विशेष
महागठबंधन के गढ़ में दबदबा कायम करने की कोशिश में है एनडीए
ओवैसी के महागठबंधन में शामिल होने के बाद शक्ति संतुलन बदला
वक्फ कानून से अधिक आर्थिक-सामाजिक पिछड़ापन बनेगा गेमचंजर
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बिहार की राजनीति में सीमांचल के चार जिलों का अलग महत्व है। इन जिलों की 24 विधानसभा सीटें बिहार की सियासत में अलग महत्व रखती हैं। इनमें मुस्लिम मतदाताओं की बहुलता की वजह से महागठबंधन के लिए यह क्षेत्र हमेशा से मुफीद रहा है, लेकिन इस बार की सियासी तस्वीर कुछ अलग कहानी बयां कर रही है। अक्टूबर-नवंबर तक विधानसभा के चुनाव के मद्देनजर सियासी दल अलग-अलग इलाकों की सियासत साधने की कोशिश में जुटे हैं। सीमांचल में वोट की यह लड़ाई कितनी अहम है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजनीतिक दल वक्फ जैसे मुद्दों को नेपथ्य में डाल कर सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को केंद्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश में जुटे हैं। इसलिए विपक्षी महागठबंधन की अगुवाई कर रहे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सीएम फेस तेजस्वी यादव ने सत्ता में आने पर सीमांचल विकास प्राधिकार बनाने का वादा कर दिया है। दूसरी तरफ मुस्लिम बाहुल्य इस इलाके में सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को नये वक्फ कानून के साथ डबल इंजन की सरकारी विकास योजनाओं से एकमुश्त हिंदू वोट और पिछड़े मुस्लिमों के समर्थन की उम्मीद है। वोटों की इस खींचतान के बीच सीमांचल की राजनीति के सबसे अहम फैक्टर हैं असदुद्दीन ओवैसी, जिनकी पार्टी ने 2020 में पांच सीटें जीत कर सबको चौंका दिया था। इस बार वह महागठबंधन में शामिल हो गये हैं, तो लड़ाई रोचक हो गयी है। क्या है सीमांचल की सियासत की तसवीर और क्या हैं संभावनाएं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
बिहार में चुनाव आयोग ने अभी चुनावी कार्यक्रमों के एलान नहीं किया है, लेकिन अलग-अलग सियासी दलों के नेता खुद की जीत को सुनिश्चित करने के लिए 2025 के चुनावी जंग में एक-दूसरे के खिलाफ जमकर आग उगल रहे हैं। फिलहाल बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सबसे दिलचस्प लड़ाई सीमांचल में नजर आ रही है, जहां सबकी नजरें मुस्लिम वोटरों पर हैं। बिहार की राजनीति में सरकार बनाने के लिहाज से सीमांचल के चार जिलों की 24 सीटें बेहद अहम मानी जाती हैं। यहीं से तय होता है कि बिहार की गद्दी पर कौन बैठेगा। इस इलाके में सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस और राजद के सामने है। यही वजह है कि कन्हैया कुमार भी आजकल सीमांचल की गलियों में घूमते नजर आ जाते हैं।
सीमांचल का सामाजिक-भौगोलिक समीकरण
सीमांचल की राजनीति का गणित समझने के लिए इलाके का भूगोल समझना भी जरूरी है। यह इलाका पश्चिम बंगाल के साथ अंतरराज्यीय और नेपाल के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है। यह इलाका बांग्लादेश सीमा से भी काफी करीब है। सीमांचल में बिहार के चार जिले आते हैं, कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज। मुस्लिम बाहुल्य इन चार जिलों में 24 विधानसभा सीटें हैं। जाति जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक बिहार की कुल आबादी में करीब 18 फीसदी मुस्लिम हैं। सीमांचल के इन चार जिलों की आबादी की बात करें, तो किशनगंज में 68, अररिया में 43, कटिहार में 45 और पूर्णिया में 39 फीसदी हिस्सेदारी मुस्लिम समाज की है।
सीमांचल की सीटें अहम क्यों
सीमांचल के चार जिलों में विधानसभा की 24 सीटें हैं। पूर्णिया में सात, कटिहार में सात, किशनगंज में चार और अररिया में छह सीटें हैं। सीमांचल की अहमियत ऐसे भी समझा जा सकता है कि बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गठबंधन टूटने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 23 सितंबर 2022 को पूर्णिया जिले के रंगभूमि मैदान में ‘जन भावना रैली’ को संबोधित किया था, जहां उन्होंने 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए हुंकार भरी थी। शाह ने इस रैली में लोगों से बीजेपी को पूर्ण बहुमत देने की अपील की थी। नीतीश कुमार की पार्टी का भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन तोड़ने और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ महागठबंधन बनाने के बाद तेजस्वी यादव ने भी पहली बड़ी रैली 25 फरवरी 2023 को पूर्णिया में ही की थी। इस ‘एकजुटता रैली’ में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और महागठबंधन के अन्य वरिष्ठ नेताओं ने हिस्सा लिया था। दोनों रैलियों का मकसद एक ही था। सीमांचल की 24 सीटों पर कब्जा जमाना।
