विशेष
झारखंड में जदयू-सरयू की जोड़ी से भाजपा को मिलेगी ताकत
-11 सीटों पर दावेदारी कर विधानसभा चुनाव में जदयू ने पैदा किया नया रोमांच
-कुछ सीटों पर आजसू के साथ टकराव की आशंका, पर मामला सुलझ जायेगा
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड में आसन्न विधानसभा चुनाव के लिए जारी राजनीतिक गतिविधियों में से एक महत्वपूर्ण गतिविधि है समीकरण और सीटों का तालमेल। इन समीकरणों में इन दिनों जिस एक समीकरण की सबसे अधिक चर्चा है, वह है निर्दलीय विधायक और भारतीय जनतंत्र मोर्चा के संरक्षक सरयू राय का बिहार में सत्तारूढ़ और एनडीए के सहयोगी जदयू के बीच की दोस्ती और फिर इन दोनों का भाजपा-आजसू के साथ सीट शेयरिंग। सरयू राय ने बिहार के सीएम नीतीश कुमार के साथ बातचीत फाइनल कर ली है। इसके बाद जदयू ने झारखंड की कम से 11 सीटों पर दावेदारी कर दी है। पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह एनडीए गठबंधन में रह कर ही चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत जारी है। जदयू ने झारखंड की जिन विधानसभा सीटों पर दावेदारी की है, उनमें से कुछ सीटों पर भाजपा और आजसू के साथ उसका टकराव हो सकता है, लेकिन दोनों पार्टियों को भरोसा है कि यह मसला आसानी से सुलझा लिया जायेगा। उधर सरयू राय भी जदयू की दावेदारी के पक्ष में हैं। वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुराने मित्र हैं और इस बारे में उनसे मिल भी चुके हैं। सूत्रों का दावा है कि जरूरत पड़ने पर सरयू राय अपनी पार्टी भारतीय जनतंत्र मोर्चा का जदयू में विलय कर देंगे। जदयू का कभी झारखंड में अच्छा जनाधार हुआ करता था, लेकिन धीरे-धीरे यह पार्टी नेपथ्य में चली गयी। एक समय जदूये फोल्डर के पांच विधायक थे। उनमें से तीन अब इस दुनिया में नहीं हैं और दो राजनीतिक रूप से बुजुर्ग हो चुके हैं। उसके बाद नीतीश कुमार की झारखंड को लेकर रुचि कम हो गयी और धीरे-धीरे यह पार्टी नेपथ्य में चली गयी। हां, पिछले साल नीतीश कुमार ने जरूर यहां के पूर्व विधायक और जदयू नेता खीरू महतो को बिहार से राज्यसभा में भेज कर पार्टी को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक कदम बढ़ाया था। अब सरयू राय की पहल के बाद जदयू को उम्मीद है कि पार्टी झारखंड में पुनर्जीवित हो जायेगा। अब यह देखनेवाली बात होगी कि जदयू की इस दावेदारी पर भाजपा का क्या रुख होता है। अभी तक भाजपा की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। लेकिन यह सच है कि सरयू राय के जदयू में जुड़ने और फिर गठबंधन के तहत भाजपा के साथ मिल कर चुनाव लड़ने से झारखंड की कम से कम चार सीटों पर वह अच्छी टक्कर दे सकती है। क्या है सरयू राय-जदयू की दोस्ती का असली समीकरण और झारखंड एनडीए के लिए कैसा हो सकता है यह राजनीतिक समीकरण, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में अब राजनीतिक दल अपने-अपने समीकरण तय करने में लग गये हैं। इन सियासी गतिविधियों के बीच निर्दलीय विधायक सरयू राय और बिहार में सत्तारूढ़ जदयू के बीच की बातचीत के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि जदयू झारखंड में हर हाल में चुनाव लड़ेगी। पिछले पटना दौरे में सरयू राय और नीतीश कुमार की बातचीत फाइनल हो चुकी है। झारखंड में जदयू को लेकर चर्चा भी होने लगी है। जदयू भी कुछ संभावित सीटों पर अपने योग्य उम्मीदवार की तलाश शुरू कर चुकी है। हालांकि अभी तक भाजपा की तरफ से इस बारे में कोई भी प्रतिक्रिया सामने नहीं आयी है और एक तरह से अभी तक प्रदेश भाजपा इससे अनभिज्ञ है। दूसरी ओर इस संभावित नये समीकरण में कई सवाल उठ रहे हैं, जिनका झारखंड की राजनीति पर दूरगामी असर पड़ने की संभावना है।
पहले जदयू की दावेदारी की बात
