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    Home»Jharkhand Top News»बिहार में अपनी जमीन तैयार कर ली है तेजस्वी ने
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    बिहार में अपनी जमीन तैयार कर ली है तेजस्वी ने

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskNovember 6, 2020No Comments5 Mins Read
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    बिहार में विधानसभा चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं और तीसरे चरण के मतदान के लिए प्रचार खत्म हो चुका है और मतदान शनिवार को होगा। इस चुनाव की यदि एक उपलब्धि का जिक्र इतिहास में किया जायेगा, तो निश्चित तौर पर वह होगा तेजस्वी यादव का नया अवतार। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के छोटे पुत्र तेजस्वी ने इस चुनाव में न केवल अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करायी है, बल्कि साबित कर दिया है कि वह अब बच्चे नहीं हैं। बिहार का चुनाव परिणाम चाहे कुछ भी हो, तेजस्वी ने अपनी जमीन तैयार कर ली है और उनकी तारीफ इस बात को लेकर होनी चाहिए कि उन्होंने अपनी भूमिका के साथ कभी कोई अन्याय नहीं किया। महज 31 साल की उम्र और पांच साल से थोड़ा अधिक का राजनीतिक अनुभव लेकर बिहारी के रण में उतरे इस नेता ने पूरी चुनावी रणनीति खुद बनायी और चुनाव प्रचार के दौरान कभी अपने पिता के नाम का सहारा नहीं लिया। तेजस्वी का यही चेहरा उन्हें दूसरे युवा नेताओं से अलग करता है। अल्पशिक्षित होने के बावजूद राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर उनकी सोच और बेबाक राय ने उन्हें दूसरे तमाम नेताओं की जुबान पर तो जरूर चढ़ा दिया है। तेजस्वी की सबसे बड़ी कामयाबी यही है। इस युवा नेता ने साबित कर दिया है कि वह राजनीति के मैदान में लंबी रेस के लिए पूरी तरह तैयार हैं। तेजस्वी यादव के व्यक्तित्व के इसी पहलू का विश्लेषण करती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।

