रांची. प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) संजय कुमार ने कहा है कि पलामू टाइगर रिजर्व कोर एरिया के आठ गांव हटाए जाएंगे। यहां के ग्रामीणों का पुनर्वास किया जाएगा। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई पुनर्वास समिति की बैठक में पुनर्वास नीति एप्रूव्ड हो चुकी है। शीघ्र ही यह प्रस्ताव कैबिनेट से पारित होने की उम्मीद है। उसके बाद पलामू टाइगर रिजर्व के कोर एरिया के आठ गांव के लोगों का पुनर्वास किया जाएगा। संजय ने दावा किया कि झारखंड की पुनर्वास नीति अन्य सभी राज्यों से बढ़िया है। ऐसे में कोर एरिया से हटाए गए लोगों का बेहतर तरीके से पुनर्वास किया जाएगा। ग्लोबल टाइगर डे पर रविवार को हुई कार्यशाला को संजय कुमार संबोधित कर रहे थे।
बाघों को बचाना है तो ग्रामीणों और मवेशियों की वनों पर निर्भरता कम करनी होगी
पीसीसीएफ ने बफर एरिया में 189 गांवों के हाेने पर भी चिंता जाहिर की। पीसीसीएफ ने स्वीकार किया कि जलवायु परिवर्तन और जैविक दबाव के कारण पलामू टाइगर रिजर्व एरिया को बाघों के रहने के अनुकूल बनाना एक चुनौती है। इसके पहले विशेषज्ञों ने कहा कि बाघों को बचाना है तो ग्रामीणों और मवेशियों की वनों पर निर्भरता कम करनी होगी। बाद में दिखाए गए एक प्रेजेंटेशन पर परिचर्चा हुई, जिसमें पीआर सिन्हा, एलआर सिंह, डॉ. डीएस श्रीवास्तव, डॉ. एमपी सिंह, राजीव कुमार और नेहा अरोड़ा ने भाग लिया।
तनाव में नहीं रह सकते बाघ, गांव हटाएं : पीआर सिन्हा
भारतीय वन्यप्राणी संस्थान, देहरादून के पूर्व निदेशक पीआर सिन्हा ने साफ तौर पर कहा कि अगर पलामू टाइगर रिजर्व में बाघों को स्थाई तौर पर रोकना है तो कोर एरिया से गांवों को हटाना ही होगा। मवेशियों का दबाव शून्य करना होगा। इंटरनल डिपार्टमेंटल कोआर्डिनेशन को बढ़ाना होगा। सिन्हा ने कहा कि लोगों की आवाजाही या किसी भी प्रकार के बाह्य तनाव होने पर बाघ वहां नहीं रह सकते। ऐसे में लांग टर्म विजन बनाते हुए बाघों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। 1973 में ही पलामू के साथ-साथ नौ टाइगर रिजर्व क्षेत्र घोषित हुआ था। 1989 तक बाघों की संख्या बढ़ी, पर उसके बाद से इसकी संख्या कम हो रही है।
फॉरेस्ट ने ईको डेवलपमेंट को गंभीरता से लिया ही नहीं : डीएस श्रीवास्तव
वाइल्ड लाइफ बोर्ड के मेंबर डीएस श्रीवास्तव ने कहा कि यह बड़ा ही दुखद है कि फॉरेस्ट ने ईको डवलपमेंट को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं। कोई ऐसी योजना बनी ही नहीं कि वनों के विकास में गांवों का सहयोग कैसे लें। पलामू टाइगर रिजर्व में बाघ आते हैं, चले जाते हैं, यहां रहते नहीं। उन्होंने सवाल खड़ा किया कि जिस जंगल में 1.40 लाख मवेशी हों, जहां लकड़ियों और मेडिशनल प्लांट की तस्करी हो, वहां भला बाघ कैसे स्थाई रूप से रह सकते हैं।
बाघों के संरक्षण से ही मजबूत होगा ईको सिस्टम : एलआर सिंह
पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ लाल रत्नाकर सिंह ने कहा कि जैव पिरामिड के शीर्ष पर बाघ है। ऐसे में बाघों के संरक्षण से ही संपूर्ण ईको सिस्टम को मजबूत किया जा सकता है। पिछले 100 वर्ष में धरती से बाघ की आबादी लगभग 97 प्रतिशत खत्म हो चुकी है। धरती पर मनुष्यों के साथ-साथ वन्य जीवों के भी रहने का अधिकार है।