एनडीए के घटक और बिहार में सत्तारूढ़ जदयू ने झारखंड विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। 2019 में जदयू ने झारखंड में अकेले दम पर 40 और 2014 में 45 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन तब वह एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। इस बार माना जा रहा है कि उसने राज्य की कम से कम 11 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है। इनमें अधिकांश वही सीटें हैं, जिन पर 2004 में जदयू ने जीत हासिल की थी। इनमें छतरपुर, डाल्टनगंज, तमाड़, बाघमारा और मांडू सीट शामिल हैं। 2009 में जदयू ने तमाड़ और छतरपुर सीट जीती थी। पार्टी बाघमारा, डुमरी और पांकी सीट पर दूसरे स्थान पर रही थी। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अब जदयू की नजर डुमरी, जमशेदपुर पूर्वी, जमशेदपुर पश्चिम, बड़कागांव और धनबाद के कतरास पर भी है। पार्टी जमशेदपुर पूर्वी और जमशेदपुर पश्चिम में सरयू राय की पकड़ को सहारा बनायेगी। जदयू के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद खीरू महतो के नेतृत्व में प्रदेश के पार्टी नेताओं ने पिछले दिनों नीतीश कुमार से मुलाकात की थी। इस बैठक में खीरू महतो ने 11 सीटों पर दावेदारी करने की बात कही। साथ ही कुरमी समाज को एसटी में शामिल करने की भी मांग रखी। कहते हैं कि नीतीश कुमार ने भरोसा दिया है कि जल्द इस पर केंद्र से बात करेंगे। झारखंड जदयू ने साफ किया है कि वह झारखंड में भी एनडीए फोल्डर में रह कर ही चुनाव लड़ेगा।
झारखंड में जदयू खोयी जमीन हासिल करना चाहता है
झारखंड जदयू की जमीन भी रही है। बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद झारखंड में बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी पहली सरकार में जदयू के झारखंड में पांच विधायक होते थे। जदयू विधायक जलेश्वर महतो, स्व रमेश सिंह मुंडा, लालचंद महतो और मधु सिंह तो झारखंड सरकार में मंत्री भी रहे। बाद में झारखंड से जदयू की जमीन खिसक गयी। यही वजह है कि जदयू अब अपना विस्तार करते हुए फिर से झारखंड में भाग्य आजमाना चाहता है।
क्या है सरयू राय का रुख
इधर जमशेदपुर पूर्वी के निर्दलीय विधायक सरयू राय ने पिछले दिनों अपने पुराने मित्र नीतीश कुमार से मुलाकात कर झारखंड विधानसभा चुनाव के बारे में बातचीत की थी। शुरूआत में इस मुलाकात को गैर-राजनीतिक कहा गया, लेकिन अब यह साफ हो गया है कि झारखंड के आसन्न विधानसभा चुनाव में सरयू राय की पार्टी जदयू के साथ मिल कर चुनाव लड़ेगी। जरूरत पड़ने पर भारतीय जनतंत्र मोर्चा का जदयू में विलय भी हो सकता है। नीतीश कुमार और सरयू राय के बीच बातचीत फाइनल हो चुकी है। हालांकि इसकी औपचारिक घोषणा अभी नहीं हुई है। सरयू राय मूल रूप से भारतीय जनता पार्टी के नेता रहे हैं। रघुवर सरकार में वह मंत्री भी थे, लेकिन उनसे नहीं पटने के कारण उन्होंने मंत्री पद छोड़ दिया था। उसके बाद रघुवर दास और सरयू राय में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता इतनी बढ़ गयी कि 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उनका टिकट काट दिया। चूंकि पार्टी में रघुवर दास की ही चलती थी, इसलिए उनके नहीं चाहने पर सरयू राय को टिकट नहीं मिला, तो वह तत्कालीन सीएम रघुवर दास के खिलाफ ही जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय चुनाव लड़े और उन्हें लगभग बीस हजार वोटों से हरा कर काफी सुर्खियां बटोरी थीं। इसे पहले सरयू राय जमशेदपुर पश्चिम से चुनाव लड़ते थे और वे वहां से विधायक भी रहे हैं। उसके बाद वर्ष 2021 में सरयू राय ने भारतीय जनतंत्र मोर्चा नामक पार्टी बनायी। वह नीतीश कुमार के पुराने मित्र हैं। नीतीश ने पहले भी कई बार उन्हें जदयू में शामिल हो जाने का आॅफर किया था, लेकिन वह शामिल नहीं हुए थे। पिछले महीने नीतीश कुमार से उनकी दो बार की मुलाकात के बाद उन्होंने भी संकेत दे दिया है कि सब कुछ ठीक रहा, तो वह अपनी पार्टी का विलय जदयू में कर देंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि सरयू राय के साथ आने से झारखंड में जदयू का जनाधार बढ़ जायेगा और उसे कुछ सीटों पर कामयाबी भी मिल सकती है।
