विशेष
-मोदी कुछ बोलें, तो मुश्किल, कुछ न बोलें, तब भी मुश्किल
-प्रधानमंत्री मोदी के ध्यान का प्रचार मीडिया क्या करेगी, विपक्ष ही चिल्ला-चिल्ला कर कर रहा
-विपक्ष की बेचैनी बताती है कि चुनावी ऊंट किस करवट बैठने वाला है
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
जैसे ही लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण की प्रचार अवधि खत्म हुई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कन्याकुमारी पहुंच गये। अचानक खबर आयी कि पीएम मोदी समंदर में बनी विवेकानंद रॉक मेमोरियल के ध्यान मंडपम में 45 घंटे यानी 1 जून की शाम तक ध्यानमग्न रहेंगे। यह सूचना आते ही विपक्ष या यूं कहें इंडी गठबंधन वाले बेचैन हो गये। उन्हें समझ में ही नहीं आया कि उनके साथ यह हुआ क्या। वैसे भी आम चुनाव का प्रचार थमने के बाद पीएम मोदी हर बार आध्यात्मिक यात्रा पर जाते ही हैं। 2019 के चुनाव प्रचार के बाद वह केदारनाथ गये थे और साल 2014 में भी वह शिवाजी महाराज से संबंधित प्रतापगढ़ गये थे। यह पीएम की ताकत ही है कि जब वह बोलते हैं, तब तो विपक्ष हमलावर रहता ही है, लेकिन जब वह नहीं बोलते हैं, यानी जब उन्होंने मौन व्रत धारण कर ध्यान में लीन हो गये, तब भी विपक्षी नेता बेचैन हो गये हैं। अब तो यही बचा है कि पीएम मोदी एक मिनट में दो बार से अधिक सांस भी ले लेंगे, तब भी विपक्ष यही कहेगा कि देखो-देखो, नरेंद्र मोदी पर्यावरण का दोहन कर रहे हैं। वह दो बार एक्स्ट्रा ऑक्सीजन खींच रहे हैं। यह पर्यावरण के लिए हानिकारक है। इस दो एक्स्ट्रा ऑक्सीजन पर देश की जनता का हक है। हम देश की जनता के साथ अन्याय नहीं होने देंगे। जाति आधारित जनगणना करवा कर इस ऑक्सीजन पर पहला हक इनमें अल्पसंख्यकों को देंगे। अरे, क्या हुआ अगर पीएम मोदी ध्यान कर रहे हैं। वह कहीं भी ध्यान कर सकते हैं। विपक्ष वाले भी ध्यान कर सकते हैं, किसने रोका है। अगर ध्यान करने में दिक्कत है, तो नाच सकते हैं, गा सकते हैं, लड्डू का भी ऑर्डर दे सकते हैं, किसने रोका है। वैसे बौखला भी सकते हैं। उन्हें पूरा हक है। यह तो कानून में कहीं नहीं लिखा है कि प्रचार अवधि समाप्त होने के बाद कोई भी प्रत्याशी या प्रधानमंत्री ध्यान में नहीं जा सकता। यहां प्रचार तो हो नहीं रहा। ध्यान के समय पीएम मोदी थोड़े भाजपा का पोस्टर लगा कर ध्यान में बैठे हैं। थोड़े न वहां ‘80 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन’, ‘तीन करोड़ लोगों को मकान’ का बैनर लगा हुआ है। वहां तो सिर्फ ओम की तस्वीर है, जिसके सामने पीएम मोदी ध्यान में बैठे हैं। भारत में राजनीति भी गजब की होती है। खुद तो राहुल गांधी भाषण देते-देते सिर पर पानी डाल बोलते हैं कि बहुत गर्मी है। लेकिन वही कार्य अगर पीएम मोदी कर लें, तो विपक्ष बोलेगा कि देश में पीने का पानी नहीं है और पीएम पानी बर्बाद कर रहे हैं। यह गरीबों के साथ अन्याय है। स्वच्छ पानी आरक्षण के तहत मिलना चाहिए। न्याय यात्रा निकालनी पड़ेगी। पीएम पानी बर्बाद नहीं कर सकते। फिलहाल मोदी ध्यान में हैं और इंडी वालों की नींद उड़ी हुई है। लेकिन इस ध्यान मात्र से ही मोदी ने एक ऐसा संदेश दे डाला है, जो समाज के लिए बहुत ही प्रेरणादायी है। इस उम्र में भी 45 घंटे तक ध्यानमग्न कोई मामूली बात नहीं है। यह कार्य कोई संत या योगाचार्य ही कर सकता है। यह कार्य खुद में एक चैलेंज भी है। आखिर मोदी के मौन होने के बाद भी विपक्ष में बौखलाहट क्यों है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
