लगातार दूसरे साल रूठा है मानसून, किसान बेहाल
पलायन, अंधविश्वास और दूसरी समस्याओं की जड़ में जल संकट
झारखंड के दरवाजे पर सुखाड़ दस्तक दे रहा है। लगातार दूसरे साल सामान्य से आधी बारिश के कारण राज्य के किसान पहले ही परेशान हैं। इस साल तो उनकी कमर ही टूट रही है। इस साल वैसे ही मानसून देरी से आया। वह भी बेहद कमजोर रहा। जुलाई का महीना खत्म होने को है, लेकिन अब तक इंद्र देवता रूठे हुए हैं। उन्हें मनाने के लिए पूजा-पाठ शुरू हो गया है। अगले एक सप्ताह में यदि बारिश नहीं हुई, तो हालात बेकाबू हो जायेंगे। अब तक के आंकड़ों के अनुसार राज्य में केवल साहेबगंज और लोहरदगा जिले में ही सामान्य बारिश हुई है। बाकी जिलों में आधी या उससे भी कम बारिश हुई है।
इसका सीधा असर राज्य के किसानों पर पड़ा है। लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि गुमला के नगर सिसकारी गांव की घटना भी कहीं न कहीं कम बारिश से ही जुड़ी है। इतना ही नहीं, सुखाड़ और अकाल की आशंका के कारण गांवों से लोगों का पलायन भी शुरू हो गया है। उनके सामने इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं है।
खेती की खराब स्थिति
राज्य में खेती की स्थिति बेहद खराब है। बारिश नहीं होने की वजह से धान की रोपनी केवल 12 फीसदी ही हो सकी है। 11 जिलों में तो धान की फसल लगायी ही नहीं जा सकी है। पिछले साल राज्य के 129 प्रखंड सूखे की चपेट में आये थे। इस बार हालत और खराब है। यह तो धान की हालत है। दूसरी फसलों की भी कमोबेश यही स्थिति है। खेतों में पानी नहीं होने के कारण उनकी सिंचाई भी नहीं हो रही है।
सावन में सूखा
कहते हैं कि झारखंड में मई महीने से ही बारिश का मौसम शुरू हो जाता था। किसान सावन आते-आते खेती में इतने व्यस्त हो जाते थे कि दूसरी समस्याओं की ओर उनका ध्यान ही नहीं जाता था। लेकिन इस साल सावन बीत रहा है। किसान अपने खेतों की जुताई भी नहीं कर सके हैं। अब बारिश हो भी गयी, तो जिनके बिचड़े सूख गये हैं, वे क्या करेंगे। यह स्थिति पूरे राज्य की है। खेतों में दरारें पड़ गयी हैं, बिचड़े पीले पड़ गये हैं। इससे किसान हताश और निराश हैं। उनकी जमा-पूंजी डूबती जा रही है।
सुखाड़ बन गया है अभिशाप
झारखंड के लिए सुखाड़ अभिशाप बनता जा रहा है। 2015 में राज्य में मानसून पूरी तरह फेल कर गया था और पूरा राज्य सूखे से प्रभावित हो गया था। 2016 में मानसून ठीक-ठाक रहा, तो नुकसान की काफी हद तक भरपाई हुई। 2017 में भी स्थिति ठीक रही, लेकिन पिछले साल कमजोर मानसून के कारण फसल बर्बाद हो गयी। किसान जैसे-तैसे नुकसान को भूल कर नये जोश से खेती में जुटे, लेकिन इस बार के कमजोर मानसून ने उनकी कमर तोड़ दी है।
सामाजिक समस्याओं की जड़ में जल संकट
कमजोर मानसून और बारिश की कमी का असर केवल खेती पर ही नहीं पड़ा है, बल्कि दूसरी सामाजिक समस्याएं भी पैदा हो रही हैं। शहरों में पानी की समस्या पैदा हो गयी है। पानी के लिए खून बहने लगा है। लोग एक-दूसरे के दुश्मन बनने लगे हैं। उधर गांवों में किसानों के पास कोई काम नहीं है और जमा-पूंजी डूबने का तनाव अलग से है। ऐसे में वे अंधविश्वास में जकड़ते जा रहे हैं। इसके साथ ही वे पलायन करने पर भी मजबूर हो रहे हैं। बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि सूखे का असली मंजर तो अगहन-पूस में दिखेगा, जब घर-आंगन अनाज बिन सूना रहेगा। इस बार सरकार ने खेती से पहले किसानों को खाद- बीज के लिए आर्थिक मदद की है। किसानों को थोड़ी राहत मिली है, लेकिन पैसा लेकर क्या होगा। पानी के बिना तो सब कुछ बर्बाद हो रहा है। अनाज पैदा ही नहीं होगा, तो पैसा लेकर क्या होगा। झारखंड में 70-75 फीसदी आबादी खेती पर आश्रित है, जबकि 80 फीसदी लघु और सीमांत किसान हैं। खेतिहर मजदूरों में सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति के लोग हैं। राज्य के 37 फीसदी खेतों को ही सिंचाई की सुविधा प्राप्त है।
राज्य सरकार की पहल
सुखाड़ से निबटने के लिए राज्य सरकार ने भी पहल शुरू कर दी है। ऐसा पहली बार हुआ है कि जुलाई से ही कम बारिश पर ध्यान देना शुरू किया गया है। सरकार की ओर से किसानों को राहत पहुंचाने के लिए सभी उपाय किये जा रहे हैं। उन्हें खाद-बीज के लिए पूंजी उपलब्ध करायी गयी है। लेकिन किसानों की परेशानी यह है कि उनकी पूंजी के वापस होने की सभी संभावनाएं खत्म हो रही हैं। पानी के अभाव में खाद-बीज बर्बाद हो रहे हैं। राज्य सरकार ने मानसून की बेरुखी को देखते हुए किसानों को हर स्तर की सहायता पहुंचाने का टास्क अफसरों को सौंपा है। उनसे कहा गया है कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए वे किसानों से बात करें और उनकी जरूरतों को केंद्र में रख कर एक सप्ताह के अंदर योजना तय करें। राज्य सरकार ने सभी जिलों में आपदा राहत की राशि भी भेज दी है और 31 जुलाई तक यदि बारिश नहीं हुई, तो आगे की कार्रवाई की जायेगी।
अब इस प्राकृतिक आपदा से झारखंड किस हद तक लड़ेगा, यह तो आनेवाला समय बतायेगा, लेकिन लगातार कम हो रही बारिश एक चेतावनी है।यदि हम अब भी नहीं चेते, तो हम हर साल ऐसी ही आपदा झेलेंगे। इसलिए अभी से सतर्क होना जरूरी है। अन्यथा बहुत देर हो जायेगी।