    बात पिछले साल के जुलाई महीने की है। लोकसभा चुनाव में राजद बुरी तरह पराजित हो गया था और बिहार की राजनीति से लालू यादव की पार्टी की समाप्ति की भविष्यवाणी लगभग पक्के तौर पर कर दी गयी थी। लालू के राजनीतिक उत्तराधिकारी और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को पूरी तरह खारिज कर दिया गया था। तेजस्वी खुद भी सीन से गायब थे। यहां तक कि पार्टी कार्यसमिति की बैठक में भी वह शामिल नहीं हुए। राजद के नेता भी उन्हें पार्टी और पूरे विपक्ष के लिए परेशानी का कारण बताने लगे थे। उन्होंने न तो बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा किया और न ही चमकी बुखार से प्रभावित लोगों से मिलने के लिए गये। तभी तेजस्वी ने 30 जुलाई को फेसबुक पर एक लंबा पोस्ट लिखा। इसमें उन्होंने बिहार की स्थिति से लेकर कई गंभीर मुद्दे पर संजीदगी से सवाल उठाया था। इसकी बहुत तारीफ हुई और 10 दिन बाद नौ अगस्त को जब वह पटना लौटे, तो उनका सब कुछ बदला हुआ था। उनकी सोच, हाव-भाव और मुद्दों पर बात करने का तरीका। राजनीति के गंभीर विषयों पर भी वह बेबाकी से बात करने लगे।
    कुल मिला कर तेजस्वी का यह मेक ओवर बिहार में होनेवाले विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर था। इसलिए सितंबर में जब चुनाव की घोषणा हुई, तब तक अपनी पार्टी के साथ-साथ विपक्षी महागठबंधन की कमान भी तेजस्वी संभाल चुके थे। तेजस्वी जानते हैं कि उनके पास पिता की बनायी पार्टी भर है। बाकी का रास्ता उन्हें खुद बनाना है और तय भी करना है। इस चुनौती को तेजस्वी ने स्वीकार किया और सवा महीने के प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने अपना जो चेहरा बनाया है, वह साबित करता है कि सियासत की पिच पर वह 20-20 का मुकाबला ही नहीं, टेस्ट मैच भी खेलने के लिए तैयार हैं।
    तेजस्वी महज 26 साल की उम्र में विधायक और उप मुख्यमंत्री बने। उनके पिता भी 1977 में जब पहली बार सांसद बने थे, तब उनकी उम्र महज 29 साल थी। तेजस्वी ने क्रिकेट मोह के कारण पढ़ाई छोड़ दी, लेकिन उनकी बातें और मुद्दों पर उनकी सोच ने कभी यह झलकने नहीं दिया कि वह बहुत अधिक पढ़े नहीं हैं। चुनाव प्रचार अभियान के दौरान तेजस्वी ने कभी संयम नहीं खोया और न ही भाषा की मर्यादा तोड़ी। उनके भाषण की सबसे खास बात यह रही कि उन्होंने कभी अपने राजनीतिक विरोधियों पर निजी हमले नहीं किये, जबकि उन पर लगातार निजी हमले किये गये। यह तेजस्वी की राजनीतिक परिपक्वता को दिखाता है। तेजस्वी को नजदीक से जाननेवाले कहते हैं कि वह एक टीम मैन हैं। वह सुनते सबकी हैं, लेकिन करते अपने हिसाब से हैं। एक और बात, जो तेजस्वी को बाकी नेताओं से अलग करती है, वह यह है कि तेजस्वी हर वक्त कुछ नया सीखने की कोशिश करते हैं। उनके मन में जिज्ञासाओं का गुबार हमेशा उठता रहता है। इसलिए सवाल उठाने में वह कभी पीछे नहीं रहते। चुनावी सभाओं में उन्होंने लगातार सवाल उठाये और बिहार के राजनीतिक माहौल को एक नयी दिशा दी है।
    एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स ने अपने एक मशहूर भाषण में कहा था कि एक सफल व्यक्ति को यदि अचानक से खारिज कर दिया जाये, तो यह उसके लिए बहुत बड़ा वरदान होगा, क्योंकि तब उसके मन में फेल होने का डर खत्म हो जायेगा और वह नये उत्साह से नयी यात्रा शुरू कर सकेगा। तेजस्वी के साथ भी यही हुआ। पिता की विशाल राजनीतिक विरासत से उन्हें जब खारिज कर दिया गया, तब उन्होंने अपने लिए रास्ता बनाया और आज स्थिति यह है कि हर जुबान पर उनका नाम अनिवार्य रूप से है। राजनीति में यह सफलता कमतर नहीं आंकी जा सकती।
    बिहार के चुनावी नतीजे 10 नवंबर को आयेंगे, लेकिन एक बात तो तय मानी जानी चाहिए कि इस चुनाव ने भारतीय राजनीति को तेजस्वी के रूप में एक बड़ा चेहरा दे दिया है। कभी अपने मजाकिया अंदाज के लिए राजनीति में अलग स्थान रखनेवाले लालू प्रसाद ने भी यह नहीं सोचा होगा कि उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी इतने कम समय में ही उनसे आगे निकल जायेगा और गंभीर मुद्दों की इतनी बारीक समझ उसे बिना किसी मार्गदर्शक के ही हासिल हो जायेगी।
    तेजस्वी यादव ने न केवल नीतीश कुमार और भाजपा के लिए गंभीर चुनौती पेश की है, बल्कि बिहार के उन तमाम राजनीतिक नेताओं को साफ संकेत दे दिया है कि वह आनेवाली राजनीति के नये गोल्डन बॉय साबित होंगे। इसलिए उन्हें इतनी जल्दी खारिज किया जाना गलत होगा।

    Tejashwi has prepared his land in Bihar
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