क्या होगा इस नये समीकरण का असर
यदि इस समीकरण ने आकार ग्रहण कर लिया, तो झारखंड की राजनीति में कई नये समीकरण भी जुड़ेंगे। सवाल उठ रहा है कि यदि जदयू की झारखंड में इंट्री हुई, तो राज्य के सबसे ताकतवर माने जानेवाले कुरमी समुदाय के समर्थन का दावा करनेवाली आजसू पार्टी का क्या रुख होगा, क्योंकि जदयू का झारखंड में जनाधार भी यही समुदाय है। यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है, क्योंकि कुरमी वोटों के सहारे लोकसभा चुनाव में तेजी से उभरे खतियानी नेता जयराम महतो भी परिदृश्य में हैं। मतलब आजसू हो या जयराम महतो की पार्टी या फिर नीतीश कुमार की पार्टी हो, सभी लोग कुरमी वोटो पर जोर लगायेंगे। जदयू कुर्मी मतदाताओं में सांसद खीरू महतो के सहाये जनाधार को मजबूत करेगी। संभावना जतायी जा रही है कि जदयू के कुछ पुराने साथी, जो अभी दूसरे दलों में चले गये हैं, जदयू उनसे संपर्क में हैं और वे शामिल भी हो सकते हैं।
क्या है झारखंड में कुरमी फैक्टर
झारखंड में कुरमी वोटों का प्रतिशत 20 के आसपास है। अभी तक कुरमी वोटों पर झारखंड में सुदेश महतो का बड़ा अधिकार माना जाता था और उसके बाद भाजपा उसमें पैठ रखती थी, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में जयराम महतो की पार्टी जेबीकेएसएस ने कुर्मी वोटरों में अच्छी-खासी सेंध लगा दी है। टुंडी, डुमरी, बेरमो और गोमिया में तो जयराम महतो की पार्टी ने दूसरे दलों को पानी पिला दिया। अब अगर कुरमी वोट में जदयू भी सेंध लगाता है, तो निश्चित रूप से आजसू की राजनीतिक जमीन कुछ कमजोर होगी और यह आजसू के लिए चिंता की बात हो सकती है। इसमें कई सीटों पर जदयू के साथ-साथ जयराम की पार्टी से भी उन्हें निबटना होगा। ऐसे में अब सवाल उठता है कि इन तीन ध्रुवों के बीच भाजपा अपना संतुलन कैसे साधेगी।
भाजपा कैसे साधेगी संतुलन
अभी एनडीए में आजसू ही भाजपा के साथ है। वैसे कागज-कलम में एनसीपी के कमलेश सिंह भी एनडीए खेमे में हैं, लेकिन अभी तक वह भाजपा के किसी भी आंदोलन में साथ नहीं आये हैं। अभी विधानसभा के मानसून सत्र में एनडीए ने हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ जो आंदोलन चलाया, उसमें कमलेश सिंह कहीं नजर नहीं आये। वह न धरना में शामिल हुए और न ही प्रदर्शन में। जाहिर है, जदयू के साथ अगर भाजपा का किसी तरह का तालमेल आकार लेता है, तो उसमें एक-दो सीटें ऐसी हैं, जहां फिलहाल आजसू मजबूत है और समझौते में वे सीटें आजसू को मिलती रही हैं। अगर जदयू उन सीटों पर दावा करता है, तो आजसू के साथ तालमेल में कुछ अड़चन आ सकती है। लेकिन यह सब समय के गर्भ में है।
जदयू को नजरअंदाज करना होगा मुश्किल
भाजपा को चूंकि इस बार लोकसभा चुनाव में अपने दम पर बहुमत नहीं मिला है और केंद्र में एनडीए सरकार बनाने में नीतीश कुमार की पार्टी एनडीए का बहुत बड़ा योगदान है, ऐसे में नीतीश कुमार अगर भाजपा से झारखंड में कुछ सीटें मांगते हैं, तो उनकी मांग को ठुकराना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। नीतीश कुमार अगर जिद पर आयेंगे, तो समझौता करना ही होगा। इसे देखते हुए ऐसा लगता है कि भाजपा इस बार झारखंड के पिछले विधानसभा चुनावों की तरह जदयू को नजरअंदाज नहीं कर सकेगी। ऐसे में जदयू और आजसू के साथ तालमेल होने पर भाजपा को कुछ सीटों पर कुर्बानी देनी पड़ सकती है। इनमें जमशेदपुर पूर्वी, बाघमारा और बरकट्ठा सीटें ऐसी हैं, जहां जदयू चुनाव लड़ना चाहेगा और भाजपा के सामने चुनौती आयेगी।