रांची। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार के नेतृत्व में मिली पहली जीत के पीछे कुशल व्यवस्था है। पहली बार उन्होंने महागठबंधन का खयाल किये बिना अपने स्टैंड पर कायम रहते हुए प्रत्याशी उतारा। इसमें बाबूलाल मरांडी का भी भरपूर समर्थन मिला। साथ ही सुबोधकांत सहाय ने भी पूरी तरह से कमान संभाल ली। वोटिंग के पहले तक हारी हुई बाजी को कांग्रेस जीत गयी। यह माना जा रहा था कि पूर्व विधायक एनोस एक्का की पत्नी की यहां से जीत तय है। बावजूद इसके इस हार को डॉ अजय के कुशल नेतृत्व के कारण जीत मिल गयी। यह कहा जा सकता है कि तन-मन से किया गया काम सुखद परिणाम ही देता है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
छत्तीसगढ़ समेत तीन राज्यों में आंधी का असर भी कोलेबिरा में दिखा। सिर्फ कोलेबिरा ही नहीं, अब तो तमाम आदिवासी और क्रिश्चियन-मुसलिम बहुल सीट पर अलग समीकरण दिख रहा है। कहीं न कहीं कांग्रेस के पक्ष में यह खेमा जाता दिख रहा है। इसाई मिशनरी पूरी तरह से झारखंड सरकार के खिलाफ हो गयी है। कारण चाहे जो भी हो, लेकिन मुसलमान समुदाय के बीच भी यह धारणा बन गयी है कि यह सरकार उनका साथ नहीं देगी। दो समुदाय के एकजुट होने के कारण ही विक्सल कोनगाड़ी को कोलेबिरा की जनता ने नमन किया। कोलेबिरा की जनता ने विक्सल कोनगाड़ी को जीत नहीं दिलायी, बल्कि कांग्रेस का हाथ पकड़ा। साथ ही झामुमो को झटका भी दिया। कारण झामुमो ने झापा प्रत्याशी मेनन एक्का को समर्थन दिया था। झामुमो ने भी शायद इसी गुमान में समर्थन दिया था कि मेनन एक्का की इस क्षेत्र में जीत पक्की है, लेकिन क्षेत्र की जनता ने मेनन एक्का की जमानत तक जब्त करा दी। इस परिणाम से झामुमो भी चारों खाने चित हो गया।
इस परिणाम ने यह भी संकेत दिया कि धीरे-धीरे आम जन का रुझान अब राष्टय दल की ओर होता जा रहा है। राष्टय नेताओं की तरफ जनता का झुकाव बढ़ता जा रहा है। वहीं दूसरी ओर राष्टय स्तर का नाम भी जनता के जेहन में कौंध रहा है। कारण इस क्षेत्र में बाबूलाल मरांडी, सुबोधकांत सहाय सरीखे नेताओं ने मोर्चा संभाल रखा था।
बाबूलाल की क्षेत्रीय दल में होते हुए भी राष्टय स्तर पर पहचान है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो 2019 के चुनाव में इसका फायदा कांग्रेस और बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो को मिल सकता है। इसलिए कि बाबूलाल मरांडी मौसमी नेता नहीं हैं। वह हर वक्त राजनीति करते हैं। राजनीति ही उनका मुख्य पेशा है। दूसरी ओर बाबूलाल मरांडी का कोई बिजनेस नहीं है। भाई-भतीजा को विरासत में राजनीति नहीं सौंपनी है। दूसरे नेताओं में कुछ न कुछ ये चीजें होती हैं। किसी नेता को पत्नी को आगे बढ़ाने की मंशा होती है, तो कोई बेटा-भाई और अन्य रिश्तेदार को विरासत सौंपना चाहता है। वहीं बाबूलाल मरांडी के पास इसमें से कोई भी बीमारी नहीं है। उन्हें न पत्नी को स्थापित करना है और न बेटे को नेतागिरी का ताज सौंपना है।
बाबूलाल मरांडी राजनीति के सहारे सिर्फ लोकतंत्र को मजबूत करना चाहते हैं। इसी कारण तमाम विषम परिस्थतियों में भी वह खड़े हैं। कभी पैसे के पीछे भी नहीं भागे। शायद यही कारण है कि कोलेबिरा की जनता ने पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय और प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार सरीखे नेताओं पर भरोसा किया है।