कोल्हान का गढ़ मजबूत करना चाहता है झामुमो, शिबू सोरेन की पसंद हैं आस्तिक महतो
चार फरवरी 1973 को अविभाजित बिहार में जब झामुमो एक पार्टी के रूप में अस्तित्व में आया, तो धनबाद के दिग्गज कुर्मी नेता स्वर्गीय बिनोद बिहारी महतो इसके पहले अध्यक्ष और दिशोम गुरु शिबू सोरेन पहले महामंत्री बने। एक साल बाद चार फरवरी 1973 को धनबाद के गोल्फ मैदान में इसका पहला स्थापना दिवस समारोह मनाया गया। महतो और आदिवासी नेतृत्व के साथ झारखंड में अपनी विशेष पहचान बनानेवाले झामुमो ने एक समय में दिग्गज कुर्मी नेताओं की राजनीति देखी लेकिन समय के साथ पार्टी में आदिवासियों की पार्टी होने का लेबल चस्पां होता गया। ऐसा कहा जाने लगा कि कुर्मी नेताओं का स्कोप झामुमो की तुलना में आजसू में ज्यादा है। पर 27 सितंबर 2018 में आजसू छोड़कर झामुमो में आस्तिक के आगमन ने एक बार फिर यह साबित किया कि पार्टी में महतो नेताओं के लिए स्पेस है और पार्टी आदिवासी-महतो नेतृत्व के साथ झारखंड में फिर से मजबूत होना चाहती है। कदमा के उलियान में पार्टी ज्वाइन करने के बाद आस्तिक ने कहा था कि झारखंडियों का दर्द स्थानीय पार्टी ही महसूस कर सकती है।
पार्टी की नींव रखने में उन्होंने भी मुख्य भूमिका अदा की है। इसलिए पार्टी में आने के बाद उन्हें अपनेपन का एहसास हो रहा है। इस वापसी के बाद हाल ही में पार्टी ने आस्तिक महतो को संगठन में बड़ा पद देकर यह जता दिया है कि वह कुर्मियों की हितैषी पार्टी है और आजसू छोड़कर आस्तिक के झामुमो में वापस लौटने का निर्णय गलत नहीं था।
झारखंड में नवंबर-दिसंबर में होनेवाले विधानसभा चुनावों के ठीक पहले झामुमो ने 25 अगस्त को आस्तिक महतो को प्रमोशन देते हुए उन्हें केंद्रीय सदस्य से केंद्रीय सचिव बना दिया। पार्टी ने 22 अगस्त को उन्हें केंद्रीय सदस्य बनाया था। आस्तिक के केंद्रीय सदस्य बनने के महज दो दिन बाद इस प्रमोशन से झामुमो ने एक साथ तीन निशाने साध लिए। पहला अपनी वह भूल सुधार ली जो लोकसभा चुनाव में आस्तिक महतो का जमशेदपुर से टिकट काटकर चंपाई सोरेन को देने की की थी। दूसरा कुर्मी वोटरों को पार्टी के साथ लाने के लिए कुर्मी कार्ड खेला और एक बार फिर यह संदेश दे दिया कि कुर्मी नेताओं को नेतृत्व देने के लिए पार्टी तत्पर है, अगर नेता में दम हो तो। तीसरा कोल्हान के अपने गढ़ को मजबूत करते हुए एक मजबूत सिपहसलार को बड़ी जिम्मेदारी दी। शहीद निर्मल महतो के नेतृत्व में राजनीति की शुरुआत करनेवाले आस्तिक महतो जमशेदपुर की राजनीति का बड़ा चेहरा हैं। कुर्मी वोटरों में उनकी मजबूत पकड़ है। जमशेदपुर में विद्युत वरण महतो को चुनौती देने में सक्षम नेताओं में उनकी गिनती होती है। वे टिमकेन वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष भी हैं। आस्तिक महतो का प्लस प्वाइंट यह है कि वे शिबू सोरेन के पसंदीदा हैं और उन्हें मिला प्रमोशन उनमें काम करने की नयी उर्जा भरेगा।
महतो वोटरों को अपने पाले में लायेंगे आस्तिक
जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र में करीब तीन लाख महतो वोटर हैं। आस्तिक महतो इन वोटरों के बड़े हिस्से को अपने पाले में लाने में सक्षम माने जाते हैं। इस लोकसभा सीट से विद्युत वरण महतो वर्तमान में भाजपा के सांसद हैं। बीते लोकसभा चुनावों में यहां से झामुमो ने आस्तिक महतो को टिकट न देकर चंपाई सोरेन को टिकट दिया था। पर चंपाई सोरेन हार गये थे। क्योंकि महतो वोटरों का एक बड़ा तबका विद्युत वरण महतो की ओर शिफ्ट हो गया था। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद झामुमो को इसका अहसास हो गया था। कोल्हान में जिस तरह भाजपा झाामुमो की जमीन खोदने में जुटी हुई थी। उससे पार्टी को यहां आधार खिसकता दिख रहा था। आनेवाले विधानसभा चुनावों में झामुमो महतो वोटरों को अपने पाले में लाना चाहता है और आस्तिक महतो इस काम में निर्णायक भूमिका निभायेंगे। झारखंड की सवा तीन करोड़ की आबादी का लगभग 16 फीसदी कुर्मी वोटरों का है। 2014 के विधानसभा चुनावों में इस समुदाय से आठ विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। संख्या बल के लिहाज से झामुमो इस जातिगत समीकरण को अपने पक्ष में करना चाहती है। सिल्ली में पूर्व विधायक अमित महतो और सीमा महतो पहले से ही झामुमो में हैं और इनका बढ़ता जनाधार आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो के पसीने छुड़ाये हुए है। डुमरी में जगरनाथ महतो झामुमो से विधायक हैं और गोमिया सीट पर योगेंद्र महतो ने जीत हासिल की है।
झामुमो ने बढ़ाया आस्तिक महतो का राजनीतिक कद
आस्तिक महतो को पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी देकर झामुमो ने यह जता दिया है कि वह कुर्मियों की हितैषी पार्टी है और उसे केवल आदिवासियों की पार्टी बताना गलत है। दरअसल, इसी साल एक प्रेसवार्ता में जदयू के प्रदेश संयोजक शैलेंद्र महतो ने झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा था कि झामुमो को कुर्मी समाज से एलर्जी है। उन्होंने कहा था कि पार्टी ने अपने कार्यक्रमों में कुर्मी शहीदों की तस्वीरों को हटाना शुरु कर दिया है। ऐसा करके उन्होंने कुर्मी जाति के लोगों को धोखा दिया है। हालांकि यह सच्चाई नहीं है क्योंकि झामुमो को कुर्मी नेताओं से एलर्जी होती तो आस्तिक महतो को संगठन में बड़ा पद पार्टी कभी नहीं देती। और आजसू छोड़कर आस्तिक झामुमो में इसलिए आये क्योंकि उन्हें कहीं न कहीं यही लग रहा था कि झामुमो की राजनीति ही उन्हें सूट करती है।
झामुमो में रहीं सुमन महतो ने तृणमूल के टिकट पर चुनाव लड़ा था
चार फरवरी 1973 को अस्तित्व में आयी झामुमो की स्थापना शिबू सोरेन ने बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर की थी। एक समय पार्टी में कुर्मी नेताओं की बहुतायत थी। निर्मल महतो, बिनोद बिहारी महतो, सुधीर महतो और मथुरा महतो जैसे नेताओं ने अपनी राजनीति से जहां झामुमो को झारखंड में मजबूत किया पर बाद में धीरे-धीरे झामुमो में कुर्मी नेतृत्व कमजोर होता गया। साल 2011 के जमशेदपुर लोकसभा उपचुनाव में जब झामुमो नेत्री सुमन महतो को पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो उन्होंने पार्टी छोड़कर तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। वहीं कुर्मी नेताओं का गढ़ आजसू बनता गया। इससे यह भी कहा जाने लगा कि आजसू कुर्मी नेताओं की पार्टी है। इस कयास को कलांतर में लगातार बल मिलता गया। झामुमो की स्थापना के समय इसमें कुर्मी और आदिवासी नेतृत्व का जो बैलेंस था वह कमजोर हुआ। इस कमी को पार्टी पूरा करना चाहती है और आस्तिक महतो का प्रमोशन इसी दिशा में की गयी कार्रवाई है।