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की सीमा से लगे इन इलाकों में हाल के दिनों में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिनसे साफ हो जाता है कि घुसपैठ बड़ी समस्या बन गयी है। लव जिहाद से लेकर सांप्रदायिक दंगों तक में घुसपैठियों की सहभागिता के कई बार प्रमाण मिल चुके हैं।
सच को दबाने की कोशिश कर रही है ममता सरकार
एआइए ने दिसंबर 2021 में दर्ज एक केस में बांग्लादेश के मुस्लिमों और रोहिंग्याओं की अवैध तस्करी का खुलासा किया। बांग्लादेश के मुस्लिमों और रोहिंग्याओं को भारत में लाकर उनके फर्जी दस्तावेज तैयार कराये गये। एनआइए ने इस केस को लेकर कई जगह छापे भी मारे। एक दशक में पांच लाख से अधिक बांग्लादेशी महिलाएं और बच्चे अवैध तौर पर भारत में आ चुके हैं। यहां से ये देश के कोने-कोने में फैल चुके हैं। रोहिंग्या आतंकी गुट हूजी के आसान निशाने पर भी हैं। परंतु यह सब जब फिल्म में दिखाया जाता है, तो पश्चिम बंगाल सरकार इस सच को दबाने के लिए अभिव्यक्ति पर आघात करने से नहीं चूकती।