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सभी 243 सीटों पर लड़ने की घोषणा ने बढ़ायी इंडी ब्लॉक की टेंशन
त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति में आसान हो जायेगा एनडीए का रास्ता

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बिहार में इस साल के अंत में होनेवाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी तपिश लगातार बढ़ रही है। खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘हनुमान’ कहनेवाले चिराग पासवान की घोषणा ने इस तपिश को बढ़ा दिया है। चिराग पासवान ने कहा है कि उनकी पार्टी लोजपा-आर बिहार की सभी 243 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारेगी और मुकाबले को त्रिकोणीय बनायेगी। चिराग पासवान ने खुद भी चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। चिराग पासवान की इस घोषणा ने जहां एनडीए का रास्ता आसान बना दिया है, वहीं इंडी अलायंस के लिए नया सिरदर्द पैदा कर दिया है। चिराग पासवान की घोषणा के बाद से बिहार का सियासी समीकरण लगातार बदलता हुआ दिखाई दे रहा है। खुद को ‘युवा बिहारी’ कहने वाले और ‘बिहार फर्स्ट’ का नारा देने वाले चिराग पासवान ने कुछ समय पहले यह बात कही थी कि उनका दिल दिल्ली में नहीं लगता और बिहार उन्हें बुला रहा है, लेकिन उस समय उन्होंने कहा था कि इस चुनाव के बाद इस बारे में वह फैसला करेंगे। अब उन्होंने बिहार की सभी सीटों पर उम्मीदवार देने की घोषणा कर दी है। इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि चिराग अब जातीय राजनीति का दामन छोड़नेवाले हैं, जिसका नुकसान राजद को होगा। दरअसल चिराग पासवान की पार्टी इस समय वे सभी हथकंडे अपना रही है, जो चुनाव से पहले प्रेशर पॉलिटिक्स में अपनाये जाते हैं। क्या है चिराग पासवान के फैसले का मतलब और इसका बिहार चुनाव पर क्या हो सकता है असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

लोजपा-आर के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान अक्सर अपने बयानों और आचरण से सनसनी पैदा करते रहे हैं। महीने भर से वह सियासी शिगूफा से लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा करते रहे हैं। शाहाबाद के भोजपुर में उन्होंने सभा की। उसके बाद कई और जगहों पर भी उनका संबोधन हुआ। सारण में रविवार को उन्होंने सभा की। सभाओं में उनके भाषण की कॉमन बात यह रही है कि वह विधानसभा की सभी 243 सीटों पर लड़ेंगे। एनडीए को मजबूत बनाने के लिए वह खुद विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। उनकी बातों से एनडीए समर्थक उत्साहित हैं। उनका मानना है कि चिराग यदि सभी सीटों पर उम्मीदवार देंगे, तो इससे मुकाबला त्रिकोणीय होगा और एनडीए को लाभ होगा।

चिराग 2020 में कर चुके हैं खेला
चिराग पासवान की ताकत क्या है, इसे पहले समझना जरूरी है। बिहार में पांच से छह प्रतिशत वोट उनकी पार्टी को मिलते रहे हैं। इसी वोट के आधार पर उनके पांच सांसद लोकसभा में हैं। 2020 के चुनाव में चिराग ने इसी तरह का खेल किया था। वह ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ के नारे के साथ जितनी सीटें चाहते थे, एनडीए में उतनी सीटें नहीं मिलीं, तो उन्होंने बगावत कर दी। वह एनडीए से बाहर हो गये और अपने 134 उम्मीदवार मैदान में उतार दिये। उनके उम्मीदवार भी उन्हीं सीटों पर दबंगता के साथ थे, जहां जेडीयू के उम्मीदवार थे। उन्होंने खुद को ‘मोदी का हनुमान’ बता कर भाजपा को तो बख्श दिया, लेकिन नीतीश कुमार को निशाने पर रखा। उनका एक ही उम्मीदवार जीता, जो बाद में जेडीयू का हिस्सा बन गया। अलबत्ता 34 सीटों पर उन्होंने जेडीयू को नुकसान पहुंचाया। जेडीयू को 43 सीटों पर सिमट जाना पड़ा। डेढ़ दर्जन सीटें ऐसी रहीं, जहां चिराग की पार्टी दूसरे नंबर पर रही। नीतीश कुमार से पंगा लेकर चिराग ने चालाकी यह कि वह अपने को नरेंद्र मोदी का विश्वस्त बने रहे। उन्होंने भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार उतारने से परहेज तो किया ही, भाजपा ने जिन उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया, उन्हें भी चिराग ने टिकट दे दिया। इसे यह बता कर प्रचारित किया गया कि भाजपा के इशारे पर नीतीश कुमार को कमजोर करने के लिए उन्होंने ऐसा किया। हालांकि यह बात निराधार साबित हुई। अपने से कम सीटों वाली पार्टी के नेता नीतीश कुमार को भाजपा ने मना-समझा कर सीएम बना दिया।

