पटना। बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही जिस राजनीतिक समीकरण पर सबकी निगाहें टिकी थीं, वह अब बिखरता नजर आ रहा है। कभी विपक्षी एकता का प्रतीक माने जाने वाला महागठबंधन अब सीट बंटवारे की रस्साकशी में उलझकर कमजोर होता दिख रहा है। गठबंधन के भीतर चल रही असहमति अब खुलकर सामने आ चुकी है। बिहार की 11 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस, आरजेडी और अन्य घटक दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। इससे यह साफ हो गया है कि “महागठबंधन की एकता” अब सिर्फ नाम भर रह गई है, जबकि जमीनी स्तर पर राजनीतिक हित सबसे ऊपर हैं।
राजनीतिक गलियारों में इस घटनाक्रम की चर्चा जोरों पर है। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस ने इस स्थिति से निपटने के लिए 18 अक्टूबर को पटना के एक प्रतिष्ठित होटल में महत्वपूर्ण बैठक बुलाई है। इस बैठक में पार्टी की उच्च स्तरीय रणनीति टीम और प्रदेश नेता शामिल होंगे, जहां सीटवार समीकरण, उम्मीदवार की मजबूती और अभियान की दिशा पर चर्चा होगी। बताया जा रहा है कि कांग्रेस बैठक में आखिरी रणनीतिक निर्णय ले सकती है कि किन सीटों पर वह आरजेडी से मुकाबले में पूरी ताकत लगाएगी।
सीट बंटवारे की राजनीति में गहराता विवाद
महागठबंधन का यह विवाद कोई अचानक नहीं हुआ। चुनाव की घोषणा से महीनों पहले से ही सीटों को लेकर भीतरखाने खींचतान चल रही थी। आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई तथा वीआईपी पार्टी के बीच कई दौर की चर्चाओं के बावजूद अंतिम निर्णय नहीं हो पाया। नामांकन की अंतिम तारीख के बावजूद जब साझा फार्मूला नहीं बन सका, तो दलों ने अपने-अपने मजबूत उम्मीदवार को मैदान में उतार दिया। इससे यह तय हो गया कि गठबंधन अब सिर्फ औपचारिकता तक सीमित है।
महागठबंधन: 243 में सीट पर 255 कैंडिडेट उतारे, 12 सीटों पर महागठबंधन आमने-सामने
सीट | राजद | कांग्रेस |
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वारसीलगंज | अनीता कुमार | सतीश कुमार |
लालगंज | शिवानी शुक्ला | आदित्य कुमार (फिलहाल गायब) |
कहलगांव | रजनीश भारती | प्रवीण सिंह कुशवाहा |
सुल्तानगंज | चंदन सिन्हा | ललन कुमार |
वैशाली | अजय कुशवाहा | ई संजीव सिंह |
सिकंदरा | उदय नारायण चौ. | विनोद चौधरी |
सीट | कांग्रेस | सीपीआई |
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बछवाड़ा | गरीब दास | अवधेश राय |
बिहारशरीफ | शिव कुमार यादव | ओमैर खान |
करगहर | संतोष मिश्रा | महेंद्र गुप्ता |
राजापाकर | प्रतिमा दास | मोहिस पासवान |
सीट | राजद | वीआईपी |
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बाबूबरही | अरुण कुशवाहा | बिंदु गुलाब यादव |
चैनपुर | ब्रज किशोर सिंह | बालगोविंद बिंद |
कांग्रेस–आरजेडी के बीच टकराव: प्रदेश अध्यक्ष की सीट पर तूफान
सबसे बड़ा राजनीतिक झटका तब लगा जब आरजेडी ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम की सीट कुटुंबा पर भी अपना उम्मीदवार उतार दिया। आरजेडी की ओर से पार्टी नेतृत्व के निर्देश पर पूर्व मंत्री सुरेश पासवान को लालटेन के प्रतीक पर चुनाव में उतारा गया है। वहीं कांग्रेस से राजेश राम पहले से मैदान में हैं। इस कदम से गठबंधन की अंदरूनी खाई और गहरी हो गई है। अब कुटुंबा विधानसभा सीट पर महागठबंधन में “फ्रेंडली फाइट” नहीं बल्कि “राजनीतिक मुकाबला” स्पष्ट रूप से दिखने लगा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि आरजेडी का यह कदम कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि यह सिर्फ एक सीट का मामला नहीं बल्कि गठबंधन की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न है। कांग्रेस को यह संदेश मिला है कि आरजेडी अब अपने हितों से इतर किसी समझौते के लिए तैयार नहीं है। वहीं आरजेडी का तर्क है कि कई सीटों पर कांग्रेस ने विलंब किया और कमजोर उम्मीदवारों का चयन किया, जिससे संगठन मजबूरन कदम उठाने को बाध्य हुआ।
