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हेमंत और हिमंता के ‘हाऊ द जोश’ का जवाब दे रहे प्रत्याशी,‘हाइ सर’
कमल खिलाने में कितनी सफल होगी अर्जुन-चंपाई-विद्युत की तिकड़ी

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड विधानसभा के चुनाव में कोल्हान क्षेत्र पर इस बार सभी की नजर है। खास कर यहां की तीन विधानसभा सीटें, बहरागोड़ा, घाटशिला और पोटका बेहद चर्चित हैं, क्योंकि इनमें से दो सीटों पर राज्य के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिजन भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं, जबकि तीसरी सीट पर भाजपा के एक सांसद की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इस बार कोल्हान का रण बड़ा ही दिलचस्प होने वाला है। भाजपा भी इसमें सेंधमारी करने में जुटी हुई है। दूसरी तरफ झामुमो-कांग्रेस के लिए कोल्हान बेहद महत्वपूर्ण है और बहरागोड़ा, घाटशिला और पोटका में झामुमो का सीधा मुकाबला भाजपा से है। घाटशिला में भाजपा की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को उतारा गया है, जबकि पोटका में पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा मैदान में हैं। ये दोनों पहली बार चुनाव मैदान में उतरे हैं। बहरागोड़ा सीट से भाजपा ने डॉ दिनेशानंद गोस्वामी को उतारा है, जो जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो की प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रहे हैं। इन तीन विधानसभा सीटों को कोल्हान की सबसे चर्चित सीटों में शुमार किया गया है, क्योंकि हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव के दौरान इन सीटों से भाजपा ने भारी बढ़त हासिल की थी।

ये तीनों सीटें जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं और विद्युत वरण महतो यहां से लगातार तीसरी बार चुनाव जीत कर रिकॉर्ड बनाने में कामयाब हुए थे। इसलिए इन तीनों सीटों पर कमल खिलाने की चुनौती उनके साथ अर्जुन मुंडा और चंपाई सोरेन के कंधों पर भी है। क्या है बहरागोड़ा, घाटशिला और पोटका सीट का चुनाव परिदृश्य, बता रहे हैं आजाद सिपाही के संवाददाता अरुण सिंह।

राज्य के कुछ अन्य क्षेत्रों की तरह आसन्न विधानसभा चुनाव में घाटशिला, पोटका एवं बहरागोड़ा भी हॉट सीट की श्रेणी में शामिल हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी भाजपा प्रत्याशी मीरा मुंडा के कारण पोटका, पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन के चलते घाटशिला और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ दिनेशानंद गोस्वामी के बहरागोड़ा से मैदान में उतरने से उपरोक्त तीनों ही विधानसभा सीट के परिणाम पर आम से लेकर खास तक की नजर बनी हुई है। फिलहाल ये तीनों ही सीटें झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास हैं। झामुमो प्रत्याशी रामदास सोरेन (घाटशिला), संजीव सरदार (पोटका) एवं समीर मोहंति (बहरागोड़ा) विधायक हैं और इस बार भी मैदान में हैं। इन तीनों के सामने अपनी सीट बचाये रखने की चुनौती है, तो भाजपा अपनी खोयी हुई तीनों सीटों को पुन: वापस पाने के लिए विरोधियों के लिए चक्रव्यूह रचने में जुटी है। झामुमो के रामदास सोरेन दो बार से विधायक हैं, जबकि संजीव सरदार एवं समीर मोहंति पिछला चुनाव जीतकर पहली दफा विधायक बने। दूसरी ओर, इन सीटों पर भाजपा के चुनाव चिह्न के साथ मैदान में ताल ठोक रहे बाबूलाल सोरेन एवं मीरा मुंडा पहली बार चुनावी जंग का सामना कर रहे हैं, तो दिनेशानंद गोस्वामी को लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव लड़ने का अनुभव है।

पूर्वी सिंहभूम जिला और जमशेदपुर संसदीय इलाके के इन तीनों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा संगठन एवं कोर वोटरों के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन एवं लगातार तीन बार लोकसभा का चुनाव जीतने वाले सांसद विद्युत बरण महतो का अपना-अपना प्रभाव है। इससे शायद विरोधी पक्ष भी इंकार नहीं करेगा। अभी छह महीना पहले संपन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा को इन तीनों ही सीटों पर बढ़त हासिल हुई थी।

भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व हर हाल में झारखंड में अपनी सरकार बनाने के लिए एक सोची-समझी रणनीति के मुताबिक चुनाव अभियान का संचालन कर रहा है। राज्य में भाजपा की बहुमत वाली सरकार बनाने की इच्छा पाले अर्जुन मुंडा अन्य सीटों पर मेहनत कर रहे हैं, लेकिन जाहिर सी बात है कि अपनी पत्नी के कारण पोटका सीट पर उनकी विशेष नजर बनी हुई है। इसी तरह, चंपाई सोरेन अपने विधानसभा क्षेत्र सरायकेला से समय निकाल कर घाटशिला में भी काफी समय दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपने पुत्र को विधानसभा का सदस्य बनाने की फिक्र है। रही बात बहरागोड़ा के प्रत्याशी दिनेशानंद गोस्वामी की, तो अभी तीन दिन पहले ही खुले मंच से सांसद विद्युत वरण महतो ने चुनाव सह-प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा के सामने भाजपा को विजय दिलाने का वादा कर चुके हैं। सांसद अपने भाषण में कह चुके हैं कि गोस्वामी विधायक बन जायेंगे, तो वे दोनों मिलकर समग्र विकास कर सकेंगे। बता दें कि विद्युत वरण महतो बहरागोड़ा से विधायक रह चुके हैं और वर्ष 2000 से ही उनका संबंध यहां के मतदाताओं से बना हुआ है। सच कहें, तो पार्टी संगठन से इतर भी उनका अपना वोट बैंक है। इसका भरपूर लाभ गोस्वामी को इस बार मिलेगा। परिणाम चाहे जो भी हो, लेकिन कुल मिलाकर माना जा सकता है कि वर्ष 2019 की अपेक्षा भाजपा की स्थिति तीनों ही सीटों पर बेहतर है।

पोटका : संजीव को चक्रव्यूह में फांसने में जुटे हैं अर्जुन मुंडा
पोटका सीट को फिर से झामुमो की झोली में डालने और अपने आप को दुबारा विधायक बनाने के लिए संजीव सरदार जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं और पंचायत प्रतिनिधियों को पूरी तरह से एक्टिवेट कर दिया है। गांव-टोला का दौरा करने से लेकर मतदाताओं को अपने पक्ष में बनाये रखने की कोशिश में वह दिन-रात एक किये हुए हैं। पोटका में संथाल एवं भूमिज/सरदार के अलावा ओबीसी वोटरों की संख्या भी अधिक है। संथाल वोटरों का झुकाव बेशक झामुमो की तरफ रहता है। भूमिज जाति के मतदाताओं का झुकाव भी अपनी जाति के उम्मीदवार की ओर होना लाजमी है। लेकिन इस सीट से जीत-हार ओबीसी वोटरों से तय होती है। भाजपा ने इस बार भले ही मीरा मुंडा को टिकट दिया है, लेकिन कमान अर्जुन मुंडा ने संभाल रखी है। भाजपा का टिकट नहीं मिलने से नाराज दिख रहे नेता यथा पूर्व विधायक मेनका सरदार, मनोज सरदार, उपेंद्र नाथ उर्फ राजू सरदार, गणेश सरदार, होपना महाली को साधा जा चुका है। इतना ही नहीं, झामुमो के विधायक रहे स्व अमूल्यों सरदार के घर जाकर उनके परिजन से भी अर्जुन मुंडा मिल चुके हैं। संथाल समाज के कुछ प्रतिनिधि भी मीरा मुंडा के लिए समर्थन जुटाने के काम में लगे हैं। ओबीसी वोटरों का एकमुश्त वोट भाजपा के पक्ष में आ जाये, इसके लिए भी वे कोशिश में हैं। झामुमो के एक कार्यकर्ता की मानें, तो खुद झामुमो प्रत्याशी संजीव सरदार भी मान रहे हैं कि इस बार उनका मुकाबला एक ‘पहाड़’ से है। पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी हैं। पत्नी को जिताने के लिए वह अपने तरकश से एक-एक करके तीर आजमाने लगे हैं और उसका असर दिखना शुरू भी हो चुका है। लेकिन संजीव सरदार को झामुमो के वोट बैंक, अपने द्वारा किये गये विकास कार्यों एवं समर्थकों पर भरपूर भरोसा है और दुबारा अपनी जीत के प्रति वह काफी हद तक आश्वस्त दिख रहे हैं।