2020 में कैसा रहा था नतीजा
साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में सीमांचल क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी को आठ, आॅल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) को पांच, कांग्रेस को चार, जनता दल (यूनाइटेड) को चार, राष्ट्रीय जनता दल को दो और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) को एक सीट मिली थी। 2020 में सीमांचल को राजद और कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, लेकिन पिछले चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन चौंकाने वाला था। तब असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली एआइएमआइएम ने भी पांच सीटें जीतकर चौंकाया था।
सीमांचल सियासी समीकरण
साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में करीब 17 फीसदी (16.87%) मुस्लिम हैं। बिहार की कुल मुस्लिम आबादी का 45 से 75 फीसदी हिस्सा (कहीं कम, कहीं ज्यादा) सिर्फ सीमांचल के चार जिलों में बसा है। अब अगर सीमांचल की मौजूदा राजनीति और वोटों के गणित की बात करें, तो यह सच है कि पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए ने इस इलाके में अपनी स्थिति मजबूत बनायी थी, लेकिन इस बार यहां चुनौती त्रिकोणीय हो चुकी है। इलाके की मुस्लिम बहुल आबादी पर हर पार्टी नजरें गड़ाये हुए है और वोटरों को अपने पाले में लाने की कोशिश में जुटी है। पहले इस इलाके में मुख्य तौर पर दो ध्रुव थे। एक एनडीए और दूसरा महागठबंधन, लेकिन जिस तरह से बीते चुनाव में एआइएमआइएम ने इस इलाके में महागठबंधन को चौंका दिया था, उसका लाभ बीजेपी को फायदा मिला था। उसी तरह इस बार सीमांचल में एक नयी ताकत का उभार हुआ है, जिसका नाम पप्पू यादव है।
राजद के लिए चुनौती सबसे बड़ी क्यों
लोकसभा चुनाव में राजद को पूर्णिया और अररिया जैसे मुस्लिम बहुल इलाके में भी काफी कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा था, जिसे पहले लालू की पार्टी का कोर वोटर माना जाता था। अररिया में बीजेपी के प्रदीप सिंह ने राजद के शाहनवाज को हराया था। सीमांचल में इस बार सबसे बड़ी चुनौती राजद के लिए ही नजर आ रही है। पूर्णिया में पार्टी की सबसे बड़ी नेता बीमा भारती लगातार दो चुनाव हार चुकी हैं और यादुका हत्याकांड में उनके पति और बेटे की भूमिका ने लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता को रसातल में पहुंचा दिया है। उन्हें मौजूदा विधायक शंकर सिंह से कड़ी टक्कर मिली है, जो इस वक्त जेडीयू के पाले में हैं।
लोकसभा चुनाव नतीजों से महागठबंधन उत्साहित
पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों से महागठबंधन उत्साहित है। आम चुनाव में सीमांचल की चार में से दो सीटों पर महागठबंधन को जीत मिली थी। एक सीट पर कांग्रेस से बगावत कर बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव चुनाव जीतने में सफल रहे थे। एनडीए के खाते में केवल एक सीट आई थी- अररिया। अररिया सीट पर प्रदीप कुमार सिंह ने कमल खिलाया था। पप्पू यादव भी कांग्रेस के ही समर्थन में खड़े नजर आते हैं। कुल मिलाकर देखें तो लोकसभा चुनाव में महागठबंधन सीमांचल में एनडीए पर भारी पड़ा था।
वक्फ बिल से बदलेगा सीमांचल का गणित
सीमांचल का वोट गणित देखें, तो औसतन हर सीट पर 36 से 37 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। बीजेपी और एनडीए को वक्फ कानून के बाद पसमांदा और गरीब मुस्लिमों का भी समर्थन मिलने की उम्मीद है। वहीं महागठबंधन के नेता मुस्लिम समाज के साथ ही सेक्यूलर वोटरों के साथ का विश्वास व्यक्त कर रहे हैं। वक्फ बिल से सीमांचल का गणित कितना बदलता है और अगर बदलाव होता है तो यह किसके पक्ष में जायेगा, यह बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे ही बतायेंगे।