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    Home»Breaking News»भारतीय मीडिया को भी ग्लोबल होने की जरूरत: प्रधानमंत्री
    Breaking News

    भारतीय मीडिया को भी ग्लोबल होने की जरूरत: प्रधानमंत्री

    sonu kumarBy sonu kumarSeptember 8, 2020No Comments4 Mins Read
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    प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने भारतीय मीडिया के वैश्वीकरण की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि आज लगभग हर अंतरराष्ट्रीय मंच में भारत की मजबूत उपस्थिति है। ऐसे में भारतीय मीडिया को भी ग्लोबल होने की जरूरत है।
    प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को रिमोट कंट्रोल का बटन दबाकर वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से जयपुर में पत्रिका गेट का लोकार्पण किया। मोदी ने इस मौके पर पत्रिका समूह के चेयरमैन गुलाब कोठारी द्वारा लिखित दो पुस्तकों ‘सम्वाद उपनिषद’ और ‘अक्षर यात्रा’ का विमोचन किया। इस मौके पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राज्यपाल कलराज मिश्र भी उपस्थित थे।
    प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में कहा कि भारत के उत्पाद तो ग्लोबल हो ही रहे हैं, भारत की आवाज भी ग्लोबल हो रही है। दुनिया अब भारत को और ज्यादा ध्यान से सुनती है। उन्होंने कहा कि ऐजे में हमारे अखबारों, पत्रिकाओं की ग्लोबल प्रतिष्ठा बने, डिजिटल युग में डिजिटल माध्यम से हम पूरी दुनिया में पहुंचे, दुनिया में जो अलग अलग साहित्यिक पुरस्कार दिये जाते हैं, भारत की संस्थाएं भी वैसे ही अवार्ड दें, ये भी आज समय की मांग है। ये भी देश के लिए जरूरी है।
    महामारी के इस दौर में मीडिया की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि मीडिया ने कोरोना वायरस महामारी पर जागरूकता फैलाकर ‘अभूतपूर्व तरीकों’ से लोगों की सेवा की। प्रधानमंत्री ने वेद और उपनिषदों को वर्तमान वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए प्रासंगिक बताते हुए कहा कि उपनिषदों का ज्ञान व वेदों का चिंतन केवल आध्यात्मिक और दार्शनिक आकर्षण का ही क्षेत्र नहीं है, वेद और वेदांत में सृष्टि व विज्ञान का भी दर्शन है। आज विश्व जिन समस्याओं से जूझ रहा है, उसकी चर्चा हजारों साल पहले हुई है। उन्होंने कहा कि आज जब हम आत्मनिर्भर भारत की बात कर रहे हैं, ‘वोकल फॉल लोकल’ की बात कर रहे हैं तो हमारा मीडिया इस संकल्प को एक बड़े अभियान की शक्ल दे रहा है। हमें अपने इस विजन को और व्यापक करने की जरूरत है।
    प्रधानमंत्री ने पुस्तक पढ़ने की लोगों की घटती आदतों पर चिंता जताते हुए कहा कि आज टेक्स्ट और ट्वीट के इस दौर में ये और ज्यादा जरूरी है कि हमारी नई पीढ़ी गंभीर ज्ञान से दूर न हो जाए। प्रधानमंत्री ने देशवासियों, विशेषकर युवाओं से पुस्तकें पढ़ने का आग्रह करते हुए कहा कि गूगल गुरु के इस युग में युवाओं को वैचारिक गहराई केवल पुस्तकों से ही मिल सकती है। उन्होंने घर में पुस्तकों के लिए भी एक स्थान निश्चित करने की सलाह दी।
    उन्होंने कहा कि किसी भी समाज में समाज का प्रबुद्ध वर्ग, समाज के लेखक या साहित्यकार ये पथ प्रदर्शक की तरह होते हैं, समाज के शिक्षक होते हैं। स्कूली शिक्षा तो खत्म हो जाती है लेकिन हमारे सीखने की प्रक्रिया पूरी उम्र चलती है, हर दिन चलती है। इसमें बड़ी अहम भूमिका पुस्तकों और लेखकों की भी है। मोदी ने कहा कि हमारे देश में तो लेखन का निरंतर विकास भारतीयता और राष्ट्रीयता के साथ हुआ है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लगभग हर बड़ा नाम, कहीं न कहीं से लेखन से भी जुड़ा था। हमारे यहां बड़े-बड़े संत, बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी लेखक और साहित्यकार रहे हैं।
    उन्होंने कहा कि कर्पूर चंद्र कुलिश ने भारतीयता और भारत सेवा के संकल्प को लेकर ही पत्रिका की परंपरा को शुरू किया था। पत्रकारिता में उनके योगदान को तो हम सब याद करते ही हैं लेकिन कुलिश ने वेदों के ज्ञान को जिस तरह से समाज तक पहुंचाने का प्रयास किया, वो सचमुच अद्भुत था। प्रधानमंत्री ने कहा कि उपनिषद संवाद और अक्षर यात्रा भी उसी भारतीय चिंतन की एक कड़ी के रूप में लोगों तक पहुंचेगी, ऐसी मेरी अपेक्षा है। उन्होंने कहा कि अक्षर हमारी भाषा की, हमारी अभिव्यक्ति की पहली इकाई होते हैं, संस्कृत में अक्षर का अर्थ है, जिसका क्षरण न हो, यानि जो हमेशा रहे। विचार की यही शक्ति है, सामर्थ्य है। हजारों साल पहले जो विचार, जो ज्ञान किसी ऋषि, वैज्ञानिक ने हमें दिया, वो आज भी संसार को आगे बढ़ा रहा है।
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