आसन्न विधानसभा चुनावों में भाजपा के चौदह विधायकों की उम्मीदवारी पर तलवार लटक रही है। पार्टी इन विधायकों का टिकट काट भी सकती है। हालांकि दो के मामले में पार्टी पुनर्विचार करेगी। अगर ऐसा हुआ तो पार्टी के कई चेहरे विधानसभा में फिर से दिखाई नहीं देंगे और कुटे में बने नये विधानसभा भवन में बहस करने का उनका सपना साकार नहीं हो पायेगा। भाजपा अपने इन विधायकों का टिकट काटते हुए बहुत सहज महसूस नहीं करेगी, पर ऐसा करना पार्टी के लिए लगभग विवशता बन चुका है। भाजपा में सर्वे रिपोर्ट आने के बाद पार्टी के विधायकों के संभावित भविष्य को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।
बगीचा खूबसूरत बना रहे, इसके लिए माली बाग के फूलों और पौधों की कांट-छांट करता रहता है। हालांकि ऐसा करते हुए उसे दर्द का एहसास होता है, क्योंकि उन्हें उगाने और बढ़ाने में उसका दिन-रात लगा हुआ होता है। पर बगीचे की खूबसूरती बनाये रखने के लिए उसे न चाहते हुए भी ऐसा करना होता है। कुछ ऐसा ही हाल झारखंड भाजपा का भी है। झारखंड की राजनीति में पार्टी के बगीचे को जनता की नजरों में लुभावना बनाये रखने और उसे अपेक्षित विस्तार देने के लिए राज्य में 43 विधायकों वाली भाजपा अपने चौदह विधायकों का टिकट काट सकती है। 43 विधायकों में 37 भाजपा के अपने हैं और छह झाविमो में हुई टूट के बाद पार्टी के हो चुके हैं। हालांकि दो विधायकों के मामले में अभी अंतिम फैसला नहीं हुआ और उनकी उम्मीदवारी पर पुनर्विचार किया जा सकता है। जिनके सिर पर आसन्न चुनावों में तलवार लटकती दिख रही है, उनमें बोरियो विधायक और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष ताला मरांडी, देवघर विधायक नारायण दास, गांडेय विधायक जयप्रकाश वर्मा, बेरमो विधायक योगेश्वर महतो बाटुल, सिंदरी विधायक फूलचंद मंडल, झारिया विधायक संजीव सिंह, घाटशिला विधायक लक्ष्मण टुडू, जमशेदपुर पश्चिमी से विधायक और मंत्री सरयू राय, रांची से विधायक और नगर विकास मंत्री सीपी सिंह, कांके विधायक डॉ जीतू चरण राम, सिसई विधायक और विधानसभाध्यक्ष दिनेश उरांव, गुमला विधायक शिवशंकर उरांव और स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी के नाम शामिल हैं। इनमें देवघर विधायक नारायण दास और मंत्री सरयू राय के मामले में अंतिम निर्णय नहीं हुआ है और पार्टी इनकी उम्मीदवारी पर पुनर्विचार कर रही है। इनकी उम्मीदवारी पर अंतिम निर्णय भाजपा की संसदीय समिति करेगी।
इसलिए लटक रही है तलवार
वर्ष 2014 में झारखंड की 37 विधानसभा सीटों पर अकेले कब्जा जमाने और बाद में झाविमो के छह विधायकों को अपने पाले में लाने के बाद भाजपा झारखंड में अकेले निर्णायक दल की भूमिका में आने के लिए 65 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने का लक्ष्य लेकर चल रही है। पार्टी इस लक्ष्य को हासिल करने के प्रति कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी के राष्टÑीय अध्यक्ष अमित शाह, कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री रघुवर दास, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ, संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह, झारखंड भाजपा के चुनाव प्रभारी ओम प्रकाश माथुर और सह चुनाव प्रभारी नंदकिशोर यादव समेत भाजपा के सभी सांसदों, विधायकों और पदाधिकारियों के साथ कार्यकर्ता भी जी-तोड़ मेहनत करने में जुटे हुए हैं। सीटें कैसे जीती जायेंगी इसका ब्लू प्रिंट बनकर तैयार है और उस लक्ष्य को हासिल करने की एक सुविचारित रणनीति पर भाजपा काम कर रही है। इसी क्रम में अपनी खूबियां और खामियां जानने के लिए भाजपा ने स्वोट एनालिसिस किया है। इसी के तहत भाजपा ने झारखंड की सभी 81 सीटों पर सर्वे कराया। इस सर्वे में 14 विधायकों की मार्किंग निगेटिव पायी गयी। इसलिए आसन्न विधानसभा चुनावों में इन 14 विधायकों की उम्मीदवारी डेंजर जोन में है। इनमें फूलचंद मंडल और रामचंद्र चंद्रवंशी एज फैक्टर के कारण टिकट से वंचित किये जा सकते हैं, वहीं सीपी सिंह स्वास्थ्य कारणों और सर्वे रिपोर्ट निगेटिव होने के कारण टिकट से वंचित किये जा सकते हैं। फूलचंद मंडल और रामचंद्र चंद्रवंशी खुद टिकट से वंचित किये जाने पर अपने परिवार के लोगों को टिकट देने की कवायद में जुटे हुए हैं, पर पार्टी ने साफ कर दिया है कि किसी सांसद-विधायक के बेटे-बेटियों को वह टिकट नहीं देगी।
पार्टी में असहज फील कर रहे सरयू राय
जमशेदपुर पश्चिमी सीट से विधायक और रघुवर सरकार में मंत्री सरयू राय की रघुवर दास से नहीं बनती है। दोनों एक-दूसरे को देखकर फील गुड नहीं करते हैं यह जगजाहिर है। सरयू राय कई बार ऐसे बयान दे चुके हैं जिनसे रघुवर दास और उनकी सरकार की किरकिरी हुई है। ऐसे में पार्टी रघुवर को झारखंड की राजनीति में खेलने का खुला मैदान देते हुए सरयू राय को विधानसभा के टिकट से वंचित कर राज्यसभा भेजने पर विचार कर सकती है। अर्जुन मुंडा को पार्टी पहले ही लोकसभा का चुनाव लड़वा कर केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनवा चुकी है। हालांकि इनकी विधानसभा उम्मीदवारी पर पुनर्विचार किया जा सकता है। नारायण दास के साथ भी पार्टी रहमदिली से पेश आ सकती है, क्योंकि देवघर में नारायण दास के अलावा पार्टी के पास दूसरा कोई मजबूत विकल्प नहीं है। हालांकि उनका कामकाज पार्टी ने संतोषजनक नहीं पाया है। इसी तरह कांके विधायक जीतू चरण राम का टिकट काटकर भाजपा यहां से अमर बाउरी पर विचार कर सकती है, क्योंकि आजसू ने चंदनकियारी सीट उसे देने को कहा है। चंदनकियारी से आजसू उमाकांत रजक को चुनाव के मैदान में उतारना चाहती है और भाजपा के लिए आजसू के इस आग्रह को ठुकरा पाना गठबंधन में होने के कारण बहुत आसान नहीं रह गया है। वहीं कांके विधायक डॉ जीतू चरण राम का रिपोर्ट कार्ड ठीक नहीं है और विधायक बनने के बाद क्षेत्र में वह लोकप्रिय बन पाने में असफल रहे हैं। बोरियो विधायक ताला मरांडी पार्टी में आने के बाद भी पार्टी के पूरी तरह नहीं हो पाये यह उनके पक्ष में नहीं है। झरिया विधायक संजीव सिंह आपराधिक मामले में फंसे रहने के कारण उम्मीदवार से वंचित किये जा सकते हैं। गुमला विधायक शिवशंकर उरांव और विधानसभाध्यक्ष दिनेश उरांव का रिपोर्ट कार्ड सर्वे में पॉजिटिव नहीं आया है। लोकसभा चुनाव में ये दोनों अपने क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी को बढ़त नहीं दिला सके थे। बेरमो विधायक योगेश्वर महतो बाटुल बतौर विधायक उल्लेखनीय कुछ कर नहीं पाये हैं। उनका टिकट काटकर पार्टी सीसीएल सीएमडी के बेटे मृगांक शेखर या अन्य पर दांव खेल सकती है। अन्य विधायकों पर खतरा उनकी सर्वे रिपोर्ट निगेटिव होने और कार्यशैली संतोषजनक न होने के कारण मंडरा रहा है। लक्ष्मण टुडू का प्रदर्शन पार्टी के मानकों पर बहुत खरा नहीं उतरा है। यहां यह स्पष्ट कर दिया जाना जरूरी है कि पार्टी के इन नेताओं की जो स्थिति बतायी गयी है, यह वर्तमान परिस्थितियों में इस तरह की है। अंतिम समय में पार्टी अपने जरूरतों के अनुसार निर्णय लेगी। पर यह तय है कि ये विधायक सेफ जोन में नहीं हैं।
झाविमो को है भाजपा में टिकट बंटवारे का इंतजार
भाजपा में टिकट बंटवारे का जिस पार्टी को बेसब्री से इंतजार है, वह बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो है। भाजपा ने जिस तरह उसके आठ में से छह विधायक तोड़े हैं, उसके बाद पार्टी दम साधकर इस इंतजार में बैठी है कि किन-किन विधायकों को पार्टी टिकट देने से वंचित करती है। जैसे ही पार्टी ऐसा करेगी और उनमें से कई पार्टी को बाय-बाय बोलेंगे, झाविमो उनके जिताऊ होने की संभावनाओं पर विचार करते हुए अपने टिकट पर चुनाव लड़वायेगी। ऐसे में पार्टी को बैठे-बिठाये मजबूत उम्मीदवार मिल जायेंगे। यही कारण है कि झाविमो ने अभी महागठबंधन के बारे में अपने पत्ते नहीं खोले हैं। सीपी सिंह की पार्टी के प्रति निष्ठा को देखते हुए उन्हें भाजपा किसी राज्य का राज्यपाल बनाकर भी भेज सकती है। सीपी सिंह इसके लिए परफेक्ट च्वाइस भी हैं, क्योंकि विधानसभाध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल उल्लेखनीय रहा है।
Previous Articleआइपीएस अजय भटनागर की बर्खास्तगी की मांग
Next Article झारखंडियों की जमीन सुरक्षित नहीं : हेमंत