हमें न बांटा जा सकता है, न दबाया, हम झारखंडी हैं, झुकते नहीं
पूरे चुनाव के दौरान वह एक ही सूत्रवाक्य पर काम कर रहे थे कि आयेगा तो अबुआ राज ही
28 नवंबर और खचाखच भरा मोरहाबादी मैदान, उस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बन गया, जब झारखंड के इतिहास में किसी ने चार बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। जैसी जीत वैसा ही जश्न। इस जश्न में शामिल होने के लिए रांची ही नहीं झारखंड के कोने-कोने से लोग आये हुए थे। भीड़ इतनी कि लोगों के आने का सिलसिला, शपथ लेने के बाद भी थमा नहीं। ऐसा लग रहा था मानो रांची की सभी सड़कें आज मोरहाबादी मैदान की ओर ही जा रही हों। ऐतिहासिक मोरहाबादी मैदान में, ऐतिहासिक क्षण। झारखंड के राज्यपाल श्री संतोष गंगवार ने इंडी गठबंधन के सर्वमान्य नेता हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी। इसी के साथ ही अबुआ सरकार के सिर पर ताज सज गया। इस आयोजन में हेमंत सोरेन ने दिखा दिया कि उनकी लोकप्रियता इंडी गठबंधन में कितनी है। इस आयोजन में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, तमिलनाडु के डिप्टी सीएम और डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन, कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार समेत कई बड़े नेता इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह बने। मंच पर गांडेय विधायक और हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन के साथ उनके पिता दिशोम गुरु शिबू सोरेन और उनकी माता रूपी सोरेन भी उपस्थित थीं। हेमंत सोरेन ने यह सम्मान खुद के दम पर हासिल किया है। जब हेमंत सोरेन चुनाव जीतने के बाद दिल्ली गये थे और पीएम मोदी से मुलाकात की थी, तो पीएम ने भी उनका गर्मजोशी के साथ स्वागत किया।
क्या लड़े हेमंत!
झारखंड का विधानसभा चुनाव बड़ा ही ऐतिहासिक रहा। हेमंत सोरेन के जेल से लेकर सत्ता शीर्ष तक की कहानी, किसी से छिपी नहीं है। जब-जब हेमंत सोरेन के सामने चुनौती आयी, वह हमेशा मजबूत बन कर उभरे। उन्होंने हर बार खुद को साबित किया। लीडर क्या होता है, यह हेमंत सोरेन ने दिखा दिया। हेमंत सोरेन जब जेल में थे, तब भी वह झारखंड की जनता के लिए दिन रात सोच रहे थे। उसका प्रमाण है झारखंड की सबसे सफल योजन, जिसने झारखंड की महिलाओं को एक मंच पर जोड़ दिया। वह है मंईयां सम्मान योजना। जैसे ही पांच महीने बाद हेमंत सोरेन जेल से बाहर निकले, उन्होंने बिना देर किये मंईयां सम्मान योजना की शुरूआत कर दी। जिस भाजपा को लग रहा था कि जेल से निकलने के बाद हेमंत सोरेन टूट जायेंगे, पस्त हो जायेंगे, लेकिन भाजपा की यह कपोल कल्पना थी। हेमंत सोरेन ने दोगुनी मजबूती के साथ फिर से झारखंड की कमान संभाली।
कल्पना ने बना डाला झारखंडियत और आदिवासियत की लड़ाई
अब हेमंत सोरेन अकेले नहीं थे। उनके साथ थीं, उनकी पत्नी कल्पना सोरेन। हेमंत के जेल जाने के बाद कल्पना सोरेन ने जिस तरह से पार्टी को संभाला, उसकी जितनी भी तारीफ की जाये कम है। वह एक ऐसी मिसाल बन गयी है, जिसे झारखंड के लोग अब दशकों तक इसकी मिसाल देंगे कि कैसे एक पत्नी ने अपने पति के स्वाभिमान के लिए, अपने विरोधियों से अकेले ही लोहा ले लिया। गिरिडीह में कल्पना सोरेन पहली बार जब मंच पर आयी थीं, तो उनकी आंखों से आंसू छलके थे। लोकसभा चुनाव के दौरान बहे आंसू, धीरे-धीरे अंगार बन गये। कल्पना ने अपनी और हेमंत सोरेन की लड़ाई को झारखंडियत और आदिवासियत की लड़ाई बना डाला। कल्पना की ललकार ने विरोधियों तक के हौसले पस्त कर दिये। विधानसभा चुनाव के दौरान भी उन्होंने विरोधी दलों के दांत खट्टे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक समय तो ऐसा भी आया, जब विरोधी दल के नेता और खासकर भाजपा के नेताओं ने कल्पना सोरेन पर कटाक्ष करना शुरू कर दिया। लेकिन इससे वह डगमगायी नहीं, खुद के मिशन पर अडिग रहीं।
आयेगा तो अबुआ राज ही
वहीं हेमंत सोरेन ने एक परिपक्व लीडर की तरह विधानसभा चुनाव को लड़ा। इस पूरे चुनाव के दौरान वह एक ही सूत्रवाक्य पर काम कर रहे थे कि आयेगा तो अबुआ राज ही। चुनाव परिणाम के ठीक पहले जब पहली बार झामुमो ने यह दावा किया कि महागठबंधन 58 सीटों पर जीत दर्ज करेगा, तो सहसा किसी को विश्वास ही नहीं हुआ। उसका एक कारण राष्ट्रीय एजेंसियों का मनगढ़ंत एग्जिटपोल सामने आया, जिसमें अधिकांश ने भाजपा गठबंधन को बहुमत में दिखाया। 23 नवंबर को कहानी पलट गयी और अधिकांश एग्जिट पोल को धता बताते हुए हेमंत सोरेन की अगुवाई वाले महागठबंधन ने इतिहास रच दिया। उसने 56 सीटों पर जीत दर्ज की। दो सीटें वह मात्र दो-से तीन सौ के अंतर से हार गया।
मानो धरती पुत्र आ गया हो
28 नवंबर को एक नये हेमंत सोरेन का उदय हुआ। जन-जन की आवाज वाले हेमंत का। हेमंत को देखने के लिए मोरहाबादी मैदान में भीड़ बेसुध चली आ रही थी। जैसे ही हेमंत सोरेन मंच पर आये, वैसे ही जो उत्साह जनता में उनके प्रति देखा गया, वह अकल्पनीय था। शोर ऐसा कि मानो झारखंड का धरतीपुत्र आ गया। ऐसा दृश्य शायद ही झारखंड के इतिहास में किसी नेता के लिए देखा गया हो। छात्र नेता से जन-जन के नेता तक का सफर। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अभी तो यह शुरूआत है। हेमंत सोरेन जिस मजबूती के साथ राजनीति में अपनी धमक प्रस्तुत कर रहे हैं, वह दिन दूर नहीं, जब उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा राष्ट्रीय मंच पर भी मजबूती के साथ पहचान बना लेगी।
आदिवासी झुकता नहीं
हेमंत सोरेन का मानना है कि 28 नवंबर का दिन, राजनीतिक जीत के बारे में नहीं है, यह दिन सामाजिक न्याय के प्रति संघर्ष, सामाजिक एकता को प्रखर करने की रोज लड़ी जानी वाली लड़ाई को दोहराने का दिन है। यह दिन यह भी बताता है कि लोकतंत्र पर बढ़ते दबाव के बीच झारखंड की महान जनता एक साथ खड़ी रही। आज हर गांव, हर शहर में एक आवाज गूंज रही है, अधिकार, समानता, एकता, यानी झारखंडियत की आवाज। हेमंत कहते हैं, हमारी एकता ही हमारा सबसे बड़ा हथियार है। हमें न विभाजित किया जा सकता है, न ही शांत किया जा सकता है। जब-जब कोई हमें पीछे धकेलने की कोशिश करता है, हम निरंतर आगे बढ़ते हैं। जब-जब जो हमें शांत करना चाहते हैं, हमारी हूल, उलगुलान, क्रांति की आवाज और प्रखर होती जाती है क्यूंकि हम झारखंडी हैं, और झारखंडी झुकते नहीं है।