ज्ञान प्राप्ति का केंद्र
भारत का सबसे दक्षिणी छोर, कन्याकुमारी यानी वह स्थान, जहां भारत की पूर्वी और पश्चिमी तट रेखाएं मिलती हैं। ये हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का भी मिलन बिंदु है। विवेकानंद से प्रभावित प्रधानमंत्री 70 से ज्यादा दिनों तक चुनाव प्रचार खत्म करने के बाद गुरुवार शाम उस ऐतिहासिक जगह पहुंचे, जहां विवेकानंद को अपनी जिंदगी का मकसद मिला था। लोकसभा चुनाव प्रचार थमते ही पीएम मोदी गुरुवार यानी 30 मई की शाम कन्याकुमारी पहुंचे। उनका कन्याकुमारी में विवेकानंद रॉक मेमोरियल के ध्यान मंडपम में 45 घंटे का ध्यान जारी है। यहां से पीएम के ध्यान की तस्वीरें भी सामने आयी, जिसमें वह ओम के सामने बैठ कर ध्यान लगाते नजर आ रहे हैं। पीएम मोदी यहां 1 जून तक ध्यानमग्न रहेंगे। अपने 45 घंटे के ध्यान के दौरान पीएम मोदी सिर्फ तरल आहार लेंगे और इस दौरान वह केवल नारियल पानी और अंगूर के जूस का सेवन करेंगे। सूत्रों के मुताबिक इस दौरान पीएम मोदी मौन व्रत का पालन भी करेंगे और ध्यान कक्ष से बाहर नहीं निकलेंगे। इसके पहले कन्याकुमारी पहुंच कर पीएम ने सबसे पहले भगवती देवी अम्मन मंदिर में दर्शन-पूजन किया। पूजा के दौरान मोदी ने सफेद मुंडु (दक्षिण भारत का एक परिधान) और शॉल पहना था। पुजारियों ने उनसे विशेष आरती करायी। प्रसाद, शॉल और देवी की तस्वीर दी। विवेकानंद रॉक मेमोरियल के ध्यान मंडपम की खास बात यह है कि यह वही स्थान है, जहां स्वामी विवेकानंद ने देश भ्रमण के बाद तीन दिनों तक ध्यान किया था। यहीं उन्होंने विकसित भारत का सपना देखा था। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर देवी पार्वती ने एक पैर पर खड़े होकर साधना की थी। कन्याकुमारी कई मायनों में भारत के लिए खास है। यहीं पर भारत की पूर्वी और पश्चिमी तटीय रेखा मिलती है। कन्याकुमारी में ही अरब सागर, हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी का मिलन होता है। कन्याकुमारी जाकर एक तरह से पीएम मोदी ने राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया है।
विपक्ष में बौखलाहट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कन्याकुमारी में 45 घंटे की ध्यान साधना शुरू किये जाने पर विपक्ष के नेताओं ने तंज कसना शुरू कर दिया है। जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कन्याकुमारी दौरा सामने आया, तभी से विपक्ष में बौखलाहट साफ दिखने लगी। कन्याकुमार डीएमके यूनिट ने भले ही अब एक याचिका कलेक्टर को दी है, लेकिन कांग्रेस, सीपीआइ और टीएमसी की तरफ से आरोप लगाया जा रहा है कि पीएम का दौरा साधना नहीं है, बल्कि यह चुनावी कैंपेन का तरीका है। उनका आरोप है कि यह आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है। अगर उनका दौरा होता है तो प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को कवरेज की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, राजद नेता तेजस्वी यादव और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे प्रचार पाने का तरीका करार दिया है।