घाटशिला : चंपाई के बाद अब बलमुचू बने रामदास के लिए सिरदर्द
घाटशिला सीट फिलहाल झामुमो का कब्जा है। रामदास सोरेन दूसरी दफा विधायक हैं और अभी दो महीना पहले ही मंत्री भी बनाये गये हैं। चंपाई सोरेन के झामुमो छोड़ने के बाद उनका मंत्रालय रामदास सोरेन को मिला।
अब चुनाव आया, तो रामदास के सामने चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन मुख्य मुकाबले में हैं। वैसे तो घाटशिला में झामुमो का संगठन और उसके समर्थकों का असर भाजपा से बीस है, लेकिन रामदास सोरेन के लिए भाजपा और भाजपा प्रत्याशी से ज्यादा टेंशन पूर्व सीएम चंपाई सोरेन हैं। चंपाई झामुमो के दूसरे सबसे बड़े नेता में शुमार होते थे और भाजपा में आने के बाद संथालों के सामाजिक संगठन माझी परगना महाल और ग्राम प्रधान/ माझी बाबा से संपर्क साध कर उनको अपने पुत्र के पक्ष में लाने की कवायद में जुट गये हैं। अब रामदास सोरेन के सामने खासकर आदिवासी वोटरों को झामुमो के पक्ष में एकजुट रखकर अपनी जीत सुनिश्चित करने की भारी चुनौती है। इतना ही नहीं, इंडी गठबंधन की घटक कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने प्रदीप बलमुचू के नेतृत्व में झामुमो प्रत्याशी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। डॉ बलमुचू का आरोप है कि जब कांग्रेस झामुमो का समर्थन कर रही है, तो रामदास सोरेन कांग्रेसियों को तोड़कर अपनी पार्टी में क्यों शामिल करवा रहे हैं। बता दें कि बलमुचू इस सीट से 1995 से 2009 तक तीन बार विधायक रह चुके हैं। 2009 में रामदास सोरेन ने चुनाव जीतकर कांग्रेस के विजय रथ पर ब्रेक लगाया था। झामुमो के स्थानीय नेताओं का मानना है कि बलमुचू तोरपा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने को इच्छुक थे। झामुमो ने वह सीट नहीं छोड़ी। इसलिए नाराज होकर वह घाटशिला सीट पर इंडी गठबंधन के प्रत्याशी के सामने परेशानी खड़ा करने के प्रयास में लगे हैं, जिसे झामुमो सफल नहीं होने देगा। कुल मिलाकर इस सीट पर इस बार रामदास सोरेन को भाजपा के साथ-साथ चंपाई सोरेन एवं कांग्रेस समर्थकों से भी दो-दो हाथ करना पड़ रहा है।

बहरागोड़ा : समीर को कुणाल और गोस्वामी को विद्युत का सहारा
इसी तरह, बहरगोड़ा विधानसभा क्षेत्र के चुनावी परिदृश्य की बात करें, तो यहां भी झामुमो के समीर मोहंति और भाजपा के डॉ दिनेशानंद गोस्वामी के बीच मुख्य लड़ाई है। दोनों ही दलों के रणनीतिकार, नेता एवं कार्यकर्ताओं का जोश हाइ है। जीत के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन मतदाताओं का बड़ा तबका, जिसे जुलूस, रैली, आमसभा से कुछ मतलब नहीं होता है, लेकिन जिस पर जीत-हार का दारोमदार होता है, बदलाव के बयार के साथ है या झामुमो प्रत्याशी को एक और अवसर देने के पक्ष मे है, इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं हो पाया है। पूर्व विधयाक कुणाल षाड़ंगी और उनके पिता पूर्व मंत्री डॉ दिनेश कुमार षाड़ंगी का साथ मिलने के बाद झामुमो का मनोबल बढ़ा है। झामुमो का अपना परंपरागत वोट बैंक है, कार्यकर्ताओं की फौज है। वे दिन-रात एक किये हुए हैं। तो दूसरी तरफ, भाजपा प्रत्याशी डॉ दिनेशानंद गोस्वामी के पक्ष में इस क्षेत्र में कई दफा अपन-आपको कारगर साबित कर चुके सांसद विद्युत बरण महतो का साथ है। इसके अलावा चंपाई सोरेन संथाल वोटरों के बीच कुछ हद तक सेंधमारी की जुगत भिड़ाने में लगे हैं। अर्जुन मुंडा के सहारे भाजपा यहां मुंडा मतदाताओं को साधने में लगी है। इतना ही नहीं, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा सप्ताह भर पहले यहां आकर गोस्वामी के पक्ष में चुनावी माहौल बना चुके हैं। उन्होंने तो बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र की जनता को मां कामरूप कामख्या के दर्शन का न्योता भी दे डाला। और गोस्वामी से मंच पर ही उन्होंने कहा कि विधायक बनने के बाद सबको लेकर आइए। वहां ठहरने एवं भोजन की ब्यवस्था वे खुद कर देंगे। कुल मिला कर समीर को डॉ दिनेश षाड़ंगी एवं कुणाल का साथ मिलने से मजबूती मिली है, तो गोस्वामी के साथ सांसद विद्युत वरण महतो, पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा एवं पूर्व सीएम चंपाई सोरेन इस बार तनकर खड़े नजर आ रहे हैं।

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