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    Home»झारखंड»रांची»गरीबों के लिए वरदान है झारखंड आइ बैंक हॉस्पिटल
    रांची

    गरीबों के लिए वरदान है झारखंड आइ बैंक हॉस्पिटल

    आजाद सिपाहीBy आजाद सिपाहीJuly 12, 2017No Comments3 Mins Read
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    रांची: बरियातू स्थित झारखंड आइ बैंक हॉस्पिटल गरीबों के लिए वरदान साबित हो रहा है। बिहार आइ बैंक ट्रस्ट के तहत साल 2000 से संचालित इस अस्पताल में आज भी गरीबों की आंखों का मुफ्त में इलाज होता है। सिर्फ 100 रुपये की कंसल्टेशन फीस में मरीज की आंखों का चेकअप और सभी तरह के टेस्ट किये जाते हैं। यहां पर मरीजों को दी जानेवाली सुविधाएं शहर के किसी भी बड़े आइ हॉस्पिटल से कम नहीं हैं। जितने खर्च में मरीजों का इलाज और आॅपरेशन शहर के बड़े आइ हास्पिटल में होता है, उससे कम से कम पांच गुणा कम खर्च झारखंड आइ बैंक अस्पताल में होता है। आंख से संबंधित बीमारियों की जांच के लिए यहां सभी तरह की मशीनें ेउपलब्ध है। नेत्रदान और नेत्र प्रत्यारोपण के अलावा झारखंड आइ बैंक में मोतियाबिंद, ग्लूकोमा समेत सभी तरह की बीमारियों का इलाज होता है। पत्थर की आंख और कांटैक्ट लेंस भी लगाये जाते हंै। अस्पताल के पास अपनी आधुनिक मशीनें हैं, जिससे आसानी से मरीजों का चेकअप और आॅपरेशन हो रहा है।
    अस्पताल ने लौटायी है हजारों लोगों की आंखों की रोशनी
    17 सालों तक आर्थिक तंगी से लड़ते हुए इस अस्पताल ने कभी हार नहीं मानी। आज यह अस्पताल अपने पैरों पर खड़ा हो गया है। चार अनुभवी डॉक्टर्स यहां अपनी सेवा देते हैं। अस्पताल ने अब तक हजारों लोगों की आंखों की रोशनी लौटायी है। 12 साल में ट्रस्ट को 25 आंखें भी मिलीं, जिनमें से 21 का सफल प्रत्यारोपण किया जा चुका है। कम नेत्रदान होने के कारण झारखंड आइ बैंक अस्पताल को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सस्ता इलाज होने के कारण गरीब तबके के लोग आइ प्रत्यारोपण और आंख की बीमारी के इलाज के लिए इसी अस्पताल को चुनते हैं। ऐसी स्थिति में आइ प्रत्यारोपण के लिए मरीजों को अस्पताल की ओर से विशाखापत्तनम, हैदराबाद, भुवनेश्वर और केरल भेजा जाता है।

    बिहार आइ बैंक ट्रस्ट में कुल 21 ट्रस्टी हैं, इनमें से एक ट्रस्टी का स्थान फिलहाल खाली है। इनमें सबसे पुरानी ट्रस्टी डॉ प्रोन्नति सिन्हा हैं। प्रोन्नति सिन्हा ने कहा कि झारखंड आइ बैंक अस्पताल मरीजों की सेवा नि:स्वार्थ भाव से कर रहा है। गरीब मरीजों को अस्पताल की ओर से पूरी मदद की जाती है। डॉ सिन्हा ने कहा कि वे रिटायर्ड हैं और अपना पूरा समय अस्पताल को देते हैं। उन्होंने बताया कि ट्रस्ट को किसी भी तरह का सहयोग नहीं मिल रहा है, लेकिन विषम परिस्थितियों से लड़ते-लड़ते अस्पताल आज अपने पांव पर खड़ा हो गया है। पहले दान की मशीनें थीं, लेकिन धीरे-धीरे अपनी मशीनें खरीदने की कोशिश की जा रही हैं। अस्पताल को रिपेयर किया जा रहा है। डॉ सिन्हा ने कहा कि ट्रस्ट में आठ लोगों की कार्यकारिणी समिति भी है, पिछली कार्यकारिणी समिति भंग हो चुकी है, जल्द ही नयी कार्यकारिणी का गठन होगा।

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