अखिलेश यादव ने कहा कि छह चरणों में हुए चुनाव को देख कर भाजपा पूरी तरह लड़खड़ा गयी है। उसको आइएनडीआइए का मतलब समझ में नहीं आ रहा है। वह इतनी घबरायी हुई है कि आइएनडीआइए को इंडी गठबंधन बोल रही है। उन्होंने कहा कि सातवें चरण में काशी की सीट भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हारने वाले हैं। यही वजह है कि अब पीएम तपस्या और ध्यान करने चले गये हैं। कितनी भी तपस्या कर लें, जनता उन्हें छोड़ेगी नहीं। बाद में बतायेंगे कि तपस्या में कुछ कमी रह गयी।
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी पीएम मोदी के ध्यान पर हमला बोला है। तेजस्वी ने कहा कि प्रधानमंत्री ध्यान लगाने नहीं, बल्कि फोटो खिंचवाने और फिल्म बनवाने जा रहे हैं। पिछली बार गुफा में बैठ कर फोटो खिंचवा रहे थे। मोदीजी से आग्रह है कि ध्यान लगाने जा रहे हैं तो ध्यान में बाधा उत्पन्न करने वाली चीजें साथ में न लेकर जायें। ध्यान बंटाने वाली चीजों से परहेज करें और कैमरे वगैरह पर रोक लगायें।
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी पीएम मोदी के कन्याकुमारी में ध्यान लगाने को लेकर सवाल किया। ममता बनर्जी ने कहा कि 30 मई की शाम को चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद साइलेंट पीरियड होगा। ऐसे में उनके ध्यान को टेलीकास्ट करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। ममता ने कहा कि प्रधानमंत्री की कुर्सी बहुत मूल्यवान है और इसकी संवैधानिक जिम्मेदारियां हैं, लेकिन उन्हें इसकी परवाह नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि हर चुनाव में अंतिम चरण के मतदान से 48 घंटे पहले मोदी प्रचार पाने के लिए कहीं ध्यान पर बैठ जाते हैं। पीएम ने 2019 के चुनाव अभियान के बाद केदारनाथ की गुफा में इसी तरह का ध्यान किया था। ममता ने कहा कि वह ध्यान कर सकते हैं, लेकिन कैमरों की मौजूदगी में क्यों? उन्होंने दावा किया कि भाजपा से प्रभावित मीडिया राजनीतिक स्वार्थों के लिए पूरे दिन इसकी फुटेज दिखाती रहेगी।
आखिर विपक्ष में बौखलाहट क्यों है
इस सवाल का जवाब बहुत ही आसान है। जो व्यक्ति बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह जाता है, उसे मोदी कहते हैं। यह हुनर विपक्षी नेताओं में किसी के पास नहीं है। विपक्ष मोदी से इतर कुछ भी नहीं सोच सकता। वहीं मोदी योजनाओं का सृजन करते रहते हैं। मात्र ध्यानमग्न से ही मोदी ने करोड़ों सनातनियों को एक मैसेज दे डाला। बिना कुछ कहे मोदी ने ध्यानमात्र से ही करोड़ों सनातनियों का ध्यान अपनी ओर खिंच लिया है। भले मोदी कुछ न कहें, लेकिन उन्होंने विपक्षियों को बोलने पर मजबूर कर दिया है। भले मोदी ने अपना प्रचार अभियान खत्म कर दिया हो, लेकिन विपक्ष मोदी का झंडा बुलंद किये हुए है। वह चिल्ला-चिल्ला कर लोगों के कान में खुद बता देगा कि देखो-देखो मोदी ध्यान कर रहे हैं। सनातन का प्रचार कर रहे हैं। प्रचार तंत्र तो खुद विपक्ष ही बना हुआ है। टीवी चैनल और मीडिया को मोदी के ध्यान का दृश्य दिखाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। विपक्ष का बयान चला देना है बस हो गया काम। यही तो भाजपा भी चाहती होगी है। यहां विपक्ष को साइलेंट हो जाना चाहिए था। लेकिन भला इन्हें समझाये कौन। इनसे ज्यादा ज्ञानी कोई थोड़े है। बहुत पढ़े-लिखे हैं भाई। बहुत बरबूजा है इन्हें, माफ कीजियेगा तजुर्बा है। मोदी सनातन धर्म का एक ऐसा चेहरा हैं जो हर वक्त इसके उत्थान में लगे रहते हैं। सनातनियों को जोड़ने का काम निरंतर चलता रहता है। ध्यान मग्न होना या मैडिटेशन तो सनातनियों की ऐसी ताकत है, जो नकारात्मक ऊर्जा को दूर रखती है। सृष्टि को समझने का अनूठा प्रयास है ध्यान। ध्यान मात्र से सृष्टि की अज्ञात ताकतों से संपर्क में आया जा सकता है। जिस तरह से इस लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के साथ उनके रोड शो और अन्य कार्यक्रमों में शामिल होने का आंकड़ा जोड़ा जाये तो यह संख्या 206 है। इसके साथ ही उन्होंने इस दौरान 80 से ज्यादा मीडिया चैनलों, अखबारों, यूट्यूबरों, आॅनलाइन मीडिया माध्यमों को अपना साक्षात्कार दिया। मतलब औसतन हर दिन पीएम मोदी ने दो से ज्यादा रैलियां और रोड शो के साथ कार्यक्रम में हिस्सा लिया। वहीं, पीएम मोदी मार्च में चुनाव की घोषणा से पहले फरवरी और मार्च की 15 तारीख तक 15 रैलियां कर चुके थे। इतनी मेहनत के बाद अगर कोई ध्यान या मेडिटेट करना चाहता है तो इसमें किसी को कोई दिक्कत क्यों हो रही है। वैसे भी बहुत नेता हैं, जो चुनाव खत्म होते ही बैंकॉक, थाइलैंड या इटली की यात्रा पर निकल जाते हैं। सबकी अपनी-अपनी स्टाइल है। सब अपने हिसाब से समय का उपयोग करते हैं।
यह पीएम मोदी का निजी मामला : डीके शिवकुमार
वहीं कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कन्याकुमारी में ध्यान करने पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह उनका निजी मामला है। इसमें किसी को क्यों हस्तक्षेप करना चाहिए। एक सवाल के जवाब में प्रदेश कांग्रेस प्रमुख ने कहा कि भगवान और भक्ति उनका निजी मामला है। हमें उनकी प्रार्थना और ध्यान में क्यों हस्तक्षेप करना चाहिए।
चुनावी कानून के तहत कोई रोक नहीं
चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री की ध्यान यात्रा करने पर चुनावी कानून के तहत कोई रोक नहीं है। चुनाव आयोग ने इसी तरह की अनुमति 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी पीएम मोदी को दी थी। कांग्रेस ने 29 मई को आरोप लगाया था कि पीएम की ध्यान यात्रा आचार संहिता का उल्लंघन है। कांग्रेस ने चुनाव आयोग से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि मोदी के ध्यान को मीडिया में प्रसारित नहीं होने दिया जाये। हालांकि, जानकार सूत्रों ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 का हवाला दिया। इसमें मौन अवधि (साइलेंट टाइम) के दौरान जनसभा या चुनाव प्रचार पर रोक का जिक्र है। वोटिंग खत्म होने से 48 घंटे पहले साइलेंट टाइम शुरू हो जाता है। लोकसभा चुनाव में आखिरी फेज का चुनाव प्रचार 30 की शाम 5 बजे खत्म हो चुका है। इस फेज में 1 जून को वाराणसी सीट में भी वोटिंग होगी। जानकारों के मुताबिक, इस कानून में वह क्षेत्र ही आता है, जहां वोटिंग होनी है।