नीतीश-तेजस्वी की सियासत पर पड़ेगा असर
चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला बिहार की राजनीति में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। राजनीति के जानकार कहते हैं कि चिराग पासवान बिहार में अपनी सियासी ताकत बढ़ाना चाहते हैं। उनकी अपनी कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी हैं। चिराग बिहार में अपना भविष्य देख रहे हैं। उनके चुनाव लड़ने से नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव, दोनों की सियासत पर असर पड़ सकता है। इसी रणनीति के तहत उन्होंने केंद्र में मंत्री रहते हुए भी विधानसभा चुनाव लड़ने की दांव चला है।

तेजस्वी का काउंटर प्लान हैं चिराग
नीतीश कुमार अब उम्रदराज हो रहे हैं और उनकी राजनीतिक पकड़ भी कमजोर हो रही है। वह 2025 में एनडीए का चेहरा जरूर हैं, लेकिन 2020 में भाजपा उन्हें आगे करके सियासी नतीजे देख चुकी है। ऐसे में चिराग पासवान की पार्टी को लगता है कि आगे चलकर एनडीए में एक ऐसे चेहरे की जरूरत होगी, जिसे चिराग पासवान पूरा कर सकते हैं। इतना ही नहीं, तेजस्वी यादव की जिस तरह की लोकप्रियता बिहार में देखी जा रही है, वह जदयू के साथ-साथ भाजपा और उसके घटक दलों को जरूर चिंता में डाल रही है।

भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
बिहार में जिस तरह से तेजस्वी का सियासी ग्राफ लगातार बढ़ा है और नीतीश कुमार का ग्राफ कम होता चला गया है, उससे सबसे ज्यादा चिंता भाजपा को है। बिहार का चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। भाजपा किसी भी तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। भाजपा 2020 में नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ी थी और एनडीए के हाथों से सत्ता जाते-जाते बची थी। इसीलिए भाजपा इस बार बहुत ही सावधानी बरत रही है। एनडीए जरूर सीएम नीतीश के चेहरे पर चुनाव लड़ रहा है, लेकिन तेजस्वी की लोकप्रियता का भी ख्याल रख रही है।

चिराग बनाम तेजस्वी बनाने की कोशिश
तेजस्वी यादव के सामने चिराग पासवान एक युवा चेहरा होंगे। बिहार में युवा नेता के तौर पर सिर्फ तेजस्वी का नाम ही सबसे आगे है। उन्हें लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक विरासत भी मिली है। जातिगत समीकरण भी उनके साथ हैं। बिहार के दो-तिहाई मतदाताओं (मुस्लिम-यादव) पर उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। ऐसे में चिराग विधानसभा चुनाव लड़ते हैं, तो तेजस्वी की चुनौती बढ़ जायेगी।

चिराग में भाजपा देख रही फायदा
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव लड़ने के फैसला भाजपा के बैकअप प्लान का हिस्सा है। इसीलिए भाजपा के तमाम बड़े नेता चिराग पासवान के फैसले का स्वागत कर रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यश्र दिलीप जायसवाल ने चिराग के विधानसभा चुनाव लड़ने के कदम का स्वागत करते हुए कहा कि इससे एनडीए को फायदा होगा। बिहार में जहां भी चिराग जाते हैं, उन्हें देखने-सुनने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है।

सर्वजन का नेता बनने का भी प्लान
चिराग पासवान की पार्टी का चुनाव लड़ने का फैसला भी एक बड़ा दांव माना जा रहा है। वह जातिवादी राजनीति से दूर रहने की कोशिश करते हैं, जो आज की युवा पीढ़ी को पसंद है। चिराग युवा वर्ग में जातिगत दायरे से बाहर भी लोकप्रिय हैं। नये जेनरेशन को वह इसलिए पसंद हैं, क्योंकि उन्होंने अपने भाषणों में कभी जातिवादी राजनीति करने की कोशिश नहीं की। चिराग पासवान खुद को दलित दायरे में रखने की बजाय सर्वजन के नेता बनने की फिराक में हैं। इसीलिए वह एक के बाद एक बड़ा सियासी दांव चल रहे हैं।

 

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