विशेष
-कई सियासी संकेत देते हैं एग्जिट पोल के नतीजे
-वोटरों का भरोसा जीतने के लिए कांग्रेस को करनी होगी कड़ी मेहनत
-दक्षिण का किला भेदने के लिए भाजपा को बनानी होगी नयी रणनीति
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के 97 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने देश की सर्वोच्च पंचायत संसद के निचले सदन, यानी लोकसभा के 542 सदस्यों के चुनाव के लिए अपना फैसला कर दिया है। शनिवार एक जून को शाम छह बजे सातवें और अंतिम चरण के मतदान के साथ ही मतदाताओं का फैसला इवीएम में बंद हो गया है। ये इवीएम चार जून को खुलेंगे और मतदाताओं का फैसला पूरी दुनिया के सामने होगा। इस फैसले से पहले अंतिम चरण का मतदान खत्म होने के बाद विभिन्न टीवी चैनलों द्वारा सर्वे एजेंसियों के साथ मिल कर किये गये एग्जिट पोल का नतीजा बताता है कि देश में अब भी नरेंद्र मोदी का जादू बरकरार है और वह लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बन कर आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनकी पुत्री इंदिरा गांधी के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने के रिकॉर्ड को तोड़ने जा रहे हैं। इस एग्जिट पोल के नतीजे भले ही अंतिम नहीं हैं, लेकिन इससे कई सियासी संदेश भी मिले हैं। इसमें पहला तो यह है कि कांग्रेस और उसके सहयोगियों को अभी और मेहनत करनी है, जबकि दक्षिण भारत में भाजपा को पैर जमाने के लिए नयी रणनीति पर काम करना है। भाजपा के पास नरेंद्र मोदी जैसा करिश्माइ नेता है, लेकिन उसे बहुत तेजी से एक ऐसे ही नेता को तैयार करना होगा। वैसे पिछले तीन चुनावों के एग्जिट पोल के नतीजे बहुत सटीक नहीं रहे थे, लेकिन उनसे मिले सियासी संदेश लगभग अंतिम ही थे। इस बार के एग्जिट पोल के नतीजों से निकले सियासी संदेशों का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने 18वीं लोकसभा के 543 सदस्यों का चुनाव कर लिया है। एक सदस्य के निर्विरोध चुनाव और बाकी 542 सदस्यों के चुनाव के लिए मतदान की प्रक्रिया शनिवार एक जून को संपन्न हो गयी। मतदाताओं ने क्या फैसला सुनाया है और 18वीं लोकसभा में किसे अपना प्रतिनिधि चुना है, इसका पता तो चार जून को लगेगा, लेकिन विभिन्न समाचार चैनलों और सर्वे एजेंसियों द्वारा किये गये एग्जिट पोल के नतीजे संकेत दे रहे हैं कि नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। इन नतीजों से साफ है कि इस बार भी भाजपा प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी कर रही है।
यह सही है कि एग्जिट पोल के नतीजे अंतिम नहीं हैं और इनकी विश्वसनीयता हाल के दिनों में कम हुई है, लेकिन इन नतीजों से मिले सियासी संदेश आम तौर पर सटीक और दिशा तय करनेवाले होते हैं। इस बार भी लगभग ऐसा ही है। एक तरफ सभी एग्जिट पोल के नतीजे लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी की सरकार बनने की बात कह रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भाजपा के लिए कई संदेश भी दे रहे हैं।
भाजपा के लिए क्या है संदेश
बात शुरू करते हैं एग्जिट पोल के नतीजों में भाजपा के लिए छिपे संदेश से। इन नतीजों का मानना है कि भाजपा आज भी देश की सबसे लोकप्रिय पार्टी है और नरेंद्र मोदी का जादू अभी कायम है। नतीजों ने भाजपा से कहा है कि उसके पास मोदी जैसा करिश्माई नेता है, लेकिन उसे बहुत तेजी से एक ऐसे ही नेता को तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए। यह बात भाजपा की बैठकों में प्रधानमंत्री मोदी कह भी चुके हैं। पिछली बार चुनाव जीतने के बाद पार्टी संसदीय दल की बैठक में उन्होंने साफ कहा था कि पार्टी नेता उनके नाम पर वोट मांगने की आदत छोड़ें और आम जनता से अपने संपर्क बढ़ायें। इसके अलावा इन नतीजों ने दक्षिण भारत में भाजपा की रणनीति पर फिर से विचार करने का संदेश भी दिया है।
कांग्रेस को अभी लंबा सफर तय करना है
एग्जिट पोल के नतीजों ने कांग्रेस को साफ तौर पर संदेश दे दिया है कि देश की सत्ता में उसकी वापसी की संभावना फिलहाल बहुत कम है। कांग्रेस को एक तो अपने पुराने स्वरूप को बदलना होगा और नये सिरे से अपनी रणनीति तय करनी होगी। पार्टी को जनता के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए सबसे पहले खत्म हो चुकी अपनी विश्वसनीयता को बहाल करने के लिए शून्य से शुरूआत करनी होगी। इतना ही नहीं, कांग्रेस को अपने सहयोगियों के साथ चुनावी समझौते के लिए कई नये रास्ते खोजने होंगे।
क्या थे पिछले तीन एग्जिट पोल का नतीजे
अब बात करते हैं एग्जिट पोल के नतीजों की सटीकता की। साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान एग्जिट पोल में मोदी सरकार के बहुमत से आने की भाविष्यवाणाी की गयी थी। देश में सी-वोटर, एक्सिस माइ इंडिया, सीएनएक्स भारत समेत कई एजेंसियां एग्जिट पोल करती हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी सर्वे एजेंसियों ने अपने एग्जिट पोल में बहुमत से एनडीए की सरकार बनने का दावा किया था, जो सटीक साबित हुआ था। मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने केंद्र में दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी थी। 2019 में भाजपा को 303 और एनडीए को 351 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस सिर्फ 52 सीटों पर सिमट गयी थी। वहीं यूपीए को 90 सीटों पर जीत मिली थी। अन्य के खाते में 102 सीटें गयी थीं। 2019 में आज तक का एग्जिट पोल एकदम सटीक बैठा था। इस एग्जिट पोल ने एनडीए को 339-365 सीटें दी थीं। वहीं यूपीए को 77-107 और अन्य को 69-95 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था। आज तक के अलावा न्यूज 24 का एग्जिट पोल भी काफी सटीक था। इस एग्जिट पोल ने एनडीए को 350, यूपीए को 95 और अन्य को 97 सीटें मिलने का दावा किया था।
साल 2014 में एग्जिट पोल क्या कह रहे थे
साल 2014 के एग्जिट पोल में न्यूज 24-चाणक्य ने एनडीए को 370 सीटें, जबकि यूपीए को 70 सीटें दी थीं। जबकि इंडिया टीवी-सी वोटर ने एनडीए को 289 तो यूपीए को 101 सीटें दी थीं। इसी प्रकार सीएनएन-आइबीए-सीएसडीएस ने एनडीए को 280 तो यूपीए को 97 सीटें दी थीं। एनडीटीवी-हंसा रिसर्च ने एनडीए को 279 तो यूपीए को 103 सीटें दी थीं। एबीपी न्यूज-निल्सन ने एनडीए को 276 तो यूपीए को 97 सीटें दी थीं। इसी प्रकार इंडिया टुडे-सीसेरो ने एनडीए को 272 तो यूपीए को 115 सीटें दी थीं। 2014 में औसतन आठ एग्जिट पोलों में अनुमान लगाया गया था कि भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए 283 सीटें जीतेगा और कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूपीए 105 सीटें जीतेगा। उस वर्ष एग्जिट पोल ‘मोदी लहर’ की सीमा का अनुमान लगाने में विफल रहे। जब रिजल्ट आया, तो एनडीए को 336 सीटें मिलीं। यूपीए को महज 60 सीटें मिलीं। इनमें से बीजेपी ने 282 और कांग्रेस ने 44 सीटें जीतीं थी।
2009 के एग्जिट पोल
वहीं, 2009 में भी जब यूपीए सत्ता में वापस आयी, तो औसतन चार एग्जिट पोल ने विजेता की संख्या को कम आंका। उन्होंने यूपीए को 195 और एनडीए को 185 सीटें दीं। एनडीए की 158 सीटों की तुलना में यूपीए ने अंतत: 262 सीटों के साथ जीत हासिल की। इनमें से कांग्रेस ने 206 सीटें और भाजपा ने 116 सीटें जीतीं थी।
ओपिनियन पोल से अलग होते हैं एग्जिट पोल
एग्जिट पोल एक तरह का चुनावी सर्वे होता है। मतदान वाले दिन जब मतदाता वोट देकर पोलिंग बूथ से बाहर निकलता है, तो वहां अलग-अलग सर्वे एजेंसी और न्यूज चैनल के लोग मौजूद होते हैं। वे मतदाता से वोटिंग को लेकर सवाल पूछते हैं। इसमें उनसे पूछा जाता है कि उन्होंने किसको वोट दिया है? इस तरह से हर विधानसभा के अलग-अलग पोलिंग बूथ से वोटरों से सवाल पूछा जाता है। मतदान खत्म होने तक ऐसे सवाल बड़ी संख्या में आंकड़े एकत्र हो जाते हैं। इन आंकड़ों को जुटाकर और उनके उत्तर के हिसाब से अंदाजा लगाया जाता है कि पब्लिक का मूड किस ओर है। मैथमेटिकल मॉडल के आधार पर यह निकाला जाता है कि कौन सी पार्टी को कितनी सीटें मिल सकती हैं। इसका प्रसारण मतदान खत्म होने के बाद ही किया जाता है। एग्जिट पोल कराने के लिए सर्वे एजेंसी या न्यूज चैनल का रिपोर्टर अचानक से किसी बूथ पर जाकर वहां लोगों से बात करता है। इसमें पहले से तय नहीं होता है कि वह किससे सवाल करेगा? आमतौर पर मजबूत एग्जिट पोल के लिए 30-35 हजार से लेकर एक लाख वोटरों तक से बातचीत होती है। इसमें क्षेत्रवार हर वर्ग के लोगों को शामिल किया जाता है।
ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में अंतर
एजेंसियां ओपिनियन पोल चुनाव से पहले कराती हैं और इसमें सभी लोगों को शामिल किया जाता है, भले ही वह मतदाता है या नहीं। ओपिनियन पोल के नतीजे के लिए चुनावी दृष्टि से अलग-अलग क्षेत्रों के अहम मुद्दों पर जनता की नब्ज को टटोलने की कोशिश की जाती है। इसके तहत हर क्षेत्र में यह जानने का प्रयास किया जाता है कि सरकार के प्रति जनता की नाराजगी है या फिर उसके काम से संतुष्ट है। इसके विपरीत एग्जिट पोल वोटिंग के तुरंत बाद कराया जाता है, जिसमें केवल मतदाताओं को ही शामिल किया जाता है। एग्जिट पोल में वही लोग शामिल होते हैं, जो मतदान कर बाहर निकलते हैं। एग्जिट पोल निर्णायक दौर में होता है। इससे पता चलता है कि लोगों ने किस पार्टी पर भरोसा जताया है।