मुद्रा या करेंसी किसी भी देश की संप्रभुता और ऐतिहासिक-सांस्कृतिक पहचान की प्रतीक होती है और इसमें मामूली सा बदलाव भी दुनिया भर में उस देश की साख को किसी न किसी रूप में प्रभावित करता है। इसलिए कोई भी देश अपनी करेंसी में किसी प्रकार का बदलाव करते वक्त तमाम जरूरतों और बारीकियों को ध्यान में रखता है। इधर पिछले कुछ दिनों से भारत में करेंसी नोट में बदलाव को लेकर बातें होने लगी हैं। आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नोट पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर लगाने की मांग कर जो सियासी चाल चली है, उसका सकारात्मक असर हो या नहीं, लेकिन देश के लोग इस मांग को बेमतलब मान रहे हैं। भारतीय करेंसी नोट का वर्तमान स्वरूप दुनिया भर में अनूठा है और इसमें बदलाव की कोई भी कोशिश केवल असमंजस की स्थिति ही पैदा करेगी। लेकिन केजरीवाल की मांग की पृष्ठभूमि में यह जानना दिलचस्प है कि नोट पर गांधी जी की फोटो कब आयी और आजादी से 2022 तक भारतीय रुपये में कब-कब कौन से बदलाव हुए। यह सही है कि केजरीवाल की मांग पूरी तरह सियासी है और उनकी निगाह हिमाचल प्रदेश और गुजरात में होनेवाले विधानसभा चुनावों पर है, लेकिन लोगों को यह जानकारी नहीं है कि भारतीय नोट के स्वरूप में कब क्या बदलाव हुए। इतना ही नहीं, सवाल यह भी है कि इतिहास में धार्मिक चित्र यदि मुद्रा में प्रिंट किये गये थे, तो वे चित्र कौन थे? करीब दो सौ साल तक अंग्रेजों के अधीन रहे भारत में करेंसी नोट शुरूआत में कैसे थे, यह जानना भी दिलचस्प है। भारतीय करेंसी नोट के इन बदलावों से जुड़ी जानकारियों को विस्तार से बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र से मांग की है कि भारतीय नोट पर देवी-देवताओं, गणेश और लक्ष्मी की तस्वीर लगायी जाये। इसके जवाब में सत्तारूढ़ भाजपा ने केजरीवाल को हिंदू विरोधी और इसके साथ ही कट्टर हिंदू बताया। वहीं करेंसी में देवी-देवताओं की फोटो की मांग को लेकर सवाल उठाते हुए कांग्रेस के मनीष तिवारी ने पूछा कि गांधी के साथ डॉ अंबेडकर की तस्वीरें क्यों नहीं चुन सकते? इन बयानों-प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि आगामी गुजरात चुनाव को देखते हुए भारतीय मुद्रा में हिंदू देवी-देवताओं को शामिल करने का यह एक सियासी नजरिया है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि साल दर साल आखिर भारतीय नोट में कैसे बदलाव आया है।
15 अगस्त, 1947 की मध्य रात औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन से भारत को आजादी मिली। चूंकि उस समय भारत की मुद्रा ब्रिटिश पाउंड से जुड़ी हुई थी, इसलिए तब भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के बराबर था। उस समय भारत के पास एक साफ-सुथरी बैलेंस शीट भी थी, जिसमें किसी प्रकार की विदेशी उधारी नहीं थी। भारतीय रिजर्व बैंक के शब्दों में, औपनिवेशिक व्यवस्था से आजाद भारत में करेंसी मैनेजमेंट का अंतरण काफी सहज तरीके से हुआ था।
आजादी के बाद एक नये करेंसी नोट की जरूरत महसूस की जा रही थी, क्योंकि तब की मौजूदा नोटों में ब्रिटेन के शासक किंग जॉर्ज षष्ठम की तस्वीर थी। ऐसा डिफॉल्ट रूप से था, क्योंकि भारत एक ब्रिटिश उपनिवेश था, इसलिए जॉर्ज षष्ठम भारत के भी सम्राट थे। इसलिए आजादी के बाद से लेकर भारत के गणराज्य बनने (1950) के बीच की अवधि में रिजर्व बैंक द्वारा जॉर्ज षष्ठम की तस्वीर वाली तत्कालीन नोटों को लगातार जारी किया जाता रहा। भारत के गणतंत्र बनने से एक साल पहले, यानी 1949 में भारत सरकार ने एक रुपये के नोट के लिए नयी डिजाइन जारी की। इस नयी डिजाइन के पीछे दलील यह दी गयी कि जहां एक ओर जॉर्ज की तस्वीर को बदलने की जरूरत पर समान रूप से एक सुर में सहमति व्यक्त की गयी थी, वहीं दूसरी ओर इस बात पर असहमति थी कि जॉर्ज के स्थान पर किसकी तस्वीर का चयन किया जाये। हालांकि प्रारंभिक तौर पर जो सुझाव प्राप्त हुए थे, उसमें यह कहा गया था कि जॉर्ज की फोटो के स्थान पर गांधीजी की फोटो का इस्तेमाल किया जाये, लेकिन अंतत: रिजर्व बैंक जॉर्ज के स्थान पर सारनाथ के अशोक स्तंभ की एक तस्वीर लगाने के निर्णय पर पहुंचा।
भारतीय रुपये के नोटों की डिजाइन में क्रमिक रूप से कैसे बदलाव हुआ, यह जानना भी बेहद दिलचस्प है। यह बात सभी जानते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 22 के तहत भारत में बैंक नोट जारी करने के लिए अधिकृत एकमात्र निकाय रिजर्व बैंक है। इसके अलावा, अधिनियम की धारा 25 में यह भी कहा गया है कि बैंक नोटों की डिजाइन, रूप और सामग्री को मंजूरी देने से पहले पहले केंद्र सरकार को रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड से अनुमोदन लेना होगा।
1950 में भारतीय गणराज्य ने विभिन्न रंग और डिजाइन में दो,पांच,10 और एक सौ रुपये मूल्य वर्ग का अपना पहला बैंक नोट जारी किया। मूल्य वर्ग की जो 1950 सीरीज जारी की गयी थी, उसमें नोट के पीछे हिरण, हाथी, बाघ, चिंकारे और अन्य स्थानीय जीवों की तस्वीरें शामिल थीं। 1953 में करेंसी नोटों पर हिंदी भाषा को प्रमुखता से प्रदर्शित करने का निर्णय लिया गया, तो वहीं रिजर्व बैंक ने इस सुझाव को माना था कि रुपया का बहुवचन रुपये हो। 1954 में रिजर्व बैंक ने एक हजार रुपये, पांच हजार रुपये और 10 हजार रुपये के उच्च मूल्य के नोट जारी किये, जिसमें क्रमश: तंजौर मंदिर, गेटवे आॅफ इंडिया और सारनाथ के अशोक स्तंभ जैसी प्रमुख जगहों की तस्वीरें थीं।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि भारतीय करेंसी नोट पर गांधी जी की तस्वीर कब और कैसे आयी। दरअसल 1969 में रिजर्व बैंक ने गांधीजी की एक सौवीं जयंती के सम्मान में उनकी स्मृति में एक यादगार डिजाइन सीरीज जारी की थी, जिसमें गांधीजी को महाराष्ट्र के सेवाग्राम आश्रम के सामने बैठे हुए दिखाया गया था। यहीं से करेंसी नोट पर गांधी जी की फोटो छपने लगी। 1980 में भारतीय करेंसी नोट में बदलाव हुआ। इसके तहत नोट की डिजाइन में देश की वैज्ञानिक उपलब्धियों और प्रगति को शामिल किया गया। करेंसी नोट में भारत के पहले उपग्रह आर्यभट्ट के प्रतीक और सागर सम्राट आॅयल रिग (1974 में अपतटीय ड्रिल करने वाला पहला भारतीय तेल रिग था) की तस्वीर शामिल थी। 1980 की करेंसी नोटों की सीरीज में हीराकुंड बांध और कृषि यंत्रीकरण की प्रगति की तस्वीर भी शामिल थी। फिर कोणार्क चक्र, शालीमार गार्डन, मोर जैसे और अधिक भारतीय प्रतीकों को शामिल करते हुए छोटे मूल्य वर्ग के नोटों में भी बदलाव किया गया था। इसके बाद 1987 में पांच सौ रुपये का नोट प्रस्तुत किया गया था। यह गांधीजी की तस्वीर वाली पहली आधिकारिक करेंसी बन गयी, जिसमें बार-बार गांधीजी की तस्वीर इस्तेमाल की जाने लगी।1996 में गांधी की तस्वीर वाली करेंसी नोटों की आधिकारिक सीरीज जारी की गयी थी। इस नोट में एक नया वाटर मार्क, नेत्रहीनों के लिए इंटैग्लियो फीचर, सुरक्षा धागे और एक छिपी हुई तस्वीर सहित पहले से कई बेहतर सिक्योरिटी फीचर थे। इसके चार साल बाद अक्टूबर और नवंबर 2000 में रिजर्व बैंक ने एक हजार और पांच सौ रुपये के नोट अपग्रेडेड सिक्योरिटी फीचर और गांधीजी की तस्वीर के साथ जारी किये। गांधीजी की सीरीज वाली नोटों के पिछले हिस्से में हिमालय, संसद, कृषि यंत्रीकरण के साथ-साथ हाथी और बाघ जैसे जानवरों की तस्वीरें भी शामिल की गयी थीं। 2005 में इन नोटों के सिक्योरिटी फीचर को अपग्रेड किया गया, जिसके तहत वाइड कलर शिफ्टिंग मशीन-रीडेबल मैग्नेटिक विंडोड सिक्योरिटी थ्रेड्स और अलग-अलग नोटों को अलग पहचान देने के लिए संख्यात्मक बैक-टू-बैक रजिस्ट्रेशन शामिल था। फिर 2011 में यह निर्णय लिया गया था कि भविष्य में जो नोट शुरू किये जायेंगे, उन सभी करेंसी नोटों में रुपये के सिंबल को जोड़ा जायेगा। 2015 में सरकार ने एक रुपये के नोट को फिर से शुरू किया था। लेकिन नवंबर 2016 में भारत को प्रभावित करने वाला सबसे बड़ा आर्थिक सुधार तब लागू किया गया, जब पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों को बंद कर दिया गया था और लीगल टेंडर के रूप में उन नोटों के स्टेटस को रद्द कर दिया गया था। इसके तुरंत बाद सरकार ने दो हजार और दो सौ रुपये के नोट भी पेश किये थे। ये नोट भी गांधीजी की सीरीज वाले नोट थे।
इस तरह भारतीय करेंसी नोटों के स्वरूप में कई बार बदलाव किया गया, लेकिन केजरीवाल की मांग के पीछे शुद्ध सियासत है। इसलिए कहा जा सकता है कि करेंसी नोट पर सियासत देशहित में नहीं है, क्योंकि किसी भी देश की मुद्रा उसकी अंतरराष्ट्रीय पहचान होती है। भारतीय करेंसी नोट इस समय दुनिया भर में अपने विशिष्ट स्वरूप के लिए चर्चित हैं। इसलिए इनमें किसी बदलाव की फिलहाल तो जरूरत नहीं है।