अंदरखाने की सियासत और बढ़ती दूरी
गठबंधन की टूट में सबसे बड़ी वजह अंदरखाने की अविश्वास की राजनीति बताई जा रही है। चुनाव से पहले कांग्रेस ने यह दावा किया था कि उसे लगभग 75 सीटें मिलेंगी, जबकि आरजेडी इस बात पर अड़ी थी कि पार्टी के पास पहले से ही ग्रामीण बिहार में मजबूत उपस्थिति है, इसलिए वह अधिक सीटों पर लड़ेगी। जब सीट शेयरिंग की बातचीत अंतिम दौर में आई, तो दोनों पक्षों में समझौता नहीं हो सका।
वीआईपी और सीपीआई जैसे छोटे घटक दलों ने भी इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश की। इन दलों ने अपनी पकड़ वाले क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया, जिससे महागठबंधन की एकता पूरी तरह बिखर गई। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि आरजेडी छोटे दलों पर दबाव बनाने की कोशिश में खुद गठबंधन को कमजोर कर रही है।
रणनीति बैठक और संभावित फैसले
18 अक्टूबर को पटना में कांग्रेस की जो बैठक बुलाई गई है, वह निर्णायक मानी जा रही है। इस बैठक में प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम, पूर्व सांसद अजय कपूर, बिहार प्रभारी रणदीप सुरजेवाला सहित पार्टी के कई वरिष्ठ नेता शामिल होंगे। इसमें सीटवार समीक्षा के साथ चुनाव प्रचार रणनीति तय की जाएगी।
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस अब “स्वतंत्र अभियान” मॉडल पर विचार कर रही है। पार्टी अब अपनी सीटों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनडीए के खिलाफ सीधा मुकाबला करने की दिशा में प्रचार तेज करेगी। कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि गठबंधन के टूटने के बावजूद अगर पार्टी अपने मुद्दों पर डटी रही, तो उसे शहरी और युवा वोटरों का समर्थन मिल सकता है।
प्रभाव और राजनीतिक समीकरण
महागठबंधन की टूट का सीधा असर चुनाव के नतीजों पर पड़ेगा। अगर कांग्रेस और आरजेडी जैसी दो प्रमुख विपक्षी पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी होंगी, तो बीजेपी और उसकी सहयोगी जेडीयू को इसका फायदा मिलेगा। एनडीए के रणनीतिकार पहले ही इस स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि विपक्ष का विघटन हमारे लिए “सोने पर सुहागा” है।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय में, आरजेडी ने यह सोचकर जोखिम उठाया है कि कांग्रेस की मूल समर्थन क्षमता बिहार में सीमित है। वहीं कांग्रेस इस बात से असहमत है और उसका मानना है कि आरजेडी का यह कदम “अहम का टकराव” ज्यादा है, न कि रणनीति।
गठबंधन की छवि पर असर
महागठबंधन की जो छवि 2020 के चुनाव में बनी थी — यानी विपक्ष का साझा मोर्चा — वह अब पूरी तरह टूट चुकी है। 2020 में जब आरजेडी ने 75 सीटें और कांग्रेस ने 19 सीटें जीती थीं, तब विपक्ष ने भविष्य में एकजुट रहने का संकल्प लिया था। मगर 2025 के चुनाव से पहले ही यह प्रतिज्ञा धराशायी हो गई।
महागठबंधन के घटक दल आपसी संवाद के बजाय सार्वजनिक बयानबाजी में उलझ गए हैं। आरजेडी के प्रवक्ता ने कहा है कि कांग्रेस हमेशा अंतिम पल में भ्रम पैदा करती है, जबकि कांग्रेस के नेता कहते हैं कि आरजेडी गठबंधन को अपने अधीन रखना चाहती है। नतीजा यह हुआ कि जनता के बीच गलत संदेश जा रहा है और विपक्ष की एकजुटता पर सवाल उठ रहे हैं।
जनता की राय
बिहार के मतदाताओं में अब यह चर्चा मुख्य विषय बन चुकी है। कहलगांव, लालगंज और बिहारशरीफ जैसी सीटों पर जनता खुलकर कह रही है कि अगर विपक्ष आपस में भिड़ेगा, तो एनडीए का पलड़ा भारी होगा। कुछ मतदाता इसे गठबंधन की “सत्ता लोभ” वाली नीति भी बता रहे हैं।
कई युवा मतदाताओं का मानना है कि कांग्रेस और आरजेडी दोनों दल अगर मुद्दों पर बात करें — जैसे बेरोजगारी, शिक्षा और कानून व्यवस्था — तो जनता फिर से विपक्ष पर भरोसा कर सकती है। लेकिन मौजूदा स्थिति में दोनों दल अपने हिस्से की कुर्सी बचाने में व्यस्त